पत्थर ही भगवान होता है
# पत्थर
पत्थर मतलब भगवान होता है क्योंकि वो हमारे आजू बाजू सब तरफ होता है। जहाँ भी देखो नजर आता है।
अपरिचित गलियों में वो हमें कुत्तों से बचाता है।
हाईवे पर गाँव कितनी दूर है, ये बताता है।
घर की बाउंड्रीवाल में लगकर हमारी रक्षा करता है।
रसोई में सिलबट्टा बनकर काम आता है।
पत्थर मतलब भगवान होता है क्योंकि वो हमारे आजू बाजू सब तरफ होता है। जहाँ भी देखो नजर आता है।
अपरिचित गलियों में वो हमें कुत्तों से बचाता है।
हाईवे पर गाँव कितनी दूर है, ये बताता है।
घर की बाउंड्रीवाल में लगकर हमारी रक्षा करता है।
रसोई में सिलबट्टा बनकर काम आता है।
बच्चों को पेड़ से आम, जामुन, बेर आदि तोड़कर देता है।
कभी कभी हमारे ही सिर पर लगकर खून निकाल देता है और इस प्रकार हमें शत्रु की पहचान कराता है।
जिन युवाओं का माथा फिरा हो तब उनके हाँथ लगकर खिड़कियों के काँच तोड़कर उनका क्रोध शांत करता है।
रास्ते पर मजदूरों का पेट भरने के लिए खुद को ही तुड़वाता है।
शिल्पकार के मन के सौंदर्य को साकार करने के लिए छैनियों के घाव सहन करता है।
किसान को पेड़ के नीचे आराम देने के लिए तकिया बन जाता है।
बचपन में स्टंप तो कभी लघोरी आदि बनकर हमारे साथ खेलता है।
हमारी सहायता के लिए भगवान की तरह तुरंत उपलब्ध होता है।
मुझे बताइए, कि, " भगवान के अलावा और कौन करता है हमारे लिए इतना ?? "
पत्थर पर सिन्दूर लगाकर उसपर विश्वास करो तो वो भगवान बन जाता है।
...............
मतलब, पत्थर ही भगवान होता है।
पत्थर की समझदारी और स्मरण शक्ति मानवों से कई गुना अधिक होती है, जो बात पत्थरो को समझ में आ जाती है, वो मानव कभी नहीं समझ सकता.
वस्तुतः सनातन संस्कृति वो है, जो सबको जीने का और आदर्प्रूवाक जिंदगी व्यतीत करने का अवसर देती है जिसपर चलकर देश की अर्थव्यवस्था टिकी रह सके, लेकिन आज के असभ्यता के इस युग में, उस तेरीके से जीवन बसर करने वालों को लुटेरे आदि बोलते हैं.
असभ्य तो वे लोग हैं, जो देश की इस प्रकार चलने वाली आंतरिक अर्थ-व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न कर रहे हैं, और लोगों को भूखो मरने देने वाले लोगों को चुनकर देश की गद्दी पे बिठाया हुआ है मूर्खों ने.
सनातन एक ऐसी संस्कृति का नाम है, जो सभी तरह की विद्याओं को सिखाने के साथ साथ आधुनिक भी बनाती है, वो आधुनिक नहीं जैसा की आज और पश्चिम के लोग समझते हैं.
सनातनी पूर्वज आज के लोगों से कई गुना अधिक विकसित और वैज्ञानिक लोग थे, जिन्होंने भौतिकता और विज्ञान को एक तुच्छ चीज समझते हुए आत्म-ज्ञान और आत्म-प्रसार को अत्यधिक महत्त्व दिया, जिसे आज के विज्ञानासुर लोग कभी समझ नहीं सकेंगे.
कभी कभी हमारे ही सिर पर लगकर खून निकाल देता है और इस प्रकार हमें शत्रु की पहचान कराता है।
जिन युवाओं का माथा फिरा हो तब उनके हाँथ लगकर खिड़कियों के काँच तोड़कर उनका क्रोध शांत करता है।
रास्ते पर मजदूरों का पेट भरने के लिए खुद को ही तुड़वाता है।
शिल्पकार के मन के सौंदर्य को साकार करने के लिए छैनियों के घाव सहन करता है।
किसान को पेड़ के नीचे आराम देने के लिए तकिया बन जाता है।
बचपन में स्टंप तो कभी लघोरी आदि बनकर हमारे साथ खेलता है।
हमारी सहायता के लिए भगवान की तरह तुरंत उपलब्ध होता है।
मुझे बताइए, कि, " भगवान के अलावा और कौन करता है हमारे लिए इतना ?? "
पत्थर पर सिन्दूर लगाकर उसपर विश्वास करो तो वो भगवान बन जाता है।
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मतलब, पत्थर ही भगवान होता है।
पत्थर की समझदारी और स्मरण शक्ति मानवों से कई गुना अधिक होती है, जो बात पत्थरो को समझ में आ जाती है, वो मानव कभी नहीं समझ सकता.
वस्तुतः सनातन संस्कृति वो है, जो सबको जीने का और आदर्प्रूवाक जिंदगी व्यतीत करने का अवसर देती है जिसपर चलकर देश की अर्थव्यवस्था टिकी रह सके, लेकिन आज के असभ्यता के इस युग में, उस तेरीके से जीवन बसर करने वालों को लुटेरे आदि बोलते हैं.
असभ्य तो वे लोग हैं, जो देश की इस प्रकार चलने वाली आंतरिक अर्थ-व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न कर रहे हैं, और लोगों को भूखो मरने देने वाले लोगों को चुनकर देश की गद्दी पे बिठाया हुआ है मूर्खों ने.
सनातन एक ऐसी संस्कृति का नाम है, जो सभी तरह की विद्याओं को सिखाने के साथ साथ आधुनिक भी बनाती है, वो आधुनिक नहीं जैसा की आज और पश्चिम के लोग समझते हैं.
सनातनी पूर्वज आज के लोगों से कई गुना अधिक विकसित और वैज्ञानिक लोग थे, जिन्होंने भौतिकता और विज्ञान को एक तुच्छ चीज समझते हुए आत्म-ज्ञान और आत्म-प्रसार को अत्यधिक महत्त्व दिया, जिसे आज के विज्ञानासुर लोग कभी समझ नहीं सकेंगे.
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.