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Showing posts from August, 2018

akhand bharart aur hinduo ke liye us ki maujuda waqt mein prasaangikta ...

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देवदासी प्रथा

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कुछ प्रथाओं को लेकर जनमानस के मन मे ऐसा मतिभ्रम उत्पन्न कर दिया गया है कि, विधर्मियो के सवाल पे वो जानकारी न होने पे चुप्पी साध जाते है,और हि ंदुत्व को लेकर उनके मन मे एक कुंठा व्यापत हो जाती है ऐसी ही एक प्रथा है , -----देवदासी प्रथा ----- # माना  जाता है कि ये प्रथा छठी सदी में शुरू हुई थी। इस प्रथा के तहत कुंवारी लड़कियों को धर्म के नाम पर ईश्वर के साथ ब्याह कराकर मंदिरों को दान कर दिया जाता था। माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते थे। परिवारों द्वारा कोई मुराद पूरी होने के बाद ऐसा किया जाता था। देवता से ब्याही इन महिलाओं को ही देवदासी कहा जाता है। उन्हें जीवनभर इसी तरह रहना पड़ता था। मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी देवदासी का उल्लेख मिलता है। देवदासी यानी 'सर्वेंट ऑफ़ गॉड'। देवदासियां मंदिरों की देख-रेख, पूजा-पाठ की तैयारी, मंदिरों में नृत्य आदि के लिए थीं। कालिदास के 'मेघदूतम्' में मंदिरों में नृत्य करने वाली आजीवन कुंवारी कन्याओं की चर्चा की है। संभवत: इन्हें देवदासियां ही माना जाता है। # देवदासी_प्रथा_का

अगर भारत का इस्लामीकरण हुआ तो क्या होगा ?

अगर भारत का इस्लामीकरण हुआ तो क्या होगा ? 1.सारे हिंदू उद्योगपतियों की संपत्तिया जब्त कर ली जायेंगी | मलेशिया लेबनान में ऐसा ही हुआ, हिंदू (मुशिरिक यानि मूर्तिप ूजक) की संपत्ति पर मोमिन यानि ईमान लेन वाले मुस्लमान का अधिकार हैं ये अल्लाह का फरमान हैं | 2. आपकी (सेक्युलर वर्ग की) लड़किया, बहने, माताये कभी ना कभी मुसलमानों के बिस्तर गर्म करने को मजबूर होंगी क्यों की आप कब तक बच पाएंगे | और गाँधी वादी तो तब भी होगे जो गाँधी जी के शब्द दोहराएंगे जो उन्होंने कहे थे एक मा से उसकी लड़की का मुसलमानों द्वारा बलात्कार करने पर “तो क्या हुआ, वो तुम्हारी लड़की को कुछ दे कर तो गए ले तो नहीं गए |” 3. सेक्युलर वर्ग तो हो सकता हैं मुफ्त कंडोम बाटे मुसलमानों को | ताकि उनकी बीवियो बेटियों बहनों को मुसलमानों द्वारा कम दिक्कत हो और उनके मुस्लिम भाइयो का सम्मान भी रह जाए | 4. कोई भी हिंदू किसी भी सरकारी व्यवस्था में बड़े ओहदे पर नहीं रह पायेगा | वही मुग़ल काल का नियम लगेगा | 5. हिंदू अपने धर्म पर जिज्या दे रहे होंगे | याने हिंदू बने रहने के ली कर भर रहे होंगे | कुरान ९:२९ में साफ़ आदेश हैं पर हम

Is India Independent?

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बॉलीवुड ने भारत की कितनी गलत छवि बनाई है

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भारत के दक्षिणी राज्यों, पूर्ववर्ती राज्यों एवं पश्चिमी राज्यों में आने पर पता चला कि बॉलीवुड ने भारत की हिंदी पट्टी की भाषाओं की कितनी गलत छवि बनाई है। हर कोई यही सोचता है कि ऐसे पार्टी होती है वैसे पार्टी होती है ,ऐसे नाचते हैं वैसे गाते हैं , ऐसे हम प्यार करते हैं और पता नहीं क्या-क्या नौटंकियां । उन को बैठाकर फिर पाठ पढ़ाना पड़ता है कि नहीं ऐसा नहीं होता है , यह सिर्फ बॉलीवुड में होता है और कहीं नहीं। बिहार में बहुत सारी भाषाएं और बोलियां बोली जाती है। अंगिका, भोजपुरी, मैथिलि, मगही, बज्जिका, हिंदी, उर्दू इनमें से प्रमुख हैं। इन सभी भाषाओं या बोलियों को आप "बिहारी भाषाओं" के शीर्षक में डाल सकते हैं। लेकिन 'बिहारी' नाम की कोई भाषा नहीं होती! हमारे देश के लोगों का ये जानना बहुत आवश्यक है क्यूंकि बहुत बार दूसरे प्रांत के लोग ये समझ लेते हैं कि जो हिंदी 'बिहारी ऐक्सेंट' (मतलब बिहारी बोलियों के उच्चारण) में बोली जाती है वो 'बिहारी' या 'भोजपुरी' भाषा है। और नहीं, लालू यादव के तरह 'हिंदी' बोलने से वो 'भोजपुरी' नहीं हो जाती

#Evm_की_पोल_खोल⤵⤵⤵

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BJP supporting Reservation

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किसी अनहोनी के पहले ही देश को ये जानना आवश्यक है!

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UNITED NATIONS AGENDA 21 IN LESS THAN 5 MINUTES VIDEO

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ऋग्वेद अनुसार शासक को कब हटा देना चाहिये ? अर्थात ऋग्वेद के अनुसार राईट-टू-रिकॉल कब जरूरी होता है?

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लेखक-  योगेश कुमार मिश्र   , आध्यात्मिक शोध संस्थान 9451252162 https://www.facebook.com/YogeshKumarMishra.Astro/posts/1928676180738559 “वेद” अनुसार शासक को कब हटा देना चाहिये ? ऋग्वेद 10.173.1 || ॠचा 2-4 के अनुसार राज्य सत्ता में एक “पुरोहित” होता था | कोई जरुरी नहीं कि यह ब्राहमण ही हो | पुरोहित सत्ता क्षेत्र में “प्रजा का प्रतिनिधित्व” करता था | राजा का चुनाव होने के पश्चात यह पुरोहित नवनिर्वाचित शासक को सम्बोधित करते हुये यह कहता था कि “मैं तुझे प्रजा के मध्य से चुनकर लाया हूँ | प्रजा के आदेश से मैं तुझे राजा के पद पर आसीन कर रहा हूँ |” इससे स्पष्ट होता है कि जिसे आज हम चुनाव अधिकारी कहते हैं , उसे वेद ने पुरोहित कहा गया है | आज के चुनाव अधिकारी इस पुरोहित का ही प्रतिरूप होते हैं | यह पुरोहित अथवा चुनाव अधिकारी जनता की प्रतिमूर्ति होने के कारण जनता की इच्छानुसार ही राजा को चलाते थे, ज्यों ही प्रजा किसी राजा से अथवा किसी शासक दल से विमुख होती थी, त्यों ही यह पुरोहित या चुनाव अधिकारी उस राजा को हटा कर दूसरा शासक चुनने के लिए पुनः जनता के पास जाता था | समस्या तो उस समय

भारत में कागज़ का इतिहास

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भारत में कागज के निर्माण की अब तक के सबसे पुरानी सूचना यूनान के ग्रंथों से मिलती है. सम्राट सिकंदर के सेनापति निर्याकस (325 ईसा पूर्व) में लिखा है कि भारतीय प्रजा रूई एवं चिथड़ो को कूट पीस कर कागज़ बनाती है. इस बात का समर्थन चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदूत मेगास्थनीज ने भी 300ईसा पूर्व में किया है. आज ईसा पूर्व के कोई भी ताडपत्र, भोजपत्र या पांडुलिपि उपलब्ध नहीं है क्योंकि उस समय में कपड़ो, चिथड़ो एवं रूई से निर्मित होने वाले कागज़ समय के साथ गलने व सड़ने वाले होते होंगे और उनमे से अनेक पांडुलिपि आक्रमणों में जला दिए गए होंगे. अतः जो लोग कागज़ का आविष्कार चीन में दो सौ वर्ष पहले हुआ मानते हैं, उन्हें नहीं पता कि चीन भी पांच हजार साल पहले पांडवों ने अपने कब्जे में कर लिया था जहाँ के शासक ने दुर्योधन का साथ दिया था.... फेसबुक के कुछ प्रसिद्द लेखक पाश्चात्य विद्वानों की वे पुस्तक जो भारत को शोषण के लिए ही लिखी गयीं हैं, उन्हें पढ़कर अपना विचार बनाते हैं. ज्योतिष विद्या का हर जानकार आदमी क्या इतिहास व भविष्य देख सकने में सक्षम होता है? नहीं, बिलकुल भी नहीं. क्यूंकि वह सिर्फ ग्रहों

पाटण के पटोळे

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हमारे घरमें भी जुमलेबाजी चलती रहती है ।  बता रही थी कि पाटण के पटोळे बहुत मेहंगे हो गए हैं, २५ हजार थे अब लाख के हो गए हैं, और बूकिन्ग करने के दो साल बाद मिलते है । . जब रेडियो था तब आशा भोंसले का गाया पाटण के पटोळे का गीत बहुत सुना था लेकिन किसी महिला के शरीर पर पटोला कभी देखा नही है । आशा भोंसले का गीत--‘છેલાજી રે મારી હાટું પાટણથી પટોળા મોંઘા લાવજો..’   https://www.youtube.com/watch?v=Vk8sauaYxV0 . बताया गया कि पाटण में सिर्फ एक ही परिवार बचा है जो पटोला बनाता है । साल भर में मात्र तीनचार पीस ही बनाते हैं ।    जुमले का सत्य जानने की कोशीश की तो पूरा इतिहास सामने आ गया । पटोले बनाने की शुरुआत 12वीं सदी में महाराष्ट्रके साल्वि परिवारने की थी । उनके बनाए पटोले खरीद कर देश विदेश के राजा रजवाडे अपनी शान बढाते थे । रेशम को पवित्र माना जाता था । १२ वीं सदी के जैन राजा कुमारपाल को पूजा विधि में हर रोज रेशम के नये वस्त्र की जरूरत पडती थी । वो गुजरात में बने पटोले पहनता था वो इतने पवित्र नही थे । उसे महाराष्ट्र के साल्वि परिवार द्वारा बने पटोले अधिक पवित्र लगे और उसे पसंद आ

5G TELECOMM RADIATION THE PERFECT TOOL TO MASS MODIFY HUMAN BRAIN WAVES

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5G TELECOMM RADIATION THE PERFECT TOOL TO MASS MODIFY HUMAN BRAIN WAVES Dr. Ellis Evans,  Contributor Waking Times On 14 July 2016 the FCC (Federal Communications Commission) of the USA made space available in the radio spectrum for consumer devices to operate within the 25 GHz to 100 GHz of the electromagnetic spectrum. It went on to say: “The Commission has struck a balance between new wireless services, current and future fixed satellite service operations, and federal uses. The item adopts effective sharing schemes to ensure that diverse users – including federal and non-federal, satellite and terrestrial, and fixed and mobile – can co-exist and expand.” Nowhere in its document is mention made of consumer safety or well-being. I guess that is fair of the FCC because historically, it is not interested in matters of microwave radiation and consequent thermal and non-thermal effects on the population. Let’s face it, and most people find this hard to believe,  the FCC

#न_तस्य_प्रतिमाSस्ति_का_रहस्यार्थ_एवं_वेदों_में_मूर्तिपूजा_का_सप्रमाणविवेचन

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https://www.facebook.com/ptbrajesh/posts/556082378122187 ऋग्वेद के अष्टम मण्डल में मूर्तिपूजा का उल्लेख इस प्रकार हुआ है- *“अर्चत प्रार्चत प्रियमेधासो अर्चत । अर्चन्तु पुत्रका उत पुरं न धृष्ण्वर्चत ।।-ऋग्वेद-८/६९/८* इस मन्त्र में ४ वार अर्च धातु का प्रयोग हुआ है । जिसका अर्थ है “पूजा करना” -”अर्च पूजायाम्”- पाणिनीय धातुपाठ अर्थ- हे ( प्रियमेधासो ) बुद्धिमान् पुत्रों ! तुम लोग इन्द्र की ( अर्चत ) पूजा करो । ( प्रार्चत ) पूर्ण मनोयोग से पूजा करो । इस प्रकार अनेक वार इन्द्र की पूजा पर ज़ोर डाला गया है । मूर्ति के विना इन्द्र की पूजा तो हो नहीं सकती । इसलिए पूजा की उपपत्ति हेतु इन्द्र की मूर्ति आक्षेपलभ्य होगी । जैसे मोटा देवदत्त दिन में नहीं खाता है ।-यह सुनकर बुद्धिमान् विचार करता है कि मोटापा विना खाये तो हो नहीं सकता और यह दिन को खाता भी नहीं है । इससे लगता है कि यह रात्रि को ही खाता है- *“देवदत्त: रात्रिभोजी दिवाSभुंजानत्वे सति पीनत्वात् रोजाकालिक अलीमुहम्मदवत् ।।”* जैसे यहाँ मोटापे से रात्रिभोजन की कल्पना की गयी वैसे ही मूर्ति के विना पूजा की असम्भावना से मूर्ति क