भगवान श्रीराम को न्याय कौन दिलाएगा?

क्या हिन्दुस्तान के संसदीय लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था में इतना बल है, इतना आत्म-सम्मान है कि वो भगवान श्रीराम को उनका महल वापस लौटाने का न्याय दिला सके? 
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नहीं है इतना बल, क्योंकि हमारी सरकारें विदेशी सहायता से ही बनती है.
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देश के अन्य मंदिर व अयोध्या में राम मंदिर --- बीजेपी एवं संघ ने राम मंदिर मुद्दे का अपने निजी स्वार्थ के लिए जिस तरह से राजनैतिक करण किया है उससे हिन्दू धर्म को क्षति हुई है और आगे भी यही दिशा बनी रही तो यह मुद्दा हिन्दू धर्म को परोक्ष रूप से नुकसान ही पहुंचाएगा।
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आज सभी राजनैतिक पार्टियां एवं बुद्धिजीवीयों के समूह -- "अदालत का फैसला मानेंगे" की पुकार लगा रहे है। लेकिन इस मुद्दे को कोर्ट के हवाले कर देना अब अलोकतांत्रिक भी है।
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यह मामला अदालत में सबसे पहले 1885 में पहुँचा था, जब महंत रघुबर राम ने बाबरी मस्जिद के हिस्से में राम मंदिर निर्माण के लिए दावा किया था। तब के जिला जज ऍफ़. केमैर ने फैसला दिया था कि -- "मैंने सभी पक्षो की उपस्थिति में विवादित जगह का व्यक्तिशः अवलोकन किया है। यह साफ़ है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण राम मंदिर पर किया गया है। लेकिन, इस घटना को 356 वर्ष बीत चुके है, अतः यथास्थिति बनाये रखना ही उचित है।" आजादी के बाद मुकदमा 1949 में दायर हुआ और आज 2017 चल रहा है। अदालत चाहे तो अभी इस मामले को कई और दशको तक खींच सकती है।
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इस मुकदमे में पक्षकार निर्मोही अखाड़ा एवं सुन्नी वक्फ बोर्ड है। और अदालत जो भी फैसला देगी वो मुकदमे के पक्षकारो के लिए होगा। देश के करोड़ो श्रद्धालु न तो इसमें कानूनी तौर पर पक्षकार है और न ही उनका कोई कानूनी दखल है। लेकिन मामले के शुरू होने से अब तक इसमें एक बड़ा परिवर्तन आ चुका है। अब यह मुद्दा देश के करोड़ो हिन्दुओ की आस्था से जुड़ चुका है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि देश के नागरिको का बहुमत अमुक स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए सहमत है।
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भारत में संसद सर्वोच्च है, और संसद को सर्वोच्च्ता की यह शक्ति संविधान में लिखे होने के कारण नहीं बल्कि इस वजह से मिलती है क्योंकि संसद में प्रतिनिधि जनता द्वारा चुन कर आते है और उनके बहुमत का प्रतिनिधित्व करते है। भारत में सुप्रीम कोर्ट के जज न तो जनता द्वारा चुन कर आते है , और न ही जनता भ्रष्ट और निकम्मे जजो को नौकरी से निकाल सकती है। तो किस आधार पर करोडो नागरिकों की आस्था से जुड़े इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला "निर्णायक" माना जा सकता है !!
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जहाँ तक बीजेपी का प्रश्न है, उन्होंने पिछले 27 सालो से इस मामले में जनता की आँखों में धूल झोंक के रखी हुयी है। 1990 से 2014 तक लगातार इनके नेता यह कहते रहे कि हम मंदिर बनाएंगे, हमें वोट दो। और सत्ता में आने के साथ ही इन्होंने नयी लाइन ले ली। अब इनका कहना है कि -- "यह मामला अदालत में है" !! पर अदालत में तो मामला 1949 से ही चल रहा है। तब बीजेपी के किसी भी नेता ने यह नही कहा कि, यह मामला अदालत में है !!
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यदि बीजेपी एवं संघ इस विषय पर अदालत के फैसले का सम्मान करना चाहते है, तो उन्हें आज यह स्पष्ट करना चाहिए कि यदि अदालत खिलाफ फैसला देती है तब भी क्या वे इस फैसले को मानेंगे ? लेकिन वे इस पर स्पष्टीकरण नहीं देंगे। वे कहेंगे कि अभी अदालत का फैसला आने दीजिये। फिर देखेंगे। और यह देखा देखी पिछले 27 साल से चल रही है। चुनाव में वे कहते है कि हम क़ानून बनाकर मंदिर बनाएंगे और सत्ता में आकर कहते है कि , मामला अदालत में है या आपसी सहमति से रास्ता निकालेंगे। जब आपको आपसी सहमति से रास्ता निकालना है तो वह तो आप बिना वोट मांगे या सत्ता में आये भी निकाल सकते है। इसके लिए आपको वोट क्यों चाहिए। जब आप वोट लेकर सत्ता में आये है तो क़ानून बनाकर मामला खत्म करो। वोट मंदिर के नाम पर बीजेपी ने मांगे है, कोर्ट ने नहीं।
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बीजेपी एवं संघ ने इस विशुद्ध अराजनैतिक आंदोलन का राजनैतिक करण किया और राम नाम पर वोट खींचे। लेकिन सत्ता में आने के साथ ही उन्होंने यह जिम्मेदारी अदालत के खाते में डाल दी। बीजेपी का दखल इस मामले में सिर्फ वोट खींचने की हद तक सीमित है, और बीजेपी खुद इस मुकदमे में पक्षकार भी नहीं है !!!
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पिछले 27 सालो ने बीजेपी एवं संघ ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को इस तरह रगेदा है कि हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक कानूनों की बात पृष्ठभूमि में चली गयी है। पूरे देश में लाखों की संख्या में मंदिर है, और इनका प्रशासन लगातार बदतर हो रहा है। मंदिर हिन्दू श्रद्धालुओ के नियंत्रण में होने की जगह सरकार के नियंत्रण में है और दान में आये कोष का इस्तेमाल मिशनरीज धर्मान्तर में कर रही है। इन लाखों मन्दिरो के प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए हमें एसजीपीसी की तरह एक मजबूत क़ानून की जरूरत है, किन्तु बीजेपी एवं संघ ने हिंदूवादी कार्यकर्ताओ को पिछले 27 साल से राम मंदिर पर नारे लगाने में उलझा कर रखा हुआ है।
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इस तरह से हिन्दू वादी कार्यकर्ताओ के लगभग 30 साल राम मन्दिर मुद्दे की भेंट चढ़ चुके है। न तो मंदिर बना है और न ही बनता दिख रहा है और इस चक्कर में देश के अन्य लाखों मंदिरो का प्रशासन भी बदतर होता जा रहा है। बीजेपी एवं संघ का शीर्ष नेतृत्व जानता है कि यदि राम मंदिर निर्माण हो गया तो कार्यकर्ता इस मुद्दे की पकड से आजाद हो जायेंगे और देश के अन्य मंदिरों की दशा सुधारने पर ध्यान देने लगेंगे। इसीलिए उन्होंने हिंदूवादी कार्यकर्ताओ के 30 साल इस एक मंदिर को लटकाए रखने के लिए ही बर्बाद कर दिए। और इस एक मंदिर को बनाने के लिए भी क़ानून नहीं बनाया। इसके अलावा मथुरा में कृष्ण और काशी में विश्वनाथ मंदिर निर्माण के मुद्दे को बीजेपी एवं संघ के नेता कब से पानी में घोलकर पी चुके है।
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समाधान ?
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हमने जिस क़ानून का प्रस्ताव किया है उसके गेजेट में प्रकाशित होने से अयोध्या में राम, मथुरा में कृष्ण और काशी में विश्वनाथ देवालय का निर्माण कानूनी रूप से किया जा सकेगा, तथा देश के अन्य सभी मंदिरों के प्रशासन में भी सुधार आएगा, तथा हिन्दू धर्म मजबूत होगा। इस क़ानून को पास करने के लिए किसी संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं है और न ही राज्य सभा में बहुमत की आवश्यकता है ।
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इस क़ानून के तहत संसद अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए अयोध्या, मथुरा एवं काशी के तीनो भूखंड अधिगृहित करेगी और "राष्ट्रीय देवालय ट्रस्ट" को अनुदान में दे देगी। इस ट्रस्ट के ट्रस्टीयो पर हिन्दू नागरिको का सीधा नियंत्रण होगा। इस क़ानून में इन तीन मंदिरों के अलावा देश के अन्य सभी मंदिरों के प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए भी व्यवस्था दी गयी है। अत: इससे हिन्दू धर्म के सभी मंदिर, मठ, आश्रम आदि के प्रशासन में सुधार आएगा।
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इस क़ानून को प्रधानमन्त्री चाहे तो जनमत संग्रह द्वारा भी लागू कर सकते है। यदि इन तीन भूखंडो पर मंदिर निर्माण के लिए यदि जनमत संग्रह करवाया जाता है तो यह तय है कि देश के 51% मतदाता "हाँ" के लिए वोट करेंगे। क्योंकि देश के मुस्लिम नागरिको के एक बड़े वर्ग को भी इन तीन भूखंडो पर मंदिर निर्माण को लेकर आपत्ति नहीं है। लेकिन उन्हें भय है कि बीजेपी इन तीन मंदिरों के बाद इस संख्या में इजाफा करके इसे 300 से 3000 तक पहुंचा देगी। जहाँ तक हिन्दू समुदाय की बात है उनकी रुचि भी इन तीन भूखंडो पर मंदिर निर्माण तक सीमित है। अत: यदि यह स्थापित कर दिया जाए कि यह मामला इन तीन मंदिरों तक सीमित रहेगा तथा इस मुहीम को विस्तारित नहीं किया जाएगा तो यह तय है कि जनमत संग्रह से बेहद सौहार्दपूर्ण ढंग से इस समस्या का हल निकल आएगा। और जनमत संग्रह में बहुमत आने के बाद इसे आसानी से संसद से पास किया जा सकता है।
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यदि मोदी साहेब यह नहीं चाहते कि इस मुद्दे पर देश के करोड़ो नागरिको को निर्णायक राय देने का अधिकार दिया जाए तो वे इस प्रस्ताव को सीधे लोकसभा में रख सकते है। लोकसभा से पास होकर यह प्रस्ताव राज्य सभा में जाएगा। यदि राज्यसभा में यह बिल गिर जाता है तो मोदी साहेब अगले ही दिन "संयुक्त अधिवेशन" बुलाकर इस क़ानून को पास कर सकते है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त अधिवेशन में एन डी ए के पास बहुमत है।
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यदि मोदी साहेब को जनमत संग्रह और लोकसभा के माध्यम से क़ानून पास करने में रुचि नहीं है तो वे इस क़ानून को कैबिनेट से पास करके सीधे अध्यादेश के माध्यम से लागू कर सकते है। इस तरह यह क़ानून सीधे देश में लागू हो जाएगा और छह महीने बाद इसे संसद से पास करने की जरुरत होगी। इस अवधि में मोदी साहेब, संघ, विहिप आदि संघठन देश में मतादाताओ के बीच मुहीम चला सकते है कि वे कोंग्रेस एवं विपक्ष के सांसदों को ट्विट करे या उन्हें sms द्वारा आदेश भेजे कि राज्य सभा में इस क़ानून के पक्ष में खुला मतदान करें। इससे सांसद दबाव में आ जायेंगे और खिलाफ वोटिंग करते है तो एक्सपोज हो जायेंगे। इससे अगले चुनावों में जब वे वोट मांगने निकलेंगे तो जनता उनकी अच्छी खबर लेगी।
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यदि मोदी साहेब इसे कोर्ट के माध्यम से ही हल करना चाहते है तो वे संसद में एक प्रस्ताव पास करके यह मामला किसी न्यायिक आयोग के हवाले कर सकते है। इस आयोग में मोदी साहेब हाई कोर्ट/सुप्रीम कोर्ट के अपने चमचो को जज बना सकते है। यह आयोग नियमित सुनवाई करके अगले महीने दो महीने में मंदिर निर्माण का फैसला दे देगा। इस तरह से मोदी साहेब इस मामले के निपटान के लिए खुद एक कोर्ट बनाकर इसे कोर्ट के माध्यम से निपटा सकते है।
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इस तरह से जनमत संग्रह, अध्यादेश, संयुक्त अधिवेशन, न्यायिक आयोग आदि कई तरीके है जिनकी सहायता से राम मंदिर निर्माण किया जा सकता है।


 इस तरह से यदि मोदी साहेब के करने की इच्छा हो तो वे आसानी से राम, कृष्ण, विश्वनाथ मंदिर निर्माण के साथ साथ देश के अन्य मंदिरों के प्रशासन को भी सुधारने के लिए आवश्यक क़ानून पास कर सकते है। किन्तु यदि उन्हें राम मंदिर निर्माण मुद्दे को सिर्फ इसीलिए लटकाए रखना है क्योंकि देश में हिन्दू-मुस्लिम तनाव को भड़काने के लिए यह बेहद मुफीद मुद्दा है और गाहे बगाहे इसे उभाड़ कर ध्रुवीकरण करके वोट खींचे जा सकते है तो वे इसे हल करने के लिए ऊपर दिए गए उपायों को अपनाने की जगह वे , राज्य सभा में बहुमत नहीं है या अदालत का फैसला मानेंगे या आपसी सहमती से रास्ता खोजेंगे जैसे शिगूफे छोड़ते रहेंगे ताकि इस मुद्दे को लटका कर देश के लाखों कार्यकर्ताओ को बीजेपी से चिपका कर रखा जा सके। शान्ति पूर्ण मंदिर निर्माण से बीजेपी को जो नुकसान होगा उसे सह जाना बीजेपी के लिए आसान नहीं है।
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यही वजह है कि मोदी साहेब, मोहन भागवत एवं इनके सभी अंध भगत इस क़ानून का विरोध कर रहे है तथा वे इस मुद्दे पर जनमत संग्रह करवाने का भी विरोध कर रहे है। सोनिया और केजरीवाल का इस विषय में स्टेंड अपेक्षाकृत ज्यादा साफ़ है। उन्होंने इस बात को कभी छिपाया नहीं कि अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनना चाहिए। उन्हें इस मुद्दे से कोई लेना देना भी नहीं है। और उनकी चले तो वे इन तीनो भूखंडो पर चर्च या अस्पताल बनाने का भी समर्थन कर देंगे। किन्तु बीजेपी एवं संघ मंदिर निर्माण का मौखिक रूप से तो समर्थन करते है किन्तु उस क़ानून का विरोध करते है जिससे मंदिर निर्माण किया जा सके।
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 निचे दिए गए क़ानून ड्राफ्ट को गेजेट में प्रकाशित करने से अयोध्या में राम, मथुरा में कृष्ण व काशी में विश्वनाथ मंदिर निर्माण संभव हो सकता है। यदि आप इसका समर्थन करते है तो प्रधानमंत्री को ट्विटर पर यह निर्देश दे कि इसे गेजेट में प्रकाशित किया जाए।
राष्ट्रीय हिन्दू देवालय प्रबंधक ट्रस्ट के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/570764579768407
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नेताओं का संपर्क यहाँ से प्राप्त करें और उन्हें आप अपना एक आदेश भेजें क्योंकि आप एक जनतंत्र में रहते हैं,ना की किसी तानाशाही राजव्यवस्था में----- www.nocorruption.in
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आप इस आदेश को इस तरह से भेजिए-
"माननीय सांसद/विधायक महोदय....
मैं अपने सांवैधानिक अधिकार का उपयोग करते हुए आपकोराष्ट्रीय हिन्दू देवालय प्रबंधक ट्रस्ट के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/570764579768407 को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून बनाने का मांग करता हूँ.
मतदाता संख्या- xyz. "
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आप ट्विटर पर भी @PMOindia BANevm लिखकर पी एम् को आदेश भेज सकते हैं...
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जय हिन्द.
वन्दे मातरम्
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