भारत में कागज़ का इतिहास

भारत में कागज के निर्माण की अब तक के सबसे पुरानी सूचना यूनान के ग्रंथों से मिलती है.
सम्राट सिकंदर के सेनापति निर्याकस (325 ईसा पूर्व) में लिखा है कि भारतीय प्रजा रूई एवं चिथड़ो को कूट पीस कर कागज़ बनाती है.


इस बात का समर्थन चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदूत मेगास्थनीज ने भी 300ईसा पूर्व में किया है.
आज ईसा पूर्व के कोई भी ताडपत्र, भोजपत्र या पांडुलिपि उपलब्ध नहीं है क्योंकि उस समय में कपड़ो, चिथड़ो एवं रूई से निर्मित होने वाले कागज़ समय के साथ गलने व सड़ने वाले होते होंगे और उनमे से अनेक पांडुलिपि आक्रमणों में जला दिए गए होंगे.
अतः जो लोग कागज़ का आविष्कार चीन में दो सौ वर्ष पहले हुआ मानते हैं, उन्हें नहीं पता कि चीन भी पांच हजार साल पहले पांडवों ने अपने कब्जे में कर लिया था जहाँ के शासक ने दुर्योधन का साथ दिया था....
फेसबुक के कुछ प्रसिद्द लेखक पाश्चात्य विद्वानों की वे पुस्तक जो भारत को शोषण के लिए ही लिखी गयीं हैं, उन्हें पढ़कर अपना विचार बनाते हैं.
ज्योतिष विद्या का हर जानकार आदमी क्या इतिहास व भविष्य देख सकने में सक्षम होता है?
नहीं, बिलकुल भी नहीं. क्यूंकि वह सिर्फ ग्रहों के चाल को गणना द्वारा और उसके सम्मिलित प्रभाव को जानता है, सम्पूर्ण भविष्य जानने के लिए ऐसे लोग ग्रहों को ही सर्वोपरी मानकर ईश्वर साधना को भी ग्रहों से नीचे ही मानते हैं जिससे दुष्टों की पुस्तको में छुपा हुआ खेल समझ नहीं पाते हैं और न भूतकाल को माप सकते हैं व पाश्चात्य दुष्टों की पुस्तकों के आधार पे ज्ञान बाँट बाँट कर फेसबूकिया गुरु बनते हैं, जिन्हें दुर्गा शप्तशती भी मात्र पत्नी देने वाला ग्रन्थ लगता है...
भगवान तो सब कुछ देने में समर्थ हैं, लेकिन ऐसे लोग जो खुद को सन्यासी डिक्लेअर करने में देर नहीं लगती और ईश्वर को मात्र एक पक्ष देने वाला बता कर गुरु बनते हैं...ऐसे मिथ्याचारी और गुरु ?
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यदि देश में विलुप्त लिपियों जैसे तान्करी लिपि, ब्राम्ही लिपि, भूत लिपि पर अधिक अनुसंधान से साबित हो सकता है कि भारत की लिपि व सभ्यता संस्कृति धरती की सबसे पुरानी सभ्यता है.

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