भारत क्यों खो गया था ?

लेखक- श्री विनय झा
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प्राचीन पद्धति के गुरुकुलों में सभी बच्चों को हर विषय नहीं सिखाये जाते थे, कुण्डली की जाँच करने के पश्चात उनके लिए उपयुक्त विषयों का चयन होता था |
प्राचीन काल के गुरूजी आज की तरह एक ही विषय के "विशेषज्ञ" नहीं होते थे, पण्डितों में शास्त्रार्थ की परिपाटी के कारण सदैव अध्ययन करते रहना पड़ता था, पता नहीं कब कौन आकर गुरुआइ छीन कर चेला बना दे !!
कुछ अनिवार्य विषय होते थे किन्तु वे भी बच्चे या बच्ची के वर्ण आदि के अनुसार नियत किये जाते थे | उदाहरणार्थ, ब्राह्मण बालक को अपनी शाखा का वेद एवं समस्त वेदांग तो पढ़ना ही पड़ता था | ज्योतिष के अन्तर्गत गणित था |
मैकॉले के काल में भारतीय शिक्षा पद्धति का सर्वेक्षण करके Adam Report बनी थी जिसमें उल्लेख है कि लगभग संभी गाँवों में गुरुकुल थे और लगभग हर कोई साक्षर था (लड़कियों के बारे में पूर्ण आंकड़ें उपलब्ध नहीं थे)। उसी रिपोर्ट के अनुसार शूद्र और मुस्लिम बच्चों को मन्त्रविद्या का ज्ञान नहीं दिया जाता था किन्तु अन्य सारे विषय पढाये जाते थे | वर्तमान बांग्लादेश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी ब्राह्मणों द्वारा ही आम शिक्षा दी जाती थी, कुछ कायस्थ शिक्षक भी कहीं-कहीं होते थे | मौलवी केवल इस्लाम की आवश्यक शिक्षा ही देते थे, मदरसे बहुत कम थे | केवल बंगाल प्रान्त में एक लाख गुरुकुल थे, जिस हिसाब से पूरे देश में लगभग छ लाख होने चाहिए (मैंने केवल बंगाल की रिपोर्ट पढी, उस समय बंगाल में पूरा बिहार, पूरा असम एवं संलग्न छोटे राज्य, और ओड़िसा के कुछ भाग थे)!! मैकॉले ने लिखा था कि ऐसे शिक्षित और सभ्य देश को गुलाम बनाना संभव नहीं है, अतः भारत की शिक्षा पद्धति को पहले नष्ट किया गया | सारे गुरुकुलों को बन्द कराया गया | एक ही पीढ़ी में संसार का एकमात्र पूर्ण साक्षर देश लगभग निरक्षर बन गया |
एक पीढ़ी के पश्चात धीरे-धीरे ब्रिटिश पद्धति की कुशिक्षा आरम्भ की गयी | ब्रिटिश राज की पाठ्यपुस्तकें मुझे दादाजी के संदूक में मिली, इतिहास की स्कूली पुस्तक बहुत मोटी थी ,आजकल NCERT पतली पुस्तकें छापती है | किन्तु मोटी पुस्तक के हर अध्याय के अन्त में एक ही निष्कर्ष मिलता था -- बाहर से आये लोगों ने इस देश को कुछ सीमा तक सभ्य बनाया किन्तु पुनः यह देश असभ्य बन गया | अन्तिम अध्याय में लिखा था कि संसार की सबसे श्रेष्ठ जाति (अंग्रेज) आ गए हैं, अतः अब हिन्दुस्तान सभ्य बनकर ही दम लेगा ! पूरी पुस्तक का एक तिहाई सिकन्दर के कारण भारत में ग्रीक ज्ञान के प्रसार पर था ! वैदिक युग के इतिहास में वेदों के ज्ञान की चर्चा ही नहीं थी, आर्य आक्रमण के बहाने केवल नस्लवाद था, भारतीयों को सिखाया जाता था कि उनकी नस्ल ही घटिया है, अपना शासन स्वयं वे कर ही नहीं सकते, गुलाम बनने के लिए ही पैदा होते हैं !!
आज भी शिक्षा पद्धति मैकॉले वाली ही है, केवल खुल्लमखुल्ला नस्लवाद वाली बातें हटा दीं गयी हैं वरना लोग सहन नहीं करेंगे, किन्तु मूल बातें वैसी ही हैं ! ब्राह्मण सबपर जातिवाद थोपते थे (जैसे ब्राह्मणों के हाथों में ही तलवार हों !), दूसरों को पढने नहीं देते थे, लोगों को ठगने के लिए वैदिक कर्मकाण्ड गढ़ते थे, यह आज भी पढ़ाया जाता है | यह पढ़ाना उनलोगों के लिए आवश्यक है क्योंकि जबतक ब्राह्मणों का पूर्ण नाश नहीं होता तबतक हिन्दुओं को ईसाई बनाना सम्भव नहीं | दूसरे देशों में ब्राह्मणों की तरह जिद्दी पुरोहित वर्ग नहीं था जिस कारण ईसाई मत आसानी से फैला |
आज हिन्दू-राष्ट्रवाद का ढोल पीटने वाले लोग भी प्राचीन संस्कृति और ज्ञान की समझ नहीं रखते | प्रधानसेवक ने त्रिपुरा के चुनाव प्रचार में कहा था कि भाजपा जीतेगी तो मुख्यमन्त्री के तौर पर त्रिपुरा को "हीरा" मिलेगा | ऐसा हीरा मिला है जो कहता है कि महाभारत में धृतराष्ट्र-संजय संवाद सिद्ध करता है कि उस युग में इन्टरनेट आदि थे ! महाभारत में स्पष्ट उल्लेख है कि संजय को युद्धकाल हेतु दिव्यदृष्टि मिली थी | दिव्यदृष्टि को इन्टरनेट समझने वाले लोग एकाध नहीं है, संघ परिवार में ऐसे बुद्धिमानों की भरमार है जिस कारण शिक्षा प्रणाली में कोई भी मौलिक सुधार असम्भव हो गया है | भारतीय सेना के लिए इजराइल और अमरीका से दिव्यदृष्टि वाले उपकरण मँगाना इनलोगों का ब्रह्मज्ञान है, युद्धकाल में दूसरों पर निर्भर रहना घातक है इसकी परवाह नहीं है ! बताने पर भी ये लोग स्वीकारने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि चीन का एक प्रमुख आयुध आपूर्तिकर्ता इजराइल ही रहा है और वही आयुध चीन से पाकिस्तान को दिए जाते हैं | इजराइल के इन आयुधों का अधिकाँश अमरीकी स्रोत का होता है | इजराइल और अमरीका के अधिकाँश आयुध कारोबार पर यहूदियों का आधिपत्य है जो भारत, चीन और पाकिस्तान आदि सबको आयुध बेचकर मुनाफ़ा कमाते हैं जिसके लिए इन देशों में परस्पर तनाव बढ़ाया जाता है और यहूदियों के आयुध बिकते रहे । इसके लिए अन्धभक्तों की सेना खड़ी कराई जाती है |
ये अन्ध-राष्ट्रवादी लोग ही शिक्षा में सुधार के असली बाधक हैं, यद्यपि स्वयं को "हीरा" समझते हैं | इन्टरनेट के छुटभैयों की कोई औकात नहीं है, मैं उनलोगों की मानसिकता से भी व्यक्तिगत तौर पर परिचित हूँ जिनपर भाजपा को दिशानिर्देश देने का प्रभार है | ये लोग शिक्षा में सुधार न ही करें वही बेहतर, वरना पाठ्यपुस्तकों में 'हीरा' वाली दिव्यदृष्टि भर देंगे !!! इतना ज्ञान रखने वालों को सलाह देना मूर्खता है | सलाह जिज्ञासु को देना चाहिए , अहंकारी को नहीं |
फिर भी एक गुण है -- ये हिन्दुत्ववादी लोग हिन्दुत्व के धार्मिक ग्रन्थों से भले ही दूर रहते हों, शिक्षा में सुधार की आवश्यकता स्वीकारते तो हैं !! नेहरु तो भारत को खोया हुआ मानते थे जिसे वास्को-द-गामा और क्लाइव जैसे समुद्री डाकूओं ने "खोजा", और ज्ञान के क्षेत्र में भारत को मैकॉले के चेलों ने खोजा !
भारत क्यों खो गया था ? ब्राह्मणों ने वेद-इतिहास-पुराण आदि के नाम पर झूठी पुस्तकें लिख दी जिस कारण असली इतिहास खो गया था !! वेद-इतिहास-पुराण आदि में क्या है इसकी सही जानकारी नहीं दी जाती | शिक्षा के बहाने साम्प्रदायिक दुष्प्रचार !!
हिन्दुत्ववादी लोग ऐसा वातावरण तो बना रहे हैं जो भविष्य में शिक्षा-प्रणाली में आमूलचूल सुधार की पृष्ठभूमि तैयार करने में सहायक होगा |
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किसी घटना के काल की ग्रहस्थिति को गोचर कहते हैं जिसका सीमित प्रभाव होता है, किन्तु बहुत से मूर्ख 15-8-1947 की रात भारत का जन्म मानते हैं, जैसे उससे पहले भारत था ही नहीं।

 कुछ भी लिखा है, उस दिन से भारत की कुण्डली नहीं बन सकती | गोचर है | उस दिन सत्ता का हस्तांतरण हुआ था, और जिस पार्टी को हुआ था उसकी मृत्यु विंशोत्तरी के अनुसार हो चुकी है - ओल्ड कांग्रेस |
देशचक्र का विवरण wikidot पर है | प्राचीन यामल तन्त्र की विधि है, दुरुपयोग करने वाले का नाश होता है |


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प्रश्नोत्तरी- 

ये अक्षरसः सत्य है "जबतक ब्राह्मणों का पूर्ण नाश नहीं होता तबतक हिन्दुओं को ईसाई बनाना सम्भव नहीं " ।इसलिए ये धूर्त अब कन्वर्ट होने के बाद भी झूट मूठ का आस्पद 'शर्मा, ठाकुर, चौधरी" इत्यादि लगाने लगे हैं ताकि ये सन्देश जाये की ब्राह्मण भी कन्वर्ट हो रहे हैं । गुरुवर मैंने इन कपटियों के कार्य को देखा है । एक परिवार में भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के बीच मरियम का फोटो डलवा दिया था और ॐ जय जगदीश के जगह ॐ जय ईशा का किताब पकड़ा दिया था । उस परिवार के बच्ची को बिलकुल मानसिक रूप से तैयार कर दिया गया था कन्वर्ट होने के लिए, वो तो ईश्वर कृपा की उसके भाई से मित्र सूचि से संपर्क स्थापित हुआ और बहुत मुश्किल से परिवार को हमलोग कन्वर्ट होने से रोक पाए । अचरज की बात ये कि उस गली में सारे हिन्दू थे लेकिन कोई भी पास्टर के आने जाने का विरोध नहीं किये जबतब की हमलोग नहीं पहुंचे थे । बहुत विकट समस्या है प्रभो ।  ईसाइयों के धर्मांतरण का चक्र आजकल जंगलों को छोड़कर शहरों में धड़ल्ले से चल रहा है। एक मेरे रिश्तेदार का लड़का है उसको कुछ महीनों पहले चार महीनों तक एक वृद्ध ईसाई ब्राह्मण आस्पद उपाध्याय लगाकर उसे बाइबल का हर हफ्ते एक दिन आकर पढ़ा रहा था, जब मुझे पता चला तब मैं भी एक मित्र के साथ गया संयोग से मेरा मित्र भी उपाध्याय ही था तब तक मुझे उस ईसाई का उपनाम नहीं ज्ञात था। जब हम लोगों ने उस ईसाई को कुछ कटु प्रश्न किये तो वो भाग खड़ा हुआ। उस लड़के से बाइबल लेकर गीता की किताब दी। आज सुबह ही मेरे संकुल के गेट से दो युवा ईसाइयों को भगाया और उनसे तुम लोगों ने धर्म तो बदल दिया है लेकिन तुम्हारे बाप नहीं बदलेंगे। ईसाई धर्म परिवर्तन के लिये हर हथकंडा अपना रहे है।

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