रावण का क्रियाकर्म


रावण का क्रियाकर्म
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रावण का आजकल जो महिमामंडन हो रहा है उसके बारे में कुछ बातें आपको पॉइंट में बता देता हूँ। पोस्ट नहीं लिख रहा हूँ। सारी बातें वाल्मीकि रामायण से प्रमाणित कहूंगा। 
1) रावण यज्ञों का विध्वंसक था। यज्ञों में मांस फिंकवाता था।
2) रावण असंख्य ब्राह्मणों और ऋषियों का हत्यारा था। वन में श्रीराम को रावण द्वारा मरवाए गए ऋषि मुनियों के कंकालों का ढेर मिला।
3) रावण ने सीता जी से भेंट करने पर उनपर अत्यंत अश्लील बातें कही। और भगवती सीताजी को जबरदस्ती जंघाओं से पकड़कर गोद में उठाकर लंका ले गया। रावण ने किसी स्त्री का स्पर्श नहीं किया यह शुद्ध बकवास है। यह वाल्मीकि रामायण में साफ साफ लिखा है।
4) सीताजी को उसने बार बार मानसिक प्रताड़ना देकर पत्नी बनने के लिए दबाव बनाया। 
5) रावण की बहन शूर्पणखा दुनिया की सबसे बड़ी व्यभिचारी और सबसे पहली सेक्स के लिए human trafficking में धकेलने वाली औरत थी। उसने अत्यंत अश्लील वर्णन करके अपने भाई के मन में सीताजी को हरने का विचार बोया। उससे बड़ी व्यभिचारिणी आजतक कोई नहीं हुई। मॉर्डन फेमिनिज़्म की जनक और सबसे अच्छी आदर्श वही है। 
6) मारीच श्रीराम का सत्य स्वरूप जानकर भगवद्भक्त हो गया था। उसने रावण को बहुत ही समझाया पर सफल न हो सका।
7) रावण दुनिया से देवता, असुर, यक्ष, गन्धर्व सब कन्याओं का अपहरण कर लाया था। दुनिया का सबसे पहला हरम रावण ने खोला। सुंदरकांड में उसके हरम का वर्णन पढ़कर अकबर, औरंगजेब के सारे हरम फीके पड़ जाएंगे। 
8 ) आजकल बहू बेटी तक से बलात्कार की खबरें सुनने में आती हैं रावण इसका जनक था। उसने अपनी बहू रम्भा का बलात्कार किया। वाल्मीकि रामायण में पढ़ लें कुबेर के बेटे नलकूबर की पत्नी थी रम्भा।
9) बलात्कार की बात ऐसी है कि रावण का पूरा सैक्स रैकेट था। दुनिया का सबसे बड़ा बलात्कारी यही असुर था। रामायण में जगह जगह मिल जाएगा कि इसने कितने बलात्कार किए हैं। 
10) सीताजी को उसने बहुत डराकर 2 महीने का अल्टीमेटम दे दिया, या तो 2 महीने में मेरी शय्या पर आ जा (जी हाँ यह शब्द कहे उसने शब्दश: वाल्मीकि रामायण में पढ़ लें अगर शक हो तो।) या मैं तुझे कच्चा चबा जाऊंगा। 
11) निठारी कांड में बच्चों का मानवमांस खाने का किस्सा आया था, अन्य देशों से भी खबर आती है। उसका आसुरी परम्परा का जनक भी रावण था। वह मानव मांस का शौकीन था, उस समेत सारे राक्षस, रावण अपने आदमियों को कहता है सीता न माने तो काटकर मेरे कलेवे के लिए ले आना। अशोकवाटिका की राक्षसियों ने भगवती सीता के हृदय, मस्तिष्क आदि खाने की इतनी वीभत्स कल्पना की कि सिहर उठें। 
12) मेघनाद के मरने पर रावण सीताजी की हत्या करने तलवार लेकर दौड़ पड़ा। उसके मंत्री सुपार्श्व ने बड़ी मुश्किल से उसे रोका।
13) स्वयं सीताजी ने रावण को कुत्ता, सियार और गिद्ध जैसे नामों से तोला है। वाल्मीकि रामायण पढ़ लें सब पता चल जाएगा। 
14) भाइयों में बैर करके घर तोड़ने यानि सनातन धर्म की पारिवारिक ईकाई को बर्बाद करने का जनक यही रावण था। इसने अपने भाई कुबेर की सारी संपत्ति लूटी, ससुर को लताड़ा, पत्नियाँ तो पैरों की जूती थी, बहू का बलात्कार किया, अपने जीजा की हत्या की, भाई विभीषण को लात मारके भगाया, भाई कुम्भकर्ण भी बहुत होशियार था वह श्रीराम का परब्रह्मत्व जान गया था, उसके खूब समझाने पर भी नहीं माना, अपने पिता ऋषि से कुलद्रोह करके राक्षस बना, एक भी रिश्ते को इसने कलंकित करने से नहीं छोड़ा। औरंगजेब इसी रावण का पुजारी था।
15) रावण ब्राह्मण कतई नहीं था। वह एक ऋषि और राक्षसी की सन्तान होने के कारण वर्णसंकर था। उसने स्वयं राक्षस धर्म अपनाया था। उसने मनुस्मृति में बताए सभी महापातक किए थे जिससे ब्राह्मणत्व का लेश भी खत्म हो जाता है। उसकी माँ पाखण्डी तांत्रिक थी। हज़ारों ब्राह्मणों की हत्या के कारण वह सबसे बड़ा ब्रह्महत्यारा था। 
16) मैं 100 पॉइंट तक लिख जाऊंगा। इसलिए ऊपर की सब बातों को मैं सीधे वाल्मीकि रामायण से कह रहा हूँ। आप लोग स्वयं गीताप्रेस से खरीदें और उसको पढ़ें, केवल 450 रुपए में दो खण्ड में आएगी। आपको सारा सत्य खुद ही पता चल जाएगा। 

अब कुछ फेक महिमामंडन पर बता दूं।
1) इसके बारे में कहा जाता है कि विद्वान और ज्ञानी था तो बता दूं किताबें खूब वामपंथी भी चाटते हैं, बस यह वही लाल सलाम का बाप था। 
2) वेदों से 3 प्रकाश वर्ष दूर रहने वाले लोग कहते हैं कि ये वेदों का ज्ञाता था तो बता दूं वेदों का विनाश करने का शरुआत यही किया। इसीने वाममार्ग का उदय किया, जिसमें वेदों की प्रयोगशाला यज्ञों का विनाश, उनमें हिंसा और मांस फेंकना, स्वच्छंद व्यभिचार शामिल था।
3) कुछ उच्चकोटि का गांजा पीने वाले कहते हैं कि श्रीराम की रामेश्वर पूजा यह असुर करवाया क्योंकि यह सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण था। तो उनको बता दूं उस समय महर्षि वसिष्ठ और गायत्रीमंत्र के ऋषि विश्वामित्र जैसे ऋषि धरती पर विराजमान थे जो नई सृष्टि रचने की भी योग्यता रखते थे। अपने 9 जन्म बीतने पर भी वैदिकी परम्परा का एक प्रमाण नहीं ला पाओगे की इस दुष्ट ने रामेश्वर शिवलिंग की स्थापना कराई। यह शुद्ध बकवास है।
4) शिवजी का महान भक्त था, तो क्या श्रीराम शिवजी के महान भक्त नहीं थे? महान भक्त वह है जो कामनारहित होने के लिए भक्ति करे। इसकी आसुरी भक्ति केवल अपने स्वार्थ और मनोरथ सिद्ध करने के लिए थी। इतना ही शिवभक्त था तो शिव धनुष क्यों नहीं उठा पाया। केवल अच्छी साहित्यिक रचना कर देने से शिवभक्त नहीं हो हो जाता। अच्छी साहित्यिक रचना वामपंथी भी करते हैं। इसलिए शिव ताण्डव स्तोत्र को अपनी भक्ति के लिए प्रयोग करें न किसी को शिवभक्ति का सर्टिफिकेट देने के लिए। शिव तांडव स्तोत्र भी सृष्टि के आदि से है। शिव महिम्न स्तोत्र से लेकर रुद्राष्टकम जैसे पावन स्तोत्र हमारे यहां हैं। 
5) रावण के महिमाण्डन की ये बातें वाममार्गियों, जैनियों और बौद्धों की झूठी व अप्रमाणिक रामायणों में मिलती हैं जिनका कोई आधार है न कोई प्रमाणिकता है। म्यांमार की एक रामायण में तो सीता जी और श्रीराम को भाई बहन बता रखा है, अब कोई मुझे उसका प्रमाण देगा तो उसका सिर न फोडूं या मेरा?

यह पोस्ट बहुतों को नहीं पचेगी जो रावण को महान सिद्ध करने के झूठे दुष्प्रचार में फंसे हुए हैं। जिन्होंने ग्रन्थों को उठाकर नहीं देखा है। पर यदि आप मुझको एक भी पॉइंट पर गलत साबित करने के लिए वाल्मीकि रामायण पढ़कर आएं तो बहुत अच्छा होगा। पोस्ट में मुझे न चाहते हुए भी कुछ कठोर बातें लिखनी पड़ी हैं, परन्तु मैं मजबूर था। 

भगवान श्री सीतारामचन्द्र हमपर कृपा करें और सत्य धर्म का परिचय कराएं ताकि हम भ्रम और अज्ञान से बचकर धर्म के मार्ग पर चल सकें। श्री सीतारामचन्द्र जी के श्रीचरणों में यही विनम्र प्रार्थना है। 

जय श्रीराम।
रावण के दुष्कर्मों पर अंतिम पोस्ट, रावण को संयमी बताने वाले मूर्खों को पता होना चाहिए कि मेघनाद की मृत्यु से क्रोधित हुआ रावण सीता माता की हत्या तक करने के लिए तत्पर हो गया था, जिसे उसके सुपार्श्व नामक बुद्धिमान मंत्री ने बड़ी मुश्किल से समझा बुझाकर शांत किया। 
वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के 92वें सर्ग में महर्षि वाल्मीकि जी ने इस घटना का पूरा वर्णन दिया है। पढ़िए और जरा सी भी शर्म बची हो तो माता सीता की हत्या के लिए तैयार रावण का महिमामण्डन बन्द कर दीजिए।

स पुत्रवधसंतप्तः शूरः क्रोधवशं गतः || 
समीक्ष्य रावणो बुद्ध्या वैदेह्या रोचयद्वधम् |
९२-६-२०
अपने पुत्र के वध से शोक संतप्त हुआ शूरवीर रावण सहसा क्रोध के वशीभूत हो गया। उसने बुद्धि से सोच विचारकर विदेहकुमारी सीता को मार डालना ही अच्छा समझा।

स पुत्रवधसन्तप्तः क्रूरः क्रोधवशं गतः || 
समीक्ष्य रावणो बुद्ध्या सीतां हन्तुं व्यवस्यत |
९२-६-३४
अपने पुत्र के वध से शोक संतप्त हुए क्रूर रावण ने बुद्धि से सोच विचारकर विदेहकुमारी सीता को मार डालने का ही निश्चय किया।

तदिदं तथ्यमेवाहं करिष्ये प्रियमात्मनः || 
वैदेहीं नाशयिष्यामि क्षत्रबन्धुमनुव्रताम् |
९२-६-३७
वानरों को चकमा देने के लिए मेरे बेटे ने नकली सीता को 'यह सीता है' कहकर मारा था पर मैं आज उस झूठ को सत्य कर दिखाऊंगा और ऐसा करके अपना प्रिय करूँगा। उस क्षत्रियाधम राम में अनुराग रखने वाली सीता का नाश कर डालूंगा।

तेषां संजल्पमानानामशोकवनिकां गताम् || 
अभिदुद्राव वैदेहीं रावणः क्रोधमूर्छितः |
९२-६-४४
वे इस प्रकार बातचीत कर ही रहे थे कि क्रोध से अचेत सा हुआ रावण अशोक वाटिका में बैठी हुई विदेहकुमारी सीता का वध करने के लिए दौड़ा।

वार्यमाणः सुसंक्रुद्धः सुहृद्भिर्हितबुद्धिभिः || 
अभ्यधावत संक्रुद्धः खे ग्रहो रोहिणीम् इव |
९२-६-४५
उसके हित का विचार करने वाले सुहृद उस रोष भरे रावण को रोकने की चेष्टा कर रहे थे; तो भी वह अत्यंत कुपित हो जैसे आकाश में कोई क्रूर ग्रह रोहिणी नामक नक्षत्र पर आक्रमण करता हो, उसी प्रकार सीता की ओर दौड़ा।

सीता दुःखसमाविष्टा विलपन्तीदमब्रवीत् || 
यथायं मामभिक्रुद्धः समभिद्रवति स्वयम् |
९२-६-४८
वधिष्यति सनाथां मामनाथामिव दुर्मतिः || 
९२-६-४९
सीता जी दुःख में डूब गईं और विलाप करती हुईं इस प्रकार बोलीं, "यह दुर्बुद्धि राक्षस जिस प्रकार कुपित हो स्वयं मेरी ओर दौड़ा आ रहा है, उससे जान पड़ता है, यह सनाथा होने पर भी मुझे अनाथा की भाँति मार डालेगा। 

।। जय श्री राम ।।
- मुदित मित्तल

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