“राष्ट्रीय आय का आधुनिक अर्थशास्त्र”

“राष्ट्रीय आय का आधुनिक अर्थशास्त्र” by Vinay Jha

Aniket Junnare जानना चाहते हैं कि अमरीकी जीडीपी में घूस का प्रतिशत कितना है ।

अमरीका में जिस घूस को वैध माना जाता है उसे “सेवा” क्षेत्र की जीडीपी में गिना जाता है । अवैध आय की गिनती कोई देश नहीं करता ।

मेरी समझ में नहीं आता कि लॉकहीड ने किसी नेता को लॉबीइंग फीस (घूस) दी तो नेता की इस आमदनी को अमरीका की जीडीपी में जोड़ा गया,किन्तु लॉकहीड ने जो लॉबीइंग फीस व्यय की उसे अमरीकी जीडीपी में घटाया क्यों नहीं जाता?तब कुल जीडीपी बढ़ी कैसे?

जिस अनर्थशास्त्र में गृहलक्ष्मी के अथक परिश्रम की गिनती नहीं हो किन्तु वेश्यावृति और जूआ से जीडीपी बढ़ती हो,उस अनर्थशास्त्र में घूस पर लॉकहीड के व्यय से जीडीपी नहीं घटती और उसी घूस से नेता की आय बढ़े तो उससे देश की जीडीपी बढ़ जाती है!

नाई किसी ग्राहक की दाढ़ी बनाये तो नाई की उस आमदनी को देश की जीडीपी में जोड़ते हैं किन्तु ग्राहक ने नाई को जो राशि दी उसे देश की जीडीपी में नहीं घटाते!

नाई आपकी हजामत बनाये तो देश की जीडीपी बढ़ती है,देश का विकास होता है । आप स्वयं अपनी दाढ़ी बनायें तो आप देशद्रोही हैं क्योंकि आप देश की जीडीपी बढ़ने में बाधक हैं । किन्तु पूरे देशद्रोही नहीं हैं क्योंकि दाढ़ी बनाने के साधन और प्रसाधन खरीदकर पूँजीपतियों का माल बिकवाते हैं । परन्तु यदि आप मेरी तरह दाढ़ी बनाने में कँजूसी करते हैं तो आप देश का विकास रोकते हैं और मेरी तरह पक्के देशद्रोही हैं । जो महिला खूब लिपिस्टक पाउडर पोतती है वह देश का विकास करती है,किन्तु जो सादगी से रहती है वह देशद्रोही है । सिर से पाँव तक पाउडर पोतेंगे तो देश का विकासदर बढ़ेगा । टी⋅ एस⋅ ईलियट ने “द वेस्ट लैण्ड” में लिखा था कि कुछ लड़कियाँ गोरी दिखने के लिए सोडावाटर से पाँव धोती हैं । इससे सोडावाटर का प्रोडक्शन बढ़ता है,देश आगे बढ़ता है । उससे स्किन कैन्सर हो तो हेल्थ सर्विस का विकास बढ़ेगा । ग्राहकों को कैसे उलटे उस्तरे से मूँड़कर उल्लू बनाया जाय इस कला को “बिजनेस मैनेजमेण्ट” कहते हैं । यही आधुनिक अर्थशास्त्र है । सतयुग में लोग अविकसित थे । ऋषि−मुनि तो सबसे पीछे थे!

पूँजीवाद का समूचा अनर्थशास्त्र बनियों का बहीखाता है । बनियों के लिए जो “आय” हो वह राष्ट्रीय आय में जुड़ता है । बनियों के लिए जो “आय” नहीं है वह देश और देशवासियों के लिए कितना ही महत्वपूर्ण क्यों न हो,राष्ट्रीय आय में नहीं जुड़ सकता । जैसे कि गृहलक्ष्मी का अथक परिश्रम बनियों के बहीखाते के लिए निरर्थक है क्योंकि गृहलक्ष्मी का परिश्रम बिकाऊ नहीं है । पूँजीवाद में जो कुछ भी बिकाऊ नहीं है वह निरर्थक है,जैसे कि इन्सानियत ।

सोवियत सङ्घ में केवल भौतिक उत्पादन को राष्ट्रीय आय में जोड़ते थे,सेवा क्षेत्र का अधिकांश अंश राष्ट्रीय आय में नहीं जुड़ता था । वह तरीका भी गलत था,क्योंकि नाई का श्रम भी तो श्रम ही है!सही अर्थशास्त्र न तो पूँजीवाद में है और न आधुनिक समाजवाद वा साम्यवाद में । कौटिल्य का अर्थशास्त्र ही वास्तविक राष्ट्रीय आय के आकलन का आधार बन सकता है ।

“नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) : भाग−२” में आधुनिक राष्ट्रीय आय के मौद्रिक आकलन की गड़बड़ी पर प्रकाश डाला जायगा ।

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