बुचा नरसंहार


बुचा नरसंहार

३१ मार्च को रूसी सेना बुचा से निकल गयी । तबतक यूक्रेनी सेना वहाँ थी भी नहीं,वहाँ कोई युद्ध नहीं चल रहा था । रूसी सेना के निकलते ही बुचा के मेयर ने बयान दिया कि अब जनजीवन सामान्य है । तब यूक्रेनी सेना ने बुचा में प्रवेश किया । उस समय बुचा की सड़कों पर न तो मेयर को कोई लाश दिखा और न यूक्रेनी सेना को । २ अप्रैल को सैकड़ों लाश सड़कों पर मिले ऐसा वीडियो अचानक प्रकट हो गया । वहाँ बाहर के पत्रकारों को बुलाया गया,भारत के पत्रकार भी गये । तबतक लाशों को बुचा के चर्च की क्रबगाह में दफनाया जा चुका था जिसका चित्र भारतीय टीवी में भी आया है ।

प्लास्टिक बैग में लाशों को भरकर चर्च की क्रबगाह में बिना किसी ईसाई रस्म के दफन करना कोई ईसाई सहन करेगा?यूक्रेनी सेना को ताबूत नहीं मिले तो नैटो से माँग लेती । यूक्रेन के अधिकांश ईसाई आर्थोडॉक्स चर्च को मानते हैं जिनसे पश्चिम यूरोप के पोप और उनके कैथॉलिक चेले ही नहीं बल्कि प्रोटेस्टेण्ट भी चिढ़ते हैं । अब रूस−विरोधी झेलेन्स्की के समर्थकों को आर्थोडॉक्स चर्च भी बुरा लगने लगा है । झेलेन्स्की तो वैसे भी यहूदी हैं ।

उन लाशों की सही जाँच नहीं होने दी जायगी,वरना भेद खुल जायगा कि रूसी सेना के निकलते ही यूक्रेन के नागरिक रूसियों को मारकर वीडियो बनाया गया । ऐसे बिचारों को चर्च की रस्म के अनुसार दफनाने का झंझट यूक्रेन के नात्सी क्यों मोल ले?उन बिचारों को लावारिश कुत्तों की तरह प्लास्टिक बैग में भरकर मिट्टी के गड्ढों में डाल दिया गया । अब नैटो मानवाधिकार का हंगामा मचा रहा है,रूस से लड़ नहीं सके तो खिसियानी नैटो बुचा नोचे!रूस के प्रतिनिधियों को भी बुलाकर बुचा नरसंहार की निष्पक्ष जाँच नहीं करा सकते ।

वार्सा पैक्ट के भंग होते ही नैटो को भी भंग करना उचित था । नैटो को बचाये रखने के लिये रूस,ईरान आदि को खलनायक के तौर पर प्रचारित करना अनिवार्य है । रूस को ही नैटो में सम्मिलित कर लेंगे तो समूचे विश्व में शान्ति स्थापित हो जायगी,किन्तु हथियार के सेठों का कारोबार ठप्प हो जायगा । सारा काण्ड इन्हीं गिद्धों का है ।

रूस ने डॉलर की दादागिरी से निकलने का रास्ता दिखा दिया है । रूस से भी अधिक शोषण तो भारत का हो रहा है । नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की माँग पुनः उठेगी ।

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