अर्थव्यवस्था सुधार की लड़ाई में जीत विदेशी सेवकों की ही होगी.
जैसे कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान दोनों हार गए थे और अमेरिका जीत गया था, ठीक वैसे ही अर्थव्यवस्था सुधार की मोदी और मनमोहन की लड़ाई में विदेशी धनिक बाजी मारेंगे |
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देश के सभी प्रख्यात अर्थशास्त्री, बुद्धिजीवी और मीडिया लोगो को इस बात में उलझा कर रखना चाहते है, कि मोदी सरकार में टमाटर का भाव, दाल की कीमत, पेट्रोल और रसोई गैस की कीमत, सब्सिडी, बिजली, सड़क, पानी, रोजगार, बगेरह बगेरह का हाल क्या चल रहा है और इसकी तुलना में मनमोहन सरकार में इन सबका क्या हाल था | जागरूक नागरिक भी मीडिया द्वारा चलाये जा रहे सर्कस में व्यस्त है और सोशल मीडिया में कार्टून और चुटकुले जोर शोर से भेजने में लगे पड़े है |
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आलम ये है कि सेक्युलर पार्टियों के आईटी सेल लोगों को राष्ट्रवादियों की विफलताओं के किस्से और चुनावी जुमले भेज कर मजे ले रहे हैं तो दूसरी तरफ राष्ट्रवादी पार्टियों के आई टी सेल सेक्युलर पार्टियों की देशद्रोहिता और मुस्लिम प्रेम की कथाएं और किस्से भेज कर अपनी लाज बचा रहे हैं |
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पूरा देश इसी में व्यस्त है कि कांग्रेस और बीजेपी (=संघ) दोनों में से किसके शासन में महंगाई कम है या थी और किसके शासन में राष्ट्रवाद ज्यादा है या था | तुलना भी कर रहे है तो कैसी कैसी --
१. “अरे भाई कांग्रेस तो बस इतना सा एफडीआई लाई थी, पर ये मोदी तो एफडीआई बस लाये जा रहा है ”
२. “ अरे भाई बता-- कितने जवान मरे कांग्रेस के समय और कितने मर रहे हैं मोदी के समय में “
३. “ अरे कांग्रेस के नेताओं ने तो 10-15 लाख करोड़ का घोटाला किया था और हमारे नेता ने तो सिर्फ एक-दो हजार करोड़ का घोटाला किया तो तुम्हारी जबान बंद नहीं हो रही है | बताओ कहाँ थे तुम 60 सालों तक ?
४. “कितनी नौकरियां गयी कांग्रेस राज में और कितनी गयी मोदी राज में”
और ना जाने क्या क्या?
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लेकिन सभी सेक्युलर और राष्ट्रवादी पार्टियों के कार्यकर्ता और अंधभक्त देश के बड़े मुद्दों पर गूंगे और बेहरे हो जाते हैं |
१. एफडीआई से होने वाला डॉलर पुनर्भरण (repatriation) का खतरा
२. देश में गिरता विज्ञान, गणित और इंजीनियरिंग का स्तर
३. पड़ोसी देशों से घुसपैठियों का लगातार आना और स्थानिक लोगो का कत्लेआम करना
४. इस्लामिक आतंकवाद और मिशनरीज का धर्म परिवर्तन अभियान
५. किल स्विच वाले हथियारों का आयात और स्वदेशी हथियारों की घटिया गुणवत्ता यानी सेना की कमजोरी
६. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों का भ्रष्टाचार
७. जीएसटी में मौजूद मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम और दोहरे करदान के कानून से छोटे व्यापारियों का सामूहिक खात्मा
और ऐसे अनेको बड़े मुद्दे हैं जिनकी तुलना कोई नहीं करना चाहता कि मनमोहन राज में क्या हाल था और मोदी राज में क्या हाल है |
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करेले पर नीम तब चढ़ जाता है जब देश के युवा नागरिक और कार्यकर्त्ता खून इकठ्ठा करना, पेड़ लगाना, नदिया बचाओ योजना, स्वच्छता अभियान में झाड़ू लगाना, शौचालय साफ़ करना, मेराथन दौड़ना, योग शिविर लगाना, रैली निकलना, जोर जोर से नारेबाजी करना आदि में अपना समय और उर्जा बर्बाद कर देते हैं और व्यवस्था परिवर्तन करने वाले प्रयासों को नकार देते हैं | या तो वे किसी नेता या अभिनेता के भक्त बन जाते हैं |
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जिस तरह 1960 के दशक में साउथ कोरिया का तानाशाह “पार्क चुंग ही” अपने देश के विकास के लिए एफडीआई नाम का मूलमंत्र ले आया था (जिसका परिणाम आज ये है कि साउथ कोरिया आज अपनी रक्षा के लिए अमेरिका के हथियारों पर निर्भर है और वहां की 40% से अधिक आबादी ईसाई बन चुकी है), ठीक उसी तरह भारत के उदारवादी और राष्ट्रवादी नेता देश के विकास के लिए एफडीआई का सहारा ले रहे है और नरसिम्हा राव, वाजपेयी और मनमोहन की तरह मोदी जी भी दिन रात बिना रुके देश के अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों, संसाधन और संपत्ति को विदेशी धनिकों को सौपने का काम कर रहे हैं |
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1992 में हमारी अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गयी थी और देश का विदेशी मुद्रा भण्डार लगभग ख़त्म होने की कगार पर था | समाधान निकाला गया--वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण | नतीजा -- बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने स्थानिक लघु और मध्यम स्तर की कंपनियों को बाजार से बाहर कर दिया| भारत के बाजार में हर छोटी से बड़ी वस्तु आज आयातित या विदेशी है और यदि कुछ स्वदेशी भी है तो उसके अन्दर का अधिकतर सामान भी आयतित है सिर्फ उन पर लगे लेबल को छोड़कर |
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आज 25 साल बाद फिर वही स्थिति आने वाली है तो समाधान क्या लाया जा रहा है-- एफडीआई, यानि देश के हर वितमंत्री और प्रधानमंत्री के पास सिर्फ एक ही समाधान बचा है ---विदेशियों की गुलामी |
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देश के सिर से लेकर पाँव तक चले, तो समस्या ही समस्या का गुणगान है और समाधान के नाम पर “अच्छा मेरा नेता चोर तो तेरा नेता महाचोर” यही चल रहा है |
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यदि आप नेता भक्ति और व्यक्ति पूजा से जाग गए हो तो देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए इन प्रस्ताव को लायें--
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१. जीएसटी को सम्पूर्ण रद्द करके जमीनों और उस होने वाले निर्माण (प्रति व्यक्ति 250 वर्ग फीट निर्माण और जमीन से अधिक) पर संपत्ति कर लगाना
२. सभी जमीनों के स्वामित्व की जानकारी नेट पर रखना
३. नागरिकों और सेना के लिए खनिज आमदनी सीधे जमा करना
४. मॉरिशस और अन्य समान ट्रीटी और सेज को टैक्स रहत देने वाले कानूनों को तुरंत रद्द करना
५. सभी सरकारी अधिकारीयों, जजों और मंत्रियों (सिर्फ सेना को छोड़कर) की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक रूप से नेट पर रखना
६. कच्चे तेल और कच्चे माल के अलावा आयात होने वाली सभी निर्मित वस्तुओं पर कस्टम शुल्क और आयत शुल्क 100 से 300 प्रतिशत तक बढ़ाना
७. सभी सार्वजनिक क्षेत्रों की कंपनियों को पूर्ण स्वामित्व वाली भारतीय कंपनी घोषित किया जाए जिसका कोई भी शेयर विदेशी कंपनी या नागरिक ना खरीद सके
८. कारखानों के मालिकों और मजदूरों या सरकार के बीच चल रहे विवादों की सुनवाई और फैसला मतदाता सूची से रैंडमली चुने गए 15 से 1500 नागरिकों की जूरी द्वारा होना चाहिए
९. आयात करने वाले और विदेशी निवेशक अपने डॉलर का प्रबंध स्वयम करें और रिजर्व बैंक या सरकार डॉलर नहीं देगी-ऐसा कानून तुरंत लागू करना
९. पारदर्शी शिकायत /प्रस्ताव प्रणाली (टी सी पी )
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उपरोक्त कानूनों के ड्राफ्ट की लिंक और प्रचार तरीके के लिए कृपया मेरी फेसबुक प्रोफाइल के कवर पिक्चर के विवरण को देखें|
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नोट:- सोनिया-मोदी-केजरीवाल ने, कांग्रेस-संघ-आप पार्टी के कार्यकर्त्ता और समर्थकों ने, सभी प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों ने इन कानूनों का विरोध किया है | प्रमाण--आप उनकी ट्विटर वाल इन कानूनों को लागू करने के लिए पूछ सकते हैं |
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देश के सभी प्रख्यात अर्थशास्त्री, बुद्धिजीवी और मीडिया लोगो को इस बात में उलझा कर रखना चाहते है, कि मोदी सरकार में टमाटर का भाव, दाल की कीमत, पेट्रोल और रसोई गैस की कीमत, सब्सिडी, बिजली, सड़क, पानी, रोजगार, बगेरह बगेरह का हाल क्या चल रहा है और इसकी तुलना में मनमोहन सरकार में इन सबका क्या हाल था | जागरूक नागरिक भी मीडिया द्वारा चलाये जा रहे सर्कस में व्यस्त है और सोशल मीडिया में कार्टून और चुटकुले जोर शोर से भेजने में लगे पड़े है |
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आलम ये है कि सेक्युलर पार्टियों के आईटी सेल लोगों को राष्ट्रवादियों की विफलताओं के किस्से और चुनावी जुमले भेज कर मजे ले रहे हैं तो दूसरी तरफ राष्ट्रवादी पार्टियों के आई टी सेल सेक्युलर पार्टियों की देशद्रोहिता और मुस्लिम प्रेम की कथाएं और किस्से भेज कर अपनी लाज बचा रहे हैं |
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पूरा देश इसी में व्यस्त है कि कांग्रेस और बीजेपी (=संघ) दोनों में से किसके शासन में महंगाई कम है या थी और किसके शासन में राष्ट्रवाद ज्यादा है या था | तुलना भी कर रहे है तो कैसी कैसी --
१. “अरे भाई कांग्रेस तो बस इतना सा एफडीआई लाई थी, पर ये मोदी तो एफडीआई बस लाये जा रहा है ”
२. “ अरे भाई बता-- कितने जवान मरे कांग्रेस के समय और कितने मर रहे हैं मोदी के समय में “
३. “ अरे कांग्रेस के नेताओं ने तो 10-15 लाख करोड़ का घोटाला किया था और हमारे नेता ने तो सिर्फ एक-दो हजार करोड़ का घोटाला किया तो तुम्हारी जबान बंद नहीं हो रही है | बताओ कहाँ थे तुम 60 सालों तक ?
४. “कितनी नौकरियां गयी कांग्रेस राज में और कितनी गयी मोदी राज में”
और ना जाने क्या क्या?
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लेकिन सभी सेक्युलर और राष्ट्रवादी पार्टियों के कार्यकर्ता और अंधभक्त देश के बड़े मुद्दों पर गूंगे और बेहरे हो जाते हैं |
१. एफडीआई से होने वाला डॉलर पुनर्भरण (repatriation) का खतरा
२. देश में गिरता विज्ञान, गणित और इंजीनियरिंग का स्तर
३. पड़ोसी देशों से घुसपैठियों का लगातार आना और स्थानिक लोगो का कत्लेआम करना
४. इस्लामिक आतंकवाद और मिशनरीज का धर्म परिवर्तन अभियान
५. किल स्विच वाले हथियारों का आयात और स्वदेशी हथियारों की घटिया गुणवत्ता यानी सेना की कमजोरी
६. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों का भ्रष्टाचार
७. जीएसटी में मौजूद मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम और दोहरे करदान के कानून से छोटे व्यापारियों का सामूहिक खात्मा
और ऐसे अनेको बड़े मुद्दे हैं जिनकी तुलना कोई नहीं करना चाहता कि मनमोहन राज में क्या हाल था और मोदी राज में क्या हाल है |
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करेले पर नीम तब चढ़ जाता है जब देश के युवा नागरिक और कार्यकर्त्ता खून इकठ्ठा करना, पेड़ लगाना, नदिया बचाओ योजना, स्वच्छता अभियान में झाड़ू लगाना, शौचालय साफ़ करना, मेराथन दौड़ना, योग शिविर लगाना, रैली निकलना, जोर जोर से नारेबाजी करना आदि में अपना समय और उर्जा बर्बाद कर देते हैं और व्यवस्था परिवर्तन करने वाले प्रयासों को नकार देते हैं | या तो वे किसी नेता या अभिनेता के भक्त बन जाते हैं |
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जिस तरह 1960 के दशक में साउथ कोरिया का तानाशाह “पार्क चुंग ही” अपने देश के विकास के लिए एफडीआई नाम का मूलमंत्र ले आया था (जिसका परिणाम आज ये है कि साउथ कोरिया आज अपनी रक्षा के लिए अमेरिका के हथियारों पर निर्भर है और वहां की 40% से अधिक आबादी ईसाई बन चुकी है), ठीक उसी तरह भारत के उदारवादी और राष्ट्रवादी नेता देश के विकास के लिए एफडीआई का सहारा ले रहे है और नरसिम्हा राव, वाजपेयी और मनमोहन की तरह मोदी जी भी दिन रात बिना रुके देश के अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों, संसाधन और संपत्ति को विदेशी धनिकों को सौपने का काम कर रहे हैं |
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1992 में हमारी अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गयी थी और देश का विदेशी मुद्रा भण्डार लगभग ख़त्म होने की कगार पर था | समाधान निकाला गया--वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण | नतीजा -- बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने स्थानिक लघु और मध्यम स्तर की कंपनियों को बाजार से बाहर कर दिया| भारत के बाजार में हर छोटी से बड़ी वस्तु आज आयातित या विदेशी है और यदि कुछ स्वदेशी भी है तो उसके अन्दर का अधिकतर सामान भी आयतित है सिर्फ उन पर लगे लेबल को छोड़कर |
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आज 25 साल बाद फिर वही स्थिति आने वाली है तो समाधान क्या लाया जा रहा है-- एफडीआई, यानि देश के हर वितमंत्री और प्रधानमंत्री के पास सिर्फ एक ही समाधान बचा है ---विदेशियों की गुलामी |
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देश के सिर से लेकर पाँव तक चले, तो समस्या ही समस्या का गुणगान है और समाधान के नाम पर “अच्छा मेरा नेता चोर तो तेरा नेता महाचोर” यही चल रहा है |
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यदि आप नेता भक्ति और व्यक्ति पूजा से जाग गए हो तो देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए इन प्रस्ताव को लायें--
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१. जीएसटी को सम्पूर्ण रद्द करके जमीनों और उस होने वाले निर्माण (प्रति व्यक्ति 250 वर्ग फीट निर्माण और जमीन से अधिक) पर संपत्ति कर लगाना
२. सभी जमीनों के स्वामित्व की जानकारी नेट पर रखना
३. नागरिकों और सेना के लिए खनिज आमदनी सीधे जमा करना
४. मॉरिशस और अन्य समान ट्रीटी और सेज को टैक्स रहत देने वाले कानूनों को तुरंत रद्द करना
५. सभी सरकारी अधिकारीयों, जजों और मंत्रियों (सिर्फ सेना को छोड़कर) की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक रूप से नेट पर रखना
६. कच्चे तेल और कच्चे माल के अलावा आयात होने वाली सभी निर्मित वस्तुओं पर कस्टम शुल्क और आयत शुल्क 100 से 300 प्रतिशत तक बढ़ाना
७. सभी सार्वजनिक क्षेत्रों की कंपनियों को पूर्ण स्वामित्व वाली भारतीय कंपनी घोषित किया जाए जिसका कोई भी शेयर विदेशी कंपनी या नागरिक ना खरीद सके
८. कारखानों के मालिकों और मजदूरों या सरकार के बीच चल रहे विवादों की सुनवाई और फैसला मतदाता सूची से रैंडमली चुने गए 15 से 1500 नागरिकों की जूरी द्वारा होना चाहिए
९. आयात करने वाले और विदेशी निवेशक अपने डॉलर का प्रबंध स्वयम करें और रिजर्व बैंक या सरकार डॉलर नहीं देगी-ऐसा कानून तुरंत लागू करना
९. पारदर्शी शिकायत /प्रस्ताव प्रणाली (टी सी पी )
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उपरोक्त कानूनों के ड्राफ्ट की लिंक और प्रचार तरीके के लिए कृपया मेरी फेसबुक प्रोफाइल के कवर पिक्चर के विवरण को देखें|
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नोट:- सोनिया-मोदी-केजरीवाल ने, कांग्रेस-संघ-आप पार्टी के कार्यकर्त्ता और समर्थकों ने, सभी प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों ने इन कानूनों का विरोध किया है | प्रमाण--आप उनकी ट्विटर वाल इन कानूनों को लागू करने के लिए पूछ सकते हैं |
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.