आशाराम बापू को क्षद्म साधू बताने वाला नरेंद्र गिरी कौन है ?
क्षद्म साधुओं की लिस्ट जारी करने वाला नरेंद्र गिरी कौन है?
इसकी जांच करनी चाहिए की क्या ये सच में अखाड़ा का सदस्य भी है? इसकी सार्वजनिक नार्को जांच करनी चाहिए और रिपोर्ट को सार्वजनिक करनी चाहिए जिससे सबो इसकी सच्चाई मालूम चले.
नरेंद्र गिरी को शंकराचार्य ने जी की बार डांटा था कि साई के विरुद्ध साधुओं को इकट्ठा करो और नकली संतो को भगाओ !
ये वहां जाकर हैं कर देता हर आकर भूल जाता.........
इसने साई का स्वामी जी के पास तो विरोध किया पर कभी खुले में विरोध न किया
धोखेबाज.........................
इसके जैसों पलटी मरने वालो को महामंडलेश्वर बनाते समय अखाडा परिषद् की आत्मा क्या तेल लेने चली गयी थी?
.
इसने ये काम भी दबाव में किया है।पैसे लेकर इसने भीलवाड़ा में साई मंदिर बनवाया था तब स्वामी स्वरूपानंद जी ने इसे चिट्ठी लिखकर कवर्धा और जबलपुर बुलाया
इसकी वहां घिग्घी बंध गयी थी पर वापिस आकर फिर वही भेड़चाल.............
मीडिया का दबाब है.............
इसकी बाइट से मीडिया वालों पर केस ठुक जाता।
मीडिया के कहने पर तो ये अपने सगे बाप को बाप मानने से मना कर दे.............. .
"जिस संत की उसके जीवन में घोर निंदा नहीं हुई हो मैं उसे संत ही नही मानता" - स्वामी रामतीर्थ....
इन चवन्नी छाप नशेडियों ने कभी भी ईशाई- मिशनरियों को खदेडने के लिये किसी भी राष्ट्र्वायापी आंदोलन की जरूरत नहीं समझी।........
धर्मांतरण होता रहा ये देखते रहे...................
गायें कटती रही ये देखते रहे........................
लोगों के चरित्र का स्तर गिरता रहा और ये तमाशा देखते रहे। आज भी देख रहे हैं। ...............................
जो मंदिर हमारा अधिकार था उसके लिये तरसा तरसा कर इन्होंने उसे खैरात बना दिया।............................
गांजा पीना, नशा करना, फालतू की भाषण बाजी करना, फ्री के भंडारे खाना, और केसर का दूध पीकर सो जाना।
यही इनका मुख्य काम रह गया है।
धर्म इनके आचरण से कई प्रकाशवर्ष दूर जा चुका है।
दूसरों को गलत होने का सर्टिफिकेट वही देता है जिसके खुद के सही होने के सर्टिफिकेट में doubt होता है।
ये तथाकथित संत बने हुये गीदड मीडिया के हिसाब से चलते हैं।
सत्य से इनका वासता 'लेना एक ना देना दो' वाला रहता है।
मीडिया ने अपना जरा सा दबाव दिखाया नही की इनका सारा संतत्व वही पसार हो जाता है।
स्वयं देखिये कल तक ये क्या कह रहा था और आज ये क्या कह रहा https://www.youtube.com/watch?v=qVeSvujchMU
ऐसे भीगी बिल्लियों के हाथ मे अखाडा परिषद की कमान है ये एक गंभीर विचारणीय प्रश्न है।................
कलि की घोरता देखिये की कल तक सवा पैसे की चरस को बीडी मे डालकर फूंकने वाला नरेन्द्र गिरि आज अखाडा परिषद का अध्यक्ष बनकर पावक समान पावन करने वाले परम पावन आसारामजी महाराज को संत न होने का सर्टिफिकेट बांट रहा है।
ये अखाडे अपनी पवित्रता दशियों पहले खो चुके हैं। हर प्रकार के असमाजिक काम करने वाले नशेडियों को संरक्षण और पोषण देने का काम इन अखाडों ने तब से ही शुरु कर दिया था जब रोबर्ट क्लाइव अपने साथ मिशनरियों का डेरा लाया था। पर फिर भी अभी तक कुछ त्यागी तप्स्वी संत इसकी गरिमा को बचाये हुये थे पर कलियुग के प्रभाव ने वो भी ढहा दी।
.
https://www.youtube.com/watch?v=qnBNVFjEDUI
.
Note: हमारे यहां तो संतो ने गृहस्थ में रह कर संसार का कल्याण किया है।
ऋषि कश्यप की 27 पत्नियां थी।
ऋषि गौतम गृहस्थ थे
मुनि सांदीपनि गृहस्थ थे
ऋषि विश्वामित्र वशिष्ठ से ब्रह्मचारी थे पर गृहस्थ भी थे
इसकी जांच करनी चाहिए की क्या ये सच में अखाड़ा का सदस्य भी है? इसकी सार्वजनिक नार्को जांच करनी चाहिए और रिपोर्ट को सार्वजनिक करनी चाहिए जिससे सबो इसकी सच्चाई मालूम चले.
नरेंद्र गिरी को शंकराचार्य ने जी की बार डांटा था कि साई के विरुद्ध साधुओं को इकट्ठा करो और नकली संतो को भगाओ !
ये वहां जाकर हैं कर देता हर आकर भूल जाता.........
इसने साई का स्वामी जी के पास तो विरोध किया पर कभी खुले में विरोध न किया
धोखेबाज.........................
इसके जैसों पलटी मरने वालो को महामंडलेश्वर बनाते समय अखाडा परिषद् की आत्मा क्या तेल लेने चली गयी थी?
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इसने ये काम भी दबाव में किया है।पैसे लेकर इसने भीलवाड़ा में साई मंदिर बनवाया था तब स्वामी स्वरूपानंद जी ने इसे चिट्ठी लिखकर कवर्धा और जबलपुर बुलाया
इसकी वहां घिग्घी बंध गयी थी पर वापिस आकर फिर वही भेड़चाल.............
मीडिया का दबाब है.............
इसकी बाइट से मीडिया वालों पर केस ठुक जाता।
मीडिया के कहने पर तो ये अपने सगे बाप को बाप मानने से मना कर दे.............. .
"जिस संत की उसके जीवन में घोर निंदा नहीं हुई हो मैं उसे संत ही नही मानता" - स्वामी रामतीर्थ....
इन चवन्नी छाप नशेडियों ने कभी भी ईशाई- मिशनरियों को खदेडने के लिये किसी भी राष्ट्र्वायापी आंदोलन की जरूरत नहीं समझी।........
धर्मांतरण होता रहा ये देखते रहे...................
गायें कटती रही ये देखते रहे........................
लोगों के चरित्र का स्तर गिरता रहा और ये तमाशा देखते रहे। आज भी देख रहे हैं। ...............................
जो मंदिर हमारा अधिकार था उसके लिये तरसा तरसा कर इन्होंने उसे खैरात बना दिया।............................
गांजा पीना, नशा करना, फालतू की भाषण बाजी करना, फ्री के भंडारे खाना, और केसर का दूध पीकर सो जाना।
यही इनका मुख्य काम रह गया है।
धर्म इनके आचरण से कई प्रकाशवर्ष दूर जा चुका है।
दूसरों को गलत होने का सर्टिफिकेट वही देता है जिसके खुद के सही होने के सर्टिफिकेट में doubt होता है।
ये तथाकथित संत बने हुये गीदड मीडिया के हिसाब से चलते हैं।
सत्य से इनका वासता 'लेना एक ना देना दो' वाला रहता है।
मीडिया ने अपना जरा सा दबाव दिखाया नही की इनका सारा संतत्व वही पसार हो जाता है।
स्वयं देखिये कल तक ये क्या कह रहा था और आज ये क्या कह रहा https://www.youtube.com/watch?v=qVeSvujchMU
ऐसे भीगी बिल्लियों के हाथ मे अखाडा परिषद की कमान है ये एक गंभीर विचारणीय प्रश्न है।................
कलि की घोरता देखिये की कल तक सवा पैसे की चरस को बीडी मे डालकर फूंकने वाला नरेन्द्र गिरि आज अखाडा परिषद का अध्यक्ष बनकर पावक समान पावन करने वाले परम पावन आसारामजी महाराज को संत न होने का सर्टिफिकेट बांट रहा है।
ये अखाडे अपनी पवित्रता दशियों पहले खो चुके हैं। हर प्रकार के असमाजिक काम करने वाले नशेडियों को संरक्षण और पोषण देने का काम इन अखाडों ने तब से ही शुरु कर दिया था जब रोबर्ट क्लाइव अपने साथ मिशनरियों का डेरा लाया था। पर फिर भी अभी तक कुछ त्यागी तप्स्वी संत इसकी गरिमा को बचाये हुये थे पर कलियुग के प्रभाव ने वो भी ढहा दी।
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https://www.youtube.com/watch?v=qnBNVFjEDUI
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Note: हमारे यहां तो संतो ने गृहस्थ में रह कर संसार का कल्याण किया है।
ऋषि कश्यप की 27 पत्नियां थी।
ऋषि गौतम गृहस्थ थे
मुनि सांदीपनि गृहस्थ थे
ऋषि विश्वामित्र वशिष्ठ से ब्रह्मचारी थे पर गृहस्थ भी थे
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.