गुटबाजी द्वारा नागरिक विदेशी धनपशुओं की इच्छाएं पूरी कर रहे हैं. भला नागरिक क्या करें ?

दंगे रचने वालों के लिए तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है !!

क्या दंगाइयों को ये मालूम है कि जिनकी आजीविका उजाड़ दी गयी एवं जिन निरपराध लोगों को तमाम तरह का नुक्सान इस आन्दोलन में हुआ, उसका भरपाई क्या दंगाई और उनके राजनैतिक एवं विदेशी मालिक करेंगे? उन निरपराधों को क्या पता कि दलितों के आंदोलन सिर्फ राजनीतिक दलों का षडयंत्र था..!
वास्तविक वंचितों का ही घर उजाड़ दिया गय़ा, लूटपाट भी ऐसे आंदोलनों का हिस्सा होता है ये बात कोई नहीं समझेगा !
वास्तविक वंचितों का ही घर उजाड़ दिया गय़ा, लूटपाट भी ऐसे आंदोलनों का हिस्सा होता है ये बात कोई नहीं समझेगा !

वो भी ये जानते हुए कि तुम हमेशा शासित किये गए हो और उनके योजना पूर्वक तुम यदि बंटे रहे तो आगे भी चिरकाल तक शासित ही रहोगे !!

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने उपरोक्त घटना को अंजाम देने में वामपंथी चरमपंथियों का उपरोक्त “दलित-हिंसा” में हाथ बताया है. आरएसएस ने जिग्नेश मेवानी, उम्र-खालिद एवं रोहित-वेमुला की माताजी के ऊपर आरोप लगाया है.
जिग्नेश मेवाणी का भीमा कोरेगांव के सन्दर्भ में भाषण यहाँ सुने जिसमे किसी तरह की उकसाने वाली बात नहीं कही गयी है. उन्हें आरएसएस इस तरह प्रचारित कर रहा है जिससे मेवानी को दलितों का अगला मसीहा मान लिया जाए और भविष्य में वह भी विदेशी धन्पिशाचों के इशारों पर कार्य करे. : https://www.youtube.com/watch?v=tZuQlXspi2M




दो सौ साल पहले भीमा नदी के किनारे बसे कोरेगाँव में मराठा साम्राज्य और अंग्रेजों के बीच अंतिम युद्ध हुआ था जिसके बाद वहां अंग्रेजों का साम्राज्य कायम हुआ. इस युद्ध में शहीद हुए लोगों की समृत्ति में अंग्रेजों ने एक पाया का निर्माण किया. इस पाए में कुल उनचास नाम हैं जिसमे बाईस नाम महारों के हैं.

दरअसल सन १८५७ में पूरे भारतवर्ष में उठे अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने अपनी सेना में भारतीयों की भर्ती की नीति बदल डाली, अंग्रेजो ने शारीरिक संरचना योद्धा की तरह रखने वाले एवं उनकी तरह से रहने वाले लोगों को एक नाम दिया जिसे एक विशिष्ट नाम दिया गया “मर्शियल रेस” का.

अंग्रेजों ने १७५७ से लेकार सभी लडाइयां अंततः जीतीं, वे सभी पेशवाओं के विरुद्ध नहीं थीं बल्कि अपने साम्राज्य की स्थापना के लिए थीं न की हिन्दुओं के विरुद्ध, जिसमे इस समय के समाज के लगभग सभी समुदायों से लोग शामिल थे. अतः, कभी भी ऊपरी समुदायों के खिलाफ युद्ध नहीं लड़ा गया.

इसी तरह से भारत को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने अपनी अन्य चालों के अंतर्गत बंगाल का विभाजन कर दिया जिसमे पूर्वी बंगाल को मुस्लिम-बहुल और पश्चिम बंगाल को हिन्दू बहुल बनाया जाना अंग्रेजो की सोची समझी राजनीति का हिस्सा थी. बाद में उन्होंने सन १९४७ के समय मुस्लिम नेताओं को काफी शह दिया जिसके आधार पर पाकिस्तान और भारत का निर्माण हुआ. उस समय पूरे भारत में मुस्लिमो की जनसँख्या पंद्रह प्रतिशत हुआ करती थी एवं आज भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अमेरिका ने अपनी सेना द्वारा अधिग्रहित किया हुआ है, जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर बोला जाता है.

अतः महार-पेशवा के मध्य युद्ध की योजना बनाने वाले लोगों ने एक झूठ का निर्माण किया, जिससे हिन्दुस्तान के सामाजिक विन्यास को पूर्णतया तोडा जा सके, क्योंकि नए नए आंदोलनों को चलाने के लिए नए नए झूठ को सच की मान्यता देना परमावश्यक हो जाता है.
कई दलित संगठनो ने अंग्रेजों की विजय के लिए इस झड़प का समर्थन भी दिया है और ये ब्राह्मण समुदाय का विरोध करते हैं. लेकिन ये शायद भूल रहे हैं कि अंग्रेजों की हड़प नीति का एक हिस्सा ये भी था कि बिना ब्राह्मणों द्वारा कराये संस्कारों के तहत हुए संस्कार हिन्दुओं के नहीं माने जाते, और तब हिन्दुओं के संस्कारों के लिए इसाई पादरी आगे आयेंगे.

अभी सभी हिन्दुओ के खिलाफ इन्होने जिहाद छेड़ दिया, सभी हिन्दू को गाली देने लगे तो सभी हिन्दू एक हो जायेगा और इनको तबाह कर देगा, तो इन्होने जेशुआ प्रोजेक्ट बनाया जिसके तहत हिन्दू जातियों में ब्राह्मणों के लिए इतनी नफरत बढ़ाओ की अन्य हिन्दू ब्राह्मणों के पास किसी भी काम के लिए जाना बंद कर दें और धर्मान्तरण के दरवाजे खुल जाएं ।
सबसे पहले ईसाई मिशनरी Robert Caldwell ने आर्यन-द्रविड़ियन थ्योरी बनाई ताकि दक्षिण भारतीयों को अलग पहचान देकर धर्मान्तरण किया जाए, जिसमे उत्तर भारतीयों को ब्राह्मण आर्यन दिखाया गया, इनका एजेंडा यहां खत्म नहीं हुआ । इसके बाद दूसरे मिशनरी और संस्कृत विद्वान John Muir ने मनुस्मृति को एडिट किया, इसमें वामपंथियों एवं गोवा-महाराष्ट्र-कर्नाटक के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले अमेरिकी अर्थात चित्पावन ब्राह्मणों ने मदद की. वे स्वयं को अमेरिकी ब्राह्मण मानते हैं और हर अधर्म को धर्म मानते हैं. ये अपने को गोवा का निवासी तेरह सौ वर्ष पहले से बताते हैं और ये अपने को अमेरिकी यहूदियों का भारतीय रक्त मानते हैं. खैर.
ब्राह्मण विरोध, सनातन विरोध का ही छद्म नाम है, क्योंकि ब्राह्मणवाद, मनुवाद तो बहाना है; असली मकसद हिन्दू धर्म को मिटाना है ।
आज से 200 साल पहले पुणे के नजदीक भीमा कोरेगाँव नामक जगह पर अंग्रेजो व पेशवाओं की जंग हुई थीं, अंग्रेजों की तरफ से ८३४ के लगभग सैनिक जिनमे ५०० के लगभग महार थे . आज म्हार दलित माने जाते हैं. ये कहा जाता है की मराठों एवं दलितों का हमेशा से झगडा चलता आ रहा है.
ये कहा जाता है कि पेशवाओं के खिलाफ महार लड़े और पेशवा अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे थे, इसीलिए महारों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी , पेशवा देशप्रेमी थे और महार अंग्रेजों के लिए लड़े इसलिए वे देशद्रोही थे. पेशवा की फ़ौज पच्चीस हजार की थी, जिसमे बीस हजार घुड़सवार थे, पांच हजार पैदल सिपाही थे. अंग्रेजों के पास मात्र आठ सौ चौतीस सिपाही थे. अंग्रेजों ने पेशवा को हरा दिया, तब जिन महारों की शाहदत हुई, उसे महार लोग शहीद हुए महार को श्रद्धांजलि देने के लिए एक दिन को मनाते हैं और अंग्रेजों ने अपनी इस जीत की लिए एक स्मारक का निर्माण कराया.
वस्तुतः, इस युद्ध के बाद अंग्रेजों ने महारों को अपने सेना में भर्ती करना बंद कर दिया था और तब तक बंद ही रखा जब तक कि प्रथम विश्व युद्ध शुरू न हो गया.

कहने का अर्थ ये है कि १ जनवरी २०१८ को जो झगडे महार-हिन्दू हुआ, वो दरअसल हिन्दू बनाम महार नहीं है, ये हिंदुत्व बनाम दलित या मराठा बनाम दलित हो सकता है.

दरसल ये सब जनता को उनकी मूल समस्याओं से ध्यान हटाकर बेरोजगार बढाने के लिए उलझाने वाला एक षड्यंत्र है.












क्रिप्टो-क्रिस्चियन महारों की इस थ्योरी में बहुत बड़ा झोल है कि पेशवा उन्हें अछूत बना के रखता है। ये कहानी सिर्फ उन्होंने अपनी गद्दारी छुपाने के लिए बनाई।

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भारत के “सेक्युलर” मीडिया और “सेक्युलर” नेताओं का कहना है कि 1 जनवरी को कोरेगाँव “उत्सव” के अवसर पर भगवा आतंकियों ने दलितों पर आक्रमण कर दिया जिस कारण एक दलित की मृत्यु हो गयी, अतः इस “दलित उत्पीड़न” के विरोध में अगले दिन पूरे महाराष्ट्र को ठप्प करने की घोषणा की गयी |
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उपरोक्त संघर्ष सनसवाडी गाँव में हुआ जो पेशवा और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच युद्धस्थल कोरेगांव के पास है|
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मरने वाले व्यक्ति का नाम है राहुल फतंगले जो उसी सनसवाडी गाँव का बासिन्दा था | उसके सिर में पत्थर से चोट लगी जिस कारण उसकी मृत्यु कुछ काल के पश्चात हुई | दलितों का जुलुस तब उस गाँव से होकर गुजर रहा था जिसपर कथित आक्रमण शिवाजी और पेशवाओं के समर्थक मराठा ब्रिगेड ने किया ऐसा सेक्युलर मीडिया का कहना है | पत्थरबाजी से पहले वाद-विवाद हुआ था जिसपर बात बढ़ी, यह बात भी मीडिया में आयी है |
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राहुल फतंगले के टी-शर्ट पर शिवाजी का नाम था | अतः वह मराठा ब्रिगेड के साथ था, अम्बेडकरवादियों के साथ नहीं | तो क्या मराठा ब्रिगेड ने अपने ही आदमी को मार डाला ?
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शिवाजी ने कभी जातिवाद नहीं किया | सभी जातियों के साथ समान बर्ताव करते थे और बहुत से मुसलमान भी उनकी सेना में थे | कोरेगाँव के युद्ध में “मनुवादी” मराठा सेना में मरने वाले अधिकाँश सैनिक भाड़े के अरब सैनिक थे | किन्तु हिन्दू-विरोधियों ने तय कर लिया है कि मराठा साम्राज्य को अत्याचारी मनुवादी सिद्ध करना है, भले ही झूठ पर झूठ बोलना पड़े |
इतना तो स्पष्ट है कि मरने वाला व्यक्ति उस जुलुस के साथ नहीं जा रहा था, बल्कि अपने गाँव में था | सनसवाडी गाँव के बासिन्दे पर पत्थर किसने फेंका ?
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राहुल फतंगले की हत्या की प्राथमिकी में पुलिस ने “ब्लू झण्डे वालों” को अभियुक्त बनाया है |
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ब्लू झंडा RPI (रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इण्डिया) का है जिसकी स्थापना भीमराव अम्बेडकर ने SCF (शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन) को बन्द करने बाद किया था | RPI में कई गुट हो गए, किन्तु वे सब भीमराव अम्बेडकर के ही समर्थक हैं | उपरोक्त समारोह के आयोजक थे प्रकाश अम्बेडकर जो RPI के एक गुट के नेता हैं | इनके लोगों ने ही राहुल फतंगले की हत्या की और फिर इसी पार्टी ने घोषणा की कि ऊँची जाति के भगवा झण्डे वालों ने दलित की हत्या कर दी जिसके विरोध में महाराष्ट्र बन्द का आह्वान किया | कांग्रेस और अन्य “सेक्युलर” पार्टियों ने झट समर्थन दे दिया | पूरी योजना पहले से तैयार थी | वरना जुलुस के हाथ में पत्थर कहाँ से आ गए ? जिग्नेश मेवाणी ने योजना का खुलासा भी कर दिया था |
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शिवाजी द्वारा स्थापित हिन्दू राज्य की अंग्रेजों द्वारा पराजय का “उत्सव” RPI मनाती है जिसमें राहुल गांधी के मित्र जिग्नेश मेवाणी ने “सड़कों पर लड़ाई” का जो भाषण दिया उसका प्रचार तो मीडिया में हुआ है, किन्तु मेवाणी के भाषण में उससे भी खतरनाक एक और बात कही गयी थी — “पहले उनलोगों (ऊँची जाति वालों) ने हमपर हमला किया (हमें अछूत बनाकर), अब हमारे लिए अवसर आया है उनपर हमला करने का (सडकों पर लड़ाई करके)” | इसका अर्थ यह है कि ऊँची जाति वाले सभी लोगों से सडकों पर लड़ाई द्वारा बदला लेना है ताकि “जाति-व्यवस्था” समाप्त हो जाय | जिग्नेश मेवाणी ने स्पष्ट कहा कि चुनावी राजनीति से जाति-व्यवस्था समाप्त नहीं हो सकती, इसके लिए सड़कों पर लड़ाई ही रास्ता है |
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दलितों और पिछड़े लोगों को जातीय आधार पर वोटबैंक बनाकर संगठित करने से जाति-व्यवस्था समाप्त हो जायेगी ? इनकी मानें तो हाँ – क्योंकि सडकों पर लड़ाई करके सभी ऊँची जाति वालों को समाप्त कर दिया जाएगा तो केवल दलितों और पिछड़े लोगों की “प्रगतिशील” जातियाँ और मुसलमान, ईसाई, बौद्ध आदि ही रह जायेंगे !
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मनुस्मृति की वर्ण-व्यवस्था को जातिवाद कहकर गरियाने वालों को पता है कि वर्ण-व्यवस्था केवल मनुस्मृति में ही नहीं है, बल्कि ऋग्वेद से लेकर गीता जैसे सनातन धर्म के सभी ग्रंथों में है | अतः सनातन धर्म को ही मिटाना है | ऐसे लोगों को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि गीता में श्रीकृष्ण ने वर्ण-व्यवस्था का समर्थन किया और भगवत्-प्राप्ति हेतु ब्राह्मण से लेकर चाण्डाल तक सबको समान अधिकार दिया |
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समाधान:
हमारा प्रस्तावित समाधान है देश भर में पारदर्शी लोकतान्त्रिक प्रशासनिक व्यवस्था के लिए पारदर्शी शिकायत प्रणाली को प्रशासनिक कार्यवाही में संलंग्न होना है, इसके साथ ही हमें राईट-टू-रिकॉल-विधायक, संसद, मंत्री, मुख्यमत्री, पुलिस प्रमुख इत्यादि. हिन्दू समुदाय को मजबूत करने वाले
‘राष्ट्रीय हिन्दू देवालय प्रबंधक ट्रस्ट’ के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475746769184974
एवं भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट’ के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475732095853108 ड्राफ्ट को गजट में पकाशित कर क़ानून का रूप अतिशीघ्र दिया जाना परमावश्यक है.
पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475756632517321

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” माननीय सांसद/विधायक महोदय, मैं आपको अपना एक जनतांत्रिक आदेश देता हूँ कि‘ “पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475756632517321 ”
को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से इस क़ानून को लागू किया जाए, नहीं तो हम आपको वोट नहीं देंगे.
धन्यवाद,
मतदाता संख्या- xyz ”
इसी तरह अन्य ड्राफ्ट के लिए भी आदेश भेज सकते हैं .

ट्वीट करने का तरीका: होम में जाकर तीन टैब दिखेगा, उसमे एक खाली बॉक्स दिखेगा जिसमे लिखा होगा कि “whats happening” जैसा की फेसबुक में लॉग इन करने पर पुछा जाता है कि आपके मन में क्या चल रहा है- तो अपने ट्विटर अकाउंट के उस खाली बॉक्स में लिखें ” @PMO India I order you to print draft “TCP draft” : fb.com/notes/1475756632517321 in gazette notification asap” . इसी तरह अन्य ड्राफ्ट के लिए भी आदेश भेज सकते हैं .
बस इतना लिखने से पी एम् को पता चल जाएगा, सब लोग इस प्रकार ट्विटर पर पी एम् को आदेश करें.

राईट टू रिकॉल, ज्यूरी प्रणाली, वेल्थ टैक्स जैसेे क़ानून आने चाहिए जिसके लिए, जनता को ही अपना अधिकार उन भ्रष्ट लोगों से छीनना होगा, और उन पर यह दबाव बनाना होगा कि इनके ड्राफ्ट को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दें, अन्यथा आप उन्हें वोट नहीं देंगे.
अन्य कानूनी ड्राफ्ट की जानकारी के लिए देखें fb.com/notes/1479571808802470
ब्राह्मण के लिए कुछ अंग्रेजों द्वारा लिखित बातें जो उन्होंने हिंदुस्तान में अपने कार्यकाल के समय देखा:
Alfred Lyall was a British civil servant, literary historian and poet. He joined the Indian Civil Service in 1856.He was there when the Indian Rebellion of 1857 occurred. This was the time when Britishers started intensifying divide and rule strategy.
During his tenure, he observed following:
“…more persons in India become every year Brahmanists than all the converts to all the other religions in India put together… these teachers address themselves to every one without distinction of caste or of creed; they preach to low-caste men and to the aboriginal tribes… in fact, they succeed largely in those ranks of the population which would lean towards Christianity and Mohammedanism if they were not drawn into Brahmanism…” [1]
John Campbell, officer during 1871-72, was also afraid of Brahmins.[2] He objected to Brahmins facilitating upward mobility: “…the Brahmans are always ready to receive all who will submit to them… The process of manufacturing Rajputs from ambitious aborigines (tribals) goes on before our eyes.”
[4] Don’t miss to read 100 years of a hoax
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जय हिन्द, जय भारत, वन्दे मातरम् ||
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.