यूक्रेन सङ्कट — ९
यूक्रेन सङ्कट — ९
जिस प्रकार सीरिया का पेट्रोलियम लूटने के लिए वहाँ युद्ध कराकर बीस लाख सीरियाई शरणार्थियों को अमरीका ने विश्वयुद्ध में पराजित जर्मनी में भिजवा दिया,उसी प्रकार अब यूक्रेन में युद्ध भड़काकर वहाँ के शरणार्थियों को जर्मनी और उससे पूर्व स़्थित देशों में भेजा जा रहा है । अमरीका ने सम्पूर्ण २०२२ ई⋅ वर्ष में यूरोप से आने वाले शरणार्थियों की अधिकतम सीमा दस सहस्र निर्धारित की है,जबकि अभीतक २५ लाख यूक्रेनी शरणार्थी यूरोप के नैटो देशों में आ चुके हैं । अमरीकी मीडिया ही यह बता रही है =https://www.usnews.com/news/politics/articles/2022-03-06/explainer-what-is-the-us-doing-to-help-ukraine-refugees
ब्रिटेन की नीति भी अमरीका जैसी ही है,यूक्रेनी शरणार्थियों को ब्रिटेन में शरण मिलने में नाकों चने चबाने पड़ते हैं । ब्रिटेन में केवल उन यूक्रेनियों को शरण देने पर विचार किया जा सकता है जिनके परिवार का कोई व्यक्ति पहले से ब्रिटेन में है — हाल का संघर्ष आरम्भ होने के उपरान्त अभीतक केवल तीन सहस्र यूक्रेनियों को ब्रिटेन में शरण मिल सकी है । अर्थात् जो वास्तव में शरण के योग्य है उसे शरण नहीं मिल सकती,जिसका कोई निकट सम्बन्धी पहले से ब्रिटेन की आमदनी बढ़ाने के लिए वहाँ श्रम कर रहा है केवल उसी की प्रार्थना पर विचार हो सकता है!
यूक्रेनी शरणार्थियों में उन ४० लाख यूक्रेनी शरणार्थियों की गिनती नहीं की जाती और न ही मीडिया उनकी चर्चा करती है जो यूक्रेन के रूसी−विरोधी नात्सियों के नरसंहार से बचकर रूस और बेलारूस भाग चुके हैं ।
भारत की टीवी तो यहाँ तक झूठ बकती है कि दोनवास में रूसी सेना गैर−सैनिकों की हत्या कर रही है!जबकि वहाँ की जनसंख्या रूसी है जिसका नरसंहार आठ वर्षों से यूक्रेनी सेना कर रही है — उसी कारण रूस ने आक्रमण किया है । रूसी टीवी पर प्रतिबन्ध लगाकर अमरीकी प्रचार का भारतीय मीडिया भी समर्थन कर रही है ।
एक वर्ष में कुल सवा लाख शरणार्थियों को स्वीकारने का निर्णय बाइडेन ने लिया है जिसमें यूरोप का कोटा केवल दस सहस्र है। इसमें अफगानिस्तान से आने वाले ७६००० अफगान सम्मिलित नहीं हैं;उनके लिए सारे कानून तोड़े गये हैं । अफगानों का मानवाधिकार होता है!यूक्रेन के रूसी का कोई मानवाधिकार नहीं है!
हिन्दुओं का भी मानवाधिकार नहीं होता । कश्मीरी पण्डितों की चर्चा पश्चिमी मीडिया नहीं करती क्योंकि वे हिन्दू हैं ।
नैटो के प्रमुख देशों ने ही आधुनिक युग में सारे वैश्विक अपराध किये हैं जिनके लिए कभी गलती भी नहीं मानी । करोड़ों निरपराध लोगों का नरसंहार किया,करोड़ों को दास बनाकर बेचा,करोड़ों लोगों की सम्पत्ति लूटी । किन्तु मानवाधिकार के चैम्पियन बनते हैं!द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान केवल जर्मनी को नस्लवादी कहा जाता था,उसी काल में ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री चर्चिल से पूछा गया कि अमरीका में रेड इण्डियन के संहार पर उनका क्या कहना है,तो उनका उत्तर था — घटिया नस्ल को हटाकर श्रेष्ठ नस्ल स्थापित हुई!अमरीका की स्वतन्त्रता से पहले ब्रिटिश सरकार रेड इण्डियन का संहार करा रही थी,और दास−व्यापार के लिए अफ्रीकियों का भी । हिन्दुओं के पास बन्दूक और तोप थे जिस कारण सामूहिक नरसंहार से बच गये ।
जब ग़जवा−ए−हिन्द आरम्भ होगा तब विश्व का एक भी देश हिन्दुओं (सनातनियों सिखों जैनों बौद्धों) को शरण देगा?यदि रूस तैयार भी होगा तो रास्ता नहीं दिया जायगा,जैसे कि पाकिस्तान ईरान से पेट्रोलियम पाइप भारत तक बिठाने का रास्ता नहीं दे रहा है जबकि अभी भी भारत पाकिस्तान को “मोस्ट फेवर्ड नेशन” का दर्जा दिये हुए है!शत्रुता करने वाले को हम “परममित्र” कहते हैं!
रूस ने सदैव भारत की सहायता की है तो अब भारत की मीडिया उसे गालियाँ दे रही है!केवल हमारी सेना के अधिकारी टीवी पर सच्चाई बताते हैं,पत्तलकार तो केवल झूठ ही बकते हैं । मोदी सरकार को चाहिए कि अभी रूस का जो भी सामान सस्ते में मिल सके शीघ्र खरीद ले । किन्तु भारत के अमरीका−भक्त ऐसा होने नहीं देंगे ।
By Vinay Jha
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.