समगोत्री सम्बन्ध का प्रायश्चित

लेखक- 
Vinay Jha 2 May
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एक महाशय ने आज पूछा है कि समगोत्री विवाह के परिणाम और उसके दोष-निवारण का उपाय बताऊँ |
मैं न तो ऋषि हूँ और न देव, सनातन धर्मशास्त्र में संशोधन करने का मुझे कोई अधिकार नहीं है | किन्तु हर व्यक्ति को अधिकार है कि वह किस धर्म को चुने | धर्मविरुद्ध कर्म करने का रास्ता और उसके फल से बचने का उपाय बताऊँ ताकि लोग अधिकाधिक ऐसा करें ?
आजकल लगभग 8% भाई-बहन में अनैतिक सम्बन्ध हैं, उससे भी अधिक लोग अन्य निकट सम्बन्धियों से अनैतिक सम्बन्ध रखते हैं, किस-किस का पाप मैं धोऊँ ?
पराशर ऋषि के अनुसार छठे, सातवें और आठवें भावों में बुध या शनि हो तो जातक को नरक होता है, तथा द्वादशेश यदि सूर्य के साथ हो तब भी नरक होता है | तो कुल मिलाकर कितने लोग महापातकी होंगे ?
शनि उपरोक्त तीनों में से किसी एक भाव में हों इसकी प्रायिकता (probability) 33.3% है | अर्थात एक तिहाई लोग इस कारण से नरकगामी बनेंगे |
बचे हुए 66.67% में से एक तिहाई उपरोक्त कारण से बुध द्वारा नरकगामी बनेंगे | शनि और बुध दोनों को मिलाकर 55.55% हुआ |
बचे हुए 44.44% में से बारहवाँ हिस्सा उन लोगों का होगा जिनके बारहवें भाव का स्वामी सूर्य के साथ होगा | तब 40.74% नरक जाने से बचे, 59.26% नरकगामी हुए |
उन नरकगामियों की कुण्डलियों में शुभ ग्रह भी अच्छे योग बना सकते हैं, किन्तु उससे नरक का योग कटता नहीं है, स्वर्ग के साथ नरक भी भोगना पड़ता है |
शनि और बुद्ध के कारण 55.%%% लोग नरक जायेंगे | इन लोगों के नरक जाने के तीन प्रमुख कारण होंगे :--
छठे भाव के कारण जो लोग नरक जायेंगे वे अकारण दूसरों को कष्ट देंगे, शत्रुता करेंगे, जानबूझकर व्याधियाँ फैलाने का प्रयास करेंगे तथा दूसरों की अचल सम्पत्ति हड़पने का प्रयास करेंगे एवं मामा एवं मातृक के सम्बन्धियों के साथ गलत कार्य करेंगे | किन्तु कामवासना कारण बिलकुल नहीं होगा क्योंकि छठा भाव काम के भाव का नाश करता है, वहां जो ग्रह बैठेगा वह कामवासना से लगभग शून्य होगा |
सातवें भाव के कारण जो लोग नरक जायेंगे उन सबका कारण मुख्यतः कामवासना होगा | शनि यदि तीसरे भाव का स्वामी होकर सप्तम में हो तो भाई-बहन के बीच कुकर्म का कारण बनेगा |
आठवें भाव के कारण जो लोग नरक जायेंगे वे हत्या करेंगे अथवा मृत्यु-तुल्य कष्ट दूसरों को देंगे |
किन्तु यह केवल सामान्य निष्कर्ष है, हर व्यक्ति के साथ ऐसा ही होगा यह अनिवार्य नहीं है | उदाहरणार्थ, व्यक्ति-विशेष की कुण्डली में शनि यदि भाई-बहन के बीच अनैतिक सम्बन्ध बताये और दूसरे ग्रहों के कारण उस व्यक्ति का कोई भाई-बहन ही न हो तो यह योग घटित नहीं होगा | अन्य कई कारणों से भी यह योग कट सकता है | किन्तु यदि काटने योग्य कोई अन्य योग न हों तो यह घटित होगा ही | अतः पूरी जनसंख्या के बारे में जो अनुपात मैंने बताया है वह होने से कोई नहीं रोक सकता |
पिछले युगों में 59.26% लोग नरकगामी नहीं होते थे क्योंकि जनसंख्या अल्प थी जिस कारण अच्छे युगों में अच्छे लोगों की बहुतायत होती थी | किन्तु अब जनसंख्या परिपूर्णता (saturation) पर पँहुच चुकी है, अतः अब उपरोक्त अनुपात पूरी तरह कार्य कर रहा है, संसार के हर देश में महापातकियों का भारी बहुमत है | और लोकतन्त्र के कारण उनकी चलती भी है |
ऐसे लोग ग्रहशान्ति नहीं कर सकते, करेंगे भी तो दिखावा के लिए अथवा पाप बढ़ाने के लिए -- ज्योतिषी कहेगा कि संकल्प करो कि अमुक पाप की शान्ति हो और वह व्यक्ति मन-ही-मन संकल्प करेगा कि अमुक पाप करने में बड़ा अच्छा लगता है अतः अधिकाधिक वैसा ही करने का "सौभाग्य" मिले !!
मुख्य समस्या तो यह है कि महापातकी को बताएगा कौन कि तुम महापातकी हो ? कौन ज्योतिषी अपना सिर तुड़वायेगा ?
दूसरी समस्या यह है कि अन्य लोगों की तरह आजकल तो 60% ज्योतिषी भी महापातकी हैं !!
अतः ऐसे लोगों को सावधानी से पहचानने का प्रयास करें और वे आपके कितने भी प्रिय क्यों न हों, उनसे दूर रहने का प्रयास करें, क्योंकि संगत का भी फल भोगना पड़ता है | ऐसे लोग सुधर नहीं सकते, ब्लॉक करें |
अब "समगोत्री विवाह" वाले प्रश्न का उत्तर देता हूँ | ऋषि अमर होते हैं, अतः समगोत्री का अर्थ है सगा भाई-बहन जैसा घनिष्ठ सम्बन्ध | जिस प्रकार भाई-बहन के बीच "विवाह" को विवाह नहीं माना जा सकता, उसी प्रकार "समगोत्री विवाह" नाम की कोई चीज नहीं होती है, भले ही नेहरु और अम्बेडकर का हिन्दू मैरिज एक्ट उसे विवाह घोषित कर दे | कल कोई पूछेगा कि माँ-बेटे के बीच "विवाह" का क्या उपचार है तो मैं क्या उत्तर दूँ ? ऐसे सम्बन्धों को "विवाह" कहना ही पाप है और ऐसे प्रश्न पूछने वाले को प्राणायाम करना पडेगा |
मनुस्मृति ने माँ-बेटे के बीच अनैतिक सम्बन्ध का समाधान बताया है -- लिंग काटकर हाथ में ले लो और जबतक प्राण न निकल जाय तबतक बस्ती में दौड़कर सबको बताते रहो कि कौन सा कुकर्म किया है | मरने के बाद भी लोग तो गरियाते रहेंगे, लेकिन तब इस पाप का फल अगले जन्म में नहीं भोगना पडेगा |
किन्तु ऐसे लोग प्रायश्चित नहीं करेंगे, मनुस्मृति को ही गरियायेंगे | गोमाँस खाने का प्रायश्चित बता दूँ तो रोज गोमाँस खायेंगे और रोज प्रायश्चित करेंगे ! इतना भी नहीं सोचेंगे कि तब कितना भी प्रायश्चित कर लें, कोई पाप नहीं कटता | शुद्ध मन से प्रायश्चित करने पर ही देवता सुनते हैं |
आवश्यक नहीं है कि वैदिक ज्योतिष तथा धर्मशास्त्र के सूत्र-ग्रन्थों द्वारा ही पापों का प्रायश्चित हो सकता है | किसी भी सम्प्रदाय और जाति का व्यक्ति क्यों न हो, सच्चे ईसाई वाला प्रायश्चित करे तो अवश्य ही पाप कटेगा, जिसका तरीका टॉलस्टॉय ने "पुनरुत्थान" (Resurrection) उपन्यास में बताया, जिसे पढ़कर गाँधी जी ने टॉलस्टॉय फ़ार्म बनाया | किन्तु टॉलस्टॉय को समझ न पाने के कारण एक चाँटा खाने पर दूसरा गाल बढ़ाने को ही गाँधी जी धर्म समझ बैठे -- टॉलस्टॉय ने ऐसी मूर्खतापूर्ण बात कभी नहीं बतायी, ऐसी बातें तो चर्च करता रहा है ताकि लोग अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह न करें |
अपने ही पापों को भस्म करके उसकी राख से पुण्य का स्फिंक्स कैसे निकलता है , पापात्मा कैसे ईश्वर-पुत्र (गॉड-द-सन) बनकर दोबारा हृदय के भीतर उठता है (Second Coming), यह जानना हो तो "पुनरुत्थान" अवश्य पढ़ें | उसकी नायिका का नाम टॉलस्टॉय ने जानबूझकर "मास्लोवा" रखा जिसपर किसी आलोचक की दृष्टि नहीं गयी | वेश्यावृति के आरोप में आजीवन साइबेरिया का निर्वासन पाने वाली उस अबला को टॉलस्टॉय ने "स्लाव जाति की माता" कहा जिसका एक हिस्सा है रूसी जाति (ऋग्वेद में रूस को "रूशम्" कहा गया)| जब वह नाबालिग़ लड़की थी तो एक कुलीन प्रिन्स नेखल्युदोव ने उसकी इज्जत से खिलवाड़ किया और भूल गया | गर्भ ठहर जाने के कारण समाज ने बहिष्कृत कर दिया तो वेश्यावृति के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा | पुलिस पकड़कर न्यायालय ले गयी तो वहाँ न्यायाधीश की कुर्सी पर वही प्रिन्स विराजमान थे ! प्रिन्स ने वहीं त्यागपत्र लिखकर रख दिया | आगे क्या हुआ यह मैं बताऊँगा तो कोई लाभ नहीं होगा | मुझे 45 वर्ष हो गए पढ़े हुए, आजतक नहीं भूला हूँ |
हर व्यक्ति के भीतर ईश्-पुत्र आत्मा है जो जीव के पापों के नीचे दबा हुआ है | इसी युग्म को जीवात्मा कहते हैं | जबजब किसी जीव को मानवयोनी मिलती है तबतब पापों की राख से उठने का प्रयास करता है, किन्तु लोगों का झुण्ड उसे पुनः खींच लेता है | अतः लोक मिथ्या, ब्रह्म सत्यं ! वह सत्य बाहर ढूँढने से नहीं मिलेगा, आपके भीतर ही छुपा है | अपने कुकर्मों का दोष किसी बाहरी शैतान पर थोपकर अपने उत्तरदायित्व से छुटकारा लेना सेमेटिक सम्प्रदायों में होता है (यहूदी, इस्लाम, प्राचीन असुर सम्प्रदाय) जिसे ईसा ने सुधारने का प्रयास किया, किन्तु तीन सौ वर्ष बाद रोमन सम्राट कांस्टेंटाइन ने चर्च बनाकर ईसाई मत को ही औंधा कर दिया |
"कोई किसी को ज्ञान नहीं दे सकता, मनुष्य किसी की बात को सही तभी कहता है जब उसका अपना हृदय गवाही दे | वरना विरोध करता है | अर्थात हृदय में वह बात पहले से दबी थी जिसे मनुष्य बाहर से सीखने का भ्रम पालता है | गुरु उसे कहते हैं जो भूले हुए ज्ञान की स्मृति दिला दे |" (यह पूरा पैराग्राफ वेदान्त का दर्शन है किन्तु सुकरात की उक्ति के नाम से विख्यात है, यद्यपि कोई लिखित प्रमाण नहीं है, क्योंकि सुकरात ने कभी कुछ लिखा ही नहीं, वेदव्यास जी और सभी ब्राह्मणों की तरह सुकरात लेखन के समर्थक नहीं थे, पढ़ाते भी थे तो टहलते हुए |
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दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में एक तिहाई लोग नरक जाते हैं, अर्थात पापात्मा हैं, उतने ही पुण्यात्मा भी हैं, और उतने ही बीच वाले हैं जो मरने पर सीधे मृत्युलोक में ही टपकते हैं | इसी कारण शास्त्रों में कहा गया है कि पाप-पुण्य बराबर हो तो मानवयोनि मिलती है | उसका गणित सरल है --
6-7-8 भावों में बुध या शनि हो तो नरक, सूर्य या मंगल हो तो मर्त्यलोक, तथा गुरु-शुक्र-चन्द हो तो स्वर्ग | चन्द्रमा शुक्लपक्षीय हो तभी पुण्यग्रह होता है, वरना पापग्रह है | अतः चन्द्रमा को भी बीच वाला मानना चाहिए | अन्य दो राहू-केतु छायाग्रह हैं, मरणोपरान्त गति में उनका महत्त्व नहीं है | अतः कुल मिलाकर स्वर्ग, नरक एवं मर्त्यलोक बराबर हुए | यह भी पराशर ऋषि का ही मत है | किन्तु यह दीर्घकालीन औसत है | सतयुग में अच्छे लोगों का अपार बहुमत था, अब बुरे लोग अधिक आ रहे हैं |
संसार में कुल मिलाकर 59% नरकगामी हैं, भारत में अनुपात कुछ कम है किन्तु बहुत कम नहीं है | भारत में भी भाजपा के समर्थकों में नरकगामी कम हैं यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, किन्तु भाजपा के समर्थकों में भी जो लोग सनातन धर्मशास्त्र का खुलकर विरोध करते हैं अथवा चुपचाप अवमानना करते हैं उनमें नरकगामियों का अनुपात अधिक है |
मरने के बाद कौन कहाँ जाएगा इसमें मेरी रूचि नहीं है, मेरी रूचि इसमें है कि कौन पापात्मा है और कौन पुण्यात्मा, जिसका निर्धारण करने में पराशर ऋषि वाला मरणोपरान्त गति का नियम रामबाण है | व्यवहारिक जीवन में मैंने पाया है कि यह सूत्र पापियों की पहचान करने और उनसे बचने में बहुत काम की चीज है | किसी की कुण्डली देखते समय सबसे पहले मैं यही देखता हूँ |
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मैंने कब लिखा कि समगोत्री सम्बन्ध का प्रायश्चित है ही नहीं ? मैंने यह लिखा है कि सबके पापों को धोने का मैंने ठेका नहीं लिया है | गुमराह भी वही होता है जिसकी कुण्डली में वैसा योग हो | अनजाने में सगी माता के साथ विवाह को पाप नहीं कहेंगे ? ऐसा ही पाप अनजाने में करने पर ईडिपस ट्रेजेडी तीन खण्डों में सोफोक्लीस ने ढाई हज़ार वर्ष पहले ग्रीस में लिखी थी जिसे शेक्सपियर के सर्वोत्तम ट्रेजेडी से भी ऊँचा दर्जा पश्चिम के आलोचक देते हैं, उसी को मानदण्ड मानकर "क्लासिकल" और "क्लासिक्स" जैसे शब्द बने हैं | हर व्यक्ति के अचेतन मन में सगी माता के प्रति कामवासना दबी होती है जिसे समाज और शिक्षा के कारण व्यक्ति और भी दबाता जाता है -- उसी को फ्रायड ने ईडिपस-काम्प्लेक्स की संज्ञा दी | भारतीय दर्शन में इसे दुर्गम दुर्गा के प्रति आसुरी वासना कहा जाएगा | इसी से मुक्ति मिलने पर मोक्ष प्राप्त होता है | देवी की योनि के प्रति वासना ही बारम्बार असुरों की मृत्यु का कारण है, और अपने कर्मों के अनुसार वे चौरासी लाख योनियों में से किसी न किसी योनि में जाते हैं, वही मृत्यु है जिसे मर्त्यलोक में जन्म कहा जाता है |
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