पृथ्वीराज चौहान के बारे में जो पता है, वो सब कुछ सच का उल्टा है .

टीवी से इतिहास पढेंगे ? अजमेर के सरकारी संग्रहालय में वे सिक्के रखे हैं जिनकी मैंने लेख में चर्चा की है, और उनके बारे में तीस वर्षों से NCERT की पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाई हो रही है | लेकिन अधिकाँश लोग स्कूल में ठीक से पढ़ाई नहीं करते, और जो लोग करते भी हैं वे स्कूल के निकलने के बाद अधिकाँश बातें स्कूल में ही छोड़ देते हैं |


पृथ्वीराज के दरबारी चारण चन्दरबरदाई की कविता को इतिहास मानने वालों ने स्कूल में इतिहास का अध्ययन ठीक से नहीं किया, चोरी करके परीक्षा में उत्तीर्ण होते रहे हैं, वरना NCERT की इतिहास की पुस्तक पढ़े रहते तो जानते कि पृथ्वीराज युद्ध में नहीं मरा और मुहम्मद गोरी को दिल्ली सौंपकर उसके अधीन अजमेर का राजा बना रहा जिसके सबूत के तौर पर सिक्के मिले हैं जिनके एक ओर मुहम्मद गोरी को बादशाह मानकर दूसरी ओर पृथ्वीराज को अजमेर का अधिपति बताया गया है । चन्दरबरदाई के झूठ का प्रमाण यह है कि उसके अनुसार पृथ्वीराज ने शब्दभेदी बाण द्वारा मुहम्मद गोरी को मारा जिसके बाद पृथ्वीराज और चन्दरबरदाई ने एक दूसरे को वहीं पर मार डाला । इस सफ़ेद झूठ को इतिहास मानने वाले इतना भी नहीं सोचते कि यदि यह सच है और चन्दरबरदाई वहीं मर गया तो 'पृथ्वीराज रासो' क्या उसके भूत ने लिखा ! मुहम्मद गोरी से लड़ते हुए युद्ध के मैदान में जयचन्द शहीद हुआ था । शहीदों को गरियाने और पृथ्वीराज जैसे आवारा लफंगों को पूजने के कारण ही भारत गुलाम हुआ । संयोगिता धकेलकर पृथ्वीराज को युद्ध के मैदान में भेजती थी यह तो चन्दरबरदाई ने भी लिखा है, वरना वह लफंगा राजधानी पर संकट के काल में भी रनिवास से निकलने के लिए तैयार नहीं था । भारत को गुलामी के अन्धकार में पृथ्वीराज ने धकेला, चारों ओर के राजपूत राजाओं से उसने वैर मोल ले रखा था जिस कारण राजपूतों में एकता नहीं हो सकी । जयचन्द को पृथ्वीराज केवल इस कारण पसन्द नहीं था क्योंकि पृथ्वीराज आवारा और झगड़ालू था ।
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कुछ लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि पृथ्वीराज रासो को आधार मानकर लिखी हुई बातों को मानें या वैकल्पिक विचारों को | अतः ज्ञात प्रमाणों के आधार पर निम्न निष्कर्षों को मैं संक्षेप में उपरोक्त लेख में जोड़ रहा हूँ :--
(1) पृथ्वीराज की पराजय 1192 में हुई जबकि मुहम्मद गोरी की मृत्यु 14 वर्ष बाद हुई | अतः पृथ्वीराज रासो" का यह कथन 100% झूठा है कि गोरी की हत्या पृथ्वीराज और चन्दरबरदाई ने की |
(2) चन्दरबरदाई जिस खानदान का दरबारी भाट था उसके पक्ष में अतिरंजित बातें लिखना उसका पेशा था जिसके लिए उसे पैसा मिलता था |
(3) मुहम्मद गोरी की हत्या रावलपिंडी के पास खत्री जाति की खोखराइन शाखा के हिन्दुओं ने 15 मार्च 1206 ईस्वी में की | फूलन देवी का हत्यारा शेर सिंह राणा तिहार जेल से भागा; उसी ने हल्ला किया था कि अफगानिस्तान से पृथ्वीराज के कब्र का अंश वह लाया है | कई मूर्खों ने प्रचार कर रखा है कि अफगानिस्तान में मुहम्मद गोरी की कब्र के पास पृथ्वीराज की कब्र है, जबकि अफगानिस्तान में मुहम्मद गोरी की कब्र है ही नहीं, अफगानिस्तान में पृथ्वीराज मारा गया था जिसके 14 वर्षों के बाद रावलपिन्डी जिले में गोरी मारा गया !! गोरी का कब्र = https://en.wikipedia.org/wiki/Muhammad_of_Ghor…
(4) अजमेर के संग्रहालय में जो सिक्का है उसके आधार पर यह निर्विवाद तौर पर सत्य है कि पृथ्वीराज हारने के बाद गोरी की अधीनता में अजमेर का सूबेदार बनाया गया (और दिल्ली उससे पूरी तरह से छीन लिया गया)|
(5) अफगानिस्तान में पृथ्वीराज को दफनाया गया, अतः इस बात में सच्चाई है कि पृथ्वीराज को अजमेर में विद्रोह करने के बाद बन्दी बनाकर गजनी लाया गया जहां उसे मारकर दफनाया गया |
(6) "पृथ्वीराज रासो" के अधिकाँश दोहे सैकड़ो वर्ष बाद में जोड़े गए, अधिकांशतः अकबर के बाद के काल में राणा अमर सिंह द्वित्तीय की आज्ञा से (1672-1710), यद्यपि उसके पिता राणा जगत सिंह के काल में ही यह कार्य आरम्भ करने का निर्णय लिया जा चुका था, 1635 के आसपास | यह अन्तिम संस्करण उदयपुर का है जिसमें में 16306 दोहे हैं, इसे अन्तिम रूप 17वीं शती में मेवाड़ के दरबार में दिया गया और ब्रजभाषा का इस्तेमाल किया गया, पृथ्वीराज के काल में या 15वीं शती से पहले इस भाषा का अस्तित्व ही नहीं था | जबकि प्राचीनतम संस्करण बीकानेर वाला है जिसमें केवल 1300 दोहे हैं और भाषा भी लाट-अपभ्रंश वाली है | मेवार संस्करण का मुख्य उद्देश्य है मेवाड़ की खोयी हुई प्रतिष्ठा को बढाने के लिए मेवाड़ का गुणगान और पृथ्वीराज को महान योद्धा के रूप में दिखाकर मेवाड़ के राणा समर सिंह को पृथ्वीराज की बहन पृथा के वीर पति के रूप में दर्शाना | किन्तु इस संस्करण को लिखने वाला व्यक्ति "करुणा-उनाधि" है जिसने लिखा है कि चन्दरबरदाई के रासो को मूर्खों ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया जिस कारण करुणा-उनाधि को पुनः पृथ्वीराज-रासो लिखना पड़ा जो मूल पर ही आधारित है, यह 1703 में पूरा हुआ | करुणा-उनाधि का यह दावा झूठा है कि उसका रासो मूल पर आधारित है, क्योंकि प्राचीनतम संस्करण बीकानेर से मिला है जिसमें पृथ्वीराज की तेरह पत्नियों का उल्लेख है जबकि करुणा उनाधि ने केवल संयोगिता को एकमात्र पत्नी बताया | बीकानेर संस्करण में राणा समर सिंह का कोई उल्लेख ही नहीं है जबकि करुणा उनाधि के पृथा और समर सिंह के विवाह पर पूरा एक अध्याय बर्बाद किया, जिसका पृथ्वीराज के इतिहास से कोई सम्बन्ध ही नहीं है | बीकानेर संस्करण भी किसी लुप्त प्राचीन संस्करण पर आधारित था जो 1235 में लिखा गया, पृथ्वीराज के मरने के बहुत बाद | अतः मेवाड़ के अमर सिंह द्वारा प्रचारित झूठे "पृथ्वीराज रासो" को सच्चा इतिहास मानना सर्वथा गलत है | जेम्स टॉड ने इसे सच्चा इतिहास मानकर यूरोप तक प्रचारित कर दिया, किन्तु व्यापक शोध होने के बाद अब संसार का कोई भी इतिहासकार पृथ्वीराज रासो को विश्वसनीय नहीं मानता |
(7) पृथ्वीराज का जन्म 1166 में हुआ था, और केवल 26 वर्ष की अवस्था में वह मरा | इतनी अल्प अवस्था में उसे पैत्रिक अजमेर के अलावा नाना का दिल्ली राज भी हाथ लग गया, जिस कारण उसका दिमाग आसमान पर चढ़ गया और वह पूरी भारत का सम्राट बनने का प्रयास करने लगा, जिसकी न तो उसमें सूझबूझ थी और न ताकत एवं तैयारी | गुजरात, चंदेलों और जयचन्द से युद्धों में उसने अपनी शक्ति बर्बाद की, पृथ्वीराज के बहुत से वीर योद्धा इन युद्धों में मारे गए जिससे उसे कोई लाभ नहीं हुआ और हानि यह हुई कि मुस्लिम आक्रमण का सामना करने की शक्ति घटी, जिसके लिए उसने कोई तैयारी नहीं की | राजपूतों से लड़ने की बजाय उन सबको साथ लेकर गोरी से लड़ता तो भारत पर मुस्लिम कब्जा नहीं होता | 
(8) गोरी को मारने का श्रेयपंजाब के खत्री लड़ाकों को न देकर एक दरबारी भाट की झूठी बात मानकर पृथ्वीराज को दिया जाना अन्याय है, एक भी इतिहासकार पृथ्वीराज को गोरी का हत्यारा नहीं मानता |
(9) सबसे बड़ा अन्याय है गोरी से युद्ध के दौरान शहीद जयचन्द को देशद्रोही बताना | पृथ्वीराज रासो के अनुसार जो राजपूत पृथ्वीराज के विरोधी थे वे सब देशद्रोही थे, किन्तु दरबारी चरणों की तो विचारधारा ही ऐसी होती है | जयचन्द ने पृथ्वीराज के विरोध में गोरी की सहायता की यह तो पृथ्वीराज रासो भी नहीं कहता, उसका केवल इतना आरोप है कि जयचन्द ने ही गोरी को आमन्त्रित किया | यह मूर्खतापूर्ण बात है | गोरी 1173 से ही अपने साम्राज्य के विस्तार में लगा था और उसका पूरा ध्यान पूर्व की ओर था, पहले पंजाब तथा बाद में दिल्ली | पृथ्वीराज कम उम्र का अनुभवहीन राजा था जिसने झगडालू स्वभाव के कारण सभी हिन्दू राज्यों से उसने वैर मोल ले रखा था, अतः गोरी उसपर आक्रमण क्यों न करता ???
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(10) जो मैंने नहीं लिखा वह भी मेरे लेख में कई लोग पढ़ लेते हैं !!! मैंने "पृथ्वीराज रासो" को फर्जी ग्रन्थ कहा है, और पृथ्वीराज को अनुभवहीन युवक कहा है, "राष्ट्रभक्त नही है" ऐसा तो नहीं कहा !! उस समय भारत का एक भी राजा राष्ट्रभक्त था इसका कोई प्रमाण नहीं है, कोई भी महत्वपूर्ण राजा राष्ट्रभक्त होता तो बिन बुलाये भी पृथ्वीराज की सहायता को आता | अतः जयचन्द जैसे लोग भी दोषी हैं | किन्तु इसका यह अर्थ तो नहीं है कि पृथ्वीराज और जयचन्द देशद्रोही थे ! मैंने जिस समकालीन ग्रन्थ "पृथ्वीराज-विजय" को अपेक्षाकृत अधिक विश्वसनीय कहा है (सभी इतिहासकारों का भी यही मत है), वह भी पृथ्वीराज की प्रशंसा में ही लिखा हुआ है | एक बात लोग समझ नहीं पा रहे हैं -- उस समय पूरे भारत और सम्भवतः संसार में पृथ्वीराज की टक्कर का कोई वीर और साहसी पुरुष नहीं था | किन्तु बेचारा कम उम्र का था, अनुभव नहीं था, और गलत सलाहकारों से घिरा हुआ था जो उसे केवल राजपूतों के विरुद्ध भड़काते रहते थे | मैंने स्पष्ट लिखा है कि जब वह केवल 16 वर्ष का था तभी चन्देल राज्य को पूरी तरह उसने नष्ट कर दिया और कब्जा भी नहीं कर सका, उस युद्ध में सभी पक्षों को केवल हानि ही हुई | एक नाबालिग बालक को अदालत भी दण्ड नहीं देती, अतः पृथ्वीराज को दोष क्यों दे ? उसके सामन्तों का दोष था | उस युद्ध से दो वर्ष पहले ही पृथ्वीराज ने गलत लोगों के सिखाने पर सबसे समझदार मन्त्री को हटा दिया, जिस कारण पृथ्वीराज और भारत का पतन हुआ | चन्देलों से जब पृथ्वीराज युद्ध कर रहा था, उसी समय मुहम्मद गोरी पंजाब पर कब्जा करने में व्यस्त था | चन्देलों की बजाय यदि पृथ्वीराज ने पंजाब पर आक्रमण कर दिया होता तो पंजाब के सभी हिन्दुओं ने पृथ्वीराज का साथ दिया होता और अफगानिस्तान में भी हिन्दू पताका फहरा गयी होती | उस समय पंजाब में मुस्लिम आबादी एक प्रतिशत भी नहीं थी, जिसका प्रमाण यह है कि पंजाब पर कब्जा करने के बहुत बाद तक भी गोरी के सिक्कों पर लक्ष्मी जी का चित्र रहता था ताकि हिन्दू प्रजा में गोरी को बादशाह दिखाने वाले सिक्कों का प्रचलन हो | गोरी के एक ऐसे सिक्के का फोटो संलग्न कर रहा हूँ जिसमें पंजाब के पुराने सिक्कों की नक़ल में एक ओर लक्ष्मी जी का चित्र है, किन्तु दूसरी ओर नागरी लिपि में मुहम्मद गोरी का नाम है | गोरी के पाँव जब पूरी तरह जम गए तब उसने लक्ष्मी जी का चित्र हटा दिया और नागरी के बदले अरबी में 

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वहीँ पृथ्वीराज रासो और भारतीय मान्यता

जहाँ आधुनिक इतिहासकार मौहम्मद गौरी की कब्र पाकिस्तान के झेलम में होना मानते हैं
वहीँ गजनी में गौरी की कब्र होने की प्रबल मान्यता खुद अफगानिस्तान वासियों में है,
गजनी में मौहम्मद गौरी की कब्र आज भी मौजूद है जिसके बाहर सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कच्ची समाधि है,जिसको गजनीवासी जूते से मारकर अपमानित किया करते थे।।

ब्रिटिश सेना में भारतीय मूल के राजपूत सैनिक जब अफगानिस्तान गए थे तो उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की समाधि ढूँढने का प्रयत्न किया था।।
जब कंधार विमान हाइजैक मामले में तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह अफगानिस्तान गए थे तो उस समय उन्हें गजनी में पृथ्वीराज चौहान की समाधि होने की जानकारी खुद तालिबान सरकार के अधिकारियो ने दी थी,

यह जानकारी फूलन देवी हत्याकांड में जेल में बन्द शेरसिंह राणा को मिली तो उन्होंने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि के अवशेष भारत वापस लाने का प्रण लिया और जेल से फरार होकर वो तमाम खतरों को को पार करते हुए अफगानिस्तान जा पहुंचे।।
वहां से मौका पाकर पृथ्वीराज की समाधि के अवशेष वो भारत वापस ले आए।
भारत आकर उन्होंने पृथ्वीराज की समाधि के अवशेष मैनपुरी की एक राजपूत संस्था को पृथ्वीराज स्मारक बनाने के लिए सौंप दिए।।
इस प्रकार गजनी में सम्राट पृथ्वीराज चौहान का सांकेतिक अपमान बन्द हुआ।।

चलिए अब लौटते हैं मूल मुद्दे पर कि गौरी को दरअसल किसने,कब और कहाँ मारा ????
सम्राट पृथ्वीराज चौहान कहाँ वीरगति को प्राप्त हुए??
अजमेर में या गजनी में???

इतिहासकारो के अनुसार------

अफगानिस्तान में घुरि राजवंश के दो सगे भाईयो गयासुद्दीन गौरी और शाहबुद्दीन गौरी ने सन् 1173 से 1202 तक संयुक्त रूप से शासन किया।
बड़े भाई गयासुद्दीन की मृत्यु सन् 1202 में होने के बाद शाहबुद्दीन गौरी ने 1202-1206 तक अकेले शासन किया था।सन् 1206 में पंजाब के झेलम के पास खोखर राजपूतो ने शाहबुद्दीन गौरी की हत्या कर दी थी।

यही शाहबुद्दीन गौरी तराईन के दोनों युद्धों में पृथ्वीराज चौहान की सेना से भिड़ा था।।अब सवाल ये है कि अगर बड़ा गौरी सन् 1202 में मरा और छोटा शाहबुद्दीन सन् 1206 में----

तो 1192-1193 में पृथ्वीराज चौहान ने किस गौरी को शब्दभेदी बाण से मारा था??????

=====अंतिम निष्कर्ष====

अगर पृथ्वीराज चौहान की हत्या अजमेर में हुई होती तो अफगानिस्तान (गजनी) में गौरी की कब्र और सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि पास पास नही होती।गजनी में सुल्तान गौरी की हत्या किसी काफिर हिन्दू राजा द्वारा किये जाने की मान्यता अफगानिस्तान में बहुत प्रबल है तभी तालिबानी अधिकारीयों द्वारा भारतीय विदेश मंत्री श्री जसवंत सिंह को जानकारी दी गयी कि गजनी में सुल्तान गौरी की कब्र और सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि पास पास है।।

इससे सम्राट पृथ्वीराज चौहान का अजमेर में मारा जाना पूर्णतया असत्य जान पड़ता है।

किन्तु यहाँ प्रश्न उतपन्न होता है कि पृथ्वीराज द्वारा सुल्तान गौरी का वध कब और कैसे हुआ????

तो परिस्थितिजनक साक्ष्यो से मालूम होता है कि पृथ्वीराज चौहान को नेत्रहीन करके गजनी में सन् 1192-1202 तक कैद करके रखा गया था,,सन् 1202 में सुल्तान गयासुद्दीन गौरी ने एक समारोह में पृथ्वीराज चौहान को कैद से निकालकर उनसे तीरंदाजी का हुनर दिखाने को कहा गया।।

वहीँ कुशल धनुर्धर महान राजपूत यौद्धा पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण से सुल्तान गयासुद्दीन गौरी का वध कर दिया और खुद भी वीरगति को प्राप्त हो गए!!!!!!

तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारो द्वारा जानबूझकर इस घटना को छुपाने का प्रयास किया और पृथ्वीराज की हत्या अजमेर में किये जाने की फर्जी कहानी गढ़ी गयी,जबकि गजनी में सुल्तान गौरी और सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि होना उनके दावे का खण्डन करने के लिए पर्याप्त है।।।

इसके बाद गयासुद्दीन तुगलक का छोटा भाई शाहबुद्दीन मौहम्मद गौरी सन् 1202-1206 तक सुल्तान रहा,किन्तु सन् 1206 ईस्वी में उसे पंजाब के झेलम के पास खोखर राजपूतों (राठौर राजपूतो की शाखा) ने मार गिराया।
शाहबुद्दीन मौहम्मद गौरी की कब्र/मजार आज भी पंजाब(पाकिस्तान) के झेलम में स्थित है।।।

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि दरअसल दो सुल्तान गौरी थे जो मिलकर अफगानिस्तान और भारत में अपने साम्राज्य का शासन चलाते थे।।

बड़े भाई गयासुद्दीन गौरी का वध पृथ्वीराज चौहान द्वारा सन् 1202 ईस्वी में गजनी में किया गया,
वहीँ छोटे भाई शाहबुद्दीन मौहम्मद गौरी का वध झेलम के पास खोखर (राठौर) राजपूतो द्वारा किया गया था।

बाद में जनमानस में मान्यताओं का घालमेल हो गया और भ्रामक मान्यताएं बन गयी जिनसे आधुनिक इतिहासकार भी भ्रमित हो गए और वो वास्तविक तथ्य नही लिख पाए।।



Vinay Jha
Shubham Saini

Comments

  1. वहीँ पृथ्वीराज रासो और भारतीय मान्यत

    जहाँ आधुनिक इतिहासकार मौहम्मद गौरी की कब्र पाकिस्तान के झेलम में होना मानते हैं
    वहीँ गजनी में गौरी की कब्र होने की प्रबल मान्यता खुद अफगानिस्तान वासियों में है,
    गजनी में मौहम्मद गौरी की कब्र आज भी मौजूद है जिसके बाहर सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कच्ची समाधि है,जिसको गजनीवासी जूते से मारकर अपमानित किया करते थे।।

    ब्रिटिश सेना में भारतीय मूल के राजपूत सैनिक जब अफगानिस्तान गए थे तो उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की समाधि ढूँढने का प्रयत्न किया था।।
    जब कंधार विमान हाइजैक मामले में तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह अफगानिस्तान गए थे तो उस समय उन्हें गजनी में पृथ्वीराज चौहान की समाधि होने की जानकारी खुद तालिबान सरकार के अधिकारियो ने दी थी,

    यह जानकारी फूलन देवी हत्याकांड में जेल में बन्द शेरसिंह राणा को मिली तो उन्होंने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि के अवशेष भारत वापस लाने का प्रण लिया और जेल से फरार होकर वो तमाम खतरों को को पार करते हुए अफगानिस्तान जा पहुंचे।।
    वहां से मौका पाकर पृथ्वीराज की समाधि के अवशेष वो भारत वापस ले आए।
    भारत आकर उन्होंने पृथ्वीराज की समाधि के अवशेष मैनपुरी की एक राजपूत संस्था को पृथ्वीराज स्मारक बनाने के लिए सौंप दिए।।
    इस प्रकार गजनी में सम्राट पृथ्वीराज चौहान का सांकेतिक अपमान बन्द हुआ।।

    चलिए अब लौटते हैं मूल मुद्दे पर कि गौरी को दरअसल किसने,कब और कहाँ मारा ????
    सम्राट पृथ्वीराज चौहान कहाँ वीरगति को प्राप्त हुए??
    अजमेर में या गजनी में???

    इतिहासकारो के अनुसार------

    अफगानिस्तान में घुरि राजवंश के दो सगे भाईयो गयासुद्दीन गौरी और शाहबुद्दीन गौरी ने सन् 1173 से 1202 तक संयुक्त रूप से शासन किया।
    बड़े भाई गयासुद्दीन की मृत्यु सन् 1202 में होने के बाद शाहबुद्दीन गौरी ने 1202-1206 तक अकेले शासन किया था।सन् 1206 में पंजाब के झेलम के पास खोखर राजपूतो ने शाहबुद्दीन गौरी की हत्या कर दी थी।

    यही शाहबुद्दीन गौरी तराईन के दोनों युद्धों में पृथ्वीराज चौहान की सेना से भिड़ा था।।अब सवाल ये है कि अगर बड़ा गौरी सन् 1202 में मरा और छोटा शाहबुद्दीन सन् 1206 में----

    तो 1192-1193 में पृथ्वीराज चौहान ने किस गौरी को शब्दभेदी बाण से मारा था??????

    =====अंतिम निष्कर्ष====

    अगर पृथ्वीराज चौहान की हत्या अजमेर में हुई होती तो अफगानिस्तान (गजनी) में गौरी की कब्र और सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि पास पास नही होती।गजनी में सुल्तान गौरी की हत्या किसी काफिर हिन्दू राजा द्वारा किये जाने की मान्यता अफगानिस्तान में बहुत प्रबल है तभी तालिबानी अधिकारीयों द्वारा भारतीय विदेश मंत्री श्री जसवंत सिंह को जानकारी दी गयी कि गजनी में सुल्तान गौरी की कब्र और सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि पास पास है।।

    इससे सम्राट पृथ्वीराज चौहान का अजमेर में मारा जाना पूर्णतया असत्य जान पड़ता है।

    किन्तु यहाँ प्रश्न उतपन्न होता है कि पृथ्वीराज द्वारा सुल्तान गौरी का वध कब और कैसे हुआ????

    तो परिस्थितिजनक साक्ष्यो से मालूम होता है कि पृथ्वीराज चौहान को नेत्रहीन करके गजनी में सन् 1192-1202 तक कैद करके रखा गया था,,सन् 1202 में सुल्तान गयासुद्दीन गौरी ने एक समारोह में पृथ्वीराज चौहान को कैद से निकालकर उनसे तीरंदाजी का हुनर दिखाने को कहा गया।।

    वहीँ कुशल धनुर्धर महान राजपूत यौद्धा पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण से सुल्तान गयासुद्दीन गौरी का वध कर दिया और खुद भी वीरगति को प्राप्त हो गए!!!!!!

    तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारो द्वारा जानबूझकर इस घटना को छुपाने का प्रयास किया और पृथ्वीराज की हत्या अजमेर में किये जाने की फर्जी कहानी गढ़ी गयी,जबकि गजनी में सुल्तान गौरी और सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि होना उनके दावे का खण्डन करने के लिए पर्याप्त है।।।

    इसके बाद गयासुद्दीन तुगलक का छोटा भाई शाहबुद्दीन मौहम्मद गौरी सन् 1202-1206 तक सुल्तान रहा,किन्तु सन् 1206 ईस्वी में उसे पंजाब के झेलम के पास खोखर राजपूतों (राठौर राजपूतो की शाखा) ने मार गिराया।
    शाहबुद्दीन मौहम्मद गौरी की कब्र/मजार आज भी पंजाब(पाकिस्तान) के झेलम में स्थित है।।।

    उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि दरअसल दो सुल्तान गौरी थे जो मिलकर अफगानिस्तान और भारत में अपने साम्राज्य का शासन चलाते थे।।

    बड़े भाई गयासुद्दीन गौरी का वध पृथ्वीराज चौहान द्वारा सन् 1202 ईस्वी में गजनी में किया गया,
    वहीँ छोटे भाई शाहबुद्दीन मौहम्मद गौरी का वध झेलम के पास खोखर (राठौर) राजपूतो द्वारा किया गया था।

    बाद में जनमानस में मान्यताओं का घालमेल हो गया और भ्रामक मान्यताएं बन गयी जिनसे आधुनिक इतिहासकार भी भ्रमित हो गए और वो वास्तविक तथ्य नही लिख पाए।।

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