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Showing posts from February, 2022

भारतीय मिडिया से बेहतर सवाल तो पाकिस्तानी मिडिया उठा रहा है.

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भारतीय मिडिया से बेहतर सवाल तो पाकिस्तानी मिडिया उठा रहा है. https://youtu.be/zD5Fr3F3nP8 अभी कुछ ही दिनों पहले की तो बात है ! अपने पड़ोसी मुल्क की जश्ने आजादी का दिन था! लाहौर से आयी एक विडियो क्लिप पूरी दुनियाँ के मीडिया हाउसेज में तैर रही थी! नहीं कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी! बस यही कोई सौ दो सौ अशरफ-उल- मख्लूक लोग एक अकेली लाचार लड़की को अपने हाथों से फुटबॉल की तरह हवा में उछाल रहे थे! जगह जगह से उसके कपड़े फाड़े जा रहे थे! जिसने जहाँ पाया उसके उसी अंग को बेरहमी से मसला !  वो रो रही थी ,चिल्ला रही थी ,चीख रही थी! खुदा का वास्ता देकर लोगो से मिन्नतें भी कर रही थी! मगर किसी को उस पर रहम नहीं आया! ये तो शुक्र रहा कि बात मिडिया तक पहुँच गयी और समय पर पुलिस ने आकर उसे बचा लिया! बताते चले कि  वो लड़की उनके अपने ही समूह की थी!  आखिर यह कैसी इंसानियत है भाई? इसे ही अगर तहजीब कहते हैं तो .............यह बहुत दुखद है! वहीं एक दुसरी घटना भारत में घटित होती है!  बिल्कुल हिन्दी फ़िल्मों की तरह बकायदा एक लिखी लिखाई स्क्रिप्ट पर केवल ऐक्टिंग करना था!  नायिका अकेली स्कूटी से स्कूल परिसर

Illegal towers

https://youtu.be/-ayMS2S5DsY One of the cause of disease

समाधि, पुरुष और ब्रह्मचर्य

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चित्त की सम अवस्था को समाधि कहते हैं । समाधि से भिन्न अवस्था को मानसिक व्याधि कहते हैं । धारणा-ध्यान-समाधि में असमर्थ चञ्चल मन इतस्ततः विचरण करे तो विचार कहलाता है । विचार जब व्यवहार में उतरे तो आचार कहलाता है । पातञ्जल योग-सूत्र के अनुसार असम्प्रज्ञात समाधि से भिन्न अवस्था को "व्युत्थान" कहते हैं ('आत्मतत्व से योग की विपरीत दिशा में चित्त का उत्थान')। वास्तविक समाधि तो "असम्प्रज्ञात समाधि" है जिसमे चिन्तन भी संभव नहीं रहता, मन पूरा शांत और निष्क्रिय रहता है । लेकिन समाधि तो लग जाय और चित्त में प्रज्ञा कार्य करती रहे, तो उसे सम्प्रज्ञात समाधि (याज्ञवल्क्य की भाषा में "अमौन") कहते हैं । किन्तु सांसारिक व्यवहार में इन दोनों अवस्थाओं से बाहर निकलना पड़ता है । बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि भी समाधि में नित्य-कर्म नहीं कर सकते थे । तो क्या इसका यह अर्थ निकाला जाय कि नित्य-कर्म नहीं करना चाहिए ? कंप्यूटर आदि का प्रयोग यदि इन्द्रियोँ की तुष्टि के लिए किया जाय तो वह व्याधि है, वही कार्य यदि कर्तव्य और धर्म के उद्देश्य से किया जाय तो समाधि न रहते हुए भी योग

हिजाब बनाम टोपा

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हिजाब बनाम टोपा  मोहनजोडड़ो सभ्यता के बारे मे इतिहास की पुस्तको मे पढ़ने वाले बच्चे व उन बच्चो को पढ़ाने से जुड़े लोग नही जानते हैं की ये सभ्यता जो वास्तविक वैदिक सभ्यता थी, मे महिलाओं - पुरूषो समेत समाज के सभी वर्ग के लोगो का सर ढंका होना उस वैदिक सभ्यता का एक अनिवार्य अंग था क्योकी वे जानते थे और आज भी जानते हैं की श्रिष्टी की नकारात्मक व अदृश्य शक्तियां किसी के शरीर को कब्जे मे लेने से पहले सिर को कब्जे मे लेने के लिए अपना आक्रमण सिर पे ही करती हैं.  इसिलिये अधिकतर संतो का चोला ओढ़ने वाले लोग और अधिकतर धार्मिक लोग सिर पे कोई चुनरी य़ा गमछा य़ा कोई चादर य़ा कोई टोपी आदि ढंके रहते हैं. हालांकी, वैदिक सभ्यता की बहुत ही न्यून मात्रा मे चीजे व तरीके बचे हुए हैं ज़िनमे से सिर ढंक कर रखने का अनिवार्य नियम इस्लाम रिलिजन वाले लोग कट्टरता से हिजाब नाम से अपनाये हुए हैं लेकिन ये लोग भी मोहम्मद द्वारा कहे गए बातों से अनजान होने के कारण सिर ढंकने के साथ-साथ चेहरा ढंकने को भी हिजाब का हिस्सा मानकर अपनी पहचान छुपाना चाहते हैं, लाशो को मजार व दरगाह व पीर के नाम से प्रेतो को पुजवाकर अपना प्रेत तथ