भारत को जेरुसलम के लिए US रेजोल्यूशन के विरोध के साथ साथ सैन्य मामले में आत्मनिर्भरता जरूरी है

अगर अमेरिका का अगला राष्ट्रपति पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान का अभिन्न अंग घोषित करने वाला रिसोल्यूशन ले आए तो क्या भारत उस पर भी पॉजिटिव वोट करे? दूसरे देश भी फटे में सर दें? अतः भारत को इसका विरोध करना ही था.

खैर….इजराइल का इतिहास इस लेख के अंतिम हिस्से में दिया गया है. पहले भारत के सापेक्ष में इजराइल का प्रभाव और उसका समाधान देखते हैं.


दो कौड़ी के इजराइल के बलपर भारत को मजबूत बनाने का सपना देखते हैं, बजाए इसके कि भारत को आत्मनिर्भर बनाया जाए. आज भारत संसार में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक होने की डींग बड़े बेशर्मी से हांकता है, युद्ध काल में हथियार देने वाले देश यदि धोके दे दें जैसे की उन्होंने पहले भी कारगिल वॉर के वक्त दे दिया था, तब हम क्या करेंगे? हम मंगल्यान बना सकते हैं, लेकिन राइफल की गोली भी विदेश से मंगवाते हैं—-क्योंकि कमीशन-खोरी है.
हथियार के विश्व-व्यापार पर यहूदियों का कब्ज़ा है, वे पाकिस्तान को भी हथियार दे देते हैं और भारत को भी. उनका फायदा इसी में है कि भारत और पाकिस्तान एवं चीन लड़ते रहे और यहूदियों के हथियार बिकते रहे.
हमारे नेताओं और ऑफिसर्स के विदेशी खातों में कमीशन का पैसा अधिकांशतः यहूदी ही देते हैं, संसार की अधिकांश बड़ी कंपनियों पर यहूदियों का ही कब्ज़ा है. भारत के सारे सेठ और हर पार्टी के अधिकांश नेता उनके ही नौकर हैं, मीडिया उनकी गुलाम है.

भारतीय सेना को सोनिया ने नष्ट करने का षड्यन्त्र रचा, वाजपेयी जी ने रक्षा के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया था (इन्दिरा गाँधी की तरह) जिसे मनमोहन राज में रोका गया, लेकिन मोदी ने 28 बन्द पड़े रक्षा कारखानों(जो सोनिया ने बंद करवा दिए थे) को फिर से खुलवाया, परन्तु आत्मनिर्भर बनने में समय लगेगा जिससे पहले आवश्यक रक्षा सामग्री का आयात अनिवार्य है. आज संसार के अधिकाँश हथियार कारोबार पर यहूदियों का कब्जा है | असली इस्लामी आतंकियों पर इजराइल कभी आक्रमण नहीं करता, केवल अमरीका विरोधियों से लड़ता है |


125 करोड़ के भारत को 60 लाख के इजराएल की सहायता चाहिए, ऐसा कहने वालों को चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए!! ब्रह्मोस मिसाइल, हाइड्रोजन बम और मंगलयान बना सकते हो जिसकी क्षमता इजराइल में नहीं है, लेकिन सेना के लिए जूते और बुलेट इजराएल से खरीदोगे — कमीशनखोरी के लिए !! और बात करोगे इजराएल से सहायता की !!


जबतक इस देश के लोग धर्म पर चलते थे तबतक हर क्षेत्र में अग्रणी थे, धर्म को त्यागने के कारण गुलाम बने, धर्म को मानने के कारण नहीं.
भारत को स्वदेशी हथियारों के निर्माण में में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475760442516940
न्याय मिलने में इतनी देरी लगती है कि भ्रष्ट न्याय व्यवस्था ही मानव-हत्यारा बनने को लोगों को मजबूर कर रही है. ये भ्रष्ट सरकारी एवं न्यायिक प्रशासनिक सेवा ही हमें लोगों का हत्यारा बनने पर मजबूर करने वाली है, जिसके चलते अमेरिका भारत-सरकार को साबित कर सके, कि तुम शासन चलाने के योग्य नहीं हो, अतः, संसद हमारे हवाले करो.
स्वदेशी उद्योगों में कार्य-क्षमता बढाने के लिए न्याय प्रणाली में ज्यूरी प्रणाली का आना अत्यावश्यक है, जिससे लोगों को अपने उद्योगों सहित सभी मामले में स्वयं ही निर्णय लेने का धिकार होगा और जैसा की सर्ववीदित है कि किसी अन्य नागरिक के लिए जब फैसला लेना होता है तो बहुत सोच समझ कर फैसला दिया जाता है, जो अभी केवल भ्रष्ट जज और भ्रष्ट वकील तय करते है. साथ ही वेल्थ टैक्स के इस नए संस्करण के क़ानून का रूप दिए जाने से जमीनों के मूल्य अत्यंत कम हो जायेंगे जिससे नागरिक आसानी से अपना उद्योग लगा सकेंगे.
संपत्ति कर के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1476541592438825
ज्यूरी प्रणाली के लिए ड्राफ्ट यहाँ देखें- fb.com/notes/1475753109184340
पब्लिक में नार्को टेस्ट – बलात्कार , हत्या , भ्रष्टाचार , गौ हत्या आदि के लिए नारको टेस्ट का कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1476079982484986
यदि भारत में हथियारबंद समाज के अंतर्गत लोग रहें, तो लोग आपस में नहीं लड़ेंगे क्योंकि दो गुंडों का समूह शायद ही कभी लड़ता है, क्योंकि वे आपस में जानते हैं कि सबके पास हथियार है तो कोई किसी को उसके घर से निकाल कर भागने पर विवश नहीं करा सकेगा.
हथियारबंद नागरिक समाज की रचना के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475761792516805
सबूतों को पारदर्शी माध्यम से सार्वजनिक होने हेतु पारदर्शी शिकायत प्रणाली होना अत्यावश्यक है, जिसमे कि लोग निडर होकर सबूत इत्यादि सार्वजनिक कर प्रधानमन्त्री की वेबसाइट पर रख सकें जिसे अन्य सभी नागरिक बिना लॉग इन के देख सकें. पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475756632517321
अमेरिका जो ऊँची सोच का दम्भ रखता है शायद उसे भारत की न्याय परंपरा से अधिक संकीर्ण सोच से ग्रसित और गलत ताकतों द्वारा पोषित मेनस्ट्रीम मीडिया के कुछ प्रकाशनों पे ज्यादा ही भरोसा है. अतः, भ्रष्ट मीडिया को नियंत्रण में रखने के लिए दूरदर्शन चैरमैन के ऊपर राईट-टू-रिकॉल का कानून लागू करवाना चाहिए, जिससे दूरदर्शन सच समाचार दिखलाने को बाध्य हो, यदि जनता सच जानने के लिए दूरदर्शन ही देखेगी तो अन्य चैनल का मूल्य अपने आप ही कम हो जाएगा. राईट टू रिकॉल दूरदर्शन अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475755192517465
सबूतों को पारदर्शी माध्यम से सार्वजनिक होने हेतु पारदर्शी शिकायत प्रणाली होना अत्यावश्यक है, जिसमे कि लोग निडर होकर सबूत इत्यादि सार्वजनिक कर प्रधानमन्त्री की वेबसाइट पर रख सकें जिसे अन्य सभी नागरिक बिना लॉग इन के देख सकें. पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475756632517321

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” माननीय सांसद/विधायक महोदय, मैं आपको अपना एक जनतांत्रिक आदेश देता हूँ कि‘पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475756632517321
को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से इस क़ानून को लागू किया जाए, नहीं तो हम आपको वोट नहीं देंगे.
धन्यवाद,
मतदाता संख्या- xyz ”
इसी तरह अन्य ड्राफ्ट के लिए भी आदेश भेज सकते हैं .

ट्वीट करने का तरीका: होम में जाकर तीन टैब दिखेगा, उसमे एक खाली बॉक्स दिखेगा जिसमे लिखा होगा कि “whats happening” जैसा की फेसबुक में लॉग इन करने पर पुछा जाता है कि आपके मन में क्या चल रहा है- तो अपने ट्विटर अकाउंट के उस खाली बॉक्स में लिखें ” @PMO India I order you to print draft पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475756632517321 in gazette notification asap” . इसी तरह अन्य ड्राफ्ट के लिए भी आदेश भेज सकते हैं .
बस इतना लिखने से पी एम् को पता चल जाएगा, सब लोग इस प्रकार ट्विटर पर पी एम् को आदेश करें.

राईट टू रिकॉल, ज्यूरी प्रणाली, वेल्थ टैक्स जैसेे क़ानून आने चाहिए जिसके लिए, जनता को ही अपना अधिकार उन भ्रष्ट लोगों से छीनना होगा, और उन पर यह दबाव बनाना होगा कि इनके ड्राफ्ट को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दें, अन्यथा आप उन्हें वोट नहीं देंगे.
अन्य कानूनी ड्राफ्ट की जानकारी के लिए देखें fb.com/notes/1479571808802470
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यहूदियों का इतिहास
फिलिस्तीन बहुत पहले से उस देश का नाम था जो सैकड़ों वर्षों से तुर्क साम्राज्य का प्रांत था. यहूदियों का वहाँ देश बनाने की योजना डेढ़ सौ वर्ष का नहीं, प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्क साम्राज्य के विखंडन के बाद से आरम्भ हुआ. तब अंग्रेजों का वहाँ कब्जा हुआ और उनके द्वारा यहूदियों को वहाँ बसाया जाने लगा, फिलिस्तीनी मुस्लिम वहाँ पहले से रहते थे, प्रवासी नहीं थे. मक्का में एक भी यहूदी नहीं था, यहूदी मदीना में थे. http://www.historylearningsite.co.uk/modern-world-history-1918-to-1980/the-middle-east-1917-to-1973/palestine-1918-to-1948/
अमरीका की सहायता से इजराइल की स्थापना होने से पहले दो हज़ार वर्षों तक इतना कायर समुदाय विश्व इतिहास में कहीं नहीं मिलेगा. दो हज़ार वर्षों तक सूदखोरी के सिवा अन्य किसी क्षेत्र में यहूदियों का योगदान नहीं रहा, शिक्षा में आधुनिक युग में उनकी रुची बढ़ी, जब अपार धन हाथ में आया तब. यहूदी सम्प्रदाय आज से नहीं है, आधुनिक युग से पहले एक भी मेधावी यहूदी का नाम बता दें.सबसे पैसे वाले और पढ़े लिखे यहूदी अमरीका में हैं, इजराइल में नहीं. अमरीकी यहूदियों के नोबेल प्राइज को इजराइल के नाम पर क्यों गिनते हो ? अमरीकी यहूदियों के पास पूरे संसार का धन है. टॉलस्टॉय को नोबेल प्राइज नहीं देंगे, किसिंजर को देंगे — इसमें राजनीति नहीं देखते ?
ये कोई नहीं कहता कि नोबेल प्राइज के लिये नॉमिनेट कौन करता है? सच तो ये है कि ये खुद को ही नॉमिनेट करते हैं और खुद ही नोबेल प्राइज ले जाते हैं । यही कारण है कि इतने सारे नोबेल प्राइज यहूदियों के नाम हैं। यहूदी सिर्फ दूसरों के शोध-पत्रों को चुराना और अपने नाम से पेटेंट कराना जानते हैं – इनमें मेधा नहीं होती … विश्वास न हो तो किसी भी पश्चिमी उच्च शिक्षा के केंद्र में जाकर देखिये , वहाँ मौलिक शोध और विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दू मिलेंगे, कोरियाई मिलेंगे, ईसाई मिलेंगे … पर यहूदी (और मुसलमान) नहीं मिलेंगे। अमरीका में 99% शोध परियोजनाओं के प्रमुख यहूदी और ईसाई होते हैं जबकि उन परियोजनाओं का वास्तविक शोधकार्य करने वाले 80% लोग हिन्दू और चीनी हैं , परन्तु मान्यता और पुरस्कार प्रमुख को मिलता है |
अन्य सारे मजहब बेहूदी हैं और केवल यहूदी ही धर्म है लेकिन केवल कुछ गिने चुने परिवारों के लिए. चचेरी एवं ममेरी बहन से भी शादी यहूदियों ने ही आरम्भ किया था, इस्लाम उसी का छोटा भाई है- ये दोनों सेमेटिक मजहब हैं. वे अपने सगे भी नहीं होते, ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रमुख फाइनेंसर रोथ्सचाइल्ड घराने का नियम है कि अपने निजी परिवार से बाहर विवाह करते ही नहीं है, केवल सगे भाई-बहन में विवाह नहीं करते, किन्तु चचेरे में करते रहे हैं, एक भी विवाह परिवार से बाहर नहीं करते ताकि घर की सम्पत्ति और उसे अर्जित करने के गोपनीय हथकण्डे प्रकाश में न आयें | सभी सेमेटिक समुदायों (यहूदी, इस्लाम, आदि) में इसकी स्वीकृति है, किन्तु रोथ्सचाइल्ड में यह अनिवार्य नियम है !
सेमेटिक लोगों में “धर्म” नाम की कोई चीज नहीं होती, “सम्प्रदाय” होता है और उनके सारे सम्प्रदाय कट्टर, असहिष्णु और कूपमंडूकी होते हैं, संसार के इतिहास में सम्प्रदाय के नाम पर सारे कत्लेआम केवल और केवल सेमेटिक संप्रदायवादियों ने ही कराया, जिनमें सबसे पुराना यहूदी है.
मोहमद ने भी यहूदियों को अपना धर्मभाई माना (जिम्मी कहा था). अन्य सभी सम्प्रदायों में सूदखोरी पाप मन गया- सनातन, इस्लाम एवं इसाई में भी, जिस कारण यहूदियों ने भयंकर सूदखोरी करके पश्चिम एशिया, उत्तर अफ्रीका एवं पूरे यूरोप का अधिकांश धन पिछले २००० वर्षों में लूट लिया, मध्य युग में ये लोग १३% मासिक तक सूद लेते थे, बड़े बेरहमी से. शेक्सपियर का नाटक मर्चेंट ऑफ़ वेनिस यहूदियों द्वारा सूदखोरी के अत्याचार के विरुद्ध ही लिखा गया है. यहूदियों के विरुद्ध असंतोष को ही हिटलर ने इस्तेमाल करके
अपने स्वार्थ में दुरूपयोग किया. आज भी संसार की अधिकांश संपत्ति यहूदियों के ही हाथों में है, हिटलर के अत्याचार का दंड फिलिस्तीन में इजराइल बनाकर दिया. सनातन धर्म का विरोध यहूदियों ने ही आरम्भ किया था. विश्व इतिहास को नष्ट करके झूठी बातें यहूदियों ने ही हर देश में पाठ्यक्रमो में लगवाएं, ईस्ट इण्डिया कंपनी के मालिक भी यहूदी ही थे, खासकर रोथ्स्चिल्ड का घराना, कम्युनिस्ट का मसीहा कार्ल मार्क्स भी यहूदी ही था, ईसा मसीह ने यहूदियों में सुधार का प्रयास किया तो उन्हेई सूली पर टांग दिया और असली बाइबिल को वेटिकेन के चर्च में कैद कर उसकी जगह पररिवाइज्ड बाइबिल लाया गया, और फिर धूर्तता से बाइबिल में ७५% यहूदी कका ओल्ड टेस्टामेंट मिला दिया.
यहूदियों का प्राचीन देवता ELOAH था जिससे अल्लाह नाम से मोह-मद ने पुनर्जीवित किया था, योंकि यहूदी YAH-WAH को पूजने लगे थे जिसे बाद में यहोवाह कहा जाने लगा था. पूजा का तरीका था असुरी बलि (पशु-हिंसा). भारत में भी असुरों ने ही हिंसात्मक तंत्रों का आरम्भ किया.
यहूदी उन्ही की संतान अहिं. यहूदियों की धूर्तता का एक प्रमाण है कि – प्राचीन ग्रीक आर्य परिवार के लोग थे, किन्तु सेमेटिक नस्ल के लाखों लोग ग्रीस में जाकर बस गए थे, जिसके पुरातात्विक सबूत भी हैं. उनके एक कवि का नाम था उम्र जो अरबी नाम है. ग्रीक में इसेहोमर लिखा जाता है.
ग्रीक में आरम्भ का H नहीं बोला जाता, अतः उच्चारण था OMAR जो अरबी नाम है, आर्य नहीं है. उसे ग्रीस का प्राचीनतम महाकवि कहा जाता है. सरासर बकवास है. ग्रीस के आर्य इतिहास को नष्ट करके झूठे मिथकों का निर्माण करके उसे ग्रीक माइथोलॉजी कहकर प्रचारित करते हैं. सुकरात ने प्राचीन ग्रीक संप्र्द्या की फिर से स्थापना का प्रयास किया तो उसे जहर पिला दिया गया. अरब में इस्लाम से पहले यहूदियों का ही बोलबाला था. मोहमद को मक्का वालों ने खदेड़ दिया तो, मदीना के यहूदियों की सहायता से ही मोहमद ने ताकत बधाई और मक्का पर कब्ज़ा किया. इजराइल की पीठ पर अमेरिका न हो तो इजराइल एक दिन भी नहीं टिक सकता लेकिन अमेरिका पर भी यहूदियों का ही कब्ज़ा है- पैसे के बल पर.
कहा जाता है कि हिटलर ने यूरोप के साठ लाख गरीब यहूदियों को मार डाला जो पूर्णतया सच इसलिए नहीं है कि दुनिया के सारे देश सहानुभूति के चलते यहूदियों के साथ दें; जिस कारण सारे धनवान और पढ़े लिखे यहूदी अमेरिका भाग गए और उसे महाशक्ति बना दिया. इस्लाम और इसाई यहूदी से ही निकले हैं. इंटरनेट पर ये प्रचलित है कि असल में ६० लाख यहूदी नहीं मरे गए थे बल्कि death casualties को बढ़ाचढ़ा कर दिखाया गया दुनिया की सहानुभूति लेने के लिए ताकि इजराइल बनने का विरोध न हो । The Holocaust का टाइम पीरियड वर्ल्ड वॉर २ का समय बताया जाता है जबकि ६० लाख मौतों का आंकड़ा 1915 से ही उस समय के अख़बारों में छपना शुरू हो गया था। इसी के सन्दर्भ में ये वीडियो है जिसमे दिखाया गया है कि “six million” का आंकड़ा 1915 से 1938 तक अख़बारों में छपता रहा:
संसार के सभी सम्प्रदाय को मिटाकर सेमेटिक बनाना उन लोगों का लक्ष्य है.
बेरोजगार सड़कछाप यहूदियों के लिए इजराएल बना. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संसार में सबसे अधिक यहूदी अमरीका में रहते थे जिनमें से गरीब यहूदियों को इजराइल भेजा गया, रूस तथा अन्य देशों के गरीब यहूदी भी इजराइल गए | फिर भी आज अमरीका में 57 लाख यहूदी हैं जिनमें प्रायः सबके सब धनवान हैं, और इजराइल में प्रवास के बाद अब 63 लाख यहूदी हो गए हैं जो अमरीकी यहूदियों की तुलना में गरीब हैं .
अमेरिका इजराइल को दलाल की तरह इस्तेमाल करता है. धनिक यहूदियों को गरीब यहूदियों से नहीं, अपने धन से प्रेम है. जब हिटलर गरीब यहूदियों को मार रहा था और धनी यहूदियों को अमरीका जाने का रास्ता दे रहा था, तब धनी यहूदियों के नियन्त्रण (1913 के बाद से) वाले अमरीका ने अपना एक भी सैनिक यूरोप की धरती पर तबतक नहीं उतारा जबतक रूसी सेना बर्लिन के भीतर नहीं घुस गयी. तबतक 60 लाख गरीब यहूदियों की निर्मम हत्या हो चुकी थी, लेकिन रोथ्सचाइल्ड और उसके चेले अमरीका में बैठकर हथियार बेचते रहे और ब्रिटेन आदि ने सदियों से उपनिवेशों को लूटकर जो धन इकट्ठा किया था वह हथियार बेचकर अमरीका ले गए !! जापान ने अमरीका पर आक्रमण किया उसके बाद भी अमरीका ने यह धूर्तता की, वरना वह युद्ध का ढोंग भी नहीं करता, ईसा मसीह का शान्तिदूत बनकर युद्ध से अलग रहकर केवल हथियार बेचता.
RSS वालों की यहूदी-भक्ति:
RSS को सनातन धर्म से नहीं बल्कि केवल “राष्ट्र” से और “मानवता” से मतलब है. जिस राष्ट्र और मानवता का आधार धर्म न हो, उस राष्ट्र से म्लेच्छों के राष्ट्र में क्या अन्तर रहेगा ?
(1) धर्म और सम्प्रदाय में अन्तर आरएसएस वालों को पता नहीं है, सम्प्रदायवाद यहूदियों ने आरम्भ किया, हिन्दुत्व में सम्प्रदायवाद के लिए कोई स्थान नहीं है. यहूदी, इस्लाम, ईसाइयत, आदि धर्म नहीं बल्कि सम्प्रदाय (मजहब) हैं. आरएसएस का ज्ञान उधार का है, भारतीय नहीं.
(2) हिन्दू धर्म सत्य की बुराई नहीं सिखाता, असुरों से लड़ना सिखाता है. अत्याचार और अनाचार सहना ईसाइयत है, आरएसएस मानसिकता से ईसाई हैं, हिन्दू नहीं है.
(3) हर चीज को धर्म के चश्में से ही देखना चाहिए, किन्तु सम्प्रदाय के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. आरएसएस को धर्म की परिभाषा ही पता नहीं है.
(4) इस लेख में अनेक बिंदु हैं, आरएसएस वाले एक भी बिंदु का खण्डन नहीं कर सकेंगे केवल अपनी धर्मविरोधी इसाइयत बकवास को थोपने का प्रयास करेंगे. धर्म की परिभाषा जानते तब इसाइयत का प्रचार नहीं करते. बहुत से हिन्दू की खाल में ईसाई लोग हैं.
संघ की शाखा में लाठी भांजने से इतिहास और वर्तमान का ज्ञान नहीं मिलता, केवल सनातन धर्म को गरियाने की मानसिकता तैयार होती है. हथियारों की कमी दूर करनी है तो अपने देश में क्यों नहीं बनायेंगे ? रक्षा मामले में दूसरों पर निर्भरता आत्मघाती है.
सभ्यता और संस्कृति से अन्धभक्तों को कोई लेना-देना नहीं है. मोदी भूलकर भी रामजन्मभूमिमन्दिर का नाम नहीं ले सकते, लेकिन अम्बेडकर और बुद्ध का महिमामंडन करते रहते हैं, विहिप और बजरंग दल की कमर तोड़ दिए, फिर उनके चेले किस संस्कृति की बात करते हैं ? किन्तु मोदी भारतीय सेना को मजबूत बनाने में लगे हैं जिस कारण उनका समर्थन करना उचित है. सैन्य दृष्टि से आज इजराएल से मैत्री अच्छी बात है. किन्तु यहूदियों से सभ्यता और संस्कृति सीखना पागलपन की पराकाष्ठा है.
कुछ अंधभक्तों के अनुसार यहूदियों में लोकतन्त्र है !!! तब तो सऊदी अरब भी लोकतान्त्रिक है !! इजराइल ने अपने बनने के बाद गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में कैसा “लोकतन्त्र” लागू किया यह अंधभक्तों को पता ही नहीं है. केवल अपनी नस्ल, अपनी जाति और अपने सम्प्रदाय के लिए लोकतन्त्र को लोकतन्त्र नहीं कहते. आज जहाँ इजराइल है वहाँ यहूदियों को इजराइल बनाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. 2700 वर्ष पहले सोलोमन नाम के राजा ने कुछ काल तक राज किया इस अप्रामाणिक मिथक के आधार पर वहाँ यहूदी सम्प्रदायवादी देश फिर से बनाया जाय यह कौन सा “लोकतान्त्रिक” तर्क हुआ ? वह भी इस बहाने कि जर्मनी में हिटलर ने यहूदियों को मारा ! तो जर्मनी के अपराध का दण्ड जर्मनी में इजराएल बनाकर देते!!
मैंने जितनी बातें लिखी हैं सबके पीछे तथ्यों की कमी नहीं है, वाह रे सभ्यता और संस्कृति !! इजराएल भी केवल अपनी नस्ल का ही समर्थक है.
यहूदियों की “महानता” पर न्यूनतम प्रकाश डाला है क्योंकि मुझे पता है उनके जबरदस्त प्रचारतन्त्र के कारण ‘तथाकथित हिन्दुओं’ को मेरी बात पल्ले नहीं पड़ेगी, कभी अध्ययन इमानदारी से करते तब न अपने दिमाग से सोच पाते. लेख के एक-एक बिंदु पर प्रमाणों का भण्डार है.
आरएसएस के लोग लाठिया भांजते हैं पर संध्या वंदन या यज्ञ नहीं करते!! सोमनाथ में भी कभी हज़ारों ब्राह्मण यज्ञ व् संध्या वंदन करते थे पर सोमनाथ विध्वंस के समय किसी ब्राह्मण ने खडग उठाने की भी हिम्मत नहीं की.
भारत के ब्राह्मण जब अपनी संस्कृति सुरक्षित रखना चाहते हैं तो आरएसएस वाले ब्राह्मणवाद के विरोध में अजेंडे सेट करते हैं. वे नहीं जानते कि इजराइल से बेहतर तो अरब के मूसल्वान और अंदमान के नग्न जोरवे वनवासी अपनी सांस्कृतिक पहचान सुरक्षित करने में लगे हैं, उनसे भी सीखिये ! भारत के ब्राह्मण जब ऐसा प्रयास करते हैं तो उनको आपके संघी नेता पोंगापन्थी और जातिवादी कहकर गरियाते हैं, लेकिन उनके रोल मॉडल इजराइली जो कुछ करते हैं वह और भी बुरा है — संसार में नस्लवाद, जातिवाद और साम्प्रदायवाद का आरम्भ यहूदियों ने ही किया था और अपने को अहंकार से Chosen Few कहते थे | ब्राह्मण को तो दूसरे लोग भी श्रेष्ठ कहते थे, गौतम बुद्ध का धम्मपिटक पढ़िए जिसमें बुद्ध ने सच्चे ब्राह्मणों की बहुत प्रशंसा की, और इस श्रेष्ठता का कारण सूदखोरी नहीं था | लेकिन आज भाजपा भी ब्राह्मणों को मिटाने में लग गयी है — वोटबैंक की खातिर | हँसी तब आती है जब यही लोग इजराइल से संस्कृति की पहचान को सुरक्षित करना सीखने की वकालत करते हैं ! किस संस्कृति की ? ब्राह्मणों को मिटाकर सनातन संस्कृति में बचेगा क्या ?
इस लेख का अधिकांश हिस्सा आचार्य श्री विनय झा जी के साथ चर्चे पर आधारित है.
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यह भारत के कुछ अन्धभक्तों का झूठा प्रचार
है जो सोचते हैं कि इजराइल का वैर कुछ मुस्लिम देशों से है तो उसके बारे में थोड़ा
झूठा प्रचार करने से वैकुण्ठ मिल जाएगा | पकिस्तान के विरुद्ध इजराइल
आज शायद साथ दे भी दे, लेकिन उस समय सम्भव नहीं था | उस युद्ध में
इजराइल की कोई भूमिका नहीं थी और इजराइल की स्थापना कराने वाले दोनों प्रमुख देशों
अमरीका और ब्रिटेन ने भारत पर आक्रमण करने के लिए अपने सबसे बड़े जंगी बड़े को रवाना
भी कर दिया था लेकिन रूसी बड़े को भारत ने बुलाकर पहले ही घेड़ाबन्दी करा दी जिस
कारण पाकिस्तान हारा | श्रीलंका भी खुलकर पाकिस्तान का साथ दे रहा था |
CIA से घूस खाने वाले लोगों का गिरोह फेसबुक पर भी सक्रीय है | "इजराइल के दवाब में
1971 में अमरीका पीछे हट हट गया" -- इतना बड़ा झूठ मैंने जीवन में कभी नहीं
सुना था !! उस समय इजराइल का भारत कट्टर विरोधी था और यासर अराफात के
फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चा का समर्थक था | इजराइल की कोई औकात नहीं है
कि अमरीका पर दवाब दे, अमरीका में रहने वाले यहूदियों के नितंत्रण में अमरीका और
इजराइल दोनों हैं |
1971 में अमरीका ने भारत पर आक्रमण करने के लिए अपने सातवें बड़े को विमान-वाहक-पोत "Enterprize" के नेतृत्व में भेज दिया था जिसकी सहायता में ब्रिटेन ने भी अपने युद्धक पोत "Eagle" के नेतृत्व में नौसेना भेजी और चीन पर अमरीका ने दवाब डाला कि वह भी पाकिस्तान की सैन्य सहायता करे, किन्तु इन्दिरा गाँधी को पहले से पता था जिस कारण गुटनिरपेक्षता को ताक पर रखकर सोवियत संघ से मैत्री सन्धि उसी वर्ष की जिसमें फौजी सहायता की शर्त भी थी, और अमरीकी बड़े को रोकने के लिए दो सौ सोवियत पनडुब्बियों को बुलाकर बंगाल की खाड़ीकी घेड़ाबंदी करा दी | 3 दिसम्बर को पाकिस्तान ने अमरीकी सहायता से उत्साहित होकर भारत पर आक्रमण कर दिया और दुसरे दिन UNO में अमरीकी प्रतिनिधि जॉर्ज बुश (जो बाद में राष्ट्रपति बने) ने युद्धविराम का प्रस्ताव दिया जिसपर सोवियत संघ ने वीटो कर दिया -- क्योंकि भारत और सोवियत संघ ने तय कर लिया था कि बांग्लादेश को आज़ाद कराना है, जिसका कारण यह था कि 24 लाख हिन्दुओं का कत्लेआम पाकिस्तानी सेना कर चुकी थी और एक करोड़ हिन्दू भारत आ चुके थे | मीडिया उन्हें "बंगाली" कहती थी | पाकिस्तानी सेना बंगाली मुसलमानों को नहीं मारती थी क्योंकि तब पाकिस्तानी सेना भी विद्रोह कर देती, केवल हिन्दुओं को मारना था ताकि पूरे पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तानियों का बहुमत हो जाय | इतना बड़ा कत्लेआम विश्वयुद्ध के बाद नहीं हुआ था, लेकिन दुःख कि बात है कि अमरीका से घूस खाने वाले लोग जानबूझकर सच्चाई के विरुद्ध झूठा प्रचार कर रहे हैं | बौद्ध श्रीलंका ने भी अमरीकी दवाब के कारण पाकिस्तान की खुलकर सहायता की वरना पाकिस्तानी वायुयान बांग्लादेश पँहुच ही नहीं पाते | बांग्लादेश बनने के कारण क्रोधवश किसिंजर ने सभी भारतीयों को "bastards" कहा था और राष्ट्रपति निक्सन ने इन्दिरा गान्धी को "कुतिया" कहा था | उसी युद्ध का परिणाम था कि कम्युनिस्ट चीन से पुराना वैर भुलाकर अमरीका ने दोस्ती कर ली और चीन खुलकर पाकिस्तान के समर्थन में बाद में उतर गया -- तब वामपन्थी कौन था, कम्युनिस्ट चीन के दोस्त CIA के एजेंट या लाखों हिन्दुओं की जान बचाने वाली इन्दिरा गान्धी जिनको उस समय वाजपेयी जी ने भी "दुर्गा का अवतार" कहा था लेकिन 24 वर्षों के बाद 1995 में अपनी पार्टी के दवाब के कारण बयान से पलट गए ? उसी युद्ध का परिणाम था कि इन्दिरा गाँधी ने 74 ईस्वी में आणविक विस्फोट करके अमरीका को दूसरी चुनौती दी, जिस कारण उसी जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में "सम्पूर्ण क्रान्ति" आरम्भ की गयी जिन्होंने 1952 में नेहरु के लिए अपनी ही पार्टी के विरुद्ध प्रचार किया था और उसी "सम्पूर्ण भ्रान्ति" के कारण CIA के एजेंट मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री बने तथा लालू मुलायम हुकुमदेव जैसे लोग राजनीति में आगे बढ़ पाए -- जनसंघ के सहयोग से ! भाजपा ने ही विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमन्त्री बनाया जिसने मण्डल कमीशन लागू किया और हिन्दू समाज में फूट डालकर भाजपा के प्रमुख विचारक पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा की नींव खोखली कर दी |
"Russian role in Bangladesh War" लिखकर गूगल सर्च कर लें | उस युद्ध में इजराइल के
किसी भूमिका कि कभी इजराइलियों ने भी डींग नहीं मारी !! उदाहरणार्थ कुछ लिंक हैं :--
(1) https://en.wikipedia.org/wiki/Task_Force_74...
(2) https://www.academia.edu/.../Revisiting_the_1971_USS...
(3) http://www.theworldreporter.com/.../1971-india-pakistan...
(4) Rais, R.B (1987), The Indian Ocean and the Superpowers, Rowman & Littlefield, ISBN 0-389-20695-4.
(5) Blechman, B.M.; Kaplan, S.S. (1978), Force Without War: U.S. Armed Forces as a Political Instrument, Brookings Institution Press, ISBN 0-8157-0985-4.
(6) Francis, Patricia B; Ives, Burditt (2003), The Brown Shoes: Personal Histories of Flying Midshipmen and Other Naval Aviators of the Korean War Era., Turner Publishing Company, ISBN 1-56311-858-0.
(7) THE INDIAN END OF THE TELESCOPE. India and her navy. Vice Admiral (retd) G Hiranandani.Bharat-rakshak.com
(8) Garthoff R.L, B.M. (1994), Detente and Confrontation: American-Soviet Relations from Nixon to Reagan. pp 297–312, Transaction Publishers, ISBN 0-8157-3042-X.
(1) https://en.wikipedia.org/wiki/Task_Force_74...
(2) https://www.academia.edu/.../Revisiting_the_1971_USS...
(3) http://www.theworldreporter.com/.../1971-india-pakistan...
(4) Rais, R.B (1987), The Indian Ocean and the Superpowers, Rowman & Littlefield, ISBN 0-389-20695-4.
(5) Blechman, B.M.; Kaplan, S.S. (1978), Force Without War: U.S. Armed Forces as a Political Instrument, Brookings Institution Press, ISBN 0-8157-0985-4.
(6) Francis, Patricia B; Ives, Burditt (2003), The Brown Shoes: Personal Histories of Flying Midshipmen and Other Naval Aviators of the Korean War Era., Turner Publishing Company, ISBN 1-56311-858-0.
(7) THE INDIAN END OF THE TELESCOPE. India and her navy. Vice Admiral (retd) G Hiranandani.Bharat-rakshak.com
(8) Garthoff R.L, B.M. (1994), Detente and Confrontation: American-Soviet Relations from Nixon to Reagan. pp 297–312, Transaction Publishers, ISBN 0-8157-3042-X.
यह भारत के कुछ अन्धभक्तों का झूठा प्रचार
है जो सोचते हैं कि इजराइल का वैर कुछ मुस्लिम देशों से है तो उसके बारे में थोड़ा
झूठा प्रचार करने से वैकुण्ठ मिल जाएगा | पकिस्तान के विरुद्ध इजराइल
आज शायद साथ दे भी दे, लेकिन उस समय सम्भव नहीं था | उस युद्ध में
इजराइल की कोई भूमिका नहीं थी और इजराइल की स्थापना कराने वाले दोनों प्रमुख देशों
अमरीका और ब्रिटेन ने भारत पर आक्रमण करने के लिए अपने सबसे बड़े जंगी बड़े को रवाना
भी कर दिया था लेकिन रूसी बड़े को भारत ने बुलाकर पहले ही घेड़ाबन्दी करा दी जिस
कारण पाकिस्तान हारा | श्रीलंका भी खुलकर पाकिस्तान का साथ दे रहा था |
आजकल गूगल सर्च द्वारा ऐसी बातों की
जानकारी आसानी से मिल सकती है,
किन्तु अपनी मूर्खता के कारण अन्धभक्तों
को जानबूझकर झूठ बकने की आदत है |
Adarsh Singh को पता ही नहीं है कि 1971 में जिस सोवियत संघ
ने भारत की सहायता की थी उसका अब अस्तित्व ही नहीं है, उसके15 टुकड़े हो चुके हैं | शीत युद्ध का तब
चरम बिंदु था और सोवियत संघ का मुख्य जोर पनडुब्बियों पर ही रहता था | विकिपीडिया के इस
लेख में सोवियत संघ के नष्ट होने के काल (1990) में सभी किस्मों की सोवियत
पनडुब्बियों की संख्याये दी हुई हैं जब तनाव शैथिल्य के कारण सेना पर खर्च घट गया
था, किन्तु तब भी सोवियत संघ की नौसेना में 271 सक्रीय पनडुब्बियाँ थीं
जिनमें तीन चौथाई नाभीकीय थीं ,
दो सौ से अधिक :--https://en.wikipedia.org/wiki/Soviet_Navy#Inventory
किन्तु आज (2017 ईस्वी में) रूसी नौसेना में केवल 63 पनडुब्बियाँ हैं, जिससे अधिक चीन (68) और अमरीका (70) के पास है, और सबसे अधिक उत्तर कोरिया (76) के पास है (http://www.globalfirepower.com/navy-submarines.asp), लेकिन उत्तर कोरिया के पास अधिकांशतः तट के आसपास टहलने वाली सस्ती पनडुब्बियाँ ही हैं, दूरगामी घातक पनडुब्बियों के मामले में आज अमरीका, चीन और रूस लगभग बराबर हैं | किन्तु इन सभी देशों को मिलाकर आज जितनी पनडुब्बियाँ हैं उतनी तो सोवियत संघ के पास 1990 में थीं जब तनाव शैथिल्य के कारण सेना पर खर्च बहुत घट चुका था | कुछ ही दिनों के बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया जिस कारण यह आँकड़ा खुल गया | 1970 में शीत युद्ध चरम पर था और सोवियत संघ का मुख्य सामरिक आधार नाभीकीत शस्त्रों से सज्जित नाभीकीय इन्जन वाली पनडुब्बियाँ थीं जिनकी संख्या गोपनीय थीं | सोवियत नौसेना का मुख्य केन्द्र व्लादिवोस्टोक था जहाँ का लगभग पूरा बेड़ा गुप्त रूप से बंगाल की खाड़ी भेज दिया गया था | सोवियत संघ नहीं चाहता था कि अपने नए मित्र भारत को हार का मुँह देखने दे | अमरीका और खासकर यहूदियों की पूँछ पकड़ कर वैतरणी तरने वाले अन्धभक्त अपनी मूर्खता को राष्ट्रभक्ति समझते हैं, झूठ बकते समय भूल जाते हैं कि 1971 में सोवियत संघ साथ नहीं देता तो 24 लाख हिन्दुओं के बदले सवा करोड़ हिन्दू बांग्लादेश में काट डाले गए रहते | अन्धभक्तों को ही यह मूर्ख देशभक्त समझता है | अन्धे लोग तो अपने ही गोल में गेन्द डाल देते हैं | अज्ञान द्वारा देश की सेवा नहीं की जा सकती |
द्वितीय विश्वयुद्ध में कुल मिलाकर लगभग आठ लाख युद्धक विमान बनाए और नष्ट किये गए (https://en.wikipedia.org/.../World_War_II_aircraft...) , आज उनकी संख्या सौ गुनी घट चुकी है, यद्यपि गुणवत्ता बढी है | शीतयुद्ध के दौरान महाशक्तियों का जो खर्च सेना पर था वह अब बहुत घट चुका है | उस समय अमरीका का जोर विशाल विमानवाहक पोतों पर था और सोवियत संघ का जोर पनडुब्बियों पर था | आज पूरी दुनिया में पाँच हज़ार से भी कम आणविक बम बचे हैं, जबकि बोरिस येल्तसिन ने सत्ता पाने के लिए अमरीका से घूस खाकर 45000 सोवियत अणुबम नष्ट किये थे | भयंकर फौजी खर्चे के कारण ही सोवियत संघ का पतन हुआ था |
किन्तु आज (2017 ईस्वी में) रूसी नौसेना में केवल 63 पनडुब्बियाँ हैं, जिससे अधिक चीन (68) और अमरीका (70) के पास है, और सबसे अधिक उत्तर कोरिया (76) के पास है (http://www.globalfirepower.com/navy-submarines.asp), लेकिन उत्तर कोरिया के पास अधिकांशतः तट के आसपास टहलने वाली सस्ती पनडुब्बियाँ ही हैं, दूरगामी घातक पनडुब्बियों के मामले में आज अमरीका, चीन और रूस लगभग बराबर हैं | किन्तु इन सभी देशों को मिलाकर आज जितनी पनडुब्बियाँ हैं उतनी तो सोवियत संघ के पास 1990 में थीं जब तनाव शैथिल्य के कारण सेना पर खर्च बहुत घट चुका था | कुछ ही दिनों के बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया जिस कारण यह आँकड़ा खुल गया | 1970 में शीत युद्ध चरम पर था और सोवियत संघ का मुख्य सामरिक आधार नाभीकीत शस्त्रों से सज्जित नाभीकीय इन्जन वाली पनडुब्बियाँ थीं जिनकी संख्या गोपनीय थीं | सोवियत नौसेना का मुख्य केन्द्र व्लादिवोस्टोक था जहाँ का लगभग पूरा बेड़ा गुप्त रूप से बंगाल की खाड़ी भेज दिया गया था | सोवियत संघ नहीं चाहता था कि अपने नए मित्र भारत को हार का मुँह देखने दे | अमरीका और खासकर यहूदियों की पूँछ पकड़ कर वैतरणी तरने वाले अन्धभक्त अपनी मूर्खता को राष्ट्रभक्ति समझते हैं, झूठ बकते समय भूल जाते हैं कि 1971 में सोवियत संघ साथ नहीं देता तो 24 लाख हिन्दुओं के बदले सवा करोड़ हिन्दू बांग्लादेश में काट डाले गए रहते | अन्धभक्तों को ही यह मूर्ख देशभक्त समझता है | अन्धे लोग तो अपने ही गोल में गेन्द डाल देते हैं | अज्ञान द्वारा देश की सेवा नहीं की जा सकती |
द्वितीय विश्वयुद्ध में कुल मिलाकर लगभग आठ लाख युद्धक विमान बनाए और नष्ट किये गए (https://en.wikipedia.org/.../World_War_II_aircraft...) , आज उनकी संख्या सौ गुनी घट चुकी है, यद्यपि गुणवत्ता बढी है | शीतयुद्ध के दौरान महाशक्तियों का जो खर्च सेना पर था वह अब बहुत घट चुका है | उस समय अमरीका का जोर विशाल विमानवाहक पोतों पर था और सोवियत संघ का जोर पनडुब्बियों पर था | आज पूरी दुनिया में पाँच हज़ार से भी कम आणविक बम बचे हैं, जबकि बोरिस येल्तसिन ने सत्ता पाने के लिए अमरीका से घूस खाकर 45000 सोवियत अणुबम नष्ट किये थे | भयंकर फौजी खर्चे के कारण ही सोवियत संघ का पतन हुआ था |
उत्तर कोरिया के पास घटिया
पनडुब्बी हैं जिनकी तुलना महाशक्तियों की पनडुब्बियों से नहीं करनी चाहिए यह मैंने
स्पष्ट कर दिया है | यह वेबसाइट असल में http://www.militaryfactory.com/default.asp का हिस्सा है जो
प्रथम विश्व युद्ध से लेकर आजतक के सैन्य मामलों का सर्वोत्तम वेबसाईट है और
विशेषज्ञों द्वारा निर्मित है |
उदाहरणार्थ, यदि आप हिटलर की सेना का
विस्तृत ब्यौरा चाहें तो इस पेज पर मिलेगा जिसमें हिटलर की सेना के हरेक
महत्वपूर्ण शस्त्र आदि का विस्तार से विवरण है :-- http://www.militaryfactory.com/worldwar2/weapons.asp...
शुतुरमुर्गों को सत्य से घृणा रहती है, अपने अज्ञान में तबतक आत्ममुग्ध रहते हैं जबतक कोई लील न जाय | विकिपीडिया में कई बार मूर्ख भी अनाप शनाप लिख देते हैं जिसपर विवाद होता रहता है, लेकिन मैंने जो लिंक दिया है उसमें किसी मूर्ख का विचार नहीं बल्कि विश्वसनीय पाश्चात्य अकादमिक स्रोतों का हवाला है जिसे देखकर भी अन्धभक्त अनदेखा करते हैं क्योंकि उन्हें मेरी बात का हर हालत में विरोध जो करना है ! युद्धकाल में 8 लाख विमान बने जो आज कोई सोच भी नहीं सकता, यह बात मूर्ख को कौन समझाए ? विकिपीडिया के उस पेज पर विशेषज्ञों के ग्रन्थों का हवाला है यह क्यों नहीं दिखा ? BHU में तो ऐसी मूर्खता की शिक्षा नहीं दी जाती, लाठी भांजकर रामराज्य लाने वालों से सीखा है ? इस मूर्ख आदर्श सिंह को अब ब्लॉक कर रहा हूं, जानबूझकर झूठ पर झूठ बके जा रहा है | मैंने जो लिंक दिए हैं उन्हें देखकर कोई भी तय कर सकता है कि वे विश्वसनीय हैं या नहीं |
शुतुरमुर्गों को सत्य से घृणा रहती है, अपने अज्ञान में तबतक आत्ममुग्ध रहते हैं जबतक कोई लील न जाय | विकिपीडिया में कई बार मूर्ख भी अनाप शनाप लिख देते हैं जिसपर विवाद होता रहता है, लेकिन मैंने जो लिंक दिया है उसमें किसी मूर्ख का विचार नहीं बल्कि विश्वसनीय पाश्चात्य अकादमिक स्रोतों का हवाला है जिसे देखकर भी अन्धभक्त अनदेखा करते हैं क्योंकि उन्हें मेरी बात का हर हालत में विरोध जो करना है ! युद्धकाल में 8 लाख विमान बने जो आज कोई सोच भी नहीं सकता, यह बात मूर्ख को कौन समझाए ? विकिपीडिया के उस पेज पर विशेषज्ञों के ग्रन्थों का हवाला है यह क्यों नहीं दिखा ? BHU में तो ऐसी मूर्खता की शिक्षा नहीं दी जाती, लाठी भांजकर रामराज्य लाने वालों से सीखा है ? इस मूर्ख आदर्श सिंह को अब ब्लॉक कर रहा हूं, जानबूझकर झूठ पर झूठ बके जा रहा है | मैंने जो लिंक दिए हैं उन्हें देखकर कोई भी तय कर सकता है कि वे विश्वसनीय हैं या नहीं |
मुसलमानों का जहाँ कब्जा रहा वहाँ
"काफिर" बचे कहाँ ?
यही तो सबूत है इस बात का कि जो हिन्दू
बचे हैं वे गुलाम नहीं थे | तुर्क-पठान काल में जितने मुसलमान सैनिक देश में थे उतने तो
दशनामी अखाड़े के लड़ाकू साधू ही थे,
केवल घोड़ों की कमी थी | औरंगजेब के काल में
मुसलमानों की संख्या उल्लेख करने लायक हुई, उससे पहले केवल एक सैनिक
जाति के रूप में उनकी उपस्थिति थी,
सामाजिक तौर पर नहीं | प्रथम जनगणना के
काल में बांग्लादेश भी हिन्दू बहुल क्षेत्र था | हिन्दुओं की हार का कारण
धार्मिक अवनति थी -- राष्ट्ररक्षा से विमुख बौद्धमत तथा बीभत्स राक्षसी वाममार्ग | किन्तु सब तो वैसे
नहीं थे | जो वैसे पतित थे वे मारे गए या गुलाम बने |
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.