बॉलीवुड ने भारत की कितनी गलत छवि बनाई है

भारत के दक्षिणी राज्यों, पूर्ववर्ती राज्यों एवं पश्चिमी राज्यों में आने पर पता चला कि बॉलीवुड ने भारत की हिंदी पट्टी की भाषाओं की कितनी गलत छवि बनाई है। हर कोई यही सोचता है कि ऐसे पार्टी होती है वैसे पार्टी होती है ,ऐसे नाचते हैं वैसे गाते हैं , ऐसे हम प्यार करते हैं और पता नहीं क्या-क्या नौटंकियां । उन को बैठाकर फिर पाठ पढ़ाना पड़ता है कि नहीं ऐसा नहीं होता है , यह सिर्फ बॉलीवुड में होता है और कहीं नहीं।


बिहार में बहुत सारी भाषाएं और बोलियां बोली जाती है। अंगिका, भोजपुरी, मैथिलि, मगही, बज्जिका, हिंदी, उर्दू इनमें से प्रमुख हैं। इन सभी भाषाओं या बोलियों को आप "बिहारी भाषाओं" के शीर्षक में डाल सकते हैं। लेकिन 'बिहारी' नाम की कोई भाषा नहीं होती!

हमारे देश के लोगों का ये जानना बहुत आवश्यक है क्यूंकि बहुत बार दूसरे प्रांत के लोग ये समझ लेते हैं कि जो हिंदी 'बिहारी ऐक्सेंट' (मतलब बिहारी बोलियों के उच्चारण) में बोली जाती है वो 'बिहारी' या 'भोजपुरी' भाषा है। और नहीं, लालू यादव के तरह 'हिंदी' बोलने से वो 'भोजपुरी' नहीं हो जाती। ये बहुत ही बड़ी अज्ञानता है जो कई दफ़ा या तो बॉलीवुड के माध्यम से, या बिहारी श्रमिक वर्ग (जो दूसरे प्रांत जा के काम करते हैं) उनके माध्यम से फैली है। वो श्रमिक क्या समझाए किसी को कि उसके अपने गांव की भाषा तो कुछ और है, और बॉलीवुड तो खैर stereotype की दूकान है ही।
तो मैंने सोचा कि जो लोग इस बात से अवगत नहीं हैं, उनको बतायी जाए : आखिर अपने देशवासी अपने देश के बारे में नहीं जानेंगे तो कौन जानेगा?
देखिये। भोजपुरी 'भोजपुर' क्षेत्र की भाषा है, जो कि आज के पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का इलाका है। भोजपुरी बहुत ही समृद्ध भाषा है जिसकी अपनी लिपि भी है जिसे 'कैथी' लिपि कहते हैं। बीसवीं सदी में इस लिपि का उपयोग कम हो गया, और उसके जगह भोजपुरी 'देवनागरी' में लिखी जाने लगी। आपको जानकर हैरानी होगी कि भोजपुरी भाषा में किसी को शिष्टता से सम्बोधित करने के भी पांच स्तर हैं। जैसे किसी को कहना है कि 'तुम आओ' तो उसे भोजपुरी में अलग अलग लोगों को अलग अलग सम्मान से ऐसे कहा जाता है:
१) तू आओ
२) तुम आSव
३) रउआ आईं
४) आपने आईं
५) आवल जाए
इसी तरह भोजपुरी में 'तुम्हारा' को भी 'तोहार', 'तहार', 'राउर' और 'आप के' के अलग अलग सम्मान स्तर से कहा जाता है। भोजपुरी ही मॉरिशियस, गुयाना, त्रिनिदाद-टोबैगो, कैरिबियन, और सूरीनाम में हिन्दुस्तानी लोगों के तरफ से पहुंची और आज वहाँ की राज-भाषाओं में से एक है।
जहां तक है मगही (मगधी) की बात, तो ये 'प्राकृत मगधी' से आयी है जो कि मगध राज्य की भाषा थी। बिहार, बंगाल, उड़ीसा और असम की बहुत सारी भाषाएँ 'प्राकृत मगधी' से ही आयी हैं। गंगा नदी से दक्षिण की ओर और सोन नदी से पूरब की ओर बोली जाने वाली ये भाषा 'मौर्य साम्राज्य',अषोक और गौतम बुद्ध की भाषा थी जो आगे चल कर मगधी अथवा मगही बनी। आज ये गया, पटना, जहानाबाद, औरंगाबाद, नालंदा, नवादा और आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। लोक गीत और कहानियों की सबसे समृद्ध परंपरा इस भाषा में मिलती है। ये जो 'वा' का प्रयोग आप बिहारी उच्चारण में सुनते हैं वो इस भाषा से आता है, जैसे : "मनोजवा भिजुन बुलेट मोटरसाइकिल हई" मतलब 'मनोज के पास बुलेट मोटरसाइकिल है', या, "सलमनवा के जेल हो गेलऊ" मतलब 'सलमान को जेल हो गया'। मगही में भी शिष्टता से सम्बोधित करने के अलग अलग स्तर हैं : "आप आज बाजार गये थे क्या?" को मगही में इस तरह बोला जा सकता है :
१) तूँ आज बजार गेलहु हल का? (बड़ों को)
२) अपने आज बजार गेलथिन हल का? (बहुत सम्मानित लोगों को)
३) तूँ आज बजार गेलहीं हल का? (छोटों को)
इसी तरह मैथिलि है जो मिथिला राज्य, राजा जनक और सीता की भाषा मानी जाती है। इसकी लिपि मिथिलाक्षर या तिरहुत है, और ये बंगाली से मिलती जुलती है। नेपाल के तराई, बिहार के दरभंगा, समस्तीपुर, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, पूर्णिआ, भागलपुर इत्यादि क्षेत्रों में बोली जाने वाली इस भाषा की बहुत बोलियां हैं जैसे बज्जिका, ठेठी, देहाती या बंतर। अंगिका जो अंग देश की भाषा मानी जाती है, व मैथिलि की बहन है, इसकी भी अपनी 'अंग' लिपि है, और ये मुंगेर, भागलपुर व पूर्णिआ में बोली जाती है।
कुल मिलाकर कहने का ये प्रयास है कि जो हिंदी बिहार के शहरी क्षेत्रों में बोली जाती है वो इन्ही समृद्ध भाषाओं के प्रभाव मात्र के कारण थोड़ी अलग लगती है जिसके कारण 'हिंदी' का 'बिहारी' उच्चारण आता है। जैसे 'दीपक ने ये आर्टिकल लिखा है' हो जाता है 'दीपकवा ई वाला आर्टिकल लिखा है', लेकिन होती वो हिंदी ही है, शायद बिहारी हिंदी कह लें। ठीक उसी तरह जैसे राजस्थानी हिंदी, हैदराबादी हिंदी, मध्य-प्रदेश की हिंदी, हरयाणवी हिंदी, सारे अलग सुनने में होते हैं, क्यूंकि उनमें उनके क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव होता है।
और हाँ, ये "हम बोल रहा हूँ" कोई नहीं कहता। "हम बोल रहे हैं"! बिहारी अगर हिंदी में 'मैं' को 'हम' कहते हैं, तो लाज़मी है कि 'हूँ' को 'हैं' कहेंगे। सत्यानाश जाए ये बॉलीवुड और लालू का। 

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