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Showing posts from November, 2017

क्यूँ वामपंथ को जर्मनी से भगाया गया और धन-माफियाओं ने अमेरिका के विश्वविद्यालयों में रोपाई किया ?

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जिस प्रकार हिटलर ने वामपंथ को खत्म करने के लिए jews को मरवाया, वो वामपंथ को जर्मनी से भगाने के लायक था.  इस्लाम वामपंथ का स्ट्राइक आर्म है. वामपंथ के पास इतना संख्या बल कभी नहीं होगा कि वे अपने बल पर सत्ता पर कब्जा कर सकें. उनका उपद्रव मूल्य (Nuisance value) है. वे अव्यवस्था और गंदगी फैला सकते हैं. पर शक्ति के लिए वे इस्लाम की शक्ति का प्रयोग करने से परहेज नहीं करेंगे. इस्लाम के लिए भी वे उपयोगी मूर्ख हैं...इस्लाम को भी उनका उपयोग करने से परहेज नहीं है.  इस्लाम तलवार है...फिर इनकी ढाल क्या है? ढाल है पॉलिटिकल करेक्टनेस.  Rajeev Mishra image courtesy- http://www.kickthemallout.info/article.php/Story-1933_Jews_Declare_War_On_Germany . एक जनरलाइजेशन किसी भी समाज की विकृत तस्वीर ही देता है. जैसे गरीबी का जनरलाइजेशन भारत की गलत तस्वीर देता है, वैसे ही अनेक भारतीय भी पश्चिमी समाज की स्टीरियोटाइपिंग से उत्पन्न भ्रांतियों से ग्रस्त हैं. जैसे कि उन्हें लगता है कि गोरी लड़कियाँ सब फटाफट पट जाती हैं और सीधा बिस्तर पर चली जाती हैं. हमारा समाज एक काम्प्लेक्स सिस्टम है जो विदेशिय

जोधाबाई के काल्पनिक होने का पारसी प्रमाण:

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अकबर की शादी “जोधा बाई” से नहीँ "मरियम-उल-जमानी" से हुयी थी जो कि आमेर के राजा भारमल के विवाह के दहेज में आई परसीयन दासी की पुत्री थी। वैसे तो बहुत प्रयास किए गये हिँदुओँ को अपमानित करने के लिये लेकिन एक सच ये भी है।। 1 – अकबरनामा (Akbarnama) में जोधा का कहीं कोई उल्लेख या प्रचलन नही है।।(There is no any name of Jodha found in the book “Akbarnama” written by Abul Fazal) 2- तुजुक-ए-जहांगिरी /Tuzuk-E-Jahangiri (जहांगीर की आत्मकथा /BIOGRAPHY of Jahangir) में भी जोधा का कहीं कोई उल्लेख नही है। (There is no any name of “JODHA Bai” Found in Tujuk -E- Jahangiri ) जब की एतिहासिक दावे और झूठे सीरियल यह कहते हैं की जोधा बाई अकबर की पत्नि व जहांगीर की माँ थी जब की हकीकत यह है की “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोइ नाम नहीं है, जोधा का असली नाम {मरियम- उल-जमानी}( Mariam uz-Zamani ) था जो कि आमेर के राजा भारमल के विवाह के दहेज में आई परसीयन दासी की पुत्री थी उसका लालन पालन राजपुताना में हुआ था इसलिए वह राजपूती रीती रिवाजों को भली भाँती जान्ती थी और राजपूतों में उसे ह

Why Congress does NOT want Bharat-Ratna to Gen Kariappa ?

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"जनरल करियप्पा भारत रत्न के लायक नहीं है" ( - कांग्रेस) क्योंकि स्वतन्त्रता के बाद भी अंग्रेज सेनाध्यक्ष के अधीन रहने वाली भारतीय सेना के मुख्यालय द्वारा 6 जुलाई 1948 को "जम्मू-कश्मीर में कोई बड़ा अभियान नहीं छेड़ने " के स्पष्ट आदेश का उल्लंघन करके उन्होंने कारगिल और लदाख पर भारत का अधिकार कराया था और उसके बाद केन्द्र सरकार की राय के विरुद्ध पाकिस्तानी सेना को श्रीनगर की सीमा से खदेड़कर जब बहुत दूर भेज दिया तो नेहरु ने UNO में मामले को लटकाकर युद्ध-विराम करा दिया, हालाँकि जनरल करियप्पा की राय थी कि पहले पूरे जम्मू-कश्मीर को स्वतन्त्र करा लें उसके बाद जहाँ जो पंचैती करानी हो कराते रहें | गिलगित में पाकिस्तान का झंडा फहराने का विचार वहां के लोगों का नहीं था, 2 नवम्बर 1947 को ऐसा करने का आदेश अंग्रेज अफसर मेजर ब्राउन ने दिया था क्योंकि वे जानते थे कि यदि भारत के अधीन गिलगित रहा तो वहां इंग्लैंड या अमरीका अपना फौजी अड्डा नहीं खोल पायेंगे | संसार में अमरीका का सबसे बड़ा फौजी अड्डा आज भी गिलगित में ही है, लेकिन नेहरु की बदनामी न हो इस कारण उसपर अमरीकियों ने पाकिस्तान का स

Manifesto lies

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Since FACEBOOK reported this post as spam, so i am copying it here in my blog. माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने लोकसभा चुनाव २०१४ के लिए जारी किये गए अपने पार्टी के मैनिफेस्टो मे निम्न पॉइंट्स पब्लिक में जारी किये थे और अपने कोरे भाषणों द्वारा निम्नलिखित समस्याओं को दूर करने की प्रबल इच्छा जताई थी, इन सबके चलते ही भारतीय जनता ने २०१४ लोकसभा चुनाव में बीजेपी को भारी मतों से विजयी पार्टी घोषित करते हुए मोदी को अपना प्रधानमन्त्री चुना था, लेकिन डेढ़ साल में इन लक्ष्यों में से एक भी लक्ष्य का दसवां हिस्सा भी पूरा नहीं हो पाया, इसका मतलब ये है कि बीजेपी कांग्रेस-II है. जिस प्रकार से चित्र में माननीय प्रधानमन्त्री श्री मोदी जी ने अमर जवान ज्योति, इंडिया गेट नयी-दिल्ली में १९६५ के युद्ध के शहीदों को भारतीय सेना के तीनो अंगों के प्रमुखों के साथ श्रद्धा व्यक्त करके उन्हें धन्यवाद ज्ञापित कर रहे हैं, उसी प्रकार से नरेंद्र मोदी को बीजेपी के मनिफेस्तों में अपने दिए गए २०१४ लोकसभा चुनाव के लक्ष्यों को भी धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए क्योंकि इन सब झूठे वायदों के बल पर ही हम मूर्ख

हिन्दुओं की सती प्रथा या जोहर प्रथा तो कबिले लुटेरे मुग़लों की देन

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हिन्दुओं की सती प्रथा या जोहर प्रथा तो कबिले लुटेरे मुग़लों की देन सती प्रथा .... हमारे सभ्य मानवीय इतिहास की कुछेक सबसे बड़ी कुरीतियों मे से एक है ..... जिसे एक कुरीति से ज्यादा हमारे समाज पर कलंक कहना अधिक उपर्युक्त होगा...! उस से भी ज्यादा तो दुखद यह है कि..... इस संबंध मे समुचित जानकारी का अभाव .....आज के हिन्दू नौजवानों को हमेशा ""बचाव मुद्रा"" मे आने को विवश कर देता है ॰ आश्चर्यजनक रूप से..... हमारे समाज के बुद्धिजीवियों द्वारा ""सतीप्रथा"" को हिन्दू समाज के एक बड़ी कुरीति के रूप मे प्रस्तुत किया गया और यह प्रचारित किया गया कि..... ""सतीप्रथा"" पुरातन काल से ही हिन्दू समाज का हिस्सा रहा है....! परंतु ..... कोई भी मनहूस बुद्धिजीवी आजतक यह बताने मे असफल रहा है कि...... दुनिया की पहली सती कौन थी और.... उसने सर्वप्रथम कब आत्मदाह किया था...????? साथ ही.... ऐसे बुद्धिजीवियों के मुंह मे उस समय "मेंढक" चला जाता है .... जब उन्हे पूछा जाता है कि.... अगर ""सतीप्रथा"" पुरातन काल से ही हमारे ह

महारानी पद्मावती की ऐतिहासिकता के प्रमाण

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जौनपुर सुल्तान के राज्य में सूफी सन्त मालिक मुहम्मद जायसी ने 1540 ईसवी में अवधी भाषा में "पद्मावत" काव्य की रचना की जिसने महारानी पद्मावती के आख्यान को लोकप्रिय बना दिया | उसी शती में चित्तौर के महाराणा रत्नसिंह के प्रमुख सामन्त गोरा और बदल पर भी (हेमरतन द्वारा ' गोरा बादल पद्मिनी चौपाल') लोकगाथाएं लिखी गयीं | और भी अनेक कथाएं और गीत प्रचलित हुए, मोटे तौर पर उन सबकी मूल कथाओं में साम्य है, जिस कारण आधुनिक युग के छद्म-सेक्युलर इतिहासकारों का कथन है कि महारानी पद्मावती केवल साहित्यिक कल्पना हैं जिनका आधार जायसी की कल्पना है | "पद्मावत" काव्य के अनुसार चित्तौर शरीर की प्रतीक है, महाराणा रत्नसिंह (पद्मावत में रतनसेन) उस शरीर के मन हैं, सिंहल हृदय है जहां की राजकुमारी पद्मावती थीं, पद्मावती ज्ञान की प्रतीक थीं, और अलाउद्दीन वासना का | "पद्मावत" काव्य के अनुसार नारियां चार प्रकार की होती हैं जिनमें सर्वोत्तम नारियों को "पद्मिनी" कहा जाता है, वे केवल सिंहल में ही होती हैं और उनमें सर्वोत्तम का नाम पद्मावती था | जिन लोगों ने "पद्मावत"

तीन मूर्ती भवन और पूरे भारत में इसकी मात्र तीन प्रतिमा १९१८ में इसराइल के हिफा शहर को मुस्लिम कट्टरो से मुक्त करवाने वाले भारतीय सैनिको को समर्पित हैं न की कोई गांधी के बंदरो को समर्पित हैं !!

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तीन मूर्ती भवन और पूरे भारत में इसकी मात्र तीन प्रतिमा इसराइल के हिफा शहर को मुस्लिम कट्टरो से मुक्त करवाने वाले भारतीय सैनिको को समर्पित हैं न की कोई गांधी के बंदरो को समर्पित हैं !! पहले विश्व युद्ध के दौरान कई भारतीय सिपाही भी लड़े थे और उनका इतिहास नागरिकों को कभी आजादी के बाद बताया ही नहीं गया | इसी वजह से लोगों को ये नहीं पता है कि इसराइली हैफा(Haifa) शहर को इस्लामिक ऑट्टोमन खलीफा के चंगुल से छुड़ाने वाले सैनिक भारतीय घुड़सवार थे | फिफ्टीन्थ इम्पीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड के सैनिक 1918 में इसराइल के हैफा शहर को छुड़ाने के लिए लड़े थे | इनमें से कई वहीँ वीरगति को प्राप्त हुए और करीब 900 को वहीँ दफनाया गया है | सौ साल पहले हुई इस लड़ाई में 400 साल की इस्लाम िक हुकूमत से हैफा को छुटकारा मिल गया, वो तुर्की हुक्मरानों से आजाद हुआ | हर साल 23 सितम्बर को भारत और इसराइल दोनों में हैफा दिवस मनाया जाता है | मुझे पता नहीं कि भारत में कितने लोगों ने कभी हैफा दिवस का नाम सुना होगा | . इसलिए हम वहां आ जाते हैं जो आपका सुना, आपके लिए जाना पहचाना है | आपने तीन मूर्ती भवन का नाम शायद सुना होगा |