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Showing posts from September, 2022

श्रीराधातत्त्वविमर्श

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श्रीराधातत्त्वविमर्श - ०१ & 02 शास्त्रों के परम्परागत ज्ञान और आचरण से विमुख जनों के मन में एक भ्रम बहुत शीघ्रता से व्याप्त हो रहा है कि राधा नामक कोई चरित्र था ही नहीं, यह बाद के कवियों या विधर्मियों ने भगवान् श्रीकृष्ण को बदनाम करने के लिए मिलावट कर दी। इस कुतर्क के पक्ष में वे यह कहते हैं कि यदि राधा का कोई अस्तित्व होता तो क्या श्रीमद्भागवत जैसे महत्वपूर्ण वैष्णव ग्रन्थ में उनका उल्लेख नहीं होता ? अब इस बात का उत्तर देने के चक्कर में आज के कुछ अभिनव कथावाचक बिना सम्प्रदायानुगमन के ही श्रीमद्भागवत में कहीं भी र और ध शब्द की संगति देखकर वहीं हठपूर्वक राधाजी को सिद्ध करने बैठ जाते हैं।  वर्तमान में आधावन्तः/राधावन्तः शब्द में वितण्डापूर्वक राधाजी को सिद्ध करने का कुप्रयास प्रसिद्ध है ही। और राधावान् बताया भी किसे जा रहा है ? कबन्धों को। देवता तो अमृतपान कर चुके थे, सो उनका कबन्धीकरण सम्भव नहीं, वैसे भी कबन्ध तो सुरों के नहीं, असुरों के ही बने हैं - कबन्धा युयुधुर्देव्याः। तो कुछ महानुभाव कबन्धों को ही राधाभक्त सिद्ध करने लग गए।  गुरुजनों ने व्याकरण पढा है, वर्षों तक पढ

श्राद्ध

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श्राद्ध :-- [ आज 19 दिनों के बाद इन्टरनेट से जुड़ने का समय मिला है, वह भी टेबलेट पर (उत्तर बिहार के) धीमे इन्टरनेट से |] कुछ लोगों ने सुझाव भेजे हैं कि श्राद्ध के भोज आदि में अनावश्यक खर्च न करें, न्यूनतम खर्च में अन्त्येष्टि कार्य संपन्न करें | कई लोग श्राद्ध के भोज का अर्थ नहीं समझते, पूँजीवादी अ-समाजशास्त्र और अनर्थशास्त्र के तथाकथित ज्ञाता यह नहीं बतलायेंगे कि सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर भोज की परम्परा प्राचीन  "वसुधैव कुटुम्बकं"  के दर्शन का अवशेष है जब दान से लाभ  मिलने पर लोगों का विश्वास था, आज दान के बदले  "बचत"  और बैंक-बैलेंस पर भरोसा है | सरकार भी गिफ्ट पर टैक्स ठोकती है, और बचत पर सूद देती है, जो प्राचीन धर्मशास्त्र के ठीक उलट है | धर्मशास्त्र उलटा था या आज का समाज उलटा हो गया है ? सत्य को जीवन में महत्व देने वाला सतयुग उलटा था या कलियुग का दुमुंहा सांप सरीखा मनुष्य उलटा हो गया है जो बातें तो बड़ी-बड़ी करता है लेकिन अपने सगे-संबंधियों  को भी उनकी मृत्यु होते ही कूड़ेदानी के लायक समझता है ?  "श्राद्ध"  शब्द  'श्रद्धा'  से सम्बन्ध रखता है |

जोशीमठ के भूस्खलन-धंसाव व घरों मकानों पर दरार

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जोशीमठ के भू स्खलन  भू धंसाव व घरों मकानों पर पड़ रही दरारों को लेकर सरकार द्वारा गठित वैज्ञानिकों की कमेटी की रिपोर्ट आ गयी है । रिपोर्ट में बहुत से कारकों को इसके लिए जिम्मेदार बताया है जिनमें नदी के कटाव, पानी निकासी, सीवेज की व्यवस्थित निकासी न होने, अत्यधिक निर्माण के चलते भूमि पर दबाब आदि को चिन्हित किया है ।  किन्तु विऐज्ञानिकों विशेषज्ञों की इस कमेटी ने जोशीमठ के ठीक नीचे से गुजर रही तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना की सुरंग को इन कारकों में चिन्हित नहीं किया है । जबकि इससे पूर्व हमारे आग्रह पर स्वतंत्र वैज्ञानिकों की एक टीम ने एनटीपीसी की इस सुरंग को भी भूस्खलन के कारण के रूप में चिन्हित किया था ।  रोचक तथ्य है कि सरकार द्वारा गठित वैज्ञानिकों की कमेटी के अध्यक्ष व प्रमुख भूगर्भ वैज्ञानिक आपदा प्रबन्धन विभाग के निदेशक डॉ पियुष रौतेला व अन्य भूगर्भ शास्त्री डॉ एम पी एस बिष्ट के साइंस जनरल में छपे शोध पत्र में एनटीपीसी द्वारा बनाई जा रही विद्युत परियोजना की इस सुरंग से जोशीमठ में भू स्खलन होने की संभावना व्यक्त की गई है । 12 वर्ष पूर्व छपे शोधपत्र में जिस सुरंग को

चैतन्य ब्रह्माण्ड का सप्तवायु

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चैतन्य ब्रह्माण्ड का सप्तवायु प्रवह आदि सप्तवायु के बारे में इण्टरनेट पर पूर्णतया भ्रामक सूचनायें सभी वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं । इन तथाकथित हिन्दुओं में इतना विकासवादी अहङ्कार है कि ‘पिछड़े’ युग के वेदव्यास जी द्वारा सङ्कलित पुराणों तथा महाभारत को देखने का प्रयास भी नहीं करते और अपनी मनगढ़न्त बकवास को वेदव्यास जी के नाम पर उद्धृत करते रहते हैं । अपनी बकवास करनी ही है तो अपने नाम से करें,महर्षि वेदव्यास जी के नाम पर झूठ बकना ऋषियज्ञ का विलोम फल देता है,किन्तु विकासवादियों को पाप−पुण्य भी ऋषियों के ‘पिछड़े’ युगों की बकवास लगती हैं । सप्तवायु का क्रम भी ये लोग गलत बताते हैं और अर्थ भी । पुराणों की तुलना में महाभारत अधिक विस्तार से इस विषय की जानकारी देता है । महाभारत के शान्तिपर्व अध्याय−३१५ में सप्तवायु का क्रम निम्न है और मूल श्लोक संलग्न स्क्रीनशॉट में है जिसका अर्थ गीताप्रेस की हिन्दी टीका में देखें ।  संलग्न स्क्रीनशॉट के संस्कृत पाठ से गीताप्रेस के संस्कृत पाठ में कई स्थलों पर मैंने महत्वपूर्ण अन्तर देखे हैं,गीताप्रेस का मूल संस्कृत पाठ बेहतर है । श्लोक−३६ से प्रवहादि सप्तवा

राशी-द्वार

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******** सर्वोत्तम पूजा-श्राद्ध तर्पण ******** ===============================      हिन्दू सनातन धर्म के ऋषिमुनि , ब्राह्मण , तपस्वी नित्य भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देना , अग्निहोत्र पूजा एवं नदी सरोवर तीर्थ स्नानमे तर्पण नित्य ही करते है और सनातन धर्म की ये श्रेष्ठ पूजा उपासना है । देव , गुरु और पितृओ कि प्रसन्ता से ही सर्वमंगल होता है । इसलिए ही प्रतिमास या भाद्रपद के इस पितृपूजा पक्षमे श्राद्ध तर्पण अवश्य ही करना चाहिए । पितृओ कि प्रसन्ता के बिगैर स्वयम ब्रह्म भी फलदायी नही होते ।  पितृपक्ष का रहस्य :-  ये ब्रह्मांड बाराह राशीओ से बंधा हुवा है । मेष राशि ब्रह्मांड का प्रवेश द्वार है । मीन राशि का द्वार देवलोक ( सूर्यलोक ) की ओर है । कन्या राशि का द्वार पितृलोक ( चंद्रलोक ) की ओर है । जब किसी की मृत्यु होती है तब जीव कर्मानुसार इनमे से एक द्वार की ओर गति करता है । सद कर्म , सदाचार ओर पैरोकारी जीव अपने पुण्यबल से सूर्यलोक जाता है । बाकी जीव पितृयान ( चन्त्रलोक ) में गति करते है । चंद्र सूक्ष्म सृष्टि का नियमन करते है ।       सूर्य जब कन्या राशिमें प्रवेश करते है तब पाता