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क्या आधुनिक भारत में ब्राह्मणों की दुर्दशा तर्कसंगत है?

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यह पोस्ट किसी जाति के लिए नहीं वरन ब्राह्मणों के विरुद्ध समाज में फैलाई जा रही नकारात्मकता के बारे में है- क्या आधुनिक भारत में ब्राह्मणों की दुर्दशा तर्कसंगत है? जिन लोगों ने भारत को लूटा, तोडा, नष्ट किया, वे आज इस देश में ‘अतीत भुला दो’ के नाम पर सम्मानित हैं और एक अच्छा जीवन जी रहे हैं। जिन्होंने भारत की मर्यादा को खंडित किया, उसके विश्विद्यालयों को विध्वंस किया, उसके विश्वज्ञान के भंडार पुस्तकालयों को जला कर राख किया, उन्हें आज के भारत में सब सुविधाओं से युक्त सुखी जीवन मिल रहा है। किंतु वे ब्राह्मण जिन्होंने सदैव अपना जीवन देश, धर्म और समाज की उन्नति के लिए अर्पित किया, वे आधुनिक भारत में "काल्पनिक" पुराने पापों के लिए दोषी हैं। आधुनिक इतिहासकार हमें सिखाते हैं कि भारत के ब्राह्मण सदा से दलितों का शोषण करते आये हैं जो घृणित वर्ण-व्यवस्था के प्रवर्तक भी हैं। ब्राह्मण-विरोध का यह काम पिछले दो शतकों में कार्यान्वित किया गया। वे कहते हैं कि ब्राह्मणों ने कभी किसी अन्य जाति के लोगों को पढने लिखने का अवसर नहीं दिया। बड़े बड़े विश्वविद्यालयों के बड़े बड़े शोधकर्ता यह सिद्ध