भ्रष्टाचार या भक्तिमार्ग

नोट:- भाइयों व बहनों, ये पोस्ट मेरे फेसबुक की दो वर्ष पुरानी पोस्ट है, जिसकी रिपोर्टिंग होने के कारण ये शेयर नहीं हो पा रही है, अतः इसे ब्लॉग में पोस्ट के रूप में लिखना पड़ा.
***************************************************************************************************************************
.
आजकल सोशल मीडिया पे एक ट्रेंड चला हुआ है कि सारे नेता भक्त, पार्टी-भक्त, मोदी-भक्त लोग, उनके प्रभु नेताओं द्वारा उठाए गए देश-विरोधी कदम का विरोध करने वालों को बोलते हैं कि ये आपिया है, मोदी से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है, पाकिस्तानी है, और न जाने क्या क्या..
मोदी के अंधभक्तों को कैराना से भी दिक्कत नहीं है कश्मीरी पंडितो से भी नहीं.
.
उन भक्तों के इतिहास में, चौदह मई २०१४ के पहले प्रलय का युग था, लेकिन उनके देवता इस लोकसभा चुनाव को जीतने के बाद नया अवतार लेकर आये, जो की गुजरात में मुख्यमंत्री के पद पे रहते हुए अपने ही द्वारा विरोध किये मुद्दों का समर्थन कर उसके लिए कार्य करना चालू किया.
२०१४ के लोकसभा कैम्पेनिंग के लिए हमने भी फेसबुक एवं अन्य सोशल मीडिया पे मोदी को समर्थन देने के लिए काम्पैग्निंग करी थीं, क्योंकि गुजरात का सी एम् रहते हुए उस वक्त मोदी ने ऍफ़ डी आई, एवं अन्य ज्वलंत देशविरोधी मुद्दों का विरोध किया था, जिसके चलते अमेरिका मोदी को वीसा देने से मना किया था, क्योंकि मोदी द्वारा विरोध हए मुद्दों में अमेरिका का कोई हित नहीं था.
.
भक्तों के अनुसार एमटीसीआर और एनएसजी में सदस्यता मोदी के अमेरिका में संसद को संबोधित करने के बाद मिल गयी है, और कई न्यूज़ मीडिया वाले, भी समाचारों की बोली लगाने के चलते, ये झूठी खबर भी छाप रहेहैं की इन दो समूहों में भारत को सदस्यता मिल गयी है, जबकि सच्चाई ये है आज के तारीख में की अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इन समूहों में भारत को सदस्यता देने को साझेदार सरकारों से आह्वान किया कि इस महीने के अंत में एनएसजी के पूर्ण अधिवेशन में भारत के आवेदन का समर्थन करें. अमेरिका ने भारत को ऑस्ट्रेलिया समूह और वासेनार व्यवस्था की सदस्यता जल्द मिलने के लिए भी अपना समर्थन दोहराया। बाद में मोदी ने कहा कि एमटीसीआर और एनएसजी में सदस्यता के संबंध में मेरे मित्र राष्ट्रपति ओबामा ने जो मदद और समर्थन दिया है, उसके लिए मैं आभारी हूं।
ओबामा ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को प्रौद्योगिकी की जरूरत है जो उसकी प्रगति और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हो. 50 सूत्री संयुक्त वक्तव्य में कहा गया कि राष्ट्रपति ओबामा ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल होने के भारत के आवेदन का स्वागत किया और इस बात को दोहराया कि भारत सदस्यता के लिए तैयार है.
.
अब इन समूहों में भारत कीं सदस्यता की या किसी ने देश की सदस्यता इस बात पे निर्भर करती है कि उन समूहों में शामिल सभी सदस्य देशों ने समर्थन दिया हो, जब तक एक भी सदस्य देश विरोध करेगा तो भारत को इन समूहों में सदस्य के तौर पे शामिल नहीं किया जा सकता. चीन तो विरोध कर ही चूका है, ओबामा द्वारा समर्थन दिए जाने से भारत को सदस्यता नहीं मिलने वाली.
भक्तों को इससे कोई मतलब नहीं है.
.
सत्य ये है की भारत को इन देशों द्वारा जो तकनीक हस्तांतरित होती हैं न, वो उन देशों में कई दशक पुरानी होती हैं, जिनमे प्रचालन, मेंटनेंस, एवं अन्य कई खामियां होतीं हैं, उसके साथ साथ, वे देश उन उपकरणोंके बारे में जरूरी प्रचालन से ज्यादा जानकारी कभी हमारे देश के इंजिनियर को नहीं देते हैं, इस तकनीक हस्तानातार्ण के चलते उन आयातित उपकरणों को खोलने लगाने जैसे साधारण मेंटनेंस कार्यके लिए भी विदेशों से उनके इंजिनियर को बुलाना पड़ता है, हमारे यहाँ इंजिनियर सिर्फ उनके द्वारा दिए गए लिमिटेड डाक्यूमेंट्स को पढ़कर उन आयातित उपकरणों को ऑपरेट करना जानते हैं. इसके अलावे किसी उपकरण के बंद पद जाने पे उसकी जांच के लिए नट-बोल्ट को कौन से तापमान पे कितनी बार घुमाना है न, इतनी साधारण सी जानकारी भी हमारे इंजिनियर को नहीं दी जाती उन देशों द्वारा. अगर कोई देश आपको अपनी इतनी मेहनत से हासिल की गयी तकनीक को दे देगा, तो फिर उस देश से वो उपकरण कौन खरीदेगा? इतनी छोटी सी बात भी मोदी क भक्तों पार्टी-भक्तों नेता-भक्तों को समझ में नहीं आती.
अगर तकनीक हस्तानातार्ण का यही हाल है, तो a=इसकी आवश्यकता ही क्या है, इनपे होने वाले खर्चे को इस देश के अनुसंधान संगठनों में कदाचार मुक्त कार्य व प्रशासनिक व्यवस्था को लाकर कुछ ही समय में वैसे तो क्या उन आयातित सामानों से भी उन्नत तकनीक हमारे ही यहाँ बनाया जा सकता है.
.
ऐसे भक्त लोग हम लोग का फेसबुक प्रोफाइल का इतिहास बिना देखे ही हम सबको पाकिस्तानी, मोदी से पर्सनल दुश्मनी इत्यादि रखने वाला, कांग्रेसी, आपिया, साइको न जाने क्या क्या बोलते हैं.
इन लोगो को हमारे फेसबुक प्रोफाइल का इतहास देखना चाहिए, किहम ने पहले भी देश-विरोधी हिन्दू-विरोधी नीतियों को लाने में सम्बंधित नेताओं पार्टियों का कितना विरोध किया था, चाहे वे आप पार्टी का नेता हो की कांग्रेस का या अन्य. हमने डब्लू टी ओ अग्रीमेंट का विरोध नहीं किया था जिसके चलते आपके देश का व्यापार आप चाह कर भी नहीं बढ़ा सकते जिसमे स्पेशल इकनोमिक जोन का प्रावधान भी एक है जो कांग्रेस की देन है, अधिक जानकारी के लिए देखें- https://www.youtube.com/watch?v=LATgjt6V-qA
.
इस समझौते के बाद भारत के नेताओं का यही कहना था की- बेग्गार्स हेव नो चॉइस, अर्थात भिखारियों के लिए दुनिया में सिवाय आत्मसमर्पण के कोई विकल्प नहीं होता या भिखारी वही करते हैं जो भीख देने वाला करवाता है.
.
उन भक्तों के नजर में कोई नेता अगर पत्नी का त्याग किया, कारण चाहे ये हो की उन साहेब की पत्नी उनके मानसिक या बौद्धिक स्तर की न हो या उतनी सुन्दर न हों, भले ही अन्दर की खबर कुछ और हो, ऐसे नेता को संत मान लेते हैं क्योंकि पत्नी को अलग रखना संत होने की झूठी निशानी जो है, भला पत्नी भी कोई जीव होती है, खैर..
सब लोग बिक्री की बोली पे समाचार छापने वाली मीडिया को सच में भारत के संसदीय लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मानते हैं, पूरे भक्ति भाव के साथ, चाहे जमीनी सच्चाई कुछ और ही हो, जिसका सबूत कितना भी चमकता हो, लेकिन ये भक्त जन अपनी भक्ति में कोई कमी नहीं दिखाते.
.
मोदी मेक इन इण्डिया के तहत बड़े ही बेशर्म तरीके से ऍफ़ डी आय को एक नया लबादा ओढाकर मेक इन इण्डिया की बोतल में डालकर ऍफ़ डी आय के ही द्वारा विदेशो को यहाँ अपने प्लांट लगाकर माल खपत एवं माल एक्सपोर्ट करने का अनुमति दिया, अब भक्त कहते हैं, हमारे यहाँ उनका तीस प्रतिशत माल खपेगा, अर्थात आप खरीदोगे, उससे बेनिफिट उन कंपनियों को मिलेगा, जिसे वे अपने यहाँ लेकर जायेंगी डॉलर के रूप में, और ये डॉलर रुपी मुद्रा तभी किसी देश में बढती है न, जब की उस देश का निर्यात वहां उपस्थित विदेशी कंपनियों के निर्यात से अधिक हो.
.
विशेष आर्थिक जोन (SEZ) का मेक इन इण्डिया से कोई लेना देना नहीं। सेज की नीति सन 2000 से जारी है, और सेज में कोई भी भारतीय निवेश कर सकता है। सेज से देश का निर्यात बढ़ता था तो अब तक भारत लगातार व्यापार घाटा क्यों उठा रहा है ? असल में सेज देश की आर्थिक स्थिति को गम्भीर नुक्सान पहुंचा रहा है। सेज लाइसेंस धारियों को कोई कर नहीं चुकाने होते। इससे धनिक वर्ग नेताओ से गठजोड़ बनाकर सेज ले लेते है और आंकड़ों में छद्म निर्यात दिखाते है। सेज काले धन को सफ़ेद करने के लिए भी इस्तेमाल किये जाते है। कर मुक्त उत्पादन के कारण सेज धारियों के मुकाबले में अन्य घरेलु इकाइयां टिक नहीं पाती और बाजार से बाहर हो जाती है, जिससे अर्थव्यवस्था कमजोर होती है।
.
बहरहाल, मेक इन इण्डिया के तहत जो सेज दिए जाएंगे वे देश के लिए बेहद खतरनाक है। क्योंकि इन सेज को फॉरिन टेरेटरी का दर्जा दिया गया है। इन सेज में भारत के क़ानून लागू नहीं होंगे। सड़क, बिजली, पानी, निर्माण आदि सभी का संचालन उस देश के नियमों के अनुसार होगा जिस देश को ये सेज दिए गए है। विवाद की स्थिति में भारत की अदालतों के फैसले भी इन सेज पर लागू नहीं होंगे। और भी बहुत कुछ है। डिटेल मेक इन इण्डिया की प्रोजेक्ट रिपोर्ट में पढ़ लीजिए ,टीवी या अखबार ये सब नहीं बताएँगे।
.
ये सेज लेने की लिए ही शी जिनपिंग भारत आये थे। और यह सुनिश्चित करने के लिए कि उन्हें सेज मिले, वे अपनी सेना भी साथ लेकर आये थे। उन्होंने सेना भारत की सीमा में 5 किमी तक घुसाई और मोदी साहेब से 5 सेज देने के लिए कहा। जब भारत ने चीन को 500 से 1000 एकड़ के 5 सेज दिए तब जाकर चीन ने अपनी सेना हटाई। ये 5 सेज अब चाइनीज टेरेटरी है। भारत के क़ानून वहाँ लागू नहीं होंगे। चीन के आयातित सामान के आगे भी भारत की इकाइयां टिक नहीं पा रही है। अब टैक्स फ्री ये 5 सेज भारत की लगभग 5 लाख इकाइयों को बंद करने के लिए काफी है।
.
इसके अलावा मेक इन इण्डिया में निवेश का विकल्प सिर्फ सेज नहीं है। अन्य विकल्प भी है। जो कि और भी घातक है : Industrial Parks, Industrial corridors, Special Economic Zones, NIMZ - National Investment & Manufacturing Zones, Sector specific clusters, Country specific zones,
चीन में विदशी कंपनियों द्वारा अर्जित लाभ को वही कंपनियां, उस मूल्य का सामान बनाकर उसे बेचकर उससे अर्जित संपत्ति को अपने देश प्रॉफिट के रूप में ले जा सकती है. अभी की हालतये है की चीन विदेशी कंपनियों के अधिग्रहण की तरफ काफी रफ्तार से आगे बढ़ा है.
इसीलिए अमेरिका एवं अन्य विदेशी नेताओं का ये वक्तव्य आता है की चीन में व्यापार करना कठिन होता जा रहा है, अपेक्षाकृत भारतके, क्योंकि भारत उन देशों का लाभ, अपनी कंपनियों को घाटे में रखकर कर रहा है.
अब ऐसा लाभ जो देश देता हों, उस देश के प्रधानमन्त्री को मानवता का रखवाला, सबका भला चाहने वाला, वसुधैव कुटुम्बकम इत्यादि का महान विचार रखने वाला, नास्त्रेदमस की काल्पनिक भविष्यवाणी में जिक्र करवा देने जैसा कार्य ये लोग क्यों नहीं करेंगे, क्योंकि वे जानते हैं की भारतीयों को तीन तरीकों से फुसलाया जा सकता है-
पहला है- उनका इतना प्रशंसा कर दो कि सर से पाँव तक उनको इतना फुला दिया जाए कि ज्ञान व कॉमन-सेंस उनके भेजे से दूर दूर का भी रिश्ता न रहे.
दूसरा है- उनके बीच आपस में इतना फूट दाल दो, उनके ऊपर आराजकता का इतना बोझ दाल दो की समय न बचे इन सब बातों को सोचने का,
तीसरा है- सबको रोटी के लिए गुलाम बना दो जससे वे भारतीय जनमानस तुम्हारे ऋणी होकर विरोध में कुछ नहीं बोलेंगे और न ही कुछ करेंगे,, क्योंकि भारतीयोंमें नमकहरामी अपने ही लोगों के विरोध में अधिक होती है, रोटी देने वाले के विरोध में कभी नहीं करेंगे.
 .
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि भारत में टेलीकॉम क्षेत्र में एक कम्पनी 'X' ने 100 करोड़ डॉलर ( 100 * 60 = 6000 करोड़ रूपये) का निवेश किया, और अगले 10 साल में भारत में इस कम्पनी की संपत्ति 6000 करोड़ रुपये से बढ़कर 18,000 करोड़ हो गयी तो भारत सरकार इस कम्पनी को 300 करोड़ 'डॉलर' चुकाने के लिए बाध्य है। अब आप अनुमान लगा सकते है कि भारत में कितनी विदेशी कम्पनियां काम कर रही है और मोदी साहेब कितनी तेजी से इन्हे भारत में बुला रहे है। लेकिन इस बात पर मोदी साेहब चुप्पी साध कर बैठे है कि हम इन्हे इत्ता डॉलर कहाँ से देंगे ?
.
इस तरह जितनी भी विदेशी कम्पनियां भारत में निवेश करके मुनाफा कमा रही है, उतना ही हम पर डॉलर चुकाने का भार बढ़ता जा रहा है। हम पर पहले से ही डॉलर का कर्ज है, और हमसे ये चुकाया नहीं जा रहा। व्यापार घाटा बरसो से जस का तस है, मतलब हम आयात करके भी डॉलर गंवा रहे है। सरकार के पास सिर्फ 400 टन सोना है ,और मंदिरों का सोना खींच कर इस सोने की गारंटी विदेशी निवेश के बदले दी जा रही है। ऐसी हालत में जब ये कम्पनियां रुपये के बदले डॉलर की मांग करेंगी तो हमारी हालत दक्षिण कोरिया जैसी हो जाएगी। हमें डॉलर चुकाने के लिए अपने सभी खनिज संसाधन और राष्ट्रीय सम्पत्तियां इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के हवाले करनी पड़ेगी।
.
और मोदी भगत इतने गहरे नशे में जा चुके है कि वे मोदी साहेब के इन फैसलों को उनकी उपलब्धियां बता रहे है !!
.
मेरा कहना यह है कि हमें तुरंत प्रभाव से रूपये के बदले डॉलर चुकाने के वादे को रद्द करना चाहिए। चीन पर अमेरिका से काफी दबाव बनाया लेकिन चीन ने अमेरिकी कम्पनियों को मुनाफे के बदले डॉलर चुकाने से इंकार कर दिया था। इसीलिए चीन अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बना सका।
.
आर्थिक - देश के नागरिकों से लगातार यह जानकारी छुपाई जा रही है कि --- जितनी भी विदेशी कम्पनियां निवेश लेकर आ रही है मोदी साहेब ने इन कम्पनियों को रूपये में कमाए गए मुनाफे के बदले डॉलर चुकाने का वादा किया हुआ है। इस तरह जब हम पर डॉलर पुनर्भरण का भार पड़ेगा तो भारत बर्बाद हो जाएगा।
.
=============================================
भक्तों के अनुसार जिस अमेरिका की बात होती है उसकी खुद की आर्थिक स्थिति चिंताजनक है और यह स्थिति काफी सालो बाद आई है',
इसका जवाब यही है कि
किसी भ देश की आर्थिक स्थिति सैन्य शक्ति पर निर्भर करती है।यदि देश के पास ताकतवर सेना है तो वह किसी भी बहाने से अन्य देश पर हमला करके उनके प्राकृतिक संसाधन लूट सकता है। अमेरिका की सेना बहुत ताकतवर है, अत: उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहद मजबूत है। और नहीं है तो कभी भी सैन्य शक्ति का प्रयोग करके अमेरिका खुद को आर्थिक रूप से फिर से खड़ा कर सकता है।
.
हथियरो के सौदो में टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर सबसे बड़ी जरुरत होती है,,और इमरजेंसी में स्पेर पार्ट्स की उपलब्धता और तकनिकी सहयोग के बिना हम युद्ध नहीं लड़ सकते. अमेरिका का रिकॉर्ड हमेशा से ख़राब रहा है. वो हमें हमेशा ब्लेकमेल करते आये है. हमें सैन्य मदद के बदले वो हमारी मार्किट उनकी कंपनियों के लिए खोलने की शर्त रखते आये है.
मोदी साहेब विदेशी को तरजीह तो दे ही रहे है , पर मेरा सख्त ऐतराज इस बात से है कि वे नागरिकों से यह सच्चाई क्यों छुपा रहे है कि भारत को इन सभी कम्पनियों को रुपयों के बदले डॉलर चुकाने है ? यदि देश के नागरिकों तक यह बात पहुँच जायेगी तो उनके पैरो तले जमीन निकल जायेगी।
.
सामरिक - नागरिकों को इस तथ्य से भी अनभिज्ञ रखा जा रहा है कि --- विदेशी कम्पनियां जो भी हथियार बनाती है उनमे 'किल स्विच'* इंस्टॉल करती है, और मेक इन इण्डिया के तहत भी भारत में बनाये गए सभी हथियारों में किल स्विच होंगे।
.
(*) किल स्विच बेहद सूक्ष्म हार्ड वेयर डिवाइस होते है जिन्हे निर्माण के दौरान सर्किट में इंस्टॉल कर दिया जाता है। जब इंस्टॉल करने वाला इन्हे निर्देश भेजे तो ये किल स्विच सर्किट को उड़ा देता है और हथियार बेकार हो जाता है। ( please google on 'hardware trojan weapons')
.
सब से बड़ा और 'खतरनाक' झूठ यह फैलाया गया है कि विदेशी कम्पनियां भारत को तकनीक का हस्तांतरण करेंगी। असल में तकनीक का हस्तांतरण व्यवहारिक नहीं है, और न ही ऐसा हस्तांतरण संभव है.
.
आज मोदी के युग में भी इतिहास अपने आप को फिर से दोहरा रहा है आज मोदी प्रधानमंत्री है और पूर्ण बहुमत भाजपा के पास है, कोई गठबंधन की मजबूरी नहीं इस सरकार के पास!!
लेकिन मोदी ने इन नेताओ की तरह दोहरा चरित्र दिखा दिया और तकनीक ट्रान्सफर के नाम पे विदेशी कंपनियो को मेक इन इण्डिया का नया लबादा ओढाकर भारत में कांग्रेस से भी कई गुना अधिक छूट दे दी !!
.
समाधान के लिए देश मे
.
TCP 1- TRANSPARENT COMPLAINT PROCEDURE -
https://www.youtube.com/watch?v=OZKwL6wI9uc
.
पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186
जैसे कानून की मांग करनी चाहिए।
.
आम-नागरिक कैसे स्वदेशी बढ़ा सकता है, केवल 3 एस.एम.एस. करके, इसकी अधिक जानकारी के लिए कृपया www.tinyurl.com/SwadeshiBadhao देखें |
.
इन कानूनों के ड्राफ्ट को क़ानून का रूप देने को आप अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/sms / पोस्टकार्ड / ट्विटर इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप आदेश भेजें, इस आदेश का अर्थ यह है की जनादोलन की तरह हम उन नेताओं पे इन कानूनों को लाने का दबाव बनाएं.
यह आदेश कोई फालतू एवं टाइम पास नहीं है, आप इन ड्राफ्ट्स को पढ़ कर देखें.
ये पूर्णतया सांवैधानिक है क्योकि भारत एक संप्रभु व जनतंत्र देश है.
.
दुनिया भर में जनतांत्रिक संसद या संसदीय लोकतंत्र के बारे में राय है की जबतक इस संसदीय जनतंत्र पर जनता का दबाव नहीं होगा तब तक यह जनतंत्र भेड़-तंत्र अर्थात जनता भेड़ बनी रहेगी और नेता भेड़िया बनकर जनता का खून पिएगा. खैर...
.
आप अपना सांवैधानिक आदेश अपने नेताओं को इस तरह भेज सकते हैं-
------->
"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186 क़ानून को ,
स्वदेशी बढ़ाने वाले ड्राफ्ट www.tinyurl.com/SwadeshiBadhao को
राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर भारत में लाये जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या-xyz"
.
अन्य ड्राफ्ट्स की जानकारी एवं इसके लये आप क्या कर सकते हैं कृपया देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1050724298353892:0
.
.
भक्तों के अनुसार 'सारी दुनिया का माल चीन कापी करता है और चीन का माल भारत कापी करता है केवल कम लागत की वजह से माल चीन से आ रहा है'
.
यदि आप कॉपी करते है लेकिन कॉपी के बावजूद उसकी लागत कम नहीं कर पाते तो आप बाजार में टिक नहीं पाएंगे। इसीलिए ऐसी कॉपी करने का कोई लाभ नहीं। चीन सस्ता माल इसीलिए बना पा रहा है क्योंकि वहाँ चीन की सरकार ने भूमि सुधार किये और चिंकी अदालतों में भ्र्ष्टाचार कम है। वहाँ की अदालतें ज्यादा फुर्ती से निष्पक्ष फैसले देती है, जिससे व्यापार शुरू करना और संचालित करना आसान है। चीन में सभी जजों की नियुक्ति सिर्फ लिखित परीक्षा के माध्यम से की जाती है जिससे भाई भतीजा वाद नहीं है। साथ ही चीन में जजों की संख्या 2 लाख है।
.
भारत में जजों की नियुक्ति साक्षात्कार से की जाती है अत: भरष्ट जज निकम्मे और भ्रष्ट अभ्यर्थियों को जज बनाते है। इसके साथ ही फैसले देने में भाई भतीजा वाद का बोलबाला है। भारत में सिर्फ 17000 जज है अत: सालो तक फैसले नहीं आते और मुकदमों के लम्बित रहने से उत्पादन की लागत बढ़ जाती है।
.
समाधान ?
.
भारत में जजों की संख्या बढ़ाकर 2 लाख की जानी चाहिए। जजों की नियुक्ति और नौकरी से निकालने का अधिकार नागरिकों को दिया जाना चाहिए। ज्यूरी प्रक्रियाएं लागू की जानी चाहिए। तथा निर्माण इकाइयों को प्रोत्साहन देने के लिए संपत्ति कर लागू किया जाना चाहिए। इन उपायों से भारत आसानी से कुछ ही समय में तकनीक. लागत और उत्पादन के क्षेत्र में चीन को पीछे कर देगा।
जय हिन्द.

Comments

Post a Comment

कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.

Popular posts from this blog

चक्रवर्ती योग :--

जोधाबाई के काल्पनिक होने का पारसी प्रमाण:

क्या द्रौपदी ने सच में दुर्योधन का अपमान किया था? क्या उसने उसे अन्धपुत्र इत्यादि कहा था? क्या है सच ?

पृथ्वीराज चौहान के बारे में जो पता है, वो सब कुछ सच का उल्टा है .

ब्राह्मण का पतन और उत्थान

वैदिक परम्परा में मांसभक्षण का वर्णन विदेशियों-विधर्मियों द्वारा जोड़ा गया है. इसका प्रमाण क्या है?

द्वापर युग में महिलाएं सेनापति तक का दायित्त्व सभाल सकती थीं. जिसकी कल्पना करना आज करोड़ों प्रश्न उत्पन्न करता है. .

ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पुरुष का अर्थ

चिड़िया क्यूँ मरने दी जा रहीं हैं?

महारानी पद्मावती की ऐतिहासिकता के प्रमाण