यूक्रेन सङ्कट — ५

यूक्रेन सङ्कट — ५

रूसी पेट्रोलियम पर प्रतिबन्ध लगने के कारण भारत जैसे देशों को भी अब मँहगा पेट्रोलियम खरीदना पड़ेगा । पुतिन बड़ा दुष्ट है न!

किन्तु इस मँहगे पेट्रोलियम से लाभ किसको होगा?बाइडेन के मित्र शेखों और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के मालिक राथ्सचाइल्ड के जमाई रॉकफेलर की पेट्रोलियम कम्पनी को । इनका पेट्रोलियम मँहगा क्यों हो गया?मजदूरों की हड़ताल है?मशीनें मँहगी हो गयी?नहीं । रूसी पेट्रोलियम पर इन्हीं सेठों ने पाबन्दी लगायी ताकि अपना पेट्रोलियम मँहगे में बेचकर सबको लूट सकें । यूक्रेन विवाद जितना लम्बा खिंचेगा,उतना कमायेंगे!

रूस की करेन्सी रूबल लगभग ३०% गिर गयी । कहाँ गिर गयी?पश्चिम के बाजार में — जहाँ रूस के सामान पर ही प्रतिबन्ध है । जब सामान बेच ही नहीं सकते तो रूबल डबल हुआ अथवा आधा इससे क्या अन्तर पड़ता है?रूस के आन्तरिक बाजार में मँहगाई कितनी है इसका महत्व रूसियों के लिये हैं । जाड़े के महिनों में बर्फबारी के कारण कृषि−उत्पाद मँहगे हो जाते हैं,वरना अन्य सभी वस्तुओें की मँहगाई दर अमरीका से कम रूस में है । पिछले कई दशकों में मँहगाई अमरीका में सबसे ऊँचे दर पर है । अमरीकियों को घाटा है । मँहगे सामान बेचने वाले सेठों के वहाँ भी पौ बारह है ।

यूरोप और अमरीका ने यूक्रेन को अरबों डॉलर के हथियार दिये हैं । देने वाले देशों की जनता को तो उन हथियारों का मूल्य चुकाना ही पड़ेगा,लाभ है हथियार बनाने वाले सेठों,सौदागरों एवं दलालों का । सबसे बड़े दलाल तो रासपति और परधानमन्त्री होते हैं ।

रूसी टीवी RT पर पश्चिम ने प्रतिबन्ध लगा दिया है क्योंकि वह जो कुछ दिखा रही है वह देखने पर अमरीका की जनता तो बाइडेन की ठुकाई कर देगी । दोनबास से यूक्रेनी नात्सियों के पीछे हटने पर सहस्रों नागरिकों के सामूहिक कब्र मिल रहे हैं जिनमें जीवित शिशुओं को भी सड़ने के लिये फेँक दिया गया था!एक वीडियो में शिशु कीड़ों से बचने के लिये हाथ−पाँव हिला रहा था किन्तु चलने के योग्य नहीं था,सड़ी हुई लाशों पर वह जीवित शिशु असहाय पड़ा था!उसका अपराध यही था कि वह घटिया रूसी नस्ल का था!वीडियो देखकर मेरे आँसू रुक नहीं रहे थे ।

फेसबुक का स्वामी यहूदी है । आज उसने फेसबुक पर यहूदियों के शत्रु अजोव बटालियन पर यह कहते हुए प्रतिबन्ध हटाया है कि अजोव बटालियन रूसियों से लड़ने का अच्छा कार्य कर रही है । युद्ध−अपराध के लिये संयुक्त राष्ट्र ने अजोव बटालियन को सूचीबद्ध कर रखा है । युद्ध−अपराध के अन्तर्गत निर्दोष नागरिकों के विरुद्व अमानवीय अपराध आते हैं,जैसे कि जीवित शिशु को खुले कब्र में फेँकना । अजोव बटालियन में बीस सहस्र विदेशी लड़ाके हैं जो आठ वर्षों से यूक्रेन में रूसियों का नरसंहार करके जनसंख्या का सन्तुलन “सुधार” रहे हैं ।

भारतीय मीडिया भी CIA के मिथ्या प्रचार को परोसने में व्यस्त रही है जिससे हमारे नौकरशाह भी भ्रमित होते हैं । आज वहाँ के भारतीय छात्र ने बताया कि रुमानिया की सीमा पर यूक्रेनी सेना द्वारा भारतीयों को परेशान किया जाता है,भारतीय लड़कियों को पीटा जाता है और यूक्रेन में रहने के लिये कहा जाता है । तब यूक्रेन−रूस सीमा पर तीन चेकपोस्टों पर भारतीय छात्रों को जाने के लिये भारतीय राजनयिकों ने कहा है । पहले इन राजनयिकों को नैटो देश ही सुरक्षित लगते थे । अमरीका पर भरोसा टूटा नहीं है!

रूस का पेट्रोलियम पश्चिम नहीं खरीदेगा तो भारतीयों को प्रसन्न होना चाहिये कि अब वहाँ से भारत सस्ते में पेट्रोलियम खरीद सकता है — व्लादीवोस्तोक के रास्ते । किन्तु भारतीय पत्तलकारों का सारा क्रोध रूस पर ही है!ब्रिगेडियर बख्शी ने स्पष्ट कह दिया कि नैटो में जाने की जिद त्यागकर यूक्रेन निष्पक्ष रहे तो उसका क्या बिगड़ जायगा?युद्धोन्माद भड़काने में यूक्रेन को क्या लाभ है?

लाभ है झेलेन्स्की को,जिसे युद्ध−उद्योग के स्वामियों ने अवैध सत्ता दिलायी । लाभ है शेखों और अमरीकी पेट्रोलियम सेठों को । लाभ है बिकाऊ पत्तलकारों को,जिन्हें निर्दोष नागरिकों के शव नहीं दिखते!जिन दो गणराज्यों की मान्यता को लेकर झगड़ा आरम्भ हुआ उनका नाम तक नहीं लेते,क्योंकि वहाँ नात्सी गुण्डों द्वारा दफनाये गड़े मुर्दे अब उखड़ रहे हैं । आज एक भारतीय चैनल बक रहा था कि रूस अपनी कठपुतली सरकार बनाना चाहता है — विक्तोर यानुकोविच को थोपकर । पत्तलकार ने इस तथ्य को छुपाया कि यानुकोविच ही चुने हुए राष्ट्रपति थे जिनको अवैध तरीके से २०१४ ई⋅ में हटाकर उनकी पार्टी को प्रतिबन्धित कर दिया गया । सबसे बड़ी पार्टी को प्रतिबन्धित करने वाला झेलेन्स्की इन पत्तलकारों को “लोकतान्त्रिक” लगता है!

१७ रूपये में जितना सामान आप खरीद सकते हैं उतना सामान एक डॉलर खरीद सकता है । वर्ल्ड बैंक इसे परचेसिंग पॉवर पैरिटी कहता है । ७५ रूपये का नकली विनिमय दर बनाकर हर वर्ष भारत से दो सहस्र अरब डॉलर से अधिक का सामान साढ़े चार गुणे कम मूल्य में पश्चिम खरीदता है । पेट्रोलियम पर हम निर्भर हैं इसी कारण । अरब पेट्रोलियम बन्द करें,रूस और वेनजुएला से पेट्रोलियम लें और शीघ्र थोरियम शक्ति विकसित करें तो कुछ ही वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था समूचे यूरोप,जापान और अमरीका की सम्मिलित अर्थव्यवस्था से बड़ी हो जायगी ।

किन्तु भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नौकरों की कमी नहीं है!

छात्रावस्था में एक परीक्षा में मुझसे पूछा गया — भारत पर ब्रिटेन की विजय के कारणों पर प्रकाश डालें ।

मैंने लिखा — प्रश्न गलत है । जहाँगीर के काल से ही ब्रिटेन भारत का मित्र है । पूरे इतिहास में कभी भी ब्रिटेन ने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय नहीं लिया । भारत के लोगों ने भारत के पैसे से भारत को जीतकर उसकी एक कम्पनी के हवाले कर दिया तो कम्पनी की अक्षमता को देखकर ब्रिटिश सरकार को विवश होकर भार सम्भालना पड़ा । तब विस्तार से सारे कारणों का भी मैंने वर्णन किया ।

आज भी वैसे बिकाऊ भारतीयों की कमी नहीं है!खरीदने वालों की कमी है । यूक्रेन तथा अफगानिस्तान के बिकाऊ लफंगे भारतीयों से भी सस्ते हैं । भारतीयों को कोई पूछता ही नहीं!अपने चैनलों पर भौंकते रहते हैं । 
By Vinay Jha

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