अन्य सम्प्रदाय के धर्म-ग्रंथों में हिन्दू एक अवैध धर्म है, सेक्युलर लोग क्या इस सच से मुंह मोड़ चुके हैं?

अन्य सम्रदाय के धर्म-ग्रंथों में हिन्दू धर्म एक अवैध धर्म है, सेक्युलर लोग क्या इस सच जानते समझते हैं? सेक्युलर सोच के वाहक लोग, अपने आप को सत्य के पारखी बतलाते हैं, लेकिन इस सत्य से वाकिफ नहीं हैं कि धर्म क्या है और सत्य क्या है?
इन सेक्युलर लोगों ने कभी अपने ही पुरातन धर्म ग्रंथों को पढने की चेष्टा नहीं कि, प्रचलित एवं मुट्ठी भर बिकाऊ विचारकों एवं लेखकों को पढ़कर मनगढ़ंत उल जलूल तर्क देते हैं, अपने सेक्युलर बनने को समर्थन दिलवाने के लिए.
अपने सेक्युलर बनने से पहले एक बार अपना धर्म ग्रन्थ पढ़ कर तो देख लिया होता कि, आपसे शुरू होने वाली सोच के कारण आपका भविष्य किस और करवट लेगा.
ऐसे लोगों को हिन्दू धर्म में अपने जन्म से नफरत है, तभी इस सत्य को अन्य मतावलंबियों में स्वीकार नहीं कर सकते हैं, की "हाँ, मैं हिन्दू हूँ. !!"
क्या ये सेक्युलर इतने निर्बल हो गए है, कि अपनी पहचान तक छुपानी पड़ रही है? 
सेकूलर अपने धर्म की रक्षा कर सकने में अक्षम हैं, इसी कारण से वे एक नए धर्म में मतांतरित हो चुके हैं, जिसका नाम सेकुलरिज्म है !! 
कल को ऐसे कमजोर एवं डरपोक लोग, अपने माता-पिता के नाम तक बदल डालेंगे.
.
इंग्लैंड में लाखों हिन्दू हैं. प्रतिशत में कम से कम उतने ही जितने भारत में ईसाई. पर भारत में शिक्षा, मीडिया, पॉलिसी मेकिंग और जनमानस पर क्रिस्चियन सोच और और स्ट्रेटेजिक तंत्र का जो कब्ज़ा है उसकी तुलना नहीं हो सकती.
बल्कि यहाँ पीढ़ियों से रहने वाले हिन्दू परिवार हैं, जिनमे से कइयों ने अपनी पहचान और संस्कृति बचा रखी है. वहीं कई हैं जो अपने आप को सिर्फ अपनी भूरी चमड़ी से पहचानते हैं. और जो भारत से नए आये परिवार हैं, उनकी प्रतिरोध क्षमता तो बहुत ही तेजी से क्षीण हो रही है. जबकि जगह जगह किसी न किसी रूप में हिन्दू समाज अपने त्यौहार मना रहा होता है, वहीँ कई ऐसे लोग मिले जो यहाँ 10-15 सालों से हैं पर आजतक कभी होली दीवाली नहीं मनायी.
ऐसे ही कुछ परिवारों को साथ लेकर हमलोग यहाँ हर साल होली और दीवाली मनाने का प्रयास कर रहे हैं. नए लोगों को जोड़ने की भी कोशिश करते हैं. दुःख तब होता है जब उन्हें इसमें शामिल होने के लिए कन्विन्स करने का तर्क देना पड़ता है.
एक ऐसी ही महिला को इसके लिए आमंत्रित किया...कहा, आपको यहीं रहना है, कल को आपके बच्चे इसी समाज में बड़े होंगे...अगर आप ही अपने त्यौहार नही मनाएंगी तो आपके बच्चों के पास क्रिसमस और ईस्टर मनाने के अलावा क्या अवसर होगा.
उन्होंने कहा - मेरे बच्चे सभी धर्मों के त्यौहार मनाएंगे...
अब बच्चे क्या करेंगे यह तो बाद की बात है. पहला प्रश्न तो यह आया कि वह कौन सी ग्रंथि है जो हिन्दुओं को ऐसे सोचने को मजबूर करती है...जब आप ही अपने त्यौहार नहीं मना रहे हैं तो आपके बच्चे "सभी" धर्मों के त्यौहार कैसे मनाएंगे? हाँ, "अन्य" सभी धर्मों के त्यौहार जरूर मनाएंगे.
और सभी धर्मों के त्यौहार मनाने की कौन सी मजबूरी है? यह मजबूरी और किसी की तो नहीं है, हमारी ही क्यों है? किसका कर्जा खाया है हमने, किसके बंधुआ गुलाम हैं, किससे अप्रूवल खोज रहे हैं? क्या अगर आप "सभी" धर्मों का "सम्मान" करने की मजबूरी महसूस नहीं करते तो आप सच्चे हिन्दू नहीं हैं? कहाँ लिखा है, कहाँ से आया यह उच्च विचार?
हिन्दू धर्म का कौन सा धर्म ग्रन्थ अन्य धर्मों के आने के बाद लिखा गया है, जिससे आपने यह निष्कर्ष निकाल लिया? जब हमारी धर्म संस्कृति विकसित हुई तो ये "अन्य" धर्म तो थे ही नहीं? फिर उनका "सम्मान" करने की शिक्षा कैसे और कब दे दी गयी? इस्लाम और क्रिश्चियनिटी हमारे पॉइंट्स ऑफ़ रेफेरेंस कैसे और कब हो गए?
और इस्लामिक या क्रिस्चियन थियोलॉजी में तो हमारा सम्मान करना नहीं शामिल है. उनकी धार्मिकता में तो हमारे लिए सम्मान तो क्या, वैधता (legitimacy) भी नहीं है.


इस्लामिक या क्रिस्चियन थियोलॉजी में तो हमारा सम्मान करना नहीं शामिल है. उनकी धार्मिकता में तो हमारे लिए सम्मान तो क्या, वैधता (legitimacy) भी नहीं है. उनकी दृष्टि में तो हम एक वैध धर्म ही नहीं हैं. हम सिर्फ विधर्मी ही नहीं, अधर्मी, पगान...अँधेरे में भटकते लोग हैं जिसतक उनकी पवित्र किताबों की रौशनी पहुंचाना ही उनका कर्तव्य है. तो ऐसे में उनकी धार्मिकता का सम्मान करने की यह एकतरफा जिम्मेदारी हम क्यों अपनी तरफ से ओढ़ रहे हैं? कोई आपका छुआ नहीं खाना चाहता, आपके साथ नहीं बैठना चाहता और आपकी जिद है कि खाएंगे तो एक ही थाली में नहीं तो भूखे रहेंगे...
तो इस जिद के नतीजे में आपको तो सिर्फ जूठन ही खाने मिलेगा...मंजूर है तो बैठिये जमीन पर, इंतज़ार कीजिये जूठन फेंके जाने का. वरना हमारे बाप दादों का भंडारा चलता आ रहा है पीढ़ियों से...जिसमे हम पूरी दुनिया को खिलाते आ रहे हैं इज्जत से...मर्जी है आपकी.

.
साभार- 
Rajeev Mishra

Comments

Popular posts from this blog

चक्रवर्ती योग :--

जोधाबाई के काल्पनिक होने का पारसी प्रमाण:

क्या द्रौपदी ने सच में दुर्योधन का अपमान किया था? क्या उसने उसे अन्धपुत्र इत्यादि कहा था? क्या है सच ?

पृथ्वीराज चौहान के बारे में जो पता है, वो सब कुछ सच का उल्टा है .

ब्राह्मण का पतन और उत्थान

वैदिक परम्परा में मांसभक्षण का वर्णन विदेशियों-विधर्मियों द्वारा जोड़ा गया है. इसका प्रमाण क्या है?

द्वापर युग में महिलाएं सेनापति तक का दायित्त्व सभाल सकती थीं. जिसकी कल्पना करना आज करोड़ों प्रश्न उत्पन्न करता है. .

ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पुरुष का अर्थ

चिड़िया क्यूँ मरने दी जा रहीं हैं?

महारानी पद्मावती की ऐतिहासिकता के प्रमाण