हर कर्म का कर्म होता है

।।हर कर्म का कर्म होता है।। By Deepak Parashar
आज ब्राह्मण के अपने कर्म को त्याग कर लोभ में लिप्त होने और सही कर्म न करवाने की चर्चा लेख हर जगह जगह जगह पाए जाने लगे हैं।।तो अब अपना मत भी लिख दे रहा हूं सहमत या असहमत होना आपकी अपनी इच्छा पर निर्भर है।।

जब कोई विप्र आपके घर आकर किसी कर्मकांड को करता है जिस किसी भी कार्य के निमित उसने पूजा या जो भी किया है उसकी सफलता के लिए आपकी मनोकामना के लिए और जो आपका  दोष विप्र ने अपने सर लिया है विप्र को बाद में भी पूजा पाठ हवन मंत्र जप करना होता है ये बज्र नियम है।।
इसके बिना न आपका किया गया कार्य पूर्ण होता है न ही आप और विप्र दोनों दोष मुक्त होते हैं।।

आजकल क्या चला हुआ है??

मेरे एक परम आदरणीय मेरे भगवान स्वरूप पंडित जी जो कि श्री काशी जी से विद्या अर्जित किए हुए हैं और तंत्र यंत्र मंत्र ज्योतिष कर्मकांड मारण मोहन उच्चाटन यहां तक कि भैरव तंत्र में भी पारंगत हैं।। वेद उपनिषद पुराण रामायण सभी को मनन धारण किए हुए हैं।।
वो सभी कर्मकांड 15 सक पहले ही छोड़कर खेती से अपना जीवन यापन करते हैं और दो गऊ माता की सेवा करते हुए आर्थिक तंगी में हैं लेकिन सदा आनंद में रहते हैं कभी चेहरे पर तनाव गुस्सा नहीं दिखाई देता ।।आने वाले अतिथि की सेवा देव तुल्य मानकर करते हैं उनसे मैनें बार बार पूछा कि दादा आपने सभी कर्म क्यो त्याग दिए आप जैसा विद्वान चरित्रवान तत्व ज्ञानी शायद ही ढूंढने पर मिले।। आप अपनी विद्या के माध्यम से संसार का भला कर सकते हैं।।
तब उन्होंने उत्तर दिया कि देखो बेटा मेरे से बड़े ज्ञानी और विद्वान आज भी इस देश में है और हजारों की संख्या में हैं लेकिन वो भी सभी कर्म त्याग चुके हैं या त्यागने के कगार पर हैं।।क्योंकि जब किसी शादी में फेरे करवाने होते हैं तो प्रथम तो दोनों की कुंडली मिलनी चाहिए दूसरा मूहर्त सही होना चाहिए तय समय पर कर्म शुरू होना चाहिए और पूर्ण रूप से होना चाहिए।।आजकल सब बोलते हैं कि पंडित जी जल्दी कर दे शराब नाच गाने में तीन दिन खराब कर देंगे लेकिन फेरे जल्दी से होने चाहिए।।इस कड़वे और कटु अनुभव और कलिकाल की चरम सीमा को देखते हुए मैनें फेरे करवाने बंद कर दिए।।

किसी की नारायण बली चंडी पाठ या महारुद्राभिषेक करवाने पर मेरे को बाद में भी कार्य करना बाकी रहता है।।अब उसके लिए भी धन और सामग्री की जरूरत होती है वो कोई देने का इच्छुक नहीं है।। मैं दाता हूं यजमान को सुखी और प्रसन्न रहने का आशीष देता हूं तो याचक बनकर मांग नहीं सकता हूं।।
अब जिस कर्म को करके मैं 500 रुपए ले आया हूं उसके बाद मुझे उसमें 1000 1200 ओर मिला कर कर्म करना ही करना है।। मैं बिना कर्म का कर्म किए तो रह नहीं सकता।।
अब न मैं मांग सकता और न ही मैं धनी हूं तो कर्म को कैसे कर पाऊंगा।।

अब किसी की जन्म पत्री देखी और उसमें कोई दोष दिखाई दिया तो उस दोष के निवारण हेतु भजन तप जप हवन करना मेरा कर्तव्य है वो भी बिना धन के संभव न है।।
तो अब क्या करूं तू ही बता दे।।

मांग कर याचक बन गया तो उसको आशीर्वाद कैसे दूंगा।।
न मांग कर घर आ गया तो कर्म कैसे करूंगा ।।

इस अर्थ के युग में मेरे जैसा सत्य की राह पर रहने वाला विप्र कर्म नहीं कर सकता है क्योंकि विधि विधान से पूरा कर्म करने पर ही कार्य पूर्ण माना जाता है इसीलिए मैं घर पर ही गौ माता की सेवा करके ईश्वर का भजन करके अपना शेष जीवन व्यतीत कर रहा हूं।।
आजकल पात्र नहीं है इसलिए मैनें कर्म करना त्याग दिया है।।
उनका उत्तर सुनकर मैं निरुतर हो गया।।

फिर मैनें उनसे और भी प्रश्न किए जिनका उत्तर अगली पोस्ट में देता हूं क्योंकि पोस्ट ज्यादा लंबी हो गई है।।
अकेले ब्राह्मणों को दोष देना बंद कर दिया जाए इस समाज में सभी ने अपने अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ा है तभी विकृति आई है।।एक दो पोस्ट में सब साफ साफ लिखने की कोशिश करता हूं।।

मैं अब जन्म पत्री बहुत कम देखता हूं।।
बीस बीस लाख रुपए तक शादी में खर्च करने वाले ब्राह्मण को तीन चार सौ रुपए पकड़ा देते हैं तो कभी कभी सोचता हूं कि मांग खोल करके मंत्र पढ़ने वाला मजदूर ही इनके लिए सही है।।

मैं खुद जब भी रुद्र अभिषेक करवाता हूं तो जेब से सब निकाल कर दक्षिणा दे देता हूं वो भी मुठ्ठी को इस तरह से बंद करके देता हूं जैसे बहुत कम है।।
आज तक मुझे कभी किसी चीज की अर्थ के मामले में कमी नहीं हुई।।

पत्री देखकर कभी ये लगा कि ये वास्तव में ही पीड़ित है तो उसकी पीड़ा के शमन के लिए कोशिश खुद करता हूं।।सामने वाले को कभी नहीं बताता।।
लेकिन अब रोज रोज तो ये संभव नहीं है इसलिए देखता ही नहीं हूं।।
मेरे बताए उपायों से बहुत बार हर बार तो नहीं लेकिन बहुत बार ऐसे चम्तकर्त कर देने वाले परिणाम आते हैं कि मैं खुद हैरान हो जाता हूं लेकिन लोगों की कृतघ्नता देखकर दंग हो जाता हूं और सोचता हूं कि भविष्य मालिका में कलियुग का अंत सही ही कहा है।।
                       
                      क्रमश

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