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Showing posts from March, 2018

पाश्चात्योंको म्लेच्छकी उपमा क्यों ?

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पाश्चात्योंको म्लेच्छकी उपमा क्यों ? विदेशी संस्कृतिसे प्रभावित एवं विदेशमें रहनेवाले एक जन्म हिन्दूने पूछा है कि आप पाश्चात्योंको म्लेच्छ क्यों कहती हैं ? इसके कुछ कारण इसप्रकार हैं – १. वे मल-मूत्र त्यागने या भोजन करनेके पश्चात् जलकी अपेक्षा कागदसे स्वच्छता करना, अधिक उचित समझते हैं और इसको वे सभ्य समाजका प्रतीक समझते हैं । २. अनेक दिवसोंतक वे स्नान नहीं करते हैं । (यह न कहें कि वहां ठण्ड है इसलिए वे ऐसा करते हैं, मैं कश्मीर जा चुकी हूं, कडकती ठण्डमें कश्मीरी पण्डितोंको प्रतिदिन स्नान करते देखा है ।) ३. स्वेदकी (पसीनेकी) दुर्गन्धको दूर करने हेतु अनिष्ट शक्तियोंको आकर्षित करनेवाले कृत्रिम एवं रासायनिक सुगन्ध द्रव्यों अर्थात् deodrant और ‘इत्र’का उपयोग करते हैं । ४. वे अपनी सन्तानोंको सोलह वर्षके पश्चात् वैसे ही त्याग देते हैं जैसे पशु-पक्षी अपने बच्चोंको थोडा भी आत्मनिर्भर देख छोड देते हैं । ५. स्त्रियां उनके लिए मात्र भोगकी वस्तु होती हैं । ६. विवाह वे मात्र अपनी लैंगिक इच्छाओंकी तृप्ति हेतु करते हैं और यदि उसकी पूर्ति बिना विवाहके हो जाए तो वे विवाह रुपी संस्थामें

ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पुरुष का अर्थ

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ब्राहमण, क्षत्री, वैश्य, शूद्र को वेदों से जोड़ कर वेदों के पुरुष सूक्त से दिखाया जाना भ्रमित करता है \ क्योंकि वेदों में पुरुष सधारण मनुष्य नहीं है |  पुरूष का मनुष्यरूप विवेचन तो वेदों के अनंत काल पश्चात वेदांत उपनिषद काल से प्रारम्भ हुआ है |  इस के लिए निम्न विवेचना देखिए ;वैदिक वाङ्मय में पुरुष शब्द से अभिप्राय:- आजकल अल्पज्ञान और मतिमन्द होने के कारण बहुत से लोग पुरुष से अभिप्राय केवल अंग्रेजी के जेण्ट्स से लेते हैं । वैदिक वाङ्मय में पुरुष शब्द के अनेक अभिप्राय उपलब्ध हो ते हैं । आइए देखते हैं कि पुरुष शब्द का क्या अभिप्राय हैः---  (१.) पुरुष शब्द परमात्मा का वाचकः--- सृष्टि विद्या के विषय में अति प्राचीन आर्यग्रन्थकार सहमत हैं कि वर्त्तमान दृश्य जगत् का आरम्भ परम पुरुष अविनाशी , अक्षर अथवा परब्रह्म से हुआ । तदनुसार पुरुष शब्द मूलतः परब्रह्म का वाचक है । (२.) हिरण्यगर्भ का वाचकः--- पुरुष शब्द का प्रयोग कहीं-कहीं हिरण्यगर्भ अथवा प्रजापति के लिए भी हुआ है वेदांत में पुरुष को मनुष्यपरक माना है । (३.) मनुष्यपरकः--- पुरुष शब्द का तीसरा मनुष्यपरक अर्थ सुप्रसिद्ध ही है । यह केव