सेनेटरी नैपकिन को टैक्स-फ्री किया जाना चाहिये.

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अगर आप सच सुनना नहीं चाहते हैं और अँधेरे/झूठ में जीना अगर आपकी आदत बन चुकी है तो आप यक़ीनन एक पागल हैं !! 
बुरा मत मानिए....!
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जिस देश में सेनेटरी पैड्स का प्रयोग मात्र 13% महिलाएं कर सकतीं हैं क्योंकि शेष आबादी की महिलाओं के लिए इसे उपयोग करना महंगा है, उस देश में सेनेटरी पैड्स पर 42% कर लगा कर सरकार क्या साबित करना चाहती है?
क्या इस सरकार को कोई शर्म नहीं है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, हमारे देश में महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति का परफॉरमेंस कितना लज्जित करने वाला है, उस देश में मोदी जेटली को इस पर टैक्स लगाने में कोई शर्म नहीं आ रही है !! 
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जी एस टी पास होने के पहले हमें ये बताया गया था कि जो रोजमर्रा की वस्तु हैं, उन वस्तुओं को जी एस टी के टैक्स के दायरे से बाहर रखने कि बता हुई थी, लेकिन अब जब जी एस टी पास हो चुका है तब इस पर जी एस टी सहित कुल टैक्स बढ़ाकर ४२ % किया गया है, यहाँ तक कि बिंदी सिन्दूर जैसी चीज़ों जो रोज उपयोग में आतीं हैं. उनपर भी जी एस टी लागू किया जा चुका है है ..!! खैर.....बिंदी या सिन्दूर उतनी जरूरी चीज नहीं है, जितना कि सेनेटरी पैड्स !
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वस्तुतः सरकार को ये पैड्स पिछड़े तबके के लोगों में महिलाओं को मुफ्त में बांटना चाहिए जिस तरह से सरकारी अस्पतालों में कंडोम मुफ्त में बांटा जाता है !! 
सेनेटरी पैड्स एक ऐसी वस्तु है जिससे आधी आबादी के शरीर के लिए इतनी आवश्यक है कि इसके बिना अंदरूनी हिस्से में इन्फेक्शन होने के सर्वाधिक संभावना बनती है !!
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सरकार को समझना चाहिए कि जिस तरह से जनसँख्या नियंत्रण के लिए कंडोम आवश्यक है, उसी तरह से महिलाओं के स्वास्थ्य की रखा के लिए सेनेटरी पैड्स को मुफ्त बांटा जाना उपयोगी है !!
जो सरकार महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में लापरवाह हो सकती है, उससे अन्य कुछ भी अच्छे कानूनों को पास करवाने की उम्मीद करना बेमानी है !! 
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हम ये चाहते हैं की कमाई व असेट के अनुसार कर की दर का निर्धारण हो ताकि गरीबों पर कर ना लगे लेकिन अब मोदी सरकार जो चीज हर महीने जिस वस्तु की आवश्यकता देश की आधी आबादी को पड़ती है उस पर मोदी सरकार ने सबसे अधिक कर लगाया है !
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मुझे समझ नहीं आ रहा कि जो चीज सरकार को फ्री देनी चाहिए उस पर 42% कर कैसे जायज है?
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ईश्वर ने महिला को हर महीने कुछ कपडे का इस्तेमाल करने का आदेश दिया है लेकिन इस पर भारी कर वसूल करना कहाँ तक जायज है ?
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क्या सेनेटरी पैड्स पर टैक्स बढाया जाना उचित है? ये पैड्स एक जरूरत की वस्तु है, है न की कोई महिला इसे शौकिया इस्तेमाल करती है !! ये एक ऐसा उपयोगी सामान है, जो भोजन की तरह हर महीने के खर्चे में आता है. !!
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अगर सरकार इसे महंगा करती है तो महिलाओं के पास चीनी टैम्पन उपयोग में लाने के आलावा और कोई उपाय नहीं बचेगा, लेकिन इसमे शरीर के अंदरूनी हिस्से का हेइमन नष्ट होने की सर्वाधिक संभावना होती है लेकिन ये काफी सस्ती वस्तु भी है, जो सिलिकॉन से बनी होती है, और काफी कम खर्च में लम्बे समय तक उपयोगी होता है, लेकिन चूंकि शादी से पहले हमारे यहाँ, हैमैन का भंग होना असभ्य माना जाता है, अतः, इस वस्तु का उपयोग यहाँ नाजायज है. 


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मुझे आश्चर्य है कि इस विषय पर किसी महिला मंत्री या दिल्ली के महिला आयोग ने कुछ बोला नहीं अभी तक !!
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कुछ नैसर्गिक क़ानून जो बिना किसी संविधान के हमारे देश में अस्तित्व में हैं, जिसमे से एक क़ानून ये है कि जिस वजह से मानवों में जन्म होता है, उस वजह को यहाँ मर्यादित शब्दों में सार्वजनिक मंच पर चर्चा करना जरूरी नहीं समझा जाता..वस्तुतः इस तरह के विषयों पर बात करने वालों-वालियों को चरित्रहीन होने का तमगा तक दे दिया जाता है !! आश्चर्य है कि ये लोग कहाँ से आते हैं !
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बात है मानव-शरीर के व्यक्तिगत हिस्से कि, जहाँ पर सिवाय आपके, अन्य किसी को छूने का अधिकार नहीं होता.
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क्या किसी के शरीर के व्यक्तिगत हिस्से से रक्त-स्राव होता हो, तो टैक्स भरा जाना चाहिए? बिलकुल नहीं !
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क्या सेनेटरी पैड्स के ऊपर टैक्स वृद्धि उचित है ? क्या इस विषय में देश के अंदरूनी हिस्से और गांवों में जहाँ महिलाओं को अपने शरीर के व्यक्तिगत सफाई के बारे में जानकारी का अभाव होता है, वहां जानकारी नहीं पहुंचनी चाहिए? उन इलाकों में तो उपयोग में लायी जाने वाली साड़ियों या अन्य कपड़ों के टुकड़े को धोकर साफ़ जगह पर सुखाने की भी सुविधा नहीं होती !
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कई गांवों में महिलाएं, उन कपड़ों को साफ़ करके गोबर के गोयठों को जलाकर उसपर सुखाती थीं, क्योंकि उनके यहाँ सुखाने के लिए आवश्यक जगह नहीं थी, परिणाम में उन महिलाओं के पेट में इन्फेक्शन एक कारण कण-खजूरे की गाँठ बन चुकी थी, जिसके इलाज के लिए ऑपरेशन कराना पड़ा.
उन गांवों में उन वस्त्रों को बदलने के लिए जगह भी नहीं होते !!
क्या उन गांवों में जीवन के लिए आवश्यक सामग्री के ऊपर टैक्स छूट नहीं होनी चाहिए?
वस्तुतः, शरीर के इस हिस्से में होने वाला इन्फेक्शन, पेट के अन्दर पहुंचकर बड़ा इन्फेक्शन उत्पन्न करता है जिसका परिणाम गंभीर भी हो जाता है, जिसे इस सरकार ने जी एस टी के दायरे में आने वाली वस्तुओं की लिस्ट तैयार करने के समय अपने ध्यान में रखना आवश्यक नहीं समझा.
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सामाजिक बंदिशें भी कुछ बिलकुल अजीब तरह की हैं जिसमे बिकनी या पैंटी धुप में सुखाना शर्मनाक या वर्जित माना जाता है, जहाँ महिलाएं इन वस्तुओं को धुप में सुखाने के बजाय किसी साडी के नीचे या छाँव में या बंद या अँधेरे कमरे में सुखाना अच्छा समझतीं हैं !!
बात ये है कि इन वस्तुओं को पूरा साफ़ रखना जिंदगी में बीमारियों से बचने के लिए काफी आवश्यक है, जिसे सार्वजनिक चर्चे के द्वारा, इन वस्तुओं से जुड़े जितने भी अंधविश्वास हैं, वो लोगों के मन से दूर हो सकेगा !!
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अन्य अंधविश्वासों में लोगों के यहाँ, इस समय में पीड़ित महिला से संपर्क भी कम रखना चाहिए, जबकि वे ये समझना आवश्यक नहीं समझते कि इन अवस्थाओं के समय तबियत बिगड़ने की ज्यादा चांसेस होतीं हैं, लेकिन इन बातों को लोग नजर-अंदाज कर देते हैं !! इस अवस्था में लोगों के यहाँ, ऐसी भी प्रथा है कि आपके यहाँ का भगवान पीड़ित को न देखें, और पीड़ित भगवान को न देखें !!
आश्चर्य की बात है न ये !! अगर भगवान देखना बंद कर दें तो दुनिया में सबकी साँसे न बाद हो जाए ?
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किसी किसी समुदाय में तो पंडितों से पीरियड्स के शुरू होने का मुहूर्त पता करवाय जाता है कि महिला को जिस समय पीरियड शुरू हुआ वो कौन सा मुहूर्त था .
कुछ मामलों में तो ये लोग, कुछ महीनो तक कोई धार्मिक कार्य करवाते हैं न जाने क्यों !
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इस देश में लोग भारतीय परंपरा के नाम पर, कंडोम या सेनेटरी पैड्स के नाम पर कोई भी डिस्कशन एक तरह से भारतीय परंपरा के ही खिलाफ माने जाते हैं, लेकिन वे शायद नहीं जानते कि अनादी काल में भी आपके ही महान हिन्दू धर्म में भी जनसँख्या नियंत्रण के लिए कुछ ख़ास तरह के फूल या फल का सेवन जरूरी होता था, लेकिन आप सबके अकर्मण्य होने की वजह से ही उन प्राचीन विद्याओं को संरक्षित नहीं रखा जा सका, और आज हम महिला-स्वास्थ्य के लिए आवश्यक बात कर रहे हैं तो हमें किसी भी धर्म की दुहाई लेने की कोई आवश्यकता नहीं है !!
क्या धर्म में स्वास्थ्य की बात करना, अप्रदः है, या परंपरा के खिलाफ है ??
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नहीं ना !!
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तो फिर, आप कौन होते हैं, परम्परा के आम पर अपनी ही आधी आबादी के उपयोगी अंग के लिए उन्हें अँधेरे में रखने वाले ? क्या आपका धर्म यही सिखाता है कि मूर्तियों के रूप में स्त्रियों को पूजो और वास्तविक सच्चाई में उनके स्वास्थ्य से सम्बंधित मुद्दों पर जी चुराओ !!
अर्थात ये कि आपका धर्म, आपको साफ़ एवं स्वस्थ रहने की भी गारंटी नहीं देता !! खैर....हमें इस विषय पर आपके विचार जानने की आवश्यकता नहीं है !!
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वास्तव मेे पीरियड्सं सेलिब्रेट करने की चीज़ें हैं कि हाँ, सम्बंधित स्त्री में जीवन धारण करने के लिए आवश्यक अंडाणु बनने तैयार हो गए, इसीलिए यहाँ लोग कामाख्या देवी की भी तंत्र साधना करते हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि इन देवी मा को पीरियड्स आतीं हैं, इन दिनों में इनकी तंत्र साधना फलीभूत की जाती हैं !!
देवी देवता को मानने वाला समुदाय, दैनिक जींदगी में बिलकुल उल्टा मानसिकता को जीता है !!
मुझे व्यक्तिगत रूप से ये लगता है कि कुछ समुदायों में लिखित धर्म ग्रंथों में इस तरह से दिखाया जाता है कि नहीं हम जिस तरह से दीखते हैं,वास्तव में उस तरह से नहीं हैं जबकि सच्चाई इसके पूर्णतया उलट है !!
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वस्तुतः, इस देश में मात्र पंद्रह प्रतिशत महिलाएं ही सेनेटरी पैड्स एवं टैम्पन उपयोग करतीं हैं, इनमे से कई ताकतवर महिलाएं भी हैं, लेकिन किसी ने कोई बयान नहीं दिया !! इन लोगों को तो इस विषय पर एक तरह का कैंपेन चलाना चाहिए !!
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पीरियड्स:- वस्तुतः जब अंडाशय अंडाणुओं को हर माह उत्पन्न करता है जो फेलोपियन ट्यूब में आके रहता है, अब अगर अंडाणु एवं शुकार्नु मिलते हैं तो मादा प्रेग्नेंट हो जताई है, और हर माह ये नहीं होता है. गर्भाशय में इसके दीवारों पर चारों और संभावित बच्चे को सहारा देने के लिए रक्त की एक दीवार नुमा चीज़ बन जाती है, जो गर्भ नहीं रहने पर या जो महिला सेक्सुअली एक्टिव नहीं रहती हैं, उनको पीरियड्स आ जाते हैं, तो पीरियड्स में यही रक्त निकलता है. 
इस घटना को शुक्ल=पक्ष या कृष्ण पक्ष से मतलब नहीं होता है, बल्कि ये एक शारीरिक चक्र है, जो २८ दिनों का या ३० दिनों का होता है. किसी किसी को इस दरम्यान शरीर में रक्तस्राव के चलते पौष्टिक रसायनों की कमी भी हो जाती है या अनियंत्रित हो जतिन है जिसके चलते पेट में दर्द काफी बढ़ जाता है. 
किसी किसी को इस अमे में एंग्जायटी भी हो जाती है या कुछ अन्य ख़ास वस्तुओं को खाने का मन भी करता है.
इन सभी समस्याओं के लिए शरीर में आवश्यक रसायनों की पूर्ती जरुरी है न कि ये कोई काला जादू है !
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बात करते हैं, हमारे विद्यालयों की जहाँ अगर सह-शिक्षा है तो शिक्षक या शिक्षिकाएं प्रजनन के अध्याय को ही छोड़ देते हैं और अगले अध्याय को पढाने लग जाते हैं, लेकिन अगर स्कूल में ही उपरोक्त विषयों को लेकर जागरूकता उत्पन्न कर दी जाए तो आगे चलकर पुरुष वर्ग भी इस विषय को गंभीरता से समझने का प्रयास करेगा और तब यह विषय कोई शर्मनाक विषय न रह कर मूल रूप से जीविज्ञान या शरीर-विज्ञान का हिस्सा के रूप में लोगों के बीच में जाना जाएगा.
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उपाय के लिए ट्विटर पर आप अपने अकाउंट से माननीय प्रधानमन्त्री को ट्वीट करें इस तरह से - #CancelTAXonSanitaryNapkinsAndTampons @PMO India 
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अधिक जानकारी के लिए देखें- https://www.youtube.com/watch?v=1ZPRUVI29C4
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जय हिन्द. जय भारत

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