जया बच्चन को संसद पर भरोसा नहीं ?

जया बच्चन को संसद पर भरोसा नहीं,कहती हैं भीड़ को न्याय करना चाहिये । तो फिर संसद में वह क्यों है?केवल अखिलेश यादव का हाथ मजबूत करने के लिये?आज संसद में उसकी पार्टी का बहुमत होता तो ऐसी बात कहती?
भारत की मीडिया टी⋅आर⋅पी⋅ बढ़ाने के लिये जिस तरह सामूहिक हिस्टीरिया का वातावरण बनाकर समस्याओं के समाधान से ध्यान भटकाकर भीड़ का उन्माद खड़ा कर रही है वह कोई नयी बात नहीं है,ऐसे मुद्दों पर मीडिया सदैव ऐसा ही करती है ताकि समाधान न हो । क्योंकि समाधान हो गया तो प्रेस्टीट्यूटों और उनके धन्नासेठ मालिकों को प्रोस्टीट्यूटों की आपूर्ति बन्द हो जायगी ।
क्या बलात्कार एकमात्र अपराध है?हत्या,डकैती जैसे अपराध भी तो होते हैं । केवल बलात्कारियों को ही भीड़ के हवाले क्यों किया जाय?हत्यारे और डकैत दया के अधिकारी हैं?उनको भी भीड़ के हवाले किया जाय । इसका परिणाम यही होगा कि भीड़ ही अपराधी को पकड़े,जाँच करे,चौराहे पर तत्क्षण “न्याय” करे । फलस्वरूप न्यायालयों,पुलिस प्रशासन संसद आदि को बन्द करना पड़ेगा । पूरा जंगलराज!
समाधान इतना जटिल तो नहीं है कि मीडिया वालों की खोपड़ी में न घुसे । समाधान वे जानते हैं किन्तु बात को घुमाकर दूसरी ओर मोड़ देते हैं । राष्ट्रपति के पास निर्भया काण्ड वाली दया याचिका कितने दिनों से लम्बित पड़ी है?क्यों लम्बित पड़ी है?उससे पहले भी न्यायालय का निर्णय हो जाने के बाद न्यायालयों ने ही कई वर्षों तक पुनर्विचार कर मामला लम्बा क्यों घसीटा? न्यायालय को निर्णय करने में देरी क्यों होती है,और निर्णय होने के बाद भी लागू करने में देरी क्यों होती है — इसपर बहस को केन्द्रित होने ही नहीं दिया जाता,क्योंकि तब समाधान हो जायगा ।
महिला हेल्पलाइन का प्रचार नहीं किया जाता । कितनी महिलाओं को उसकी जानकारी है?मीडिया इसका प्रचार नहीं करेगी । कहीं कोई द्रौपदी आज कौरवों से घिर जाय तो किसे बुलाये?कैसे बुलाये?श्रीकृष्ण का अगला अवतार तो अगले महायुग में होगा । तबतक किसे बुलाये?आज भी जनसंख्या के हिसाब से भारत से कई गुणा अधिक बलात्कार अमरीका और इंग्लैण्ड में होते हैं,हालाँकि भारत से अधिक सक्षम पुलिस वहाँ है । भारत में अपेक्षाकृत कम बलात्कार होते हैं और जो होते भी हैं उसके लिये आधुनिक संस्कृति दोषी है,जिसके पदार्पण से पहले भारत की महिलायें बिना ट्रेन के दूर−दूर के तीर्थों में जाती थी किन्तु प्राचीन साहित्य में कहीं उल्लेख नहीं मिलता कि भारत में कहीं कोई बलात्कार होता था । राक्षसों में बलात्कार की प्रथा थी,मानवों में नहीं । एक व्यापक सामाजिक कुरीति के रूप में बलात्कार कब और किस समुदाय ने आरम्भ किया यह सब जानते हैं किन्तु मीडिया नहीं बतलायेगी । सीता और द्रौपदी के सम्मान के लिये भारत के लोग महायुद्ध छेड़ देते थे । टीवी पर आजकल एक प्रचार रोज सुनने को मिलता है — कुर्सी के लिये कौरवों और पाण्डवों ने महाभारत छेड़ा । पाण्डवों को कुर्सी का लोभ था!
आजकल हल्ला मचाया जा रहा है कि पुरुषों को अपनी “सोच” बदलनी चाहिये । यह “सोच” आती कहाँ से है?स्कूलों और कॉलेजों में तो बलात्कार करने की शिक्षा दी नहीं जाती । तो “पुरुष” ऐसी “सोच” सीखते कहाँ से हैं?उसी टीवी से जो आज सही बहस को गलत दिशा में मोड़ रही है । आज बहुत कम लोग सिनेमा हॉल जाते हैं । घर बैठे सबकुछ देख लेते हैं — टीवी पर । स्मार्ट टीवी पर ब्लू फिल्म भी देखते हैं । सिनेमा हॉल में जाकर गन्दी फिल्में देखने से संस्कार पर जितना बुरा प्रभाव पड़ता था उससे हजार गुणा गन्दा प्रभाव पड़ता है माँ−बहन के साथ बैठकर घर में गन्दी टीवी देखने से,तभी तो इन्द्राणी मुखर्जी जैसे “परिवार” बनते हैं!
पुलिस की हेल्पलाइन कितनी कारगर होगी यह सब जानते हैं,फिर भी उसे अधिक कारगर बनाने के लिये आन्दोलन चलाया जाय तो सुधार होगा ही ।
उससे भी बेहतर उपाय है स्वयंसेवी संस्था का हेल्पलाइन । छोटी स्वयंसेवी संस्था हो तो भी कहीं से किसी सङ्कटग्रस्त महिला का फोन आने पर संस्था द्वारा पुलिस अधिकारियों की नीन्द तो हराम की जा सकती है,क्योंकि यदि शिकायत आने पर भी अधिकारी कुछ न करें तो फोन कॉल को सबूत के तौर पर न्यायालय में प्रस्तुत करके स्वयंसेवी संस्था द्वारा उस अधिकारी को दण्डित कराया जा सकता है ।
पिछले पोस्ट में मैंने इसपर लिखा । लाइक तो कई आये किन्तु आगे बढ़कर संस्था खोलने के लिये कोई तैयार नहीं । पहले से ही महिलाओं के कल्याणार्थ कई स्वयंसेवी संस्था हैं,उन सबका पता उपलब्ध करने के लिये RTI का उपयोग करें और फिर उन सबको लिखें कि निर्भया फण्ड बिना खर्च हुए वापस जा रहा है जबकि महिलाओं के कल्याणार्थ जो स्वयंसेवी संस्थायें हैं उनके द्वारा उक्त फण्ड के उपयोग का प्रावधान है,तो महिलाओं के कल्याणार्थ बनी इन संस्थाओं ने उस फण्ड का सही उपयोग क्यों नहीं किया?जो अच्छी संस्थायें मिलें उन सबमें तालमेल बिठाकर एक सामूहिक राष्ट्रीय हेल्पलाइन बनाया जाय । उस हेल्पलाइन पर अधिक कॉल आने लगे तो अनेक सहायक नम्बरों पर कॉल डायवर्सन कराया जाय ताकि किसी की शिकायत अनसुनी न रहे ।
Stun Gun अवैध है इसकी रत्ती भर भी परवाह न करें । पुलिस के पास इतना समय और साहस नहीं है कि महिलाओं के वस्त्र में हाथ डालकर स्टन गन छीन ले । आवारा कुत्ते भी स्टन गन से भागते हैं और गुण्डे भी । अब मैं नहीं रखता,किन्तु कई बार पशुओं पर और दो बार गुण्डों पर मैंने प्रयोग किया है । बिहार की सबसे बदमाश बस्ती में प्रयोग किया जहाँ हत्यारों को ऊँचे पदों पर बैठे नेताओं का वरदहस्त प्राप्त था । तब मँहगा था । अब सस्ता है । उससे भी सस्ता चाहते हैं तो मच्छर−रोधी रैकेट में से उसका सर्किट बोर्ड निकालकर प्लास्टिक में बन्द कर लें और उसमें से दो तार निकाल लें,स्विच दबाने पर स्टन गन जैसा ही जोरदार झटका मारेगा । किन्तु जान जाने का खतरा नहीं,बशर्ते कमजोर हृदय वाले के हृदय या दिमाग में न भिड़ायें । यदि मच्छर−रोधी रैकेट प्रतिबन्धित नहीं है तो उसके सर्किट को जेब में रखेंगे तो पुलिस कुछ नहीं कह सकेगी । इससे बेहतर है टेजर−गन किन्तु वह मँहगा भी है और केवल पुलिस को ही उपयोग की अनुमति है । भारतीय पुलिस को अभी वह दिया भी नहीं जाता है,हालाँकि नमूने दिये गये हैं । टेजर−गन हो तो जंगल में शेर और हाथी का भी भय नहीं । सरकार पर दवाब डालें कि महिलाओं को टेजर−गन रखने की अनुमति मिले । टेजर−गन बहुत दूर से झटका मारता है,बहुत देर तक निकम्मा कर देता है । फिर गुण्डे के हाथ−पाँव बान्धकर पुलिस को बुला सकते हैं ।
साध्वी प्रज्ञा ने छात्रावस्था में जो दुर्गावाहिनी चलायी थी उसकी राष्ट्रीय स्तर पर आवश्यकता है ।
कानून के राज को सबल और प्रभावी बनाना है,जया बच्चन वाला जंगलराज नहीं चाहिये । न्यायालय अनावश्यक देर क्यों करती है इसके कारणों के उपचार की आवश्यकता है,न कि सड़क पर अरब शान्तिदूतों की तरह शरीयत कानून लागू करने की ।
“सोच” को बदलना है तो गन्दे फिल्मों और विज्ञापनों पर पाबन्दी लगे । मोदी सरकार ने अश्लील वीडियो पर पाबन्दी लगायी तो दिल्ली के न्यायालय ने यह कहकर रोका कि मौलिक अधिकार है!उत्तराखण्ड के न्यायालय ने तब रोक लगायी । गन्दे माननीयों को दण्डित किया जाना चाहिये । उत्तराखण्ड के न्यायालय ने आठ सौ से अधिक पॉर्न साइटो पर रोक तो लगा दी किन्तु न्यायालय को यह नहीं बताया गया कि VPN द्वारा लोग गन्दगी देख लेते हैं । यह सूचना मोदी सरकार और उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय को भेजें ।
मीडिया झूठ बकती है कि बलात्कार में भारत बहुत आगे है । जनसंख्या के हिसाब से भारत अभी भी बहुत पीछे है । भारत में प्रतिवर्ष ३६००० बलात्कार होते हैं और बीस गुणा कम जनसंख्या वाले ब्रिटेन में ८५०००;ब्रिटेन में १६ वर्ष से अधिक अम्र की २०% महिलाओं का बलात्कार हो चुका है और ३१% नाबालिग बालिकाओं का भी;तथा केवल ५⋅७% बलात्कार के आरोपियों को दण्ड मिल पाता है और अधिकांश महिलाओं की Rape Crisis Centre तक पँहुच ही नहीं हो पाती,प्रमाण प्रस्तुत है —http://bit.ly/3600sF4

विकसित देश प्रति व्यक्ति आय में भारत से जितना आगे हैं,बलात्कार तथा मांसभक्षण और शराब के सेवन में भी उतने ही आगे हैं । इसका यह अर्थ नहीं कि जबतक हम ब्रिटेन के बराबर “प्रगति” नहीं कर लेते तबतक कुछ न करें । इसका अर्थ यह है कि पिछले हजार वर्षों की गुलामी के बावजूद अभीतक गन्दगी में हम ब्रिटेन का २% ही हो पाये हैं किन्तु यह २% भी भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है,इस बीमारी का पूर्ण नाश आवश्यक है । यह जो गन्दगी है वह निचले पायदान के लोगों ने उच्च वर्ग को नहीं सिखायी,सारी गन्दी फिल्में और वैसी चीजें उच्च वर्ग ही बनाता है । निचले पायदान के लोग तो शिकार हैं । उनको मानसिक रूप से पङ्गु बनाया जाता है ताकि लूट−खसोट का विरोध न कर सकें । इसी कुशिक्षा का साइड−इफेक्ट है वासना । संसार के ९५% पॉर्न वीडियो अमरीका में बनते हैं ।
Vinay Jha
https://www.facebook.com/vinay.jha.906/posts/2859437190734233


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