OROP मसले में कांग्रेस की राजनीति :-

OROP मसले में कांग्रेस की राजनीति :-
तीन दिन पहले दिल्ली पुलिस ने गृह मन्त्रालय के नौकरशाह के आदेश पर मेजर जनरल सतबीर सिंह के नेतृत्व में जन्तर मन्तर पर चल रहे धरने को हटाने के लिए जनरल सहित अनेक पूर्व सैनिकों और विधवा तक के साथ धक्का-मुक्की की जो सर्वथा निन्दनीय हरकत थी | NGT ने धरना हटाने के लिए 3 नवम्बर की समय सीमा दी थी, और पुलिस ने बिना पूर्व सूचना के अचानक आक्रमण कर दिया, उन लोगों को अपना सामान तक समेटने का अवसर नहीं दिया | सेना के कई वर्तमान और पूर्व अधिकारियों ने भी ऐसी कार्यवाई का विरोध टीवी पर आकर किया |
किन्तु इसका यह अर्थ नहीं लगाना चाहिए कि मेजर जनरल सतबीर सिंह के बयानों का समर्थन करना चाहिए | OROP मसले पर इनकी मांगों को भाजपा सरकार ने नहीं माना और इनके साथ वार्तालाप करने से इनकार किया तो इन्होने आगामी चुनाव में कांग्रेस का समर्थन करने की घोषणा कर दी ओर कांग्रेस के कार्यालय में भी चले गए | सबसे बुरी बात तो यह है कि OROP आन्दोलन के लिए पूर्व सैनिकों और अधिकारियों का प्रवक्ता बनकर इन्होने बयान दिया है कि सारे पूर्व सैनिक अब कांग्रेस का साथ देंगे | मैंने रिपब्लिक-टीवी पर बहस में इनको अपना पक्ष रखते सुना और देखा, और दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि ये महोदय सरासर झूठ बकते रहते हैं | OROP आन्दोलन की संस्था के प्रमुख ने इनके बयान का विरोध किया है और कहा है कि वह संस्था गैर-राजनैतिक है और संस्था केवल पूर्व सैनिकों के हित के लिए कार्य करती है (https://timesofindia.indiatimes.com/…/articles…/56407653.cms)|

जनरल जसवाल और मेजर जनरल बख्शी जी ने सतबीर सिंह के साथ पुलिस की धक्का मुक्की के मुद्दे पर पुलिस के कदम की भर्त्सना की थी, किन्तु रिपब्लिक-टीवी पर उन दोनों ने कांग्रेस के पक्ष में मेजर जनरल सतबीर सिंह के बयान का विरोध किया और कहा कि भारतीय सेना गैर-राजनैतिक संगठन है |
मेरा मानना है कि भारतीय सेना को राजनीति के आधार पर विभाजित करना देशभक्ति नहीं है |
मेजर जनरल सतबीर सिंह OROP आदोलन की संस्था के पदाधिकारी या प्रवक्ता नहीं है, सरकार इस मुद्दे पर उनसे वार्तालाप क्यों करे ? फिर भी उनकी मांगे सरकार के पास विचाराधीन है, सरकार ने कभी नहीं कहा कि उनकी मांगे नहीं मानी जायेगी | सरकार संसाधन की कठिनाई का तर्क दे रही है | मेरे विचार से यह तर्क अनुचित है क्योंकि बहुत बड़ी राशि का मामला नहीं है और देश के लिए खून बहाने वाले बहुत से परिवारों के कल्याण का मामला है |
परन्तु जिस कांग्रेस ने 1973 से लगातार OROP का विरोध किया वह अब बहती गंगा में हाथ धोने का काम कर रही है और मेजर जनरल सतबीर सिंह कांग्रेस को भाजपा से बेहतर बता रहे हैं तो आश्चर्य होता है ! मेजर जनरल सतबीर सिंह पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं, कांग्रेस ने OROP मसले पर 44 वर्षों तक क्या किया यह उनको अच्छी तरह पता है | भाजपा उनको पूर्व सैनिकों का नेता नहीं मानती है इस बात का उनको क्रोध है | किन्तु इसमें भाजपा का क्या दोष है ? मेजर जनरल सतबीर सिंह को अपना क्रोध पूर्व सैनिकों की संस्था पर उतारना चाहिए जिसने उनको अपना मुखिया अथवा प्रवक्ता नहीं चुना |
अभी गुजरात और हिमाचल में चुनाव का वातावरण है, ऐसे संवेदनशील अवसर पर दिल्ली पुलिस ने जो कुछ किया उससे कांग्रेस को अपनी रोटी सेंकने का अवसर मिल गया है | धरना हटाने के लिए बिना धक्का मुक्की के कोई रास्ता नहीं था क्या ? उनका सामान हटा देते, मेजर जनरल के सिवा बाँकी सबको "आदर" के साथ मर्सीडीज कार में उठाकर ले जाते, सतबीर सिंह को अकेले छोड़ देते धरना करने के लिए, वहां से खाने-पीने का सामान बेचने वाले ठेलों को भी हटा देते, बहुत से रास्ते थे | जिस अधिकारी ने ऐसी हरकत की उसकी अक्ल घास चरने गयी थी | कई महीनों से चल रहे इस धरने की जानकारी राजनाथ सिंह को नहीं थी यह मानने लायक नहीं है, अतः राजनाथ सिंह ने लापरवाही की और इस संवेदनशील मुद्दे से कांग्रेस को लाभ उठाने का अवसर दिया | अभी गुजरात में एक-एक वोट कीमती है |

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