राशी-द्वार

******** सर्वोत्तम पूजा-श्राद्ध तर्पण ********
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     हिन्दू सनातन धर्म के ऋषिमुनि , ब्राह्मण , तपस्वी नित्य भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देना , अग्निहोत्र पूजा एवं नदी सरोवर तीर्थ स्नानमे तर्पण नित्य ही करते है और सनातन धर्म की ये श्रेष्ठ पूजा उपासना है । देव , गुरु और पितृओ कि प्रसन्ता से ही सर्वमंगल होता है । इसलिए ही प्रतिमास या भाद्रपद के इस पितृपूजा पक्षमे श्राद्ध तर्पण अवश्य ही करना चाहिए । पितृओ कि प्रसन्ता के बिगैर स्वयम ब्रह्म भी फलदायी नही होते ।

 पितृपक्ष का रहस्य :-

 ये ब्रह्मांड बाराह राशीओ से बंधा हुवा है । मेष राशि ब्रह्मांड का प्रवेश द्वार है । मीन राशि का द्वार देवलोक ( सूर्यलोक ) की ओर है । कन्या राशि का द्वार पितृलोक ( चंद्रलोक ) की ओर है । जब किसी की मृत्यु होती है तब जीव कर्मानुसार इनमे से एक द्वार की ओर गति करता है । सद कर्म , सदाचार ओर पैरोकारी जीव अपने पुण्यबल से सूर्यलोक जाता है । बाकी जीव पितृयान ( चन्त्रलोक ) में गति करते है । चंद्र सूक्ष्म सृष्टि का नियमन करते है । 

     सूर्य जब कन्या राशिमें प्रवेश करते है तब पाताल ओर पितृलोक की सृष्टि का जागरण हो जाता है । चंद्र की 16 कला है । पूर्णिमा से अमावस्या तक कि 16 तिथि सोलह कला है । जिसदिन मनुष्य की मृत्यु होती है उसदिन जो तिथि हो वो कला खुली होती है इसलिए वो जीवको उस कलामे स्थान मिलता है । भाद्रपद की पूर्णिमा से पितृलोक जागृत हो जाता है और जिस दिन जो कला खुली होती है उसदिन उस कलामे रहे जीव पृथ्वीलोकमें अपने स्नेही स्वजन , पुत्र पौत्रादिक के घर आते है । उस दिन परिवार द्वारा उनकेलिए श्रद्धापूर्वक जो भी पूजा , नैवेद्य , दान पुण्य हो रहा हो वो देखकर तृप्त होते है और आशीर्वाद देते है । 

      कुल के आराध्य देवी देवता मृतक जीवोंको तृप्त देखकर प्रसन्न होते है और परिवार को सुख संपदा प्रदान करते है । ऐसे ही जिस घरमे श्राद्ध पूजा कुछ नही होता ये देखकर पितृ व्यथित होकर चले जाते है । और कुलके आराध्य देवी देवता उन जीवात्माओं के व्यथित होने से खिन्न होते है । जीवात्मा की गति का ये सूक्ष्म विज्ञान को समझकर हमारे ऋषि मुनियों ने मनुष्य की सुखकारी केलिए ये धर्म परम्परा स्थापित की है । 

  अमावस्या के दिन चंद्र की सभी 16 कला खुली रहती है इसलिए उसदिन भूले बिसरे सभी पितृओ पृथ्वीलोक पर आते है । इसलिए उस दिन के श्राद्ध कार्य अति महत्वपूर्ण है । चंद्र देव का दूध पर आधिपत्य है इसलिए श्राद्धमें दुधपाक या क्षीर भोजन बनाकर पितृओ को नैवेद्य भोग लगाया जाता है । श्राद्धपूजा में ये सब किया जा सकता है 

1 ब्राह्मण के पास पिंडदान तर्पण पूजा
2 दुधपाक क्षीर का नैवेद्य बनाकर घरमे पितृदेव को भोग लगाना 
3 पितृओ के नाम ब्राह्मण , भिक्षु , बटुक , कन्या को भोजन करवाना 
4 कौवे ओर पक्षियो को भोजन देना 
5 गाय , कुते ओर पशुओं को भोजन देना 
6 जलचर जीव ओर किट पतंगे जैसे जीवो को भोजन
7 पितृओ के नाम दान दक्षिणा जैसे पुण्यकार्य 
8 शिवमन्दिरमे पूजा कर पितृओ की दिव्यगति केलिए प्रार्थना करना ।
9 पितृओ की प्रसन्ता केलिए 
  " ॐ नमो भगवते वासुदेवाय " मंत्र का नित्य जाप करना श्रेष्ठ उपासना है ।

इनमे से जो भी शक्य हो वो करना चाहिए । पितृ पूर्वजो के आशीर्वाद से परिवार सुख सम्पति धन धान्य सुआरोग्य संतति ओर सन्मान प्राप्त करता है । कुलगोत्र के देवी देवता सह तमाम आराध्य देवी देवता पितृ पूर्वजो की प्रसन्नता देखकर ही कृपा करते है । मनुष्य जीवन को सफल और सुखी बनाने और स्वआत्मा कि दिव्य गति प्राप्त करने केलिए हिन्दू धर्म शास्त्रों की ये सर्वश्रेष्ठ भावपूजा है । जीव की सूक्ष्म गति को समझनेवाले अनेक साधक प्रतिमास अमावस्या को ये भावपूजा अवश्य ही करते है। जगत के पालनहार नारायण इस पूजा से अति प्रसन्न होते है । 

     परम कृपालु परमात्मा श्री हरि नारायण आप सभी का ओर आप सभी के पितृओ पूर्वजों का कल्याण करे यही प्रार्थना करता हु । अस्तु ... श्री मात्रेय नमः

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