'जन धन योजना के साइड इफेक्ट्स
●'जन धन योजना के लाभ और साइड इफेक्ट्स'
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◆वैश्विक बैंकिंग* के सूत्रपात से गरीबो को सस्ते क़र्ज़ मिल सकेंगे जिससे कुछ समय के लिए गरीबी कम होती दिखायी देगी जबकि दूरगामी नतीजों के रूप में विदेशी बेंक देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह नियंत्रण में ले लेंगे और धर्मान्तरण में वृद्धि होगी।
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★समाधान : वैश्विक बेंकिंग व्यवस्था में विदेशी बेंको को अनुमति नही दी जाए ।
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◆पूरे देश में कार्यकर्ता 1990 के दशक से वैश्विक बेंकिंग को अनुमति दिए जाने की मांग उठा रहे है, किन्तु कोंग्रेस और बीजेपी इसका विरोध कर रहे थे । भक्तो ने अपने नेताओं को समर्थन दिया कार्यकर्ताओं को नही, इस कारण यह फैसला जो कि 1990 में लागू हो सकता था 25 वर्ष बाद लागू हो रहा है । परन्तु जिन नियमो के अधीन इस व्यवस्था को निष्पादित किया जा रहा है, वो देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुक्सान पहुंचाने वाले है ।
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★*वैश्विक बैंकिंग - ऐसी बैंकिंग व्यवस्था से अभिप्राय है जिसमें सभी वित्तीय गतिविधियाँ एवं प्रबंधन जैसे सभी प्रकार के खाते खोलकर जमाएं स्वीकार करना, सभी प्रकार के क़र्ज़ जैसे वाहन, गृह, औद्योगिक, निजी लोन देना, म्यूचल फंड एवं सेंसेक्स सम्बन्धी गतिविधियाँ चलाना, कोर्पोरेट निवेशीय व्यवहार, बीमा सम्बन्धी उत्पादों का विक्रय आदि एक ही संस्थान द्वारा किया जा सकता है ।
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★लाभ - वैश्विक बैंकिंग से आर्थिक लेनदेन में गतिशीलता आती है, क़र्ज़ सस्ती ब्याज दरो पर उपलब्ध होता है और एक ही छत के नीचे सभी उत्पाद उपलब्ध होने से लागत घटती है ।
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★नुकसान - यदि बेंकिंग क्षेत्र में FDI मौजूद हो तो विदेशी बैंक पूरी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित कर लेते है, स्वदेशी बैंक बड़े विदेशी समूहों के पेट में समा जाते है और विदेशी बेंको की मोनोपोली स्थापित हो जाती है । ऐसे में जब कोई बड़ा बेंक डूबता है तो उसके दुष्परिणाम कुछ वैसे ही होते है जैसे किसी छोटे मोटे देश के डूबने से होते है ।
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∆ मिसाल के लिए 'लेहमेन ब्रदर्स' के 2008 में डूबने से वैश्विक मंदी छा गयी थी ।
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◆1992-93 में बेंकिंग क्षेत्र में निजी बेंको ने व्यवसाय प्रारम्भ किया, सरकार ने अपनी दो कम्पनियों ICICI Ltd. और HDFC का विनिवेश किया और इन दोनों भारतीय निजी बेंको ने व्यापार शुरू किया । दोनों भारतीय बेंक खूब फले फूले और इनका विस्तार हुआ । इस दौरान बेंको में FDI की सीमा 74% होने से ICICI और HDFC बेंको में विदेशी निवेश बढ़ता गया ।
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◆नतीजा - 2010 में संसद में एक प्रश्न के जवाब में संसदीय कार्य मंत्री आर पी सिंह ने रहस्योदघाटन किया कि 'ICICI और HDFC बेंक अब भारतीय बेंक नहीं रहे है , इन्हें विदेशीयों द्वारा टेकओवर किया जा चुका है' । असल में दोनों बेंको में विदेशी बेंको की शेयर होल्डिंग 74% हो चुकी थी ।
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◆अब तक संघठित और विदेशी बेंक गरीबो को क़र्ज़ नही दे रहे थे, क्योकि उनके पास एकाउंट्स नही थे तथा वसूली करना बहुत ही खर्चीला था ।
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◆अब चूंकि नमो ने गेजेट नोटिफिकेशन* के ज़रिये यह अधिसूचना पारित की है कि बिना किसी गारंटर और सम्बंधित दस्तावेजो के अभाव में भी खाते खोले जा सकते है, अत: बिना किसी झंझट के करोड़ो गरीबो के पास जल्द ही एकाउंट्स होंगे । ये एकाउंट्स उन 2 करोड़ बांग्लादेशी घुसपेठियो को भी मिलने वाले है जो गैरकानूनी ढंग से भारत में रह रहे है ।
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★*यहाँ कार्यकर्ताओं को इस तथ्य को समझना चाहिए कि देश में बड़े से बड़ा परिवर्तन गेजेट नोटिफिकेशन में अधिसूचना छाप कर लाया जा सकता है ।
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◆गरीब और अत्यंत गरीब, साहूकारों महाजनों आदि से ऊँची ब्याज दरों ( 5-10% monthly ) पर क़र्ज़ लेते है, जिस से उन पर बोझ बढ़ता जाता है । बेंक अमूमन 20-30% सालाना ( 2% monthly ) की दर से क़र्ज़ देंगे, जो की गरीबो के लिए फायदे का सौदा होगा । एकाउंट्स होने से विदेशी बेंक बड़े पैमाने पर क़र्ज़ दे सकेंगे और वसूली आसान हो जायेगी ।
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◆FDI नियमों के अनुसार वेदिशी कम्पनियों को आयकर और अन्य करो में छूट मिली हुयी है जबकि स्वदेशी इकाइयों को सभी टेक्स चुकाने होते है । फलस्वरूप विदेशी बेंक 1-2 मध्यस्थ रखेंगे लेकिन जल्दी ही वो अन्य बेंको और हमारे स्वदेशी संस्थानों को हड़प लेंगे । इस से MNCs गरीब और बेहद गरीब लोगो को क़र्ज़ देने की सुविधा का इस्तेमाल धर्मांतरण में कर सकेगी ।
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◆10-20 वर्षो के बाद विदेशी वैश्विक बेंको का एकाधिकार होने से ये बैंक्स बड़े पैमाने पर कर मुक्त मुनाफा कमा रहे होंगे जिस से इनकी CSR*(Corporet Social Responsblities) गतिविधियों में वृद्धि होगी, और आदिवासी और बेहद दमित सीमावर्ती क्षेत्रो में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण किये जा सकेंगे ।
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★*CSR - बड़े व्यापारिक समूह अर्जित मुनाफे का एक हिस्सा सामाजिक कल्याण योजनाओं जैसे पिछड़े, आदिवासी, ग्रामीण, सीमावर्ती क्षेत्रो में मुफ्त दवाइयां बांटना, स्कूल चलाना, ट्रस्टो को अनुदान देना, अनाज और भोजन बांटना आदि मदों में खर्च करते है । इन्हें सामाजिक उत्तरदायित्व कहा जाता है । इन योजनाओं के तहत बहुराष्ट्रीय कम्पनियां मिशनरीज़ को ईसाइयत फैलाने के लिए धन मुहेया कराती है ।
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◆भारत के बड़े और संघठित वित्तीय संस्थानों की हालत खराब हो चुकी है, अत: वे और अधिक क़र्ज़ देने की स्थिति में नही है । कोर्पोरेट्स गले गले क़र्ज़ में डूबे हुए है जबकि राष्ट्रीय कृत वित्तीय संस्थान और बेंक भारी NPA* के बोझ तले दबे हुए है ।
ये बेंक अब और क़र्ज़ देने की हालत में नही है । क्योंकि राष्ट्रीय कृत बेंको के पास MNCs की तरह भ्रष्ट जजों का गठजोड़ नही है अत: यदि वे और भी क़र्ज़ देते है तो यह दिया गया क़र्ज़ NPA ( Non Performing Assets ) में और भी इजाफा कर देगा । लेकिन MNCs के पास जजों और अधिकारियों की लोबी होने से उनके द्वारा दिए गए कर्जो की वसूली और कुर्कियाँ आसान हो जायेगी जिस से वे भारी मुनाफा कमाएंगे ।
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◆ये मुनाफा हमारे डॉलर संकट को और भी बढ़ा देगा, जिस से हम रूपये में कमायें गए इस मुनाफे का पुनर्भरण डॉलर में करने में नाकाम रहेंगे ।
फिर से व्यापार घाटा, डॉलर संकट, डॉलर लाने के लिए फिर से FDI, फिर से सोने की लूट, फिर से विदेशी क़र्ज़ ( जो कि अब भारत को आसानी से नही मिलता ), और अंततोगत्वा हमारी वित्तीय व्यवस्था को धराशायी होने से बचाने के लिए हमारी माइन्सो का औने पौने दामो में विक्रय ।
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★*NPA - बैंक द्वारा दिए गए ऐसे क़र्ज़ जिनके वसूल होने की अब कोई संभावना नही है । अर्थात उन्हें न वसूली जाने योग्य मृत संपत्तियों में शामिल किया जा चुका है ।
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■समाधान :
★1. DDMRCM क़ानून को गेजेट में छापा जाए, ताकि खनन से प्राप्त रोयल्टी सीधे नागरिको के खाते में जमा हो सके ।
© - इस ड्राफ्ट के गेजेट में छपने से इन खातो का उपयोग रोयल्टी वितरण में किया जा सकेगा ।
© - खनिजो को नागरिको की संपत्ति घोषित करने से कालान्तर में हम अपने खनिजो को बचाने में कामयाब रहेंगे ।
© - खनन में व्याप्त भ्रष्टाचार दूर होगा ।
© - हर परिवार को उसके हक का 3000 रू ( 500×6 ) मिलने से गरीबी 6 माह में दूर हो जाएगी ।
★2. सिर्फ WOIC* बेंको को ही वैश्विक बेंकिंग की अनुमति दी जाए । इस क़ानून के गेजेट में छपने से :
© - हमारे स्वदेशी बेंको और अन्य वित्तीय संस्थानों को विदेशी बेंक टेक ओवर नही कर सकेंगे ।
© - हम पर डॉलर के पुनर्भरण का भार नही पड़ेगा ।
© - धर्मांतरण के अवसर सिकुड़ जायेंगे ।
© - हमारे देश की अर्थव्यवस्था का नियंत्रण विदेशी हाथो में जाने से बच जाएगा ।
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● ताकि सनद रहे :
★नमो ने DDMRCM क़ानून को गेजेट में छापने का विरोध किया है और ये एकाउंट्स सिर्फ एङ्काउन्ट्स ही रहने वाले है । इन खातो में मिनरल रोयल्टी भेजने का नमो का कोई विचार नही है ।
★ - नमो ने WOIC क़ानून को भी गेजेट में छापने का विरोध किया है ।
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◆1. सभी नागरिको से अपील है कि अपने क्षेत्र के सांसद को DDMRCM और WOIC का कानूनी ड्राफ्ट गेजेट में छापने का ऑर्डर SMS द्वारा भेजे ।
◆2. WOIC ( wholy owend by indian citizen ) के बारे में जानकारी के लिए दिए गए लिंक से ड्राफ्ट मुफ्त डाउनलोड करे -
rahulmehta .com/301.h.htm
( chapter - 41 )
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