भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण की सच्चाई

उदारीकरण के 25 साल एवं इसके दूरगामी परिणाम  :-
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आज लगभग 25 साल के उदारीकरण के बाद उस पर कम से कम पुनर्विचार करने का समय आ गया है । आज तक यह सुनने में आया था की कुछ समय बीतने के बाद इसका प्रभाव सामने आएगा । आज 25 साल बीत गए आइये इसका ज़रा विश्लेषण करके देखें । 


1990 से पहले भारत की जनसंख्या लगभग 1.3 – 1.4 % की दर से बढ़ रही थी और तथाकथित विकास दर 3% के आसपास थी । यह स्थिति 1947 से चल रही थी । भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार श्री राज कृषण ने एक सभा में पत्रकारों के प्रश्न के उत्तर में अनायास ही एक उत्तर दे दिया जिससे वह एक मुहावरा हो गया हो पूरे विश्व में भारत की साख पर प्रश्न चिन्ह लग गया । पत्रकार का प्रश्न था की जब भारत समस्त विकासशील देशों की ही नीतियाँ अपना रहा है तो हमारी विकास दर कम क्यों है ? प्रोफेसर राज कृषण ने उसका उत्तर दिया “क्योंकि हम हिन्दू है हमारी विकास हिन्दू विकास दर से अधिक नहीं हो सकती है” और तभी से यह “हिन्दू विकास दर” का नाम पूरे विश्व मे छा गया।


स्थिति यहाँ तक हुई कि विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष McNamara ने पूरे विश्व मैं यह कह कर धन मांगा कि विश्व कि 17% आबादी वाले देश के आर्थिक सलाहकार यह कह रहे हैं कि इस देश में विकास दर कम रहेगी इसलिए मैं पूरे विश्व से धन की मांग करता हूँ जिससे इस देश को आर्थिक बदहाली से बचाया जाये । यह थी भारत की साख पूरे विश्व में जिसे बिगाड़ने में तत्कालीन सरकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी । उसी दशक में भारत ने निर्यात में प्रोत्साहन देना शुरू किया और आयात कम करने की नाकामयाब कोशिश की ।


ऐसे समय में 1991 में भारत की सकल घरेलू विकास दर 1% के आसपास थी और लगभग कुछ दिनों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए ही विदेशी मुद्रा बची थी । सरकार को यह समझाया गया कि आप उदारीकरण की नीतियाँ आपनाएं आपके देश का भला होगा । क्या क्या होग आइये इसे समझें :


1) यातायात की सुविधाएं बढ़ जाएँगे और माल ढुलाई सस्ती हो जाएगी ।
2) तकनीकी का हस्तांतरण आसानी से होगा ।
3) मुक्त व्यापार संभव होगा WTO करार के कारण ।
4) भारतीय मुद्रा यानि रुपया मजबूत हो जाएगा ।
5) धन आसानी से आ पाएगा FDI के कारण ।
6) अधिक कामगारों को रोजगार मिलेगा ।
7) अधिक औद्धयोगिक इकाइयां लगेंगी ।
8) उद्धयोगों कि क्षमता बढ़ेगी यानि दक्षता बढ़ेगी ।
जब भी इस पर प्रश्न उठता कि क्या हुआ तो एक ही उत्तर होता अभी कुछ समय प्रतीक्षा करें बेहतरी होने वाली हैं ।


25YEARS OF GLOBALISATION

https://www.youtube.com/watch?v=OdWmCgJ56Ro&feature=youtu.be



भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण की सच्चाई समझने का प्रयास करें :-
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1) "यातायात की सुविधाएं बेहतर और सस्ती" की  सच्चाई : 
यह सत्य है कि आज एशिया से अमेरिका जाने वाली चाय या कॉफी मे मात्र 1% का खर्चा आता है माल ढुलाई का । 1930 से आजतक पानी के जहाज़ से समान लान 65% तक सस्ता हुआ है इसी प्रकार हवाई किराये भी कम हुए हैं । इसका एक कारण नई तकनीक के यातायात के साधन भी है और साथ ही पेट्रोल इत्यादि की कीमत का कम होना भी है । जिसका उदारीकरण से लें देना नहीं है । 
परंतु इस से बड़ा मौलिक प्रश्न है कि क्या भारत जैसा देश जो प्राथमिक आवशयकताओं के लिए सक्षम है को इसकी क्या आवश्यकता है ? इसका सबसे अधिक फायदा उन देशों को ही है जिनको रोज़मर्रा के सामान भी आयात करने पड़ते हैं । जैसे अन्य विकसित देश जो अपने खाने कपड़े तक आयात करते हैं ।
 हाँ यह ठीक है इसके कारण देश मे भी बहुत सा आयात का सामान आने लगा, जिसकी देश को ज़रूरत नहीं थी । 
उदाहरण के लिए Diet Pepsi या ऐसी ही अन्य खाने पीने की चीज़ें, और कुछ electronic उपकरण । परंतु उसका उपयोग आज भी देश का उच्च वर्ग या उच्च मध्ययम वर्ग करता है । 90% भारतीय के लिए उसका कुछ उपयोग नहीं है बल्कि कुछ छोटे और मँझोले उद्धयोग इसके दुष्प्रभाव से नुकसान उठा कर बन्द हो गए और लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ ।
 चीन नामक देश से आयातित समान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । चीन भारत की सीमाओं पर जब आता है तो Facebook पर हम राष्ट्रवादी हो कर चीन के सामान का बहिष्कार करने की बात करते हैं 3 दिन में सब ठप्प । हमें समाझंपड़ेगा की चीन यह सब क्यों कर पा रहा हैं क्योंकि वह आर्थिक रूप से सक्षम है । सबसे पहले भारत आर्थिक रूप से सक्षम हो जाये पाकिस्तान तो क्या अमेरिका आप से झुक कर बात करेगा । 
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2) "दूसरा बड़ा पहलू बताया गया था कि तकनीकी का हस्तांतरण आसानी से होगा" 
की  सच्चाई :- 
परंतु आज भी हम देखते है कि कहीं भी यदि भारत मे तकनीकी विकास है तो भारत की आंतरिक उपलबद्धि है । यह समझ लीजिये कि आज कोई भी देश आपको अपनी बेहतरीन तकनीक देना नहीं चाहता। 
आप देखें कि दूर संचार, रक्षा और नई शोध व्यवस्थाओं मे आपको कौन सी तकनीक मिली है आज तक इस 25 वर्षों मे । मिला है तो नई नई मोटर गाडियाँ और नए नए पेय पदार्थ या ऐसी ही कुछ खाने पीने की व्यवस्थाएं । 
McDonald Pizza Hut इत्यादि इसके उदाहरण हैं । इन सब उद्धयोगों मे आपको असली बहुराष्ट्रिय कंपनी को जीवन भर अधिशुल्क देना पड़ता है आप कभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो सकते । 
आप एक उदाहरण से समझें कि आप जापान से एक गाड़ी बनाने वाली कंपनी से सम्झौता करते हैं तो वह सब लोहे का समान इत्यादि जो यहाँ सस्ता है यहाँ से बनवाएगे और कुछ पुर्जे ऐसे ज़रूर रखेंगे जो जीवन पर्यंत आपको जापान से खरीदने पड़ेंगे । यह कुछ छोटे पुर्जे हैं जिनपर वह मनमानी कीमत वसूलेंगे और आप इस पर कुछ प्रश्न नहीं उठा सकते क्योंकि यह पहले से ही अनुबंध में हैं । अब उस कंपनी को अपना मुनाफा जीवन भर मिलेगा या 25 50 वर्ष के लिए जैसा भी अनुबंध होगा । 
दूसरी तरफ आप अपनी तकनीक को इसी लिए विकसित नहीं करेंगे । 
आप जीवन भर के लिए तकनीकी गुलाम बन कर रहेंगे । 
कुछ लोग जो इस प्रकार के भजनालय इत्यादि को अपने देश की उपलब्धि मानते हैं और कहते हैं इसी लिए विदेशी यहा आ पाते हैं। उनको यह समझना बहुत ज़रूरी है कि विदेशी मात्र अपने स्वार्थ के लिय यहाँ आते हैं । 
जो घूमने आते हैं उनको भारत सबसे सस्ता और खूबसूरत देश लगता है इसलिए आते हैं ।
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3) "मुक्त व्यापार होगा" की सच्चाई: 
मुक्त व्यापार होगा ऐसा हम सबको समझाया जाता रहा है.
यह आप अच्छी तरह समझ लें कि व्यापार में हमेशा से दो की साझेदारी है । 
एक देने वाला और दूसरे लेने वाला और कोई भी व्यापार उन दोनों के आपसी सहमति से ही होता है पर इस मुक्त व्यापार मे भारत को कैसे लूटा गया और निरंतर लूटा जा रहा है ज़रा समझने का प्रयास करें । 
WTO बनाने वाले अमीर देशों ने मिल बाँट कर कुछ ऐसी शर्ते रखीं की वह आसानी से हमारे संसाधनो दोहन कर सकें । मुक्त व्यापार सब कहते हैं करता कोई नहीं । 
अनुदान समाप्त करने की बात सब करते हैं परन्तु करता कोई नहीं । 
अमेरिका अपने किसानों को 400 प्रतिशत तक अनुदान देता है परन्तु भारत पर दबाव है की अनुदान समाप्त किया जाये । ताज़ा उदाहरण है कि मोज़ाम्बिक नामक देश को भारत ने करार किया है कि उसे तकनीकी सहायाता दे कर उससे दाल पैदा करवा कर 1 लाख टन दाल भारत खरीदेगा । यह हो रहा है मुक्त व्यापार के नाम पर । 
भारत खाध्य पदार्थों के लिए सक्षम देश है फिर भी WTO करार के कारण हमें अपने कुल खपत का 8% आयात करना है । उसके बाद मुक्त व्यापार के नाम पर जहां सस्ता समान हो वहाँ पर से आप सामान लाएँगे । 
अब आप मोज़ाम्बिक, एक दक्षिण अफ्रीकी देश से दाल आयात करेंगे । 
भारत मे दाल का समर्थन मूल्य है 45-50 के आसपास और आज आप 80-100 रुपये किलो दाल का आयात करेंगे । 
मतलब दुगुने दामों पर दाल का आयात होता है और आप उसके लिए धन का भुगतान डालर में करेंगे जिसकी आपके पास वैसे भी कमी है ।
भारत देश मे लगभग प्रतिवश 220 से 240 लाख टन दाल की खपत है और भारत में दाल की पैदावार 150 – 160 लाख टन की दाल की है । सीधा सा प्रश्न कि क्या दाल भारत में पैदा हो सकती है । उत्तर है जी हाँ, आपके किसान दाल आराम से पैदा कर सकते हैं । परन्तु दुर्भाग्य से एक को नीलगाय का प्रकोप और दूसरे बेचने का झंझट उन्हे यह करने से रोकता है । और इन दोनों का उपाय आपकी भारत सरकार के पास है । 
परन्तु करने की एक तो मंशा नहीं है दूसरे यदि करना चाहें भी तो WTO की बेड़ियाँ पैरों में पड़ी हैं । 
यह तो एक उदाहरण है ऐसे कितने ही क्षेत्र में आप सक्षम होते हुए विदेशी व्यापार को परतंत्र हैं । 
service sector के नियमों के कारण अब इलाज और शिक्षा जो मेरे देश में सबसे पवित्र व्यवसाय माना जाता था अब मात्र धन कमाने का क्षेत्र बन गया है । 
नियमों के तहत इन क्षेत्रों को व्यवसाय घोषित कर दिया है । 
आप ने देखा होगा कितना अधिक विरोध होता है स्कूलों में फीस वृद्धि पर पर आपकी सरकार इससे अपना नियंत्रण खो चुकी है । यह है WTO का असर । 
व्यावसायिक शिक्षा का उससे भी बुरा हाल है क्योंकि वहां अभिभावक बच्चे के भविष्य के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं । भारत मे 1 लाख engineer प्रति वर्ष अधिकतम चाहिए परन्तु बन रहे हैं 16 लाख कहाईन खपेंगे वह बच्चे जिनके माता पिता ने भविष्य सुधारने के नाम पर प्रति बच्चा 10 लाख से अधिक खर्च किया है । 
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4) अगला मुद्दा है कि रुपये की कीमत मजबूत होगी; सच्चाई- : 

अब 70 के दशक में डॉलर की कीमत 7 रुपये की थी जो 90 के दशक में 14 से 17 के बीच रही है । 
90 में उदारीकरण के साथ ही कुछ ही समय में 36 रुपये कर दी गयी और आज 65 के आसपास हुई । 
20 वर्षों में कीमत मे दोगुने का उछल आया और उदारीकरण के बाद लगभग चार गुना 20 वर्षों में हुआ। 
यह है रुपये की मजबूती । 
एक बात और जान लीजिये कोई भी नियम नहीं है रुपये की डालर से कीमत लगाने का। 
यह मात्र दादागिरी पर निर्भर है । 
आपको ऐसा बना दिया कि आप डॉलर से आयात करें । 
अब आपकी मजबूरी है कि डॉलर चाहिए तो आप निर्यात उनकी शर्तों पर और कीमतों पर करें । 
जब भी डॉलर की कीमत बढ़ती है आयात महंगा और निर्यात सस्ता होता है। 
इसलिए हमें दुगुनी मार पड़ती है । इससे उन विकसित देशों का क्या फायदा जिसे आप अपना कल्याण समझते हैं । 
एक नयी दिशा दी गयी पर्यटन क्षेत्र को यह कह कर कि कितने विदेशी यहाँ भारत के दर्शन को आ रहे हैं और बार बार आते हैं।
आप समझिए कि विदेशियों के लिए भारत एक सस्ता देश है इसलिए आते हैं । दूसरे भारत वाले उनकी आवभगत करते हैं। आपने के नया शब्द सुना है आजकल medical tourism। 
हमारे डॉक्टर विदेशियों का इलाज भारत में सस्ते में विश्व की बेहतर सुविधाओं से करते हैं। 
यदि यही डॉक्टर को विकसित देश अपने यहाँ बुलाएँ तो डॉलर मे पगार या salary देनी पड़ेगी इसलिए भारतीय रुपये मे सस्ते में इलाज होता है। 
मानवीयता के नाते यदि आप भारत मे इलाज करवाते हैं तो अच्छी बात है भारत हमेशा से मानव धर्म को सर्वोपरि मानता है परन्तु उसे विकसित देशों के षडयन्त्र की भेंट नाट चढ़ाये। 
यही खेल शिक्षा के क्षेत्र मे चला है जहां भारत के विश्व विद्धयालय 3 वर्ष भारत में एक वर्ष अमेरिका के नाम पर अपनी फीस बढ़ा देते हैं। 
देखिये आपकी डॉलर की मांग को बढ़ाते रहना ही एक मात्र उद्देश्य है जिसके कारण वह आपको दबा सकें। अंत मे आपका व्यापार घाटा बढ़ेगा और फिर द्ल्लर की कीमत और बढ़ाने पर आप मजबूर हो जाएंगे।


25 YEARS OF GLOBALISATION PART III- 

https://www.youtube.com/watch?v=AV9aXat-QNw


Video gives you update of actual on road situation.
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25 YEARS of GLOBALISATION PART IV https://www.youtube.com/watch?v=e63xdOnO2fY


This video gives exact idea behind the hype of FDI. Why sit is not necessary
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25YEARS OF GLOBALISATION 


https://www.youtube.com/watch?v=OdWmCgJ56Ro

This video discusses the reasons of Globalisation and Net out put after 25 Years
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25 YEARS GLOBALISATION 


https://www.youtube.com/watch?v=gb-nZjtRpJY 

यह विडियो आपकी बताता है की हम को जो कहाँ गया था उदारीकरण के नाम पर वह कितना सच निकला.
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WTO agreement itself declares WTO as document above Constitution.
Why India has made changes in its rules for import of poultry to bring them in conformity with a World Trade Organization (WTO)?
Now, India will import of poultry meat, eggs and live pigs from the U.S A.

Because WTO agreement says "No single elemnet of this Draft Final Act can be considered as agreed till the total package is agreed"
मतलब भारत जैसा देश जब इस संधि को लागु करेगा तो इस संधि के हिसाब से आपको अपने काएदे कानून बदलने पड़ेंगे ना की कायदे कानून के हिसाब से ये संधि बदली जाएगी | यानि हमारे देश का कोई कानून इस संधि के खिलाफ हैं तो आपको अपने कायदे कानून बदलने पड़ेंगे, ये संधि नही बदली जाएगी |

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5) आइये अब 25 साल की भूमंडलीकरण के पांचवें प्रकरण मे हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि हमे सबसे अधिक जो FDI के बारे मे बताया जाता है और उसके पीछे का सच क्या है.


पहले तो यह समझने की बात है कि हमें धन क्यों चाहिए ? उसको देने वाले कौन है ? हमें वह धन क्यों देगा ? हम किस तरह उस धन को वापिस करेंगी ? और धन देने वाले की शर्तें क्या हैं ? 
हमे शायद यह समझाया जाता है कि विदेशी पूंजी की भारत को आवश्यकता है भारत के मूल भूत ढांचे को बदलने के लिए । यह सबसे बड़ा असत्य हमें पढ़ाया और मीडिया के माध्यम से बताया जा रहा है । हमें अपने आधारभूत ढांचे को बदलने के लिए क्या और कितना धन चाहिए और उसे देने वाले कौन रहे हैं आज तक । पहले इसको समझ लें । आधारभूत ढंके का अर्थ आप समझें कि सड़कें, पुल, बिजली की व्यवस्था, पानी की व्यवस्था इत्यादि इत्यादि । आज भारत के ही बड़े बड़े व्यापारी और विदेशी पूंजीपति यह सब काम करने लगे हैं । यह काम सरकार का होता है परंतु जब से भूमंडलीकरण की शर्तों को पालन किया है सरकार इस पर पैसा खर्च नहीं करेगी । उसी के बाद सड़कों पर टोल टैक्स लगाया गया और बड़े बड़े हाइवे जिन पर आप पैसा दे कर जाते हैं बनाए गए। बिजली पानी पर सरकार अनुदान देती थी अब नहीं दे सकती । इसलिए आपकी बिजली की दरें बढ़ गयी हैं और अब बिजली कंपनी जितना खर्चा दिखाएँ आपसे पैसा ले सकती है। हर पंचवर्षीय योजना इसी आधारभूत ढांचे के लिए ही तो होती है । फिर यह नयी बात क्यों । दरअसल सरकार अपने खर्चे बढ़ाती चली गयी, नेताओं और अफसरों की तनख्वाह बेहिसाब बढ़ती गयी और आम आदमी इतना पैसा नहीं कमा पाया कि उसके टैक्स से उतना पैसा सरकार के पास पहुंचे तो सरकार को राजकोषीय घाटा होने लगा । और ऊपर से विदेशीयों का भारत के बाज़ार पर कब्जा करने का सपना । इस सबके चलते भारत में विदेशी पूंजी का महत्व दर्शाया जाने लगा ।

कोई कहने लगा कि 400 Bn डॉलर की आवशयकता फिर कुछ समय बाद किसी ने 900 Bn डॉलर के लिए कहा । Goldman Sach नामक अर्थशास्त्री जिनकी वाणी या संदेश सुनने को पूरा पश्चिमी समाज बेचैन रहता है ने अपने पेपर 187 मे 2009 मे कहा था कि भारत को आने पूर ढांचे को बदलने के लिए 400 Bn नहीं और 900 Bn भी नहीं बल्कि 1700 Bn डॉलर की आवश्यकता है। इसके साथ ही यह कहा कि भारत को एक भी डॉलर बाहर से लेने की ज़रूरत नहीं है । इस देश की घरेलू बचत से इतना पैसा आ जाएगा । कालांतर में इतने धन के भारत में होने की बात सच निकली है । 2009 मे भारत मे घरेलू बचत दर थी लगभग 30% फिर बढ़ कर हुई 37% और आज लगभग 40% हो गयी है । आज भारत कि घरेलू बचत 31 लाख करोड़ की है (यह आंकड़ा 2012 के बाद रिजर्व बैंक ने निकालना बन्द कर दिया) इस लिंक पर जा कर देखिये 
https://www.rbi.org.in/scrip…/AnnualReportPublications.aspx…
अब सरकार ने यह आंकड़ा निकालना क्यों बन्द कर दिया जिससे कल को कोई FDI की आवशयकता पर प्रश्न नहीं उठाता । इसी के साथ जानना आवश्यक है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2000 से 2015 में भारत में कुल 13 लाख करोड़ रुपये आए । इसका भी लिंक दिया है । 
https://www.hcilondon.in/…/FactSheet_on_IFDI_April2000_June… 


15 साल में 13 लाख करोड़ और आपके देश में स्वयं की पूंजी है 31 लाख करोड़ प्रति वर्ष । 
अब ज़रा यह समझने का प्रयास करते हैं कि वाकई में पैसा कैसे आता है । यह पैसा दो प्रकार से आता है एक तो FDI कहलाता है और दूसरा FII कहलाता है । FDI का धन तो शायद आपका कुछ किसी समय तक एवं एक हद तक ही भला करेगा परन्तु FII देश में कुछ नहीं करता । एफ़आईआई का पैसे देश के सट्टा बाज़ार या शेयर मार्केट में लगाया जाता जो कभी भी देश की उत्पादकता में या रोजगार में योगदान नहीं कर सकता । अब जब भी FII का पैसा आता है उसे कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है, और स्वयं भारत का बाहर रखा काला धन आने में यहाँ पर नियमों के कारण परेशानी महसूस करता है। अब जब इतनी मेहनत के बाद भी भारत मे विदेशी पूंजी निवेश नहीं हुआ तो सरकार के मंत्री चिदम्बरम ने एक नई नीति के तहत पार्टीसीपेटरी नोट्स (Participatory Notes) को इजाजत दे दी। इसके बाद आप भारत के सट्टा बाज़ार या शेयर मार्केट में बिना अपना नाम बताए पैसा लगा सकते हैं । पूरे विश्व में यह प्रक्रिया मात्र भारत में चलती है । 


इस पार्टीसीपेटरी नोट्स का सबसे बड़ा नुकसान है कि वह कभी भी बिन बताए निकाला जा सकता है । उससे भारत के Sensex पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पहली बात तो सेंसेक्स कभी भी देश की प्रगति की पहचान नहीं है परन्तु देश के तथाकथित पढे लिखे आर्थिक सलाहकार इसे ही सच मानते हैं । पर उसमे आम नागरिक जो पैसा लगाते हैं mutual fund के जरिये जिसके लिए सरकार ने बहुत मेहनत की, उनका नुकसान हो जाता हैं । अक्तूबर 2007 में जब भारत में 4.5 लाख करोड़ का participatory notes का पैसा था एक ही दिन में sensex 9% गिरा दिया अगले दिन और 4% और सारा पैसा लेकर participatory notes वाले भाग गए । बिचारे निवेशकों का 3 लाख करोड़ एक ही दिन में लूट गया और आपका निवेशक शोर भी नहीं मचा सका, FIR भी नहीं लिख सकता । कारण सरकार की नीतियाँ । आज इसकी मात्र 2.25 लाख करोड़ के आसपास है । 
http://economictimes.indiatimes.com/…/articles…/51977363.cms 
अब यदि पैसा आता भी है तो कहाँ से और कितना हमारे काम आएगा। हमारे भारत के असली विकास में 2% धन ही FDI से आया है यह सरकारी आंकड़ा है 2005 तक का । आज भी सरकार कहती है कि इनफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार 3 साल में 31 लाख करोड़ खर्चा करना सरकार का लक्ष्य है । पिछले वर्ष भारत मे आया 13000 करोड़ और भारत की बचत है 31 लाख करोड़ । आप किस FDI के पीछे पड़े हैं ?? 



अगला महत्वपूर्ण प्रश्न है कि वह हमें धन देगा क्यों ? कारण स्पष्ट है वह धन देने नहीं बल्कि लेने आया है । उसकी पास स्वयं पूंजी की कमी है । देने वाले वही विदेशी पूंजीवादी है । जब उनके देश में उनका व्यवसाय नहीं या कम चल रहा है तो उनकी निगाह अपना सामान बेचने के लिए ऐसी जगह पर जा रही हैं जहां जनसंख्या हो और वह उनका समान लेने को तैयार भी हो जाएँ । भारत की बड़ी जनसंख्या उनके लिए आकर्षण का केंद्र है । हम 130 करोड़ के देश में धीरे धीरे मध्यम वर्ग की संपन्नता बढ़ती जा रही है । और यही उनका बाज़ार है । यदि 10% बाज़ार भी उनके पास जाये तो आधी अमेरिकी आबादी के बराबर हो जाता है । इसलिए आप ध्यान दें कि उन्होने उन्ही उपभोक्ताओं को पकड़ा है जो विज्ञापन से हाथ आएंगे चाहे वह TV हो, radio या अखबार । 22,000 करोड़ का विज्ञापन का बाज़ार था 2008 में जो अब तक 50,000 करोड़ के पार है और ऐसी उम्मीद है कि 2019 में यह 84,000 करोड़ के पार होगा । देश के 80% TV धारकों में से 50% ही पैसा देश कर TV सर्विस लेते हैं और उनका खर्चा 2700 प्रति परिवार है अर्थात 10 करोड़ परिवार 2700 रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से 27000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष TV उद्दयोग को देते हैं । और इसी TV को देखने वाला इनका ग्राहक है । हमें यह समझाया जाता है कि अब आपको अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम दिखाया जाएगा, अभी काश्मीर में देख लीजिये क्या देश धर्मिता निभाई है TV के समाचारों नें। 
इसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र मे आकार वह विध्यालय बनाते है कि सम्पन्न परिवारों के बच्चे वहाँ पढ़ें और डिग्री ले लें । पैसा दे कर ज्ञान का कोई प्रश्न नहीं है ? पहले यह काम सरकार करती थी शिक्षा का । WTO के बाद आपको शिक्षा और खेती पर अनुदान हटाना है । यान उनकी शर्तों में शामिल हैं । यह तो संक्षेप में कुछ उदाहरण है परंतु भूमंडलीकरण आपके हर क्षेत्र में अपने पैर पसार कर विदेशों में पूंजी ले जा रहा है । 

रही बात धन वापिस करने की तो न तो वह धन मांगेंगे न ही हम देंगे । बल्कि उससे कहीं अधिक वह हमसे मुनाफे के रूप में धन ले जा रहे हैं । उन्होने व्यापार के रूप में शर्तें यह लगाई हैं कि भारत सरकार अपने देश में उन्हे बराबर का व्यवसाय करने देगी । अर्थात यदि किसी अखबार को सस्ता कागज देना है, किसी विध्यालय को सस्ती ज़मीन देनी है तो सरकार उसे नहीं दे सकती । या देगी तो विदेशी आई कंपनी को भी देगी ।

अब आइये FDI पर बात करें कि FDI क्या है ? देश की अर्थव्यवस्था में इसका कैसा योगदान है? 

विदेशी कम्पनियों को भारत में व्यापार करने की अनुमति देना FDI है, जैसे कि ईस्ट इंडिया कम्पनी को व्यापार की अनुमति दी गयी थी, ईस्ट इंडिया कंपनी एक FDI थी।
आर्थिक दृष्टिकोण से FDI के क्या फायदे होते है?

जैसा कि प्रचारित किया जाता है कि सामान्य तौर पर FDI आने से हमेशा विकास होता है, रोज़गार के अवसर पैदा होते है, नयी नयी तकनीक आती है, सब कुछ चमकदार हो जाता है आदि आदि।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आने से कैसा विकास हुआ था? ईस्ट इण्डिया कंपनी ने हमें रेल दी(जबकि खर्चे भारतीय राजा ने ही किया था), तार दिया, टेलीफोन दिया, सड़के और पुल बना कर दिए, और भी बहुत कुछ दिया।

किन्तु पाठ्यपुस्तको में तो कहा गया है कि, ईस्ट इण्डिया कंपनी ने हमें गुलाम बना लिया था, और उन्हें भगाने में हमे सालो संघर्ष करना पड़ा।
बकवास, यदि ऐसा होता तो हम आज फिर से अमेरिकी कम्पनियों को विकास के लिए क्यों बुला रहे है, 
बताइये?
कुछ अक्ल के अन्धो ने अंग्रेजो को खदेड़ दिया था, लेकिन 1992 से हमने उन्हें फिर से देश में आकर विकास करने को राजी कर लिया है, और अब तो हम मेक इन इण्डिया नाम का मिशन लेकर चल रहे है, अत: विकास की सुनामी आने वाली है, आप अपने हाथ पाँव संभाल कर रहिएगा, वरना देश के साथ आप भी बह जाओगे।
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FDI के राजनेतिक फायदे क्या है?
अव्वल तो यह कि FDI ढ़ेर सारा पैसा लेकर आती है, अत: राजनेताओ, नौकरशाहो, बिचौलियों आदि का जमकर विकास होता है, दुसरे यह कि नेताओं को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान और वाहवाही मिलती है, जैसे कि जवाहर गाज़ी, मोहन गांधी, मोदी आदि को मिली। इस से नेताओं का सत्ता में बने रहना भी आसान हो जाता है.
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मतलब FDI से पांचो अंगुलियाँ घी में रहती है। बिलकुल, और देश का सिर उबलते तेल की कडाही में चला जाता है.
जब भी FDI को अनुमति दी जाती है, मिडिया इन्हें 'साहसिक' फैसले की संज्ञा देता है, नेता जी को इसमें किस प्रकार के साहस का प्रदर्शन करना होता है?
असल में FDI की फ़ाइलो से किंग कोबरा लिपटे हुए रहते है, और ये फ़ाइले मेथिल आइसो सायनाइड गैस से भरे हुए चेंबर में रखी रहती है। प्रधानमन्त्री को स्वयं उस चेंबर में जाकर किंग कोबरा के चंगुल से फ़ाइले छुड़ा कर हस्ताक्षर करने का जोखिम उठाना होता है, इसलिए ये फैसले साहसिक होते है। हालांकि 1992 से अब तक सभी प्रधानमन्त्री ये जोखिम उठाते आये है। सबसे पहले 1992 में मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री रहते इस विष कक्ष का दरवाजा खोलने का साहस किया था, तब से सबसे ज्यादा जोखिम मनमोहन सिंह ही उठाते आये है। उनके 10 साला प्रधानमन्त्री कार्यकाल के दौरान इस कक्ष में उनका रोज का आना जाना था।
मोदी साहेब का FDI को लेकर क्या रवैया है?
मोदी साहेब पिछले 7 महीनो से उसी कक्ष में जमे बैठे है, कभी कभार ही शुद्ध वायु सेवन के लिए कक्ष से बाहर तशरीफ़ लाते है।

मनमोहन और मोदी साहेब की FDI निती में मूलभूत अंतर क्या है?
मनमोहन FDI की टिकड़ीयां डरते डरते फोड़ते थे, जबकि मोदी साहेब FDI छाप सूतली बम के धमाके भी एलानियाँ करते है।
बहरहाल मोदी साहेब को क्रेडिट दिया जाना चाहिए कि उन्होंने FDI को जनता के लिए मनोरंजक कलेवर में पेश कर दिया है।

FDI का मेक इन इण्डिया से क्या सरोकार है?
कोई सरोकार नही, दोनों एक ही है। FDI पर स्वदेशी संगठन सदा से कोहराम मचाये रहते है, इसलिए इसे नया नाम दे दिया गया है। इस से यह खुशफहमी बनी रहती है कि, मोदी साहेब कोई नयी 'चीज' लाये है।

मेक इन इंडिया का शुभंकर शेर बनाए जाने का प्रयोजन है? मोदी साहेब इस सच्चाई को छुपा नहीं रहे है कि, पूरा भारत धीरे धीरे इस शेर की खुराक हो जाएगा।

FDI के आर्थिक नुकसान क्या है?
FDI के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कम्पनीयां घरेलू बाजार पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर के एकाधिकार (मोनोपोली) स्थापित कर लेती है, जिससे स्वदेशी इकाइयां या तो बंद होती है या बिक जाती है।
FDI से प्रतिस्पर्धा बढती है, और उपभोक्ता को फायदा होता है क्या?
मूलत: इस से ज्यादा चालाक तर्क दूसरा नही हो सकता। आप बिल्लियों और बघियारो के बीच किस तरह की प्रतिस्पर्धा की उम्मीद करते है। शुरूआती स्तर पर उपभोक्ता को आंशिक लाभ होता है, किन्तु एकाधिकार स्थापित होने के बाद अमुक कंपनी को मनमानी राशि वसूलने की आजादी मिल जाती है।

FDI से रोज़गार का सृजन होता है ?
बकवास है। MNCs उत्पादन के लिए अत्याधुनिक मशीनों का इस्तेमाल करती है, जिससे मानव श्रम में कमी आ जाती है, तथा सिर्फ लेखा कार्यो के लिए क्लर्क क्लास की आवश्यकता होती है।
इसे एक छोटे उदाहरण से समझते है :
कोक-पेप्सी के आने से गोल्ड स्पॉट, लिम्का, थम्स अप, केम्पा कोला जैसी दसियों इकाइयां बंद या टेक ओवर हो गयी । आज शीतल पेय के पूरे बाज़ार पर दो कम्पनियों का कब्ज़ा है, जहाँ 50 कम्पनियां काम कर रही थी, आज सिर्फ दो कम्पनियां मुनाफा कमा रही है।
हालांकि इस प्रकार की चटनी चूरण कम्पनियों से देश को कोई गंभीर नुक्सान नहीं होता !! है न!! किन्तु तकनीक तथा प्राकृतिक संसाधन आधारित क्षेत्रो जैसे ऊर्जा, खनन, रेल, दूरसंचार, बेंकिंग और हथियार निर्माण के क्षेत्र में FDI आत्मघाती थेलियों के सिवा कुछ नही है, जो पूरे देश को पचा लेती है।

सब तो कह रहे है कि, FDI से देश में पैसा आता है, जिससे देश अमीर होता है? 
आप पेड मिडिया द्वारा पिलाई जा रही अफीम के नशे में बौरा गए लगते है। वास्तविक स्थिति इसके ठीक उलट होती है।
मिसाल के लिए मान लीजिये कि, एक कम्पनी 'R' 100 करोड़ डॉलर की पूँजी लेकर आती है। यह रुपया वह कम्पनी भारत सरकार को जमा करके, 100×60 = 6000 करोड़ रूपये की भारतीय मुद्रा प्राप्त करती है, तथा अगले दस वर्ष में 6000 करोड़ से 30,000 करोड़ का मुनाफा कमाती है। ऐसी स्थिति में भारत सरकार को अमुक कंपनी को 10 वर्ष बाद 30,000÷60 = 500 करोड़ डॉलर चुकाने होते है।
यदि ऐसी 100 कम्पनियां भारत में कार्य करती है तो भारत को 500×100 = 50,000 करोड़ डॉलर चुकाने होंगे।
अब समस्या यह है कि हमारे पास नोट छापने की मशीने तो थोक में पड़ी है, पर डॉलर छापने का कोई यंत्र नही, क्योंकि डॉलर छापने की मशीने तो अमेरिका के पास है।
चूंकि हम कमाए गए मुनाफे के बदले डॉलर देने का 'साहसिक' वादा कर चुके है, अत: हमें ये डॉलर चुकाना ही है। डॉलर हासिल करने के निम्नलिखित उपाय है :
1. निर्यात से डॉलर आता है, परन्तु हम निर्यात से ज्यादा आयात कर लेते है, इसलिए व्यापार विनिमय से भी हम पर डॉलर का क़र्ज़ चढ़ जाता है।
2. विदेशी क़र्ज़ : हम विश्व बेंक के परमानेंट लोनिये है, और ब्याज की किश्ते चुकाने के लिए भी और क़र्ज़ ले रहे है।
3. फिर से FDI के नाम किसी कम्पनी 'T' से डॉलर की पूँजी लेकर 'R' के क़र्ज़ को चुकाया जाए। लगभग सभी क्षेत्र खोल चुके है। विकल्प कम बचे है।
4. सोना गिरवी रखा जाए: मनमोहन ने जो गिरवी रखा था वो भी अभी पूरा नही छुडवा पाए है, सोना वेसे भी हमारे पास ज्यादा बचा नहीं है। हालत यह है कि मोदी साहेब को मंदिरों पर भी हाथ डालना पड़ रहा है।
5. हम अपनी राष्ट्रिय संपत्तियां, खनिज और प्राकृतिक संसाधन लेनदार कम्पनियों के हवाले कर के भरपाई करे।
6. कर्जा खा जाएँ और अमुक कम्पनी के देश से युद्ध लड़े। ( अमुक देश अमेरिका है )


FDI के राजनेतिक नुक्सान क्या है ?
इतिहासकार टॉयंडी का मशहूर कथन है कि, यदि किसी देश में आर्थिक गुलामी आती है, तो राजनेतिक गुलामी आती ही है । जिस प्रकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने शुरूआती 200 वर्ष तक व्यापार किया, और बाद में हमें गुलाम बनाया।

पहले की बात अलग थी, अब हमारे देश में लोकतंत्र है, मतदान का अधिकार है, अत: राजनेतिक गुलामी कैसे आ सकती है ?
बुद्धिमानों, सिर्फ चुनने का अधिकार होना लोकतंत्र नही है, अपने भ्रष्ट प्रतिनिधियों हटाने का अधिकार ही लोकतंत्र की रचना करता है।

भारत में राईट टू रिकाल क़ानून न होने की वजह से अधूरा लोकतंत्र है, इसलिए नेता जनादेश की मनमानी व्याख्या करते है । इस क़ानून के बिना सभी नेता-मंत्री-भ्रष्ट अधिकारी जनता को भेडिये की भांति संहार कर जाते हैं.
इसे यूँ समझिये कि, चुनाव के 6 महीने पहले नेता जनता को सिर आँखों पर बिठाते है क्योंकि जनता के पास उन्हें चुनने की शक्ति होती है, किन्तु एक बार चुन लिए जाने के बाद चूंकि जनता उन्हें हटा नही सकती अत: साढ़े चार वर्ष तक जनता की छाती पर मूंग दलते रहते है।
इन साढ़े चार वर्षो के दौरान सभी नेता बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और पेड मिडिया के हितो के लिए काम करते है, क्योंकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पक्ष में नीतियाँ बनाने से उन्हें भारी घूस मिलती है, और पेड मिडिया जनता में उनकी सकारात्मक छवी बनाए रखता है।

FDI के अन्य सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक दुष्प्रभाव क्या है ?
MNCs जहां भी जाती है, अमुक देश की तकनीक और इंजीनियरिंग को तबाह करने के लिए अकादमिक स्तर पर गणित और विज्ञान का आधार तोड़ देती है, जैसे MNCs ने घूस देकर आठवीं तक फ़ैल न करने का क़ानून बनवाया, IIT जैसे संस्थानों को कमजोर किया आदि।
MNCs/मिशनरीज़ स्थानिक धर्म को तोड़ने के लिए, PK, OMG जैसी फिल्मो को फंडिंग देती है, ऐसे नेताओं को आगे बढ़ाती है, जो स्थानिक धर्म का मज़ाक उड़ाए, मंदिरों/मठो/आश्रमों/साधुओ/संतो आदि को दुष्प्रचार से कमजोर करती है, ताकि मिशनरीज़ बड़े पैमाने पर धर्मान्तर कर सके।
सामरिक दृष्टी से MNCs का मुख्य लक्ष्य अमुक देश की सेना को कमजोर बनाए रखना और हथियारों की फेक्ट्रियो को बंद करवाना होता है।

FDI को यदि हम रोक देते है, तो विकास कैसे करेंगे ?
खुद से, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन और रूस ने किया। FDI से हमें कोई समस्या नहीं है, पर हमें कानूनों में कुछ सुधार करने होंगे, ताकि हम FDI के दुष्प्रभाव से देश को बचा सके।
1. MNCs को दी जा रही कर राहते और मोरिशस रूट को समाप्त करना होगा, डॉलर के पुनर्भरण का समझौता रद्द करना होगा, PSU का विनिवेश रोकना होगा, खनन, ऊर्जा, रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों में FDI की अनुमति रद्द करनी होगी।
2. हमारी स्थानिक इकाइयों को सरंक्षण देने के लिए जूरी सिस्टम, वेल्थ टेक्स, WOIC तथा सभी मुख्य राजनेतिक और प्रशासनिक पदों को प्रजा अधीन करना होगा
अमुक बदलावों के लिए हमने क़ानून ड्राफ्ट प्रस्तावित किये है, जिन्हें आप निम्न लिंक से मुफ्त डाउनलोड कर सकते है।

rahulmehta. com/301.htm
आप इन कानूनों का अध्ययन करें, तथा इनका समर्थन करते है, तो अमुक कानूनों को गेजेट में छापने का आदेश अपने सांसद को SMS द्वारा भेजे।

समाधान ?

राईट टू रिकॉल पार्टी का प्रस्ताव है कि -- हमें अब और विदेशी कर्ज नहीं लेना चाहिए, डॉलर पुनर्भरण ( repatriation commitment) का वादा करना बंद कर देना चाहिए और सोने, चांदी व सभी प्राकृतिक संसाधनों के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। साथ ही विदेशी ट्रस्टों को शामिल करते हुए भारत के सभी भूखंडों पर सम्पत्ति कर आरोपित करना चाहिए। 

इन उपायों से डॉलर का भाव उछलकर 200 रुपये तक पहुंच जाएगा, लेकिन हम भविष्य में चुकाने वाले कर्जो और वादों से छुटकारा पा जाएंगे। 
.
आप लोग क्या करें-
"राईट टू रिकॉल PM"
"Right to recall CM,MP,MLA,डीपीपी,जज इत्यादि etc कानूनों को लागू करवाओ
.
अत: सभी कार्यकर्ताओ से आग्रह है कि वे बीजेपी/कांग्रेस/आम पार्टी से किनारा कर लें और सिर्फ राईट टू रिकॉल पार्टी द्वारा प्रस्तावित कानूनों को लागू करवाने के लिए प्रयास करें। 

_____________
उन कानूनों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखिये-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
_______________
==
गीता को केवल पढ़ें ही न उसको जीवन में उतारे ,,देखें कहीं आपके अन्दर तो दानव ने तो नहीं प्रवेश कर लिया. चिंतन करें. आत्मज्ञान लेवे. सब कुछ पैसा नहीं है ऐसा सोचे. अपने धन को आप कहीं गलत कार्यों में तो नहीं लगा रहे.
.
जय हिन्द

___________________
@ प्रजा अधीन राजा






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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.

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