तीन मूर्ती भवन और पूरे भारत में इसकी मात्र तीन प्रतिमा १९१८ में इसराइल के हिफा शहर को मुस्लिम कट्टरो से मुक्त करवाने वाले भारतीय सैनिको को समर्पित हैं न की कोई गांधी के बंदरो को समर्पित हैं !!


तीन मूर्ती भवन और पूरे भारत में इसकी मात्र तीन प्रतिमा इसराइल के हिफा शहर को मुस्लिम कट्टरो से मुक्त करवाने वाले भारतीय सैनिको को समर्पित हैं न की कोई गांधी के बंदरो को समर्पित हैं !!

पहले विश्व युद्ध के दौरान कई भारतीय सिपाही भी लड़े थे और उनका इतिहास नागरिकों को कभी आजादी के बाद बताया ही नहीं गया | इसी वजह से लोगों को ये नहीं पता है कि इसराइली हैफा(Haifa) शहर को इस्लामिक ऑट्टोमन खलीफा के चंगुल से छुड़ाने वाले सैनिक भारतीय घुड़सवार थे |
फिफ्टीन्थ इम्पीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड के सैनिक 1918 में इसराइल के हैफा शहर को छुड़ाने के लिए लड़े थे | इनमें से कई वहीँ वीरगति को प्राप्त हुए और करीब 900 को वहीँ दफनाया गया है | सौ साल पहले हुई इस लड़ाई में 400 साल की इस्लामिक हुकूमत से हैफा को छुटकारा मिल गया, वो तुर्की हुक्मरानों से आजाद हुआ | हर साल 23 सितम्बर को भारत और इसराइल दोनों में हैफा दिवस मनाया जाता है | मुझे पता नहीं कि भारत में कितने लोगों ने कभी हैफा दिवस का नाम सुना होगा |
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इसलिए हम वहां आ जाते हैं जो आपका सुना, आपके लिए जाना पहचाना है | आपने तीन मूर्ती भवन का नाम शायद सुना होगा | पहले प्रधानमंत्री नेहरु का आवास होने के कारण, और अब संग्रहालय और पुस्तकालय होने के कारण ये प्रसिद्ध है | वहां से गुजरती सड़क भी इसी नाम से जानी जाती है | सन 1924 में यहाँ उस तीन मूर्ती का अनावरण हुआ था, जिन तीन मूर्तियों के कारण इसका नाम पड़ा | ग़लतफ़हमी में कुछ लोग “तीन मूर्ती” कहने पर गाँधी जी के तीन बन्दर समझ लेते हैं |
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पीतल की बनी ये तीन मूर्तियाँ हैदराबाद, जोधपुर और मैसूर रियासतों के घुड़सवार सैनिकों का प्रतीक हैं जो मिलकर पंद्रहवीं इम्पीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड के रूप में लादे थे | बाद में जब भारत आजाद हुआ तो ये 61वीं कैवलरी नाम से जाने जाने लगे | आज 61वीं कैवलरी दुनिया की इकलौती काम करती घुड़सवार सैन्य टुकड़ी है | जब 8 मार्च, 1924 को वाइसरॉय रीडिंग के समय इस प्रतिमा का अनावरण हुआ था तो इसकी सुरक्षा में 19 किंग जॉर्ज फिफ्थ ओन लैंसर्स तैनात था और गार्ड ऑफ़ ऑनर 2/13 फ्रंटियर फोर्सेज रायफल्स ने दी थी | ये दोनों बंटवारे में पाकिस्तान को दे दिए गए |
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ये स्टाम्प की तस्वीर इन्टरनेट से जुटाई है, मेरे पास ये फिलहाल नहीं, क्योंकि कोई परिचित फिलहाल इसराइल में नहीं है | भारतीय डाक ने कभी इन घुड़सवार सैनिकों पर कोई डाक टिकट निकाले हों ऐसा याद नहीं आता | अगले साल भारतीय सैनिकों के इसराइल के हैफा में दर्ज करवाए इस कारनामे को सौ साल हो जायेंगे | सवाल ये है कि क्या भारत भी अपने सैनिकों को याद करेगा ?
#Stamp #Stamps #Philately

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