मदर टेरेसा भारत में क्या करती थी
ज़्यादातर लोग मदर टेरेसा का विरोध नहीं करना चाहते, क्योंकि उनकी छवि ग़रीबों के लिए काम करने वालों की है. अगर आप मदर टेरेसा पर सवाल उठाते हैं, तो आपको भी ग़रीब विरोधी मान लिया जाएगा.
अगर मदर टेरेसा सचमुच में कोई संत थीं तो फिर अपने जीवन के अंतिम दिनों में पश्चिम के किसी अत्याधुनिक सुविधापूर्ण हॉस्पिटल में एडमिट होने की जरूरत क्यों पड़ी?
ये मोहतरमा इतनी ही कोई संत थीं तो अपने जीवन में हर बार बीमार पड़ने पर स्वास्थ्य लाभ के लिए महंगे हॉस्पिटल्स में ही क्यूँ जातीं थीं? इनकी संस्था को दुनिया भर से अथाह फंडिंग आती थी, लेकिन कहीं कोई ढंग का एक अस्पताल तक ना बनवा सकें, तो काहे की संत और कौन सी उपाधि दी गयी इनको?
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मदर टेरेसा की मौत के पांच साल बाद पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उनके एक चमत्कार को स्वीकार किया था. एक बंगाली आदिवासी महिला मोनिका बेसरा को पेट का अल्सर था, जो ठीक हो गया. कहा गया कि यह मदर टेरेसा के अलौकिक ताक़त की वजह से हुआ.
किसी महिला के पेट पर किसी नन की तस्वीर रख देने से वो ठीक कैसे हो सकती है, जबकि सबूत यह दिखा रहे थे कि उनका इलाज दवाओं से हुआ है?
ये कथित चमत्कार बहुत बेकार और बचकानी बात है और इसे तो चुनौती भी दी जा सकती है. सच तो ये है की कोल्कता की अमुक महिला ने मदर टेरेसा की मृत्यु के बाद भी काफी सालों तक अपनी बिमारी के चलते काफी तकलीफें सहीं एवं चिकित्सकों से इलाज करवाना एवं दवाईयों का सेवन करना जारी रखा, तब जाकर उसका अलसर ठीक हुआ.
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अगर इस मदर टेरेसा जैसे लोगों को संत की उपाधि दी गयी है तो फिर गंगा किनारे औरतों के बाल खोल कर भूत के साथ खेलते हुए ओझाओ और मजारों पर पानी फूंक कर जिन्नों को भगाते हुए मौलवियों को तो "संत" से भी ऊंचा कोई स्थान मिलना चाहिए।
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शर्म है, पोलिटिकली करेक्ट होने के लिए लोग अंधविश्वासों कोभी जस्टिफाई करने का मौका नहीं चूकते।
जिस देश का संविधान अपने नागरिकों से वैज्ञानिक सोच रखने को कहता है, उसकी विदेश मंत्री का चमत्कारों के आधार पर मिली किसी उपाधि समारोह में जाना, उनकी बुद्धि पर संदेह पैदा करता है..
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क्रिस्टोफर हिचेन्स अपनी किताब ‘मिशनरी पोजीशन’ में लिखते हैं:
‘मदर टेरेसा की कमाई बंगाल के किसी भी फर्स्ट क्लास क्लीनिक को खरीद सकती थी. लेकिन क्लीनिक न चलाकर एक संस्था चलाना एक सोचा समझा फैसला था. समस्या कष्ट सहने की नहीं है, लेकिन कष्ट और मौत के नाम पर एक कल्ट चलाने की है. मदर टेरेसा खुद अपने आखिरी दिनों में पश्चिम के सबसे महंगे अस्पतालों में भर्ती हुईं.’
अगर मदर टेरेसा सचमुच में कोई संत थीं तो फिर अपने जीवन के अंतिम दिनों में पश्चिम के किसी अत्याधुनिक सुविधापूर्ण हॉस्पिटल में एडमिट होने की जरूरत क्यों पड़ी?
ये मोहतरमा इतनी ही कोई संत थीं तो अपने जीवन में हर बार बीमार पड़ने पर स्वास्थ्य लाभ के लिए महंगे हॉस्पिटल्स में ही क्यूँ जातीं थीं? इनकी संस्था को दुनिया भर से अथाह फंडिंग आती थी, लेकिन कहीं कोई ढंग का एक अस्पताल तक ना बनवा सकें, तो काहे की संत और कौन सी उपाधि दी गयी इनको?
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मदर टेरेसा की मौत के पांच साल बाद पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उनके एक चमत्कार को स्वीकार किया था. एक बंगाली आदिवासी महिला मोनिका बेसरा को पेट का अल्सर था, जो ठीक हो गया. कहा गया कि यह मदर टेरेसा के अलौकिक ताक़त की वजह से हुआ.
किसी महिला के पेट पर किसी नन की तस्वीर रख देने से वो ठीक कैसे हो सकती है, जबकि सबूत यह दिखा रहे थे कि उनका इलाज दवाओं से हुआ है?
ये कथित चमत्कार बहुत बेकार और बचकानी बात है और इसे तो चुनौती भी दी जा सकती है. सच तो ये है की कोल्कता की अमुक महिला ने मदर टेरेसा की मृत्यु के बाद भी काफी सालों तक अपनी बिमारी के चलते काफी तकलीफें सहीं एवं चिकित्सकों से इलाज करवाना एवं दवाईयों का सेवन करना जारी रखा, तब जाकर उसका अलसर ठीक हुआ.
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अगर इस मदर टेरेसा जैसे लोगों को संत की उपाधि दी गयी है तो फिर गंगा किनारे औरतों के बाल खोल कर भूत के साथ खेलते हुए ओझाओ और मजारों पर पानी फूंक कर जिन्नों को भगाते हुए मौलवियों को तो "संत" से भी ऊंचा कोई स्थान मिलना चाहिए।
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शर्म है, पोलिटिकली करेक्ट होने के लिए लोग अंधविश्वासों कोभी जस्टिफाई करने का मौका नहीं चूकते।
जिस देश का संविधान अपने नागरिकों से वैज्ञानिक सोच रखने को कहता है, उसकी विदेश मंत्री का चमत्कारों के आधार पर मिली किसी उपाधि समारोह में जाना, उनकी बुद्धि पर संदेह पैदा करता है..
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क्रिस्टोफर हिचेन्स अपनी किताब ‘मिशनरी पोजीशन’ में लिखते हैं:
‘मदर टेरेसा की कमाई बंगाल के किसी भी फर्स्ट क्लास क्लीनिक को खरीद सकती थी. लेकिन क्लीनिक न चलाकर एक संस्था चलाना एक सोचा समझा फैसला था. समस्या कष्ट सहने की नहीं है, लेकिन कष्ट और मौत के नाम पर एक कल्ट चलाने की है. मदर टेरेसा खुद अपने आखिरी दिनों में पश्चिम के सबसे महंगे अस्पतालों में भर्ती हुईं.’
मदर टेरेसा पर बार-बार लोगों का धर्म परिवर्तन करने के आरोप लगा है. जो गरीबों से भी गरीब थे, वो उनके फंडामेंटलिस्ट धर्म परिवर्तन कैंपेन का निशाना भर थे.’
कोलकाता में कई संत हुए हैं. जिन्होंने साइंस और दिमाग से चमत्कार किए थे. इस शहर को उन लोगों की पूजा करने की जरूरत नहीं जो नर्क के दूत थे, जिन्होंने शहर को नर्क बनाया.
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पश्चिम बंगाल की मोनिका बेसरा के पेट का कैंसर ट्यूमर मदर टेरेसा की तस्वीर वाले लाकेट फेरने और प्रार्थना से ठीक हो गया !
ब्राजील के इंजीनियर मार्सिलिओ का ब्रेन ट्यूमर मदर टेरेसा के प्रार्थना करने से ठीक हो गया !
और इन "चमत्कारों" की वजह से मदर टेरेसा "संत" बन गईं।
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खैर..आगे पढ़ें की मदर टेरेसा से जुडी अन्य बातें जिसे जानकर उससे नफरत हो जाएगी:-
१) ये मोहतरमा भारत से नार्थ-ईस्ट राज्य की आजादी चाहती थीं. इन प्रान्तों में होने वाले अलगाववादी आंदोलनों में इनकी संस्था का महत्वपूर्ण भूमिका रही है.इसके साथ ही इन इलाकों में बसे आदिवासी लोगों के धर्मांतरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका है. इन धर्मान्तरित लोगों के मष्तिस्क में ये बात बैठा दी गयी की भारत-सरकार उनके साथ अत्याचार कर रही है. पहले आदिवासी होने के तौर पर उनको सरकार की तरफ से आरक्षण की सुविधा प्रदान की गयी थी, लेकिन इसाई बन जाने के बाद इनको वो सुविधा मिलनी बंद हो गयी, जिसे ये लोग भारत-सरकार द्वारा अत्याचार मानते हैं.
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२) इनकी संस्था का पीड़ितों बीमारों से ये कहना था कि तकलीफ आपको जीसस के करीब लाती है. इनकी संस्था एवं वर्तमान में अन्य ईसाई भी गैर-इसाई लोगों की तकलीफ दूर करने के लिए काला-जादू का सहारा लेते हैं, ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है.
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३) इनकी संस्था में बीमारों का इलाज कम एवं प्रोपगंडा अधिक होता रहता था. ये झूठ प्रचारित किया जाता है कि उनकी संस्था सडकों-गलियों से बीमारों को उठाकर अपने संस्था में लाती थीं.
उनकी संस्था में काम कर चुके एक डॉक्टर की लिखी पुस्तक मदर-टेरेसा-ए फाइनल वर्डिक्ट में बताया है की जब कोई फोन करके बताता था की अमुक जगह पर कोई बीमार पड़ा है, तो उससे १०२ नंबर पर फोन करने को कहा जाता था. इस तरह से लोगों को टरकाया जाता था.
इनकी संस्था के पास एक एम्बुलेंस थी जो ननो के लिए उपयोग में लाया जाता था, उनके यात्रा इत्यादि के लिए.
इनकी संस्था का दावा होता था, की ये हजारो गरीबों को रोज खाना खिलातीं थीं, लेकिन संस्था के रसोई में मात्र तीन सौ लोगों के भोजन के प्रबंध की व्यवस्था थी एवं वहां राशन भी इतने ही लोगों का मंगाया जाता था एवं ये खाना भी उनको ही मिल पाटा था, जो इसाई बन चुके थे.
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४) इसकी संस्था जीवन से ज्यादा मौत देने वाली संस्था बन कर रह गयी थी. मदर टेरेसा ने एक सौ से अधिक देशों में पांच सौ से अधिक चैरिटी मिशन खोले थे. लेकिन इन स्संस्थाओं में जाने वाले लोग बताते हैं कि किस तरह से वहां पर आने वालों से इसाई धर्म स्वीकार करवाया जाए और जीसस के करीब जाने के नाम पर मरने के लिए छोड़ दिया जाए.
वहां पर कई लोगों को दवा के नाम पर मात्र एस्प्रीन दी जाती थी, जबकि वो सही दावा देने पर ठीक हो सकते थे.
भारत में इन महिला के संथाओं में साधारण दर-निवारक दवाएं तक नहीं थीं.
इन संस्थाओं में कई लोगों की बिमारी सही इलाज से उस वक्त ठीक हो सकती थी लेकिन उन्हें जीसस के करीब जाने के नाम पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था.उन्हें ये एहसास दिलाया जाता था कि वे सिर्फ कुछ दिन के मेहमान हैं, जिसके बाद उन्हें जीसस के पास जाना है.
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५) दुनिया के कई भ्रष्ट तानाशाह एवं बेईमान कारोबारी इस महिला की संस्था को फंडिंग देते थे, जिससे उन दाताओं की छवि जनता में अच्छी बने.
इन फंडिंग देने वाली संस्थाओं में हथियार-निर्माता कंपनियां एवं ड्रग्स के कारोबारी भी शामिल थे, जो बेहिसाब धन इस महिला की संस्था को देते थे, लेकिन उस धन का काफी छोटा हिस्सा ही खर्च किया जाता था. शेष धन का क्या होता था, कहना मुशकिल है.
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६) ये मदर बीमार बच्चो की मदद करने को तभी तैयार होतीं थीं, जब उनके मजबूर माता-पिता मोदर द्वारा प्रदत्त एक फॉर्म को भरने को राजी हो जाते थे. इस फॉर्म में माता-पिता को स्वीकार करना पड़ता था की ये अपने बच्चों के ऊपर से अपने दावे हटाकर मदर की संस्था को सौंप रहे हैं. नतीजतन, इन माओं-पिताओं को अपने बच्चो को इस मदर की संस्थाओं में छोड़कर चले जाना होता था, एवं भविष्य में कभी उनसे मिलने तक ना दिया गया. इसके बाद, उन बच्चों का ब्रेन-वाश कर कट्टर-इसाई बना दिया गया.
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७) इस मदर ने १९७५ में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गयी आपातकाल का पूरा समर्थन दिया. इसके समथन में इस महिला ने ये कहा था कि इससे भारत में नौकरियां बढेंगी एवं भविष्य में हड़ताल कम होंगे.
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८) इस मदर को जिन चमत्कारों के लिए संत की उपाधि दी गयी है, उन चमत्कारों में पीड़ित व्यक्तियों के चिकितासकों के अनुसार, अमुक पीड़ित ने तो टेरेसा की मृत्यी के कई साल बाद तक काफी तकलीफ सहीं एवं दवाओं का सेवन भी करते रहे, जो काफी लम्बे समय तक चला, जिससे वे मरीज ठीक हुए, ना की इसमदर के चमत्कारों के कारण.
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९) मदर टेरेसा, बाइबिल में लिखी एक बात को सही मानतीं थीं जिनमे सूर्य द्वारा पृथ्वी के चक्कर लगाने वाली बात मुख्य थीं, इसका जिक्र भी इस महिला के द्वारा अपने व्यक्तव्यों में कई बार किया गया. कई पत्रकारों ने इस महिला से इस पर सवाल किये तो टेरेसा ने बताया कि चूँकि बाइबिल में कहा है, इसीलिए यही सही है.
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१०) १९९४ में एक लेखक क्रिस्टोफ़र हिचेन्स के बनायी हुई डाक्यूमेंट्री(Hell's Angel) के अनुसार, भारतके गरीब हिन्दुओं की मदद से अधिक टेरेसा का मकसद से अधिक रोमन-कैथोलिक के कट्टर-पंथी विचारों के प्रचार-प्रसार की है.
मशहूर पत्रकार जर्मन ग्रियर के मुताबिक़ मदर टेरेसा एक धार्मिक साम्राज्यवादी से ज्यादा कुछ नही है. वो तलवार के नहीं बल्कि सेवा के नाम पर इसाइयत फैला रही है.
इस महिला के एक इंटरव्यू में इसने स्वयं ही अब तक 29हजार से ज्यादा भारतीयों को इसाई बनाने का दावा किया था.
१९९२ में अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में अपने एक भाषण के दौरान इसने कहा था की " हम बीमार से पूछते हैं की क्या तुम्हें वह आशीर्वाद चाहिए जिससे की तुम्हारे सारे पाप माफ़ हो जाएं और तुम्हें भगवान् मिल जाएं, उनमें से एक ने भी मना नहीं किया."
http://www.newsloose.com/…/mother-teresa-saint-criticism-m…/
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विशेष जानकारी के लिए विदेशों में छपने वाले इस औरत के काले करतूतों के बारे में निचे के लिंक में पढ़े.
१. http://www.slate.com/…/fighting…/2003/10/mommie_dearest.html
२.
http://www.huffingtonpost.com/…/mother-teresa-was-no-saint_…
३.
http://knowledgenuts.com/…/mother-teresa-was-a-crook-and-a…/
४.
http://www.theglobeandmail.com/…/mother-ter…/article9317551/
५.
http://www.dailymail.co.uk/…/Was-Mother-Teresa-saintly-Rese…
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यह कोई वोट बैंक का खेल नहीं है। सरकार की लगाम मीडिया के हाथ है और मीडिया मिशनरीज के कण्ट्रोल में है। जो जितना मिशनरीज को खुश करेगा वो मीडिया पर उतना ही महान बताया जायेगा। रही बात टेरेसा की तो यह जग जाहिर है की वो किसी खास मकसद से भारत भेजी गयी थी। वरना सेवा ही करनी होती तो उसके खुद के देश मकेडोनिया में भयंकर भुकमरी थी। और जितने भी गरीबो की सेवा करि गयी उनका धर्म परिवर्तन करवाया गया।
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भारत में सबसे ज्यादा लैंड होर्डिंग मिशनरीज के पास है। जिसकी वजह से जमीनों की कीमते बढ़ती है और है और भुखमरी बढ़ती है। मिशनरीज तरफ सेवा का खेल दिखाते है और दूसरी तरफ भुखमरी बढ़ाते है। अगर भारत से भुकमरी दूर करनी है तो उसका कानूनी इलाज यह है की मिनरल रॉयल्टी भारत के नागरिको के खाते में सीधी डाली जाये। 4 महीने के अंदर बुखमरी पर काबू पा लिया जायेगा।
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पश्चिम बंगाल की मोनिका बेसरा के पेट का कैंसर ट्यूमर मदर टेरेसा की तस्वीर वाले लाकेट फेरने और प्रार्थना से ठीक हो गया !
ब्राजील के इंजीनियर मार्सिलिओ का ब्रेन ट्यूमर मदर टेरेसा के प्रार्थना करने से ठीक हो गया !
और इन "चमत्कारों" की वजह से मदर टेरेसा "संत" बन गईं।
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खैर..आगे पढ़ें की मदर टेरेसा से जुडी अन्य बातें जिसे जानकर उससे नफरत हो जाएगी:-
१) ये मोहतरमा भारत से नार्थ-ईस्ट राज्य की आजादी चाहती थीं. इन प्रान्तों में होने वाले अलगाववादी आंदोलनों में इनकी संस्था का महत्वपूर्ण भूमिका रही है.इसके साथ ही इन इलाकों में बसे आदिवासी लोगों के धर्मांतरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका है. इन धर्मान्तरित लोगों के मष्तिस्क में ये बात बैठा दी गयी की भारत-सरकार उनके साथ अत्याचार कर रही है. पहले आदिवासी होने के तौर पर उनको सरकार की तरफ से आरक्षण की सुविधा प्रदान की गयी थी, लेकिन इसाई बन जाने के बाद इनको वो सुविधा मिलनी बंद हो गयी, जिसे ये लोग भारत-सरकार द्वारा अत्याचार मानते हैं.
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२) इनकी संस्था का पीड़ितों बीमारों से ये कहना था कि तकलीफ आपको जीसस के करीब लाती है. इनकी संस्था एवं वर्तमान में अन्य ईसाई भी गैर-इसाई लोगों की तकलीफ दूर करने के लिए काला-जादू का सहारा लेते हैं, ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है.
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३) इनकी संस्था में बीमारों का इलाज कम एवं प्रोपगंडा अधिक होता रहता था. ये झूठ प्रचारित किया जाता है कि उनकी संस्था सडकों-गलियों से बीमारों को उठाकर अपने संस्था में लाती थीं.
उनकी संस्था में काम कर चुके एक डॉक्टर की लिखी पुस्तक मदर-टेरेसा-ए फाइनल वर्डिक्ट में बताया है की जब कोई फोन करके बताता था की अमुक जगह पर कोई बीमार पड़ा है, तो उससे १०२ नंबर पर फोन करने को कहा जाता था. इस तरह से लोगों को टरकाया जाता था.
इनकी संस्था के पास एक एम्बुलेंस थी जो ननो के लिए उपयोग में लाया जाता था, उनके यात्रा इत्यादि के लिए.
इनकी संस्था का दावा होता था, की ये हजारो गरीबों को रोज खाना खिलातीं थीं, लेकिन संस्था के रसोई में मात्र तीन सौ लोगों के भोजन के प्रबंध की व्यवस्था थी एवं वहां राशन भी इतने ही लोगों का मंगाया जाता था एवं ये खाना भी उनको ही मिल पाटा था, जो इसाई बन चुके थे.
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४) इसकी संस्था जीवन से ज्यादा मौत देने वाली संस्था बन कर रह गयी थी. मदर टेरेसा ने एक सौ से अधिक देशों में पांच सौ से अधिक चैरिटी मिशन खोले थे. लेकिन इन स्संस्थाओं में जाने वाले लोग बताते हैं कि किस तरह से वहां पर आने वालों से इसाई धर्म स्वीकार करवाया जाए और जीसस के करीब जाने के नाम पर मरने के लिए छोड़ दिया जाए.
वहां पर कई लोगों को दवा के नाम पर मात्र एस्प्रीन दी जाती थी, जबकि वो सही दावा देने पर ठीक हो सकते थे.
भारत में इन महिला के संथाओं में साधारण दर-निवारक दवाएं तक नहीं थीं.
इन संस्थाओं में कई लोगों की बिमारी सही इलाज से उस वक्त ठीक हो सकती थी लेकिन उन्हें जीसस के करीब जाने के नाम पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था.उन्हें ये एहसास दिलाया जाता था कि वे सिर्फ कुछ दिन के मेहमान हैं, जिसके बाद उन्हें जीसस के पास जाना है.
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५) दुनिया के कई भ्रष्ट तानाशाह एवं बेईमान कारोबारी इस महिला की संस्था को फंडिंग देते थे, जिससे उन दाताओं की छवि जनता में अच्छी बने.
इन फंडिंग देने वाली संस्थाओं में हथियार-निर्माता कंपनियां एवं ड्रग्स के कारोबारी भी शामिल थे, जो बेहिसाब धन इस महिला की संस्था को देते थे, लेकिन उस धन का काफी छोटा हिस्सा ही खर्च किया जाता था. शेष धन का क्या होता था, कहना मुशकिल है.
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६) ये मदर बीमार बच्चो की मदद करने को तभी तैयार होतीं थीं, जब उनके मजबूर माता-पिता मोदर द्वारा प्रदत्त एक फॉर्म को भरने को राजी हो जाते थे. इस फॉर्म में माता-पिता को स्वीकार करना पड़ता था की ये अपने बच्चों के ऊपर से अपने दावे हटाकर मदर की संस्था को सौंप रहे हैं. नतीजतन, इन माओं-पिताओं को अपने बच्चो को इस मदर की संस्थाओं में छोड़कर चले जाना होता था, एवं भविष्य में कभी उनसे मिलने तक ना दिया गया. इसके बाद, उन बच्चों का ब्रेन-वाश कर कट्टर-इसाई बना दिया गया.
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७) इस मदर ने १९७५ में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गयी आपातकाल का पूरा समर्थन दिया. इसके समथन में इस महिला ने ये कहा था कि इससे भारत में नौकरियां बढेंगी एवं भविष्य में हड़ताल कम होंगे.
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८) इस मदर को जिन चमत्कारों के लिए संत की उपाधि दी गयी है, उन चमत्कारों में पीड़ित व्यक्तियों के चिकितासकों के अनुसार, अमुक पीड़ित ने तो टेरेसा की मृत्यी के कई साल बाद तक काफी तकलीफ सहीं एवं दवाओं का सेवन भी करते रहे, जो काफी लम्बे समय तक चला, जिससे वे मरीज ठीक हुए, ना की इसमदर के चमत्कारों के कारण.
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९) मदर टेरेसा, बाइबिल में लिखी एक बात को सही मानतीं थीं जिनमे सूर्य द्वारा पृथ्वी के चक्कर लगाने वाली बात मुख्य थीं, इसका जिक्र भी इस महिला के द्वारा अपने व्यक्तव्यों में कई बार किया गया. कई पत्रकारों ने इस महिला से इस पर सवाल किये तो टेरेसा ने बताया कि चूँकि बाइबिल में कहा है, इसीलिए यही सही है.
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१०) १९९४ में एक लेखक क्रिस्टोफ़र हिचेन्स के बनायी हुई डाक्यूमेंट्री(Hell's Angel) के अनुसार, भारतके गरीब हिन्दुओं की मदद से अधिक टेरेसा का मकसद से अधिक रोमन-कैथोलिक के कट्टर-पंथी विचारों के प्रचार-प्रसार की है.
मशहूर पत्रकार जर्मन ग्रियर के मुताबिक़ मदर टेरेसा एक धार्मिक साम्राज्यवादी से ज्यादा कुछ नही है. वो तलवार के नहीं बल्कि सेवा के नाम पर इसाइयत फैला रही है.
इस महिला के एक इंटरव्यू में इसने स्वयं ही अब तक 29हजार से ज्यादा भारतीयों को इसाई बनाने का दावा किया था.
१९९२ में अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में अपने एक भाषण के दौरान इसने कहा था की " हम बीमार से पूछते हैं की क्या तुम्हें वह आशीर्वाद चाहिए जिससे की तुम्हारे सारे पाप माफ़ हो जाएं और तुम्हें भगवान् मिल जाएं, उनमें से एक ने भी मना नहीं किया."
http://www.newsloose.com/…/mother-teresa-saint-criticism-m…/
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विशेष जानकारी के लिए विदेशों में छपने वाले इस औरत के काले करतूतों के बारे में निचे के लिंक में पढ़े.
१. http://www.slate.com/…/fighting…/2003/10/mommie_dearest.html
२.
http://www.huffingtonpost.com/…/mother-teresa-was-no-saint_…
३.
http://knowledgenuts.com/…/mother-teresa-was-a-crook-and-a…/
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http://www.theglobeandmail.com/…/mother-ter…/article9317551/
५.
http://www.dailymail.co.uk/…/Was-Mother-Teresa-saintly-Rese…
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यह कोई वोट बैंक का खेल नहीं है। सरकार की लगाम मीडिया के हाथ है और मीडिया मिशनरीज के कण्ट्रोल में है। जो जितना मिशनरीज को खुश करेगा वो मीडिया पर उतना ही महान बताया जायेगा। रही बात टेरेसा की तो यह जग जाहिर है की वो किसी खास मकसद से भारत भेजी गयी थी। वरना सेवा ही करनी होती तो उसके खुद के देश मकेडोनिया में भयंकर भुकमरी थी। और जितने भी गरीबो की सेवा करि गयी उनका धर्म परिवर्तन करवाया गया।
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भारत में सबसे ज्यादा लैंड होर्डिंग मिशनरीज के पास है। जिसकी वजह से जमीनों की कीमते बढ़ती है और है और भुखमरी बढ़ती है। मिशनरीज तरफ सेवा का खेल दिखाते है और दूसरी तरफ भुखमरी बढ़ाते है। अगर भारत से भुकमरी दूर करनी है तो उसका कानूनी इलाज यह है की मिनरल रॉयल्टी भारत के नागरिको के खाते में सीधी डाली जाये। 4 महीने के अंदर बुखमरी पर काबू पा लिया जायेगा।
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.