पाश्चात्योंको म्लेच्छकी उपमा क्यों ?
पाश्चात्योंको म्लेच्छकी उपमा क्यों ?
विदेशी संस्कृतिसे प्रभावित एवं विदेशमें रहनेवाले एक जन्म हिन्दूने पूछा है कि आप पाश्चात्योंको म्लेच्छ क्यों कहती हैं ?
इसके कुछ कारण इसप्रकार हैं –
विदेशी संस्कृतिसे प्रभावित एवं विदेशमें रहनेवाले एक जन्म हिन्दूने पूछा है कि आप पाश्चात्योंको म्लेच्छ क्यों कहती हैं ?
इसके कुछ कारण इसप्रकार हैं –
१. वे मल-मूत्र त्यागने या भोजन करनेके पश्चात् जलकी अपेक्षा कागदसे स्वच्छता करना, अधिक उचित समझते हैं और इसको वे सभ्य समाजका प्रतीक समझते हैं ।
२. अनेक दिवसोंतक वे स्नान नहीं करते हैं । (यह न कहें कि वहां ठण्ड है इसलिए वे ऐसा करते हैं, मैं कश्मीर जा चुकी हूं, कडकती ठण्डमें कश्मीरी पण्डितोंको प्रतिदिन स्नान करते देखा है ।)
३. स्वेदकी (पसीनेकी) दुर्गन्धको दूर करने हेतु अनिष्ट शक्तियोंको आकर्षित करनेवाले कृत्रिम एवं रासायनिक सुगन्ध द्रव्यों अर्थात् deodrant और ‘इत्र’का उपयोग करते हैं ।
४. वे अपनी सन्तानोंको सोलह वर्षके पश्चात् वैसे ही त्याग देते हैं जैसे पशु-पक्षी अपने बच्चोंको थोडा भी आत्मनिर्भर देख छोड देते हैं ।
५. स्त्रियां उनके लिए मात्र भोगकी वस्तु होती हैं ।
६. विवाह वे मात्र अपनी लैंगिक इच्छाओंकी तृप्ति हेतु करते हैं और यदि उसकी पूर्ति बिना विवाहके हो जाए तो वे विवाह रुपी संस्थामें नहीं फंसते हैं ।
७. मांसाहार करना उनकी नैसर्गिक प्रवृत्ति होती है, शाकाहारी भोजन क्या होता है यह उन्हें ज्ञात ही नहीं होता, वैसे आजकल विदेशमें मांसाहारसे हानिपर हुए शोधके कारण धीरे-धीरे कुछ लोग शाकाहारी बनने लगे हैं ।
८. माता-पिता उनके लिए मात्र उपयोगकी वस्तु होते हैं, जब उन्हें उनकी आवश्यकता होती है वे उनका उपयोग करते हैं अन्यथा उनसे उनका कोई सम्बन्ध नहीं होता ।
९. उनका घर भोग करने एवं सन्तान प्राप्तिका केन्द्र होता है, घर एक देवालय या आश्रम होता है, यह उन्हें ज्ञात नहीं है ।
१०. उनके शरीरसे एक विचित्र प्रकारकी आसुरी दुर्गन्ध आती है एवं उनका सूक्ष्म काला आवरण १० से १५ ‘फीट’तक होता है, जिस कारण उनके सम्पर्कमें आनेवाले व्यक्ति भी उनके आसुरी काले वलयमें आ जाते हैं । खरे अर्थोंमें वे अछूत होते हैं ।
११. उनके सिरपर काम और अर्थका ही भूत सदैव सवार होता है; अतः वे मात्र इन दोनोंकी पूर्तिमें लिप्त होते हैं ।
कुछ लोग सोच रहे होंगे की यह सब तो आज अनेक हिन्दुओंमें भी देखनेको मिल रहा है । जी हां ! उन म्लेच्छोंसे प्रभावित होकर भारतमें भी अनेक विवेकशून्य जन्म हिन्दू, म्लेच्छ बन रहे हैं । तभी तो हमारे देशकी यह दुर्दशा हो रही है; अतः इस संक्रमणको शीघ्र अति शीघ्र रोकने हेतु हिन्दुओंको धर्मशिक्षण देकर हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना करना अनिवार्य हो गया है । – तनुजा ठाकुर जी
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.