भविष्य पुराण में महा-मद नाम के व्यक्ति के बारे में कुछ बताया है !! पैशाचिक धर्म की स्थापना या धर्म की स्थापना?

हमारे भविष्य पुराण में शुरूआती अध्याय में भविष्यवाणी की गयी है महा-मद नाम के व्यक्ति के बारे में, स्थान पता सब लिखा हुआ है. ये व्यक्ति इस धरती पे पैशाचिक धर्म की स्थापना करेगा, जिसके बारे में सब कुछ ठीक वैसे ही जैसा रहन सहन मुस्लिमो के तरह है, अर्थात महा-मद मतलब महा-मतलबी धर्म एवं कृत्यों की स्थापना करने वाला. इसका वर्णन का मतलब ये थोडा ही न हुआ कि महा-मद कोई भगवान है !!
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इसको अजीब अजीब नाम दिया है भविष्य पुराण में. लिंगो-च्छेदी इत्यादि.
महा-मद अर्थात - मजबूत लीक में हाथी, अत्यधिक या हिंसक लीक, मादकता and नशा.
इसका जन्म-कुंडली भी यही बताता है. आप किसी एक्सपर्ट पंडित को पूछियेगा.
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कई शांतिप्रिय विशेष लोग इस पक्ष में मजबूत एवं दृढ विचारधारा के हैं कि नहीं, इन लोगों में तो कई अच्छी बातें भी हैं, लेकिन, सौ में पांच बात जनता की भलाई के लिए हों तो, वो धर्म नहीं माना जा सकता. अधिकतर कुरआन का उद्धरण देने वाले झूठ बोलते हैं, क्यूंकि पुराण एवं वेद में कभी n झूठ का सहारा लिया गया है और n इसे कहीं पे सराहा गया है. बलि प्रथा का भी अन्य मतलब है, आज के बलि की तरह नही है.
खैर....
प्रथ्वी पे अपने बलबूते राज करने वालों में अकबर, विक्टोरिया तक का वर्णन है, इसके बाद से धरती पे शासन व्यवस्था में खिचड़ी-सरकार होगी, फिर तानाशाही प्रशासनिक व्यवस्था बतायी गयी है..
लोकतंत्र मात्र पचास वर्ष तक ही रहेगा, पुनः से तानाशाही से पृथ्वी शासित रहेगी.
बाद में इस पुराण में दानवों द्वारा मिलावट भी है, जो साफ़ दीखता है, इसमें राम को ईशा का शिष्य बताया है.
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लेकिन कुछ अध्यायों में इंजीनियरिंग को तुच्छ एवं साधकत्व एवं संत-प्रवृत्ति को महान बताकर(क्यूंकि मैं कोई संत नहीं हूँ), उस विधि से प्राप्त तकनीकी गान को महान बताया गया है, जिसके बाद मैंने इस ग्रन्थ की पढाई रोक दी, क्यूंकि मैं पेशे से मैकेनिकल इंजिनियर हूँ, और मुझे इसके लिए पैशन है, साथ में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के साथ भी प्यार है. इसीलिए जब इंजीनियरिंग के बारे में अपमान जनक बात दिखी तो समझने के लिए कुछ सालों तक इन ग्रंथों को पढना बंद कर दिया.
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अब दुबारा से पुनः पढ़कर एक नया काम करना है.
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महामद के बारे में विशेष -
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राजा शालिवाहन के वंश में दस राज हुए थे। उन सबने पञ्च सौ वर्ष पर्यन्त राज्य शासन किया था और अंत में दुसरे लोक में चले गए थे। उस समय में इस भूमण्डल में क्रम से मर्यादा लीन हो गयी थी। जो इनमे दशम राजा हुआ है वह भोजराज नाम से प्रसिद्द हुआ।
उसने मर्यादा क्षीण होते देखकर परम बलवान उसने(राजा ने) दिग्विजय करने को गमन किया था। सेना में दस सहस्त्र सैनिक के साथ कविश्रेष्ठ कालिदास थे।
तथा अन्य ब्राह्मणों के सहित वह सिन्धु नदी के पार प्राप्त हुआ(अर्थात पार किया) था। और उसने गान्धारराज, मलेच्छ, काश्मीर, नारव और शठों को दिग्विजय में जीता।
उनका बहुत सा कोष प्राप्त करके उन सबको योग्य दण्ड दिया था। इसी समय काल में मल्लेछों का एक आचार्य हुआ।
महामद शिष्यों की अपने शाखाओं में बहुत प्रसिद्द था। नृप(राजा) ने मरुस्थल में निवास करने वाले महादेव को नमन किया।
पञ्चजगव्य से युक्त गंगा के जल से स्नान कराके तथा चन्दन आदि से अभ्याचना(भक्तिपूर्वकभाव से याचना) करके हर(महादेव) को स्तुति किया।
भोजराज ने कहा - हे गिरिजा नाथ ! मरुस्थल में निवास करने वाले, बहुत सी माया में प्रवत होने त्रिपुरासुर नाशक वाले हैं।
मलेच्छों से गुप्त, शुद्ध और सच्चिदानन्द रूपी, मैं आपकी विधिपूर्वक शरण में आकर प्रार्थना करता हूँ।
सूत जी ने कहा - महादेव ने प्रकार स्तुति सुन राजा से ये शब्द कहे "हे भोजराज आपको महाकालेश्वर तीर्थ जाना चाहिए।"
यह वाह्हीक भूमि मलेच्छों द्वारा दूषित हो चुकी है। इस दारुण(हिंसक) प्रदेश में आर्य(श्रेष्ठ)-धर्म नहीं है।
जिस महामायावी राक्षस को मैंने पहले माया नगरी में भेज दिया था(अर्थात नष्ट किया था) वह त्रिपुर दैत्य कलि के आदेश पर फिर से यहाँ आ गया है।
वह मुझसे वरदान प्राप्त अयोनिज(pestle, मूसल, मूलहीन) हैं। एवं दैत्य समाज की वृद्धि कर रहा है। महामद के नाम से प्रसिद्द और पैशाचिक कार्यों के लिए तत्पर है। हे भूप(भोजराज) ! आपको मानवता रहित धूर्त देश में नहीं जाना चाहिए। मेरी प्रसाद(कृपा) से तुम विशुद्ध राजा हो।
यह सुनने पर राजा ने स्वदेश को वापस प्रस्थान किया। और महामद उनके पीछे सिन्धु नदी के तीर(तट) पर आ गया।
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मायामद माया के ज्ञाता(महामद) ने राजा से झूठ कहा - हे महाराज ! आपके देव ने मेरा दासत्व स्वीकार किया है अतः वे मेरे दास हो गए हैं।
हे नृप(भोजराज) ! इसलिए आज सेआप मुझे ईश्वर के संभुज(बराबर) उच्छिष्ट(पूज्य) मानिए, ये सुन कर राजा विस्मय को प्राप्त भ्रमित हुआ।
राजा की दारुण(अहिंसा) मलेच्छ धर्म में रूचि में वृद्धि हुई। यह राजा के श्रवण करते देख, कालिदास ने क्रोध में भरकर महामद से कहा।
हे धूर्त ! तूने नृप(राजधर्म) से मोह न करने हेतु माया रची है। दुष्ट आचार वाले पुरुषों में अधम वाहीक को मैं तेरा नाश कर दूंगा।यह कह श्रीमान ब्राह्मण(कालिदास) ने नर्वाण मंत्र में तत्परता की। नर्वाण मंत्र का दश सहस्त्र जाप किया और उसके दशाश जप किया।
वह मायावी भस्म होकर मलेच्छ देवत्व अर्थात मृत्यु को प्राप्त हुआ। भयभीत होकर उसके शिष्य वाहीक देश में आ गए।उन्होंने अपने गुरु(महामद) की भस्म को ग्रहण कर लिया और और वे मदहीन को गए। भूमध्य में उस भस्म को स्थापित कर दिया। और वे वहां पर ही बस गए।
वह मदहीन पुर हो गया और उनके तीर्थ के सामान माना जाने लगा। उस बहुमाया के विद्वान(महामद) ने रात्रि में देवरूप धारण किया।आत्मा रूप में पैशाच देह को धारण कर भोजराज आकर से कहा। हे राजन(भोजराज) !मेरा यह आर्य समस्त धर्मों में अतिउत्तम है।
अपने ईश की आज्ञा से पैशाच दारुण धर्म मैं करूँगा। मेरे लोग लिंगछेदी(खतना किये हुए), शिखा(चोटी) रहित, दाढ़ी रखने वाले दूषक होंगे।
ऊंचे स्वर में अलापने वाले और सर्वभक्षी होंगे। हलाल(ईश्वर का नाम लेकर) किये बिना सभी पशु उनके खाने योग्य न होगा।
मूसल से उनका संस्कार किया जायेगा। और मूसलवान हो इन धर्म दूषकों की कई जातियां होंगी।
इस प्रकार भविष्य में मेरे(मायावी महामद) द्वारा किया हुआ यह पैशाच धर्म होगा। यह कहकर वह वह (महामद) चला गया और राजा अपने स्थान पर वापस आ गया।
उसने तीनों वर्णों में स्वर्ग प्रदान करने वाली सांस्कृतिक भाषा को स्थापित किया और विस्तार किया। शुद्र वर्ण हेतु वहां प्राकृत भाषा के का ज्ञान स्थापित/विस्तार किया(ताकि शिक्षा और कौशल का आदान प्रदान आसान हो)।

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