तो संघ की सरकार 'टैक्स' के रूप में काट लेती है.....

 राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी वेतन कटौती के बारे में जो बोला था उसका अर्थ ठीक से समझा जाना बाकी है....... यूपी दौरे में एक कार्यक्रम के दौरान अपनी सैलरी के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि मुझे 5 लाख प्रति महीना तनख्वाह मिलती है जिसमें से पौने तीन लाख तक टैक्स चला जाता है। हमसे ज्यादा बचत तो एक टीचर की होती है।


दरअसल संघ की परंपरा रही है कि वो अपने कुछ स्वंयसेवको को बीजेपी सरकार के सांसदों , मंत्रियों, ओर यहाँ तक कि संवैधानिक पदों पर बैठे या बिठवाए गए लोगो के साथ अपॉइंट कर देता है और उन स्वंयसेवकों को प्रतिमाह जो वेतन दिया जाता है वह उन पदों पर निर्वाचित मंत्रियों सांसदों के भत्ते में से ही दिया जाता है


2015 में इंडिया टूडे में आयी एक रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और उद्योगपति जय प्रकाश अग्रवाल द्वारा चलाई जा रही सूर्या फाउंडेशन में इन स्वंयसेवको को ट्रेनिंग दी जाती है और 2015 में ही यानी मोदी सरकार के आने के एक साल में ही फाउंडेशन के प्रशिक्षुओं में से आधा दर्जन से अधिक  स्वयं सेवक विभिन्न मंत्रियों के निजी स्टाफ में शामिल किये जा चुके थे


मंत्रियों सांसदों के निजी सचिव (पीएस) के तौर पर अमूमन राजपत्रित अधिकारियों को नियुक्त किया जाता है, लेकिन मोदी सरकार में उनके बजाए संघ के इन विशेष रूप से प्रक्षिक्षित कार्यकर्ताओं को अधिक तरजीह दी जाती है, यह सांसदों मंत्रियों के साथ रहकर एक तरह से संघ परिवार के लिए भेदिये का काम भी करते हैं, 


अब प्रश्न रह जाता है कि उन्हें इस काम की तनख्वाह कैसे मिलेगी यह तनख्वाह सीधे संघ से तो आएगी नही लिहाजा यह बोझ भी उन पदों पर बैठे  निर्वाचित सदस्यों को उठाना पड़ जाता है......


शायद रामनाथ कोविंद जी भी अपने सम्बोन्धन मे बरसो से पल रही टीस को अभिव्यक्ति दे रहे हो, कि देखिए मेरे पास तो कुछ भी नही बचता , मेरा नाम पर आया वेतन तो संघ की सरकार 'टैक्स' के रूप में काट लेती है.......

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