चक्रवर्ती योग :--

Original writer- Vinay Jha, https://www.facebook.com/vinay.jha.906/posts/1279166025428032
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चक्रवर्तियों की सूची में 12 नाम तो अनेक स्रोतों में मिलते हैं, कई सन्देहास्पद हैं | वैसे भी सूर्यचक्र में 12 अरे होते हैं, अतः सूर्यवंश में 12 चक्रवर्ती होने की बात ही तर्कसंगत लगती है, हो सकता है इसी आधार पर संख्या 12 तक ही कल्पित कर ली गयी हो | "चक्रवर्ती" की पारंपरिक परिभाषा है "पृथ्वीचक्रम् वर्तते" = समुद्रपर्यंत समस्त भूमि पर जिसका चक्र चले | मैत्रेय उपनिषद, महाभारत, बौद्ध तथा जैन साहित्यों में चक्रवर्तियों का उल्लेख है | जिन बारह चक्रवर्तियों की सूची उपलब्ध है, वे सब के सब सूर्यवंशी (इक्ष्वाकु वंश के) थे :--
भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थु, अर, कार्तवीर्य, पद्म, हरिषेण, जय, ब्रह्मदत्त |
यह सूची आज से एक हज़ार वर्ष पहले के ग्रन्थों में है, जब भारत से बाहर का भूगोल भी भारत के पण्डित भूल चुके थे |
ये भरत द्वापर युग के शकुन्तला-पुत्र भरत नहीं, बल्कि सृष्टि के आरम्भ में मनुवंशीय भरत थे जिनके नाम पर भारतवर्ष नाम पडा |
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अग्नि पुराण (अध्याय 107 - श्लोक 11-12) , विष्णु पुराण (अंश-2, अध्याय-1 में श्लोक 29-32), नारसिंह पुराण (अध्याय-30) आदि में स्पष्ट वर्णन है कि स्वायम्भुव मनु की छठी पीढी में (मनुपुत्र प्रियव्रत, उनके पुत्र अग्नीध्र, उनके पुत्र नाभि, उनके पुत्र ऋषभ) ऋषभपुत्र भरत हुए थे जिनके नाम पर अग्निपुराण के अनुसार हिमाह्वय का नाम बदल कर भारतवर्ष रखा गया ; अन्यत्र हिमाह्वय का नाम अजनाभवर्ष मिलता है जिसे बदलकर भारतवर्ष नामकरण हुआ | पुराणों और ज्योतिष-सिद्धान्त ग्रन्थों के अनुसार यह काल लगभग 195 करोड़ वर्ष पहले का है | तबसे 454 बार महायुगों की संधियों में प्रलय आ चुके हैं जिनमें पिछले महायुगों के भौतिक अवशेष नष्ट हो जाते हैं, अतः भौतिक पुरातत्व द्वारा इतने प्राचीन प्रमाण ढूँढना असम्भव हैं |
यही भरत विश्व के प्रथम चक्रवर्ती थे | जैन साहित्य में इनके पिता को प्रथम जैन तीर्थंकर माना गया है | किन्तु जैन साहित्य के अलावा किसी भी ग्रन्थ में महावीर स्वामी से पहले किसी "जैन तीर्थंकर" का उल्लेख नहीं मिलता | पुराणों के अनुसार ऋषभ और शान्ति, कुन्थु, अर आदि सनातनी थे, जैन नहीं, किन्तु जैन साहित्य में "शान्ति, कुन्थु, अर" को भी 'जिन' कहा गया है जो कई मध्ययुगीन अन्यान्य ग्रन्थों में भी आयातित कर लिया गया |
इक्ष्वाकु वंश दिव्य वंश था, उसके राजा साधारण मानव नहीं थे |
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कलियुग में बहुत से लोग सूर्यवंशी कहलाते हैं किन्तु उनका प्राचीन सूर्यवंश से कोई सम्बन्ध नहीं है | प्राचीन सूर्यवंश दिव्यवंश था जिसके राजाओं की औसत आयु (दशरथ जी और राम जी को छोड़कर) 73825 वर्षों की थी, त्रेतायुग अन्त पर था अतः दशरथ केवल 60000 वर्षों तक और राम जी केवल 11000 वर्षों तक ही राज कर पाए, युग ही समाप्त हो गया | वे सबके सब "राजर्षि" थे यह गीता में श्रीकृष्ण ने कहा, और केवल महाभारत युद्ध के लिए उन प्राचीन राजर्षियों का गोपनीय राजयोग सीमित अवधि हेतु अर्जुन को दिया, श्रीकृष्ण के जाते ही वह राजयोग भी चला गया और अर्जुन गाण्डीव उठा भी न सके !
अयोध्या का उल्लेख अथर्ववेद में है और इक्ष्वाकु वंश के कई राजाओं का उल्लेख ऋग्वेद में है जिनपर इतिहासकार मौन हैं | दयानन्द स्वामी मानते थे कि वेदों में इतिहास नहीं है, वेदों में व्यक्तियों के नामों का वे भावार्थ लगाते थे | भारतीय मान्यता यह रही है कि वेद सृष्टि से पहले भी थे और प्रलय के बाद भी रहेंगे , किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि वेदों का इतिहास से सम्बन्ध नहीं - वेदों में वर्णित पदों और परिघटनाओं की इतिहास में आवृति होती है |
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चक्रवर्ती और सम्राट में अन्तर होता है | सम्राट का अर्थ है जिसने राजसूय यज्ञ किया हो, राजमण्डल के बारहों प्रभेदों पर जिसका वर्चस्व हो और सभी राजाओं को जिसने वश में कर लिया हो | द्वापर और कलियुग में कोई चक्रवर्ती नहीं हुआ | गौतम बुद्ध के बाद तो अंग्रेजों के अलावा किसी का सम्पूर्ण भारत पर भी वर्चस्व नहीं हुआ |
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ज्योतिषशास्त्र की मान्यता है कि जन्मकुण्डली में कम से कम पाँच ग्रह उच्च होकर शुभ भावों में स्थित होने तथा अन्यान्य शुभ योगों के रहने से चक्रवर्ती योग बनता है | जैसी कि पराशर ऋषि के मतानुसार केन्द्रेश और त्रिकोणेश परस्पर राजयोग बनाते हुए यदि सिंहासनांश में हो तो चक्रवर्ती योग बनता है जिस कारण सम्पूर्ण पृथ्वी का पालक बनने की क्षमता मिलती है | पराशर ऋषि ने चक्रवर्तियों की सूची में राजा हरिश्चन्द्र, उत्तम मनु, बलि, वैश्वानर तथा "अन्य कई" हो चुके हैं ऐसा लिखते हुए कहा कि वर्तमान (उनके) युग में युधिष्ठिर तथा भविष्य में शालिवाहन (कनिष्क नहीं) होंगे | ये शालिवाहन गौतम बुद्ध से बहुत पहले वाले हैं |
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पराशर ऋषि की सूची अधिक प्रामाणिक लगती है, जिसका पौराणिक कथाओं से साम्य दिखता है | अतः चक्रवर्तियों की संख्या बारह तक ही सीमित नहीं होगी |
पराशर ऋषि ने चक्रवर्ती से भी ऊँचे ज्योतिषीय योगों का उल्लेख किया है :-
केन्द्रेश और त्रिकोणेश परस्पर राजयोग बनाते हुए यदि पारावतांश में हो तो मनु, अर्थात सम्पूर्ण मन्वन्तर का अधिप, होते हैं ; ये ग्रह यदि देवालोकांश में हो तो विष्णु के अवतार जन्म लेते हैं, ये ग्रह यदि ब्रह्मलोकांश में हों तो ब्रह्मादि लोकपाल प्रकट होते हैं ; और ये ग्रह यदि ऐरावातांश में हों तो सम्पूर्ण कल्प का आरम्भ करने वाले स्वायम्भुव मनु जन्म लेते हैं |
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षोडशवर्गों के अन्तर्गत दशवर्ग में पाँच वर्गों में यदि उच्चादि ग्रह हों तो सिंहासनांश योग बनता है ; सिंहासनांश योग वाले ग्रह यदि केन्द्रेश और त्रिकोणेश वाला परस्पर राजयोग भी बनाएं तभी चक्रवर्ती योग बनता है | कुछ लोगों ने इस जटिल योग को न समझकर स्थूल नियम बना दिया कि केवल पाँच ग्रह उच्च होने से चक्रवर्ती योग बन जाता है, जो असत्य है | सिंहासनांश योग वाले पाँच षोडशवर्गों में राज-पाट से सम्बंधित वर्ग होने अनिवार्य हैं, वरना अन्य विषय का चक्रवर्ती योग बन जाएगा, राजनैतिक नहीं | अतः लग्नकुण्डली (प्रथम वर्ग), नवांश, होरा, दशमांश और अन्य किसी दशवर्ग में उच्चादि ग्रह यदि परस्पर केन्द्रेश और त्रिकोणेश वाला परस्पर राजयोग बनाएं तो सर्वोत्तम चक्रवर्ती योग बनेगा | दशवर्ग में किन-किन पाँच वर्गों में और कुंडलियों के किन-किन भावों में योगकारक ग्रह स्थित हैं इसपर यह निर्भर करेगा कि किस प्रकार का चक्रवर्ती है |
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2003 ईस्वी में 36 लाख से अधिक ऐसे बालकों-बालिकाओं का जन्म हुआ है जिनकी कुण्डली में छ या सात ग्रह उच्च के हैं (हाल में भी कुछ ऐसे बच्चे जन्मे हैं, किन्तु संख्या बहुत कम है), वे सभी चक्रवर्ती नहीं हो सकते | उन छ या सात उच्च ग्रहों में से कम से कम पाँच ग्रह यदि उपरोक्त चक्रवर्ती योग बनाएं तभी सम्पूर्ण पृथ्वी को एक कर पायेंगे | चक्रवर्ती योग हेतु ग्रहों का केवल उच्च होना ही अनिवार्य नहीं है, मूलत्रिकोणस्थ अथवा स्वगृही होने से भी चक्रवर्ती योग बन सकता है |
किन्तु विशुद्ध चक्रवर्ती योग के अलावा भी अनेक प्रकार के राजयोग होते हैं | उदाहरणार्थ, नरेन्द्र मोदी की कुण्डली में चन्द्रमा राज-पाट से सम्बंधित सर्वाधिक महत्वपूर्ण पाँच वर्गों में भावोत्तम योग बनाते हैं जिस कारण चन्द्रमा की महादशा आरम्भ होते ही देश की सर्वोच्च सत्ता का प्रचण्ड राजयोग आरम्भ हो गया | आजकल के ज्योतिषी इस योगों की गलत गणना करते हैं |
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श्रीराम और श्रीकृष्ण विष्णु के अवतार थे, अतः उपरोक्त अवतार-योग का भी रहना आवश्यक है जिसकी चर्चा भी आधुनिक शोध-कर्ता नहीं करते |***

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