हिन्दू−कोड

By Vinay Jha

हिन्दू−कोड
१९४७ में कराची की ५१% जनसंख्या हिन्दू थी । किन्तु कराची के कर्मठ सिन्धियों,लाहौर के कर्मठ पंजाबी हिन्दुओं और सिखों तथा ढाका के हिन्दू उद्यमियों को भगा दिया गया ।
ऐसी गलती पिछले हजार वर्ष के दौरान किसी मुसलमान बादशाह ने भी नहीं की थी क्योंकि वे जानते थे कि राजसत्ता का आधार धन होता है और धन उत्पन्न करना हिन्दू जानते हैं,धन उत्पन्न होगा तभी तो लूटने वाले परजीवी फल−फूल सकेंगे!
परिणाम हुआ कि पाकिस्तान कटोरा लेकर अरब,अमरीका और चीन के द्वारों पर मारा−मारा फिरता है और वे जो कहते हैं वैसा करता है ।
अमरीका और चीन को भी अरब तेल चाहिये,तेल के कूँए सूखते ही वे अरब का साथ छोड़ देंगे और पाकिस्तान का साथ देने वाला कोई नहीं होगा ।
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हदीस में पैग़म्बर ने कहा था कि ग़ज़वा−ए−हिन्द करते ही क़यामत आ जायगी । इसका अर्थ मुल्ले गलत लगाते हैं । सही अर्थ यह है कि जिस दिन ग़ज़वा−ए−हिन्द किया जायगा,उस दिन सारे मुसलमानों के लिये क़यामत आ जायगी और केवल अन्य लोग बचेंगे क्योंकि क़ुरआ़न और हदीस अन्य लोगों पर लागू नहीं होगा,केवल मुसलमानों पर ही लागू होगा ।
अतः जो जिहादी ग़ज़वा−ए−हिन्द का प्रयास कर रहे हैं वे अपने लिये क़यामत बुला रहे हैं । उसी क़यामत का दूसरा नाम है हिन्द । क्योंकि पैग़म्बर ने ही कहा था कि हिन्द का ग़ज़वा करने पर क़यामत आयगी!
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हिमालय से कन्याकुमारी तक तीन सप्तसिन्धुओं वाले देश को ही जेन्द−अवेस्ता में हप्त−हिन्दू कहा गया । इस देश का वैदिक नाम है सप्तसिन्धु जो सृष्टि से पहले का सनातन नाम है ।
सृष्टि आरम्भ होने पर अजमेरु नगर बसाने वाले इक्ष्वाकुवंशीय सम्राट अज के नाम पर देश को अजनाभवर्ष भी कहा जाने लगा । उनके पाँचवे वंशज सम्राट भरत (दुष्यन्तपुत्र भरत नहीं,वे तो द्वापरयुग के चन्द्रवंशी थे) के नाम पर देश का नाम भारतवर्ष भी हो गया जो वर्तमान संविधान में है ।
किन्तु सप्तसिन्धु नाम कलियुग के आरम्भिक काल तक प्रचलित रहा जिससे हप्त−हिन्दू बना । हप्त−हिन्दू में रहने वाले सारे लोग हिन्दू है,तभी तो मुसलमानों ने भी इस देश को हिन्दूस्थान कहा,अशुद्ध आहार के कारण ठीक से कह नहीं पाये और “हिन्दुस्तान” बना दिया!इसी हिन्दूः को यवनों ने इन्दुस् कहा जिससे बना इण्डिया भी वर्तमान संविधान में देश का नाम है ।
हिन्दुओं के पतनकाल में म्लेच्छों के अपभ्रंश शब्द “इण्डिया” को संविधान में जोड़ा गया,ग़ज़वा−ए−हिन्द के उद्देश्य से देश के दो अङ्गों को काटकर पाकिस्तान बनाया गया और ग़ज़वा−ए−हिन्द के लिये ही हिन्दुओं पर हिन्दू−कोड तथा परिवार−नियोजन थोपा गया ताकि मुसलमानों की संख्या बढ़ सके ।
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हिन्दू−कोड के बारे में एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ । व्यक्ति का नाम नहीं बतलाऊँगा ।
मेरे नगर में एक हिन्दू है जिसे कोई सन्तान नहीं हुई तो पत्नी की सहमति से दूसरा विवाह किया । गाँव वाले घर में पहली पत्नी रही और नगर वाले घर में दूसरी । हिन्दू मैरेज एक्ट का उल्लङ्घ कोई सिद्ध नहीं कर सकेगा क्योंकि उस बाहुबली के विरुद्ध गवाही देने कोई नहीं जायगा । बिहार के कई भूतपूर्व तथा वर्तमान मुख्यमन्त्रियों का चहेता है । ईश्वर की लीला देखिये कि दूसरा विवाह होते ही दोनों पत्नियों को एकसाथ ही पुत्र हो गया!
हिन्दू−कोड को लागू किया जाता तो निर्दोष प्रथम पत्नी को तलाक देने के पश्चात ही सन्तान के लिये दूसरा विवाह कर सकता था,वरना किसी को गोद लेता अथवा निस्सन्तान रहता । ऐसे विशेष मामलों में हिन्दू−कोड सही है?यदि मनुस्मृति गलत है तो शरीयत भी गलत है ।
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किसी व्यक्ति के माथे में दो परस्पर विरोधी व्यक्तित्व हो तो उसे स्काइत्सोफ्रीनिया कहते है,यह एक खतरनाक मनोरोग है । किसी देश में दो तरह के परस्पर विरोधी कानून हों तो वह देश मनोरोगी है । ऐसे देश के दो परस्पर विरोधी पहचानों में एक असली है और एक वायरस । वायरस का उपचार करने के बदले उसे बढ़ाने का ही प्रयास किया जाता रहा है । अब सुधार का प्रयास आरम्भ हुआ है तो ग़ज़वा−ए−हिन्द वालों में खलबली मच रही है । भारत के संसद में गृहमन्त्री पाकिस्तान की आलोचना करते हैं तो पाकिस्तान−परस्त सांसदों द्वारा हंगामा मचाया जाता है!क्योंकि उनके वोटबैंक ग़ज़वा−ए−हिन्द चाहते हैं किन्तु बकते हैं कि “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा” — यहाँ “हमारा” में हिन्दू या सिख आदि नहीं हैं,बल्कि इस गीत को लिखने वाले उसी इक़बाल की कौम है जिसने “पाकिस्तान” शब्द की खोज की थी । सल्तनत काल से जो हिन्दुस्तान उनका था वह आज भी उनका ही होना चाहिये,देश के संसाधनों पर पहला अधिकार उनका ही है जैसा कि मनमोहन सिंह ने कहा था ।
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भारतीय समाजशास्त्र की पुस्तकों में भी अब कई भारतीय समाजशास्त्रीयों ने डाल दिया है कि संसार में दो तरह के रिलीजन (सम्प्रदाय या पन्थ) होते हैं,धार्मिक और अधार्मिक । जिन रिलिजनों के साम्प्रदायिक ग्रन्थों में “धर्म” पर चलने का आदेश है वे धार्मिक हैं,जैसे कि वैदिक,शाक्त,शैव,वैष्णव,बौद्ध,जैन,सिख,आदि । संसार के समस्त धार्मिक सम्प्रदाय केवल भारतवर्ष में ही पाये जाते हैं क्योंकि चारों पुरुषार्थों द्वारा प्रजा का भरण कराने की क्षमता केवल भारतवर्ष में ही है । भारतवर्ष से बाहर रहकर धर्म का पालन करना लोहे के चने चबाना है । तभी तो समुद्रपार जाना अशुभ माना जाने लगा । जिस काल में पूरी वसुधा में धर्म का ही अस्तित्व था उस काल में सारे समुद्रों का उल्लङ्घन कर सुग्रीव के दूत सभी द्वीपों में सीताजी को ढूँढने गये थे ।
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“धर्म” क्या है इसपर शङ्का हो तो अर्जुन के बाण द्वारा दूषित रक्त निकल जाने के उपरान्त भीष्म पितामह की सद्बुद्धि से निःसृत इस श्लोक के अर्थ का स्मरण कर लें;इस श्लोक में बताये दस लक्षण जहाँ हैं वहाँ धर्म है और प्रलय के उपरान्त भी उस देश का अस्तित्व बचा रहेगा क्योंकि व्यासजी ने ही कहा कि जो धर्म की रक्षा करते हैं उनकी रक्षा धर्म करता है —
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धैर्य (विपरीत परिस्थिति में भी मन का सन्तुलन न खोना)
क्षमा (शत्रु के प्रति भी बदले की भावना न रखना,किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि अन्यायी को दण्ड न दें)
दम (मन पर अङ्कुश)
अस्तेय (दूसरों की वस्तु न लेना)
शौच (मन,वचन और देह की शुद्धि)
इन्द्रियनिग्रह (इन्द्रियों को सांसारिक विषयों की ओर आकर्षित होने से रोकना)
धी (शास्त्रानुकूल सद्बुद्धि जैसा कि गायत्री में माँगते है,ऐसी बुद्धि केवल ईश्वरीय कृपा से आस्तिकों को ही मिलती है;दुर्बुद्धि तात्कालिक लाभ तो दिला सकती है किन्तु अन्त अशुभ होता है ।)
विद्या (सत्य विषयों का अध्ययन)
सत्य (जिसकी सत्ता सदैव रहे उसका अनुसरण;केवल सत्य बोलना ही सत्य नहीं,सत्य बोलकर अधर्म को विजय दिलाना भी असत्य ही है । सत्य क्या है यह श्रीकृष्ण से सीखें,मूर्ख गाँधी से नहीं जिसने प्रवचन दिया सत्य का और सत्ता सौंपी असत्य को ।)
अक्रोध (युद्ध भी बिना क्रोध के शान्त मन से करें ताकि बुद्धि विचलित न हो ।)
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असली हिन्दू−कोड का सारांश इस एक श्लोक में है । हिन्दू बनें । हिन्दुत्व से स्खलित हुए हैं तभी तो म्लेच्छों का प्रभाव बढ़ा ।
विस्तृत हिन्दू−कोड जानना है तो मनु−कोड और अन्य ऋषियों के कोड पढ़ें जिसे धर्मशास्त्र कहते हैं ।
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हिन्दू को पैदा करेंगे तो उसे धर्मशास्त्र सिखाना आसान होगा । कामवासना से ग्रस्त होकर जो लफंगे माँ−बाप लफंगे सन्तान को पैदा करेंगे उसे श्रीकृष्ण भी धर्म नहीं सिखा सकेंगे,तभी तो भाभी की साड़ी खींचने वालों का वध कराये ।
अतः भारत तथा धर्म की रक्षा चाहते हैं तो गर्भाधान−संस्कार का पालन करें ।
काशी की एक गोष्ठी में यही बात मैंने कही थी तो हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व वेद−विभागाध्यक्ष ने यह कहकर मेरे व्याख्यान को बाधिक कर दिया कि कलियुग में संस्कारों और यज्ञों का कोई प्रभाव नहीं,केवल हरिनाम का जप पर्याप्त है!उनके दर्जनों छात्र उनके ही विरोध में हंगामा करने लगे कि सारा जीवन आपने यज्ञ करना सिखाया और रिटायर होने पर अब कहते हैं कि यज्ञ बेकार है!उसी पूर्व वेद−विभागाध्यक्ष ने हाल में संघ के पदाधिकारी पर दवाब डालकर बयान दिलवाया था कि धर्मविज्ञान के संकाय में मुसलमान की नियुक्ति उचित है । उसी पूर्व वेद−विभागाध्यक्ष ने मेरे व्याख्यान से पहले अपने व्याख्यान में अन्त्येष्टि−संस्कार के महत्व पर प्रकाश डाला था!क्योंकि उनका अन्त्येष्टि−संस्कार बाँकी था,किन्तु उनका जन्म बिना गर्भाधान−संस्कार के ही हो गया था तो दूसरों का क्यों होने देंगे?
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बड़ा से बड़ा पण्डित,मुल्ला या बादशाह भी काशी पर अधर्म को नहीं थोप सकता । २००५ ईस्वी में काशी के एक विभागाध्यक्ष ने मेरे विचार के विरुद्ध शास्त्रार्थ कराया था जिसमें सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा दिल्ली के लालबहादुर संस्कृत विद्यापीठ के विभागाध्यक्षों तथा अनेक प्राध्यापकों को मेरे विरुद्ध गोलबन्द किया गया था जो चाहते थे कि भौतिक ग्रहों के गणित द्वारा ज्योतिषीय गणना हो,किन्तु मैंने आरम्भ में ही कह दिया कि काशी में पाँच वर्ष का बालक भी शास्त्र के पक्ष में खड़ा हो जाय तो उसकी ओर से बाबा विश्वनाथ बोलेंगे । सर्वसम्मति से प्राचीन सूर्यसिद्धान्त के पक्ष में निर्णय हुआ था । http://vedicastrology.wikidot.com/credentials#toc3
ज्योतिर्लिङर्गों का महत्व लोग अब नहीं समझते । सृष्टि और पृथ्वी के भौगोलिक केन्द्र को मेरु कहते हैं जो जम्बूद्वीप के इलावर्त में है । सृष्टि की कालगणना के केन्द्र को महाकाल कहते हैं जो जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में है । भारतवर्ष में मेरु के निकटतम भूभाग को प्रभास कहते हैं जिसके मध्य में सोमनाथ है,वहीं सृष्टि आरम्भ होने पर भारतवर्ष में सर्वप्रथम प्रभास अर्थात् दिव्य ज्ञान प्रकट हुआ था । किन्तु उस दिव्य ज्ञान का सृष्टि से पहले,सृष्टि के दौरान और प्रलयकाल में भी जहाँ सदैव वास हो उस दिव्य प्र−काश के स्थान को काशी कहते हैं ।
भारतवर्ष से बाहर अन्य क्षेत्रों में भी बहुत से दिव्य लिङ्ग थे किन्तु कलियुग में लोग उनको भूल चुके हैं । सात द्वीप,सबमें नौ−नौ देश,और बीच में इलावर्त — कुल ६४ देश । सबकी शक्तियाँ,सबके दिव्य लिङ्ग । केवल हिन्दुओं ने ही अपने धर्म को कुछ सीमा तक बचाकर रखा है ।
क्योंकि मेरुकेन्द्रित पृथ्वीचक्र में केवल शुक्र तथा सिंह राशियों के क्षेत्रों का ही विश्व पर वर्चस्व होता है जिसका कारण मैं विस्तार से बता चुका हूँ । सिंह राशि क्रूर और पाप राशि है,अतः उसके क्षेत्र में पड़ने वाले यूरोप और अमरीका ने अपना काल आने पर हिंसा और पाप द्वारा वर्चस्व स्थापित किया । शुक्र की पापराशि (अधर्म वाला काम अर्थात् वासना और अधर्मयुक्त वाणिज्य) है तुला जिसमें मध्य अमरीका के माया,इंका आदि थे । शुक्र की पुण्य राशि है वृष (धर्मसम्मत काम और धर्मयुक्त वाणिज्य जिस कारण पृथ्वी की ६०% जनसंख्या तथा अधिकांश वाणिज्य इसी सोने की चिड़िया वाली राशि में रही) जिसमें पहले भारत,फिर चीन और तब कोरिया एवं जापान का समय आता है ।
अब विपरीत कालचक्र का आरम्भ हो चुका है जिसके अन्त में ग़जवा−ए−हिन्द होगा,पूरी मानव प्रजाति और धर्म का नवीनीकरण होगा । जो धर्म पर चलेंगे केवल वही बचेंगे । असली हिन्दू−कोड की अवमानना करने वाले नकली संविधान भी नहीं बचेंगे । 
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