गंगाधर बनाम शक्तिमान
गंगाधर को शक्तिमान की जरूरत क्यों है ?
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संघ की स्थापना 1925 में हुयी थी। 1947 तक संघ ने अराजनैतिक गतिविधियां संचालित की। किन्तु आजादी के तुरंत बाद से ही संघ ने अपनी राजनैतिक इकाई का निर्माण कर दिया था। 1952 में जनसंघ से लेकर जनता पार्टी और अंत में भारतीय जनता पार्टी। बीजेपी का कैडर संघ की शाखाएं ही है , और यही से उन्हें सबसे ज्यादा बल मिलता है। बीजेपी के ज्यादातर शीर्ष नेता संघ से आते है। मोदी साहेब, आडवाणी, अटल , रमन सिंह, शिवराज, खट्टर, फडणवीस आदि सभी संघी है।
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तो संघ का राजनैतिक चेहरा बीजेपी है। किन्तु क्या वजह है कि संघ खुद को वक्त जरूरत बीजेपी से अलग दिखाने की कोशिस करता है ?
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दरअसल जो भी सत्ता में आएगा वह सभी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सकता। सत्ता में आने के बाद संगठन की लोकप्रियता में कमी आती है। ज्यादा बुरा शासन होने से पार्टी की लोकप्रियता इतनी गिर सकती है कि वे कभी भी वापसी नहीं कर पाते। क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे सत्ता में होने के बावजूद बुरे शासन की जिम्मेदारी से बचा जा सके ?
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ब्रूस व्येन और गंगाधर इसी तरीके का इस्तेमाल करते है। वे विकट परिस्थिति में हमेशा बेटमेन / शक्तिमान को आगे कर देते है। इस तरह शक्तिमान पिट जाता है लेकिन गंगधार हमेशा बचा रहता है। लोग मानते है कि शक्तिमान गलती कर सकता है , किन्तु एक न एक दिन गंगाधर शक्तिमान को अवश्य रास्ते पर ले आएगा। इस तरह गंगधार हमेशा सर्वाइव करता है। इस वजह से सपा, बसपा, टीएमसी, माकपा, बीजेपी , कांग्रेस , आपा आदि पार्टियां एक न एक दिन जनता का विश्वास खो देती है। लेकिन संघ हमेशा बचा रहेगा। क्योंकि उन्होंने अपने आप को जवाबदेही से और कसौटी पर कसे जाने से बचा लिया है।
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सार्वजनिक / राजनैतिक जीवन में यह एक बारीक़ और सफल रणनीति है। किन्तु किसी संगठन को यह बात छुपानी नहीं चाहिए कि वह सक्रीय राजनीती में है।
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तो इस तरह गंगधार ( संघ ) राजनीति में 70 वर्षो से इसीलिए टिका हुआ है और हमेशा टिका रहेगा क्योंकि उसके पास शक्तिमान ( बीजेपी ) है। और जब शक्तिमान पिट जाएगा तो गंगाधर पक्तिमान बनकर लोगो को बचाने आएगा !!
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जिस दिन लोगो को यह मालूम होगा कि गंगाधर ही शक्तिमान है , उस दिन लोग गंगाधर को भी खारिज कर देंगे। और यही वजह है कि संघ के नेता लगातार इस बात को दोहराते रहते है कि गंगाधर शक्तिमान नहीं है। दोनों अलग अलग आदमी है।
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संघ की स्थापना 1925 में हुयी थी। 1947 तक संघ ने अराजनैतिक गतिविधियां संचालित की। किन्तु आजादी के तुरंत बाद से ही संघ ने अपनी राजनैतिक इकाई का निर्माण कर दिया था। 1952 में जनसंघ से लेकर जनता पार्टी और अंत में भारतीय जनता पार्टी। बीजेपी का कैडर संघ की शाखाएं ही है , और यही से उन्हें सबसे ज्यादा बल मिलता है। बीजेपी के ज्यादातर शीर्ष नेता संघ से आते है। मोदी साहेब, आडवाणी, अटल , रमन सिंह, शिवराज, खट्टर, फडणवीस आदि सभी संघी है।
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तो संघ का राजनैतिक चेहरा बीजेपी है। किन्तु क्या वजह है कि संघ खुद को वक्त जरूरत बीजेपी से अलग दिखाने की कोशिस करता है ?
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दरअसल जो भी सत्ता में आएगा वह सभी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सकता। सत्ता में आने के बाद संगठन की लोकप्रियता में कमी आती है। ज्यादा बुरा शासन होने से पार्टी की लोकप्रियता इतनी गिर सकती है कि वे कभी भी वापसी नहीं कर पाते। क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे सत्ता में होने के बावजूद बुरे शासन की जिम्मेदारी से बचा जा सके ?
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ब्रूस व्येन और गंगाधर इसी तरीके का इस्तेमाल करते है। वे विकट परिस्थिति में हमेशा बेटमेन / शक्तिमान को आगे कर देते है। इस तरह शक्तिमान पिट जाता है लेकिन गंगधार हमेशा बचा रहता है। लोग मानते है कि शक्तिमान गलती कर सकता है , किन्तु एक न एक दिन गंगाधर शक्तिमान को अवश्य रास्ते पर ले आएगा। इस तरह गंगधार हमेशा सर्वाइव करता है। इस वजह से सपा, बसपा, टीएमसी, माकपा, बीजेपी , कांग्रेस , आपा आदि पार्टियां एक न एक दिन जनता का विश्वास खो देती है। लेकिन संघ हमेशा बचा रहेगा। क्योंकि उन्होंने अपने आप को जवाबदेही से और कसौटी पर कसे जाने से बचा लिया है।
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सार्वजनिक / राजनैतिक जीवन में यह एक बारीक़ और सफल रणनीति है। किन्तु किसी संगठन को यह बात छुपानी नहीं चाहिए कि वह सक्रीय राजनीती में है।
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तो इस तरह गंगधार ( संघ ) राजनीति में 70 वर्षो से इसीलिए टिका हुआ है और हमेशा टिका रहेगा क्योंकि उसके पास शक्तिमान ( बीजेपी ) है। और जब शक्तिमान पिट जाएगा तो गंगाधर पक्तिमान बनकर लोगो को बचाने आएगा !!
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जिस दिन लोगो को यह मालूम होगा कि गंगाधर ही शक्तिमान है , उस दिन लोग गंगाधर को भी खारिज कर देंगे। और यही वजह है कि संघ के नेता लगातार इस बात को दोहराते रहते है कि गंगाधर शक्तिमान नहीं है। दोनों अलग अलग आदमी है।
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.