रोहिंग्या मुस्लिम कौन लोग हैं?
रोहिंग्या मुस्लिम :--
संयुक्त राष्ट्र संघ ने म्यांमार के "रोहिंग्या मुस्लिम" को पीड़ित समुदाय घोषित कर रखा है | ऐसे निर्णय की पृष्ठभूमि में ब्रिटेन और अमरीका ही नहीं बल्कि हिटलर के मित्र जापान का विरोध करने वाली अन्तर्राष्ट्रीय यहूदी लॉबी और वामपन्थी भी हैं | ये लोग तथ्यों को विकृत करके प्रस्तुत करते हैं |
https://hinduexistence.org/2015/07/22/rohingya-muslims-may-be-the-biggest-jihadi-threat-to-indian-hindus/
सच्चाई यह है कि "रोहिंग्या" शब्द का व्यवहार वास्तव में बर्मा की स्वतन्त्रता के पश्चात 1950 के दशक में ही आरम्भ हुआ जिससे पहले उन्हें प्रवासी बंगाली (बांग्लादेशी) कहा जाता था, जब रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय ने बर्मा की केन्द्रीय सत्ता के विरुद्ध स्वायत्तशासी क्षेत्र बनाने के लिए सशस्त्र संघर्ष आरम्भ किया | इस सशस्त्र संघर्ष का बीजारोपण द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ही हुआ था, जब ब्रिटिश शोषण से भड़के हुए बर्मा के बहुमत बौद्ध समुदाय और प्रवासी भारतीय हिन्दुओं ने आजाद हिंद फौज और जापानी सेना को समर्थन दिया तो उसकी काट में अंग्रेजों ने अराकान प्रान्त के प्रवासी बंगाली (बांग्लादेशी) मुस्लिमों को हथियार देना आरम्भ किया | किन्तु 1942 में उन हथियारों का इस्तेमाल रोहिंग्या मुस्लिमों ने जापानियों के विरुद्ध नहीं किया, बल्कि स्थानीय बर्मी बौद्धों और हिन्दुओं पर आक्रमण कर दिया और 20 हज़ार निर्दोष नागरिकों का सामूहिक नरसंहार कर दिया | प्रत्युत्तर में बर्मा के मूल निवासियों को भी सशस्त्र संघर्ष आरम्भ करना पडा | हिंसा की शुरुआत रोहिंग्या मुस्लिम ने की थी |
ब्रह्मदेश (बर्मा) के अराकान प्रान्त में अब्रह्म मुस्लिमों को बसाने का कार्य सबसे पहले औरंगजेब ने आरम्भ किया था, किन्तु ब्रिटिश काल में इसे बड़े पैमाने पर बढाया गया | अराकान प्रान्त के उत्तरी भाग के अधिकाँश क्षेत्रों में प्रवासी बंगाली मुस्लिमों की जनसंख्या 90% से भी अधिक हो गयी, जिस कारण उन्होंने मूल निवासियों का सफाया करना आरम्भ कर दिया |
रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय की समस्या का यही मूल कारण है | बर्मा के लोग रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय को विदेशी ही नहीं, देशद्रोही भी मानते हैं क्योंकि इनकी सहानुभूति हमेशा मुगलों और अंग्रेजों के प्रति ही रही और जब-जब रोहिंग्या मुस्लिमों को अवसर मिला उन्होंने स्थानीय लोगों का कत्लेआम किया | अंग्रेजों के हटने के बाद बर्मा की सरकार और सेना वहां के मूल निवासियों के समर्थन में खड़ी रहती है तो इसे रोहिंग्या मुस्लिम पर अत्याचार कहा जाता है | किन्तु सच्चाई यह है कि आज भी रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय म्यांमार को काटकर अपना अलग देश बनाना चाहते हैं | यदि ये शान्तिपूर्वक म्यांमार में रहना चाहते और स्थानीय लोगों की हत्या करके उनकी जमीनें नहीं हड़पते तो इनके विरुद्ध भी वहाँ के लोग कार्यवाई नहीं करते | रोहिंग्या मुस्लिम आज भी वहां की सरकार और सेना से युद्ध कर रहे हैं | अतः इनको पीड़ित शरणार्थी कहना अनुचित है | बांग्लादेश इनका मूल प्रदेश है, वहां जाएँ, भारत इनको शरण क्यों दे ? भारत ने इनको शरण नहीं दी, ये अवैध घुसपैठिये हैं | किस मुँह से ये लोग भारत की सर्वोच्च न्यायालय में शिकायत करने गए हैं ? सर्वोच्च न्यायालय को पहले इनलोगों से यह पूछना चाहिए कि ये लोग भारत सरकार से बिना पूछे बिना पासपोर्ट के चुपचाप घुस क्यों गए ? शरणार्थी हैं तो शरणार्थी की तरह आते, चोर की तरह नहीं !!
बंगलादेश से सटे भारतीय क्षेत्रों में भी अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये करोड़ों की संख्या में आकर बसे हुए हैं | सीमावर्ती भारतीय जिलों में अभी 40 से 45% तक हैं | जिस दिन बहुमत हो जाएगा, अराकान की तरह स्थानीय भारतीयों का कत्लेआम आरम्भ कर देंगे, जिसमें चीन और पाकिस्तान से लेकर सऊदी अरब जैसे देश भी सहायता करेंगे |
कैंसर बढ़ने से पहले ही काटकर फ़ेंक देना चाहिए | किन्तु जबतक घुसपैठियों के विरुद्ध आमलोग व्यापक आन्दोलन नहीं छेड़ेंगे तबतक सरकार और सर्वोच्च न्यायालय कुछ नहीं करने जा रही है | मोदी सरकार का चुनावी वायदा था बंगलादेशी घुसपैठियों को निकालने का, किन्तु हर कोई भूलकर आराम से बैठा है | यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पूर्वी भारत ही देश से अलग हो जाएगा | उसके बाद भी समस्या शान्त नहीं होगी, बल्कि और भी बढ़ जायेगी |
भारत से बेहतर तो बर्मा है जिसने अपना नाम भी बदलकर मियाँ-मार रख लिया है और सभी तेरह लाख रोहिंग्या मुस्लिम को अवैध घुसपैठिया घोषित कर दिया है | संयुक्त राष्ट्र संघ इसे अत्याचार कहता है तो कहता रहे !! ब्रिटेन और अमरीका को बड़ी सहानुभूति है तो अपने देशों में बसा लें !
ADDED :-- BBC वर्ल्ड न्यूज़ टीवी विस्तार से दिखा रही है कि रोहिंग्या मुस्लिम "शरणार्थी" किस प्रकार से "पीड़ित" हैं और म्यांमार में उनकी जमीनों पर वहां के लोगों ने "कब्जा" जमा लिया है | बांग्लादेश में चार लाख "शरणार्थी" हैं जिन्हें म्यांमार वापस बुला ले यह मांग बांग्लादेश के प्रधानमन्त्री ने की है | BBC वर्ल्ड न्यूज़ टीवी भूलकर भी यह नहीं बताती कि रोहिंग्या मुस्लिम मूलतः बांग्लादेशी ही हैं, और यह भी नहीं बताती कि बर्मा में उनको औरंगजेब और अंग्रेजों ने बसाया था और वहां के लोगों का सामूहिक नरसंहार करने के लिए रोहिंग्या मुस्लिमों को बड़ी मात्रा में अंग्रेजों ने हथियार दिए थे | BBC वर्ल्ड न्यूज़ टीवी यह भी नहीं बताती कि अभी भी म्यांमार की सेना और पुलिस से वहां के रोहिंग्या मुस्लिम युद्ध कर रहे हैं जिनको अवैध तरीके से बाहर से हथियारों की आपूर्ति की जा रही है -- इन हथियारों का स्रोत तो पश्चिम है (छद्म रूप से अमरीका और ब्रिटेन) किन्तु आपूर्ति का जरिया बांग्लादेश है और वित्तीय पोषक अरब देश हैं |
संयुक्त राष्ट्र संघ ने म्यांमार के "रोहिंग्या मुस्लिम" को पीड़ित समुदाय घोषित कर रखा है | ऐसे निर्णय की पृष्ठभूमि में ब्रिटेन और अमरीका ही नहीं बल्कि हिटलर के मित्र जापान का विरोध करने वाली अन्तर्राष्ट्रीय यहूदी लॉबी और वामपन्थी भी हैं | ये लोग तथ्यों को विकृत करके प्रस्तुत करते हैं |
https://hinduexistence.org/2015/07/22/rohingya-muslims-may-be-the-biggest-jihadi-threat-to-indian-hindus/
सच्चाई यह है कि "रोहिंग्या" शब्द का व्यवहार वास्तव में बर्मा की स्वतन्त्रता के पश्चात 1950 के दशक में ही आरम्भ हुआ जिससे पहले उन्हें प्रवासी बंगाली (बांग्लादेशी) कहा जाता था, जब रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय ने बर्मा की केन्द्रीय सत्ता के विरुद्ध स्वायत्तशासी क्षेत्र बनाने के लिए सशस्त्र संघर्ष आरम्भ किया | इस सशस्त्र संघर्ष का बीजारोपण द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ही हुआ था, जब ब्रिटिश शोषण से भड़के हुए बर्मा के बहुमत बौद्ध समुदाय और प्रवासी भारतीय हिन्दुओं ने आजाद हिंद फौज और जापानी सेना को समर्थन दिया तो उसकी काट में अंग्रेजों ने अराकान प्रान्त के प्रवासी बंगाली (बांग्लादेशी) मुस्लिमों को हथियार देना आरम्भ किया | किन्तु 1942 में उन हथियारों का इस्तेमाल रोहिंग्या मुस्लिमों ने जापानियों के विरुद्ध नहीं किया, बल्कि स्थानीय बर्मी बौद्धों और हिन्दुओं पर आक्रमण कर दिया और 20 हज़ार निर्दोष नागरिकों का सामूहिक नरसंहार कर दिया | प्रत्युत्तर में बर्मा के मूल निवासियों को भी सशस्त्र संघर्ष आरम्भ करना पडा | हिंसा की शुरुआत रोहिंग्या मुस्लिम ने की थी |
ब्रह्मदेश (बर्मा) के अराकान प्रान्त में अब्रह्म मुस्लिमों को बसाने का कार्य सबसे पहले औरंगजेब ने आरम्भ किया था, किन्तु ब्रिटिश काल में इसे बड़े पैमाने पर बढाया गया | अराकान प्रान्त के उत्तरी भाग के अधिकाँश क्षेत्रों में प्रवासी बंगाली मुस्लिमों की जनसंख्या 90% से भी अधिक हो गयी, जिस कारण उन्होंने मूल निवासियों का सफाया करना आरम्भ कर दिया |
रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय की समस्या का यही मूल कारण है | बर्मा के लोग रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय को विदेशी ही नहीं, देशद्रोही भी मानते हैं क्योंकि इनकी सहानुभूति हमेशा मुगलों और अंग्रेजों के प्रति ही रही और जब-जब रोहिंग्या मुस्लिमों को अवसर मिला उन्होंने स्थानीय लोगों का कत्लेआम किया | अंग्रेजों के हटने के बाद बर्मा की सरकार और सेना वहां के मूल निवासियों के समर्थन में खड़ी रहती है तो इसे रोहिंग्या मुस्लिम पर अत्याचार कहा जाता है | किन्तु सच्चाई यह है कि आज भी रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय म्यांमार को काटकर अपना अलग देश बनाना चाहते हैं | यदि ये शान्तिपूर्वक म्यांमार में रहना चाहते और स्थानीय लोगों की हत्या करके उनकी जमीनें नहीं हड़पते तो इनके विरुद्ध भी वहाँ के लोग कार्यवाई नहीं करते | रोहिंग्या मुस्लिम आज भी वहां की सरकार और सेना से युद्ध कर रहे हैं | अतः इनको पीड़ित शरणार्थी कहना अनुचित है | बांग्लादेश इनका मूल प्रदेश है, वहां जाएँ, भारत इनको शरण क्यों दे ? भारत ने इनको शरण नहीं दी, ये अवैध घुसपैठिये हैं | किस मुँह से ये लोग भारत की सर्वोच्च न्यायालय में शिकायत करने गए हैं ? सर्वोच्च न्यायालय को पहले इनलोगों से यह पूछना चाहिए कि ये लोग भारत सरकार से बिना पूछे बिना पासपोर्ट के चुपचाप घुस क्यों गए ? शरणार्थी हैं तो शरणार्थी की तरह आते, चोर की तरह नहीं !!
बंगलादेश से सटे भारतीय क्षेत्रों में भी अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये करोड़ों की संख्या में आकर बसे हुए हैं | सीमावर्ती भारतीय जिलों में अभी 40 से 45% तक हैं | जिस दिन बहुमत हो जाएगा, अराकान की तरह स्थानीय भारतीयों का कत्लेआम आरम्भ कर देंगे, जिसमें चीन और पाकिस्तान से लेकर सऊदी अरब जैसे देश भी सहायता करेंगे |
कैंसर बढ़ने से पहले ही काटकर फ़ेंक देना चाहिए | किन्तु जबतक घुसपैठियों के विरुद्ध आमलोग व्यापक आन्दोलन नहीं छेड़ेंगे तबतक सरकार और सर्वोच्च न्यायालय कुछ नहीं करने जा रही है | मोदी सरकार का चुनावी वायदा था बंगलादेशी घुसपैठियों को निकालने का, किन्तु हर कोई भूलकर आराम से बैठा है | यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पूर्वी भारत ही देश से अलग हो जाएगा | उसके बाद भी समस्या शान्त नहीं होगी, बल्कि और भी बढ़ जायेगी |
भारत से बेहतर तो बर्मा है जिसने अपना नाम भी बदलकर मियाँ-मार रख लिया है और सभी तेरह लाख रोहिंग्या मुस्लिम को अवैध घुसपैठिया घोषित कर दिया है | संयुक्त राष्ट्र संघ इसे अत्याचार कहता है तो कहता रहे !! ब्रिटेन और अमरीका को बड़ी सहानुभूति है तो अपने देशों में बसा लें !
ADDED :-- BBC वर्ल्ड न्यूज़ टीवी विस्तार से दिखा रही है कि रोहिंग्या मुस्लिम "शरणार्थी" किस प्रकार से "पीड़ित" हैं और म्यांमार में उनकी जमीनों पर वहां के लोगों ने "कब्जा" जमा लिया है | बांग्लादेश में चार लाख "शरणार्थी" हैं जिन्हें म्यांमार वापस बुला ले यह मांग बांग्लादेश के प्रधानमन्त्री ने की है | BBC वर्ल्ड न्यूज़ टीवी भूलकर भी यह नहीं बताती कि रोहिंग्या मुस्लिम मूलतः बांग्लादेशी ही हैं, और यह भी नहीं बताती कि बर्मा में उनको औरंगजेब और अंग्रेजों ने बसाया था और वहां के लोगों का सामूहिक नरसंहार करने के लिए रोहिंग्या मुस्लिमों को बड़ी मात्रा में अंग्रेजों ने हथियार दिए थे | BBC वर्ल्ड न्यूज़ टीवी यह भी नहीं बताती कि अभी भी म्यांमार की सेना और पुलिस से वहां के रोहिंग्या मुस्लिम युद्ध कर रहे हैं जिनको अवैध तरीके से बाहर से हथियारों की आपूर्ति की जा रही है -- इन हथियारों का स्रोत तो पश्चिम है (छद्म रूप से अमरीका और ब्रिटेन) किन्तु आपूर्ति का जरिया बांग्लादेश है और वित्तीय पोषक अरब देश हैं |
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.