मीडिया भारत में संत बनाती है.
वास्तव में देखा जाए तो, संतो को कोई पदवी देने की आश्यकता नहीं होती. वे तो स्वयं सिध्द होते है. संतो इत्यादि की पदवी तो नकली संतो को दी जाती है.
.
भारत के बनावटी महान नेता से युक्त भारतीय राजनीति, स्वघोषित मीडिया द्वारा दिखाए गए सबूतों एवं नपुंसक न्याय-व्यवस्था के इस देश में, जो वास्तविक संत हैं, उन लोगों को सबूतों की जांच पड़ताल किये बिना, उन सबूतों के सही साबित हुए बिना ही, यहाँ जीवन भर जेल में सडा दिया जाता है, लेकिन विदेशी धरती पे जन्मने वाले बनावटी संतों को कोई उपाधि देने के लिए ये सब भाड़े के हिन्दुस्तानी नेता, मीडिया, एवं महान न्याय-प्रणाली के लोग विदेश-यात्रा किया करते हैं.
.
क्या कोई बता सकता है, की भारत के केन्द्रीय सत्ता के राजनीतिग्य इतने लाचार क्यों हैं, जो इन्हें विदेशी सत्ता एवं धार्मिक संगठनो की बात माननी पड़ती है?
.
अगर भारतीय संतों के जीवन से जुड़े सबूत इकट्ठे करने एवं उन्हें सही साबित करने का काम मीडिया करती है, एवं इनकी बात को मान लिया जाए तो कोर्ट सिस्टम, न्याय सिस्टम, वकील एवं देश की अन्य बड़ी बड़ी जांच एजेंसी क्या किसी काम की नहीं, जो मीडिया द्वारा दिखलाये जाने वाले सबूतों की सत्यता की परख कर सके?
क्या मीडिया के भाड़े के लोग, इन जांच एजेंसीज से भी बड़ी काबिलियत रखते हैं?
.
क्यूँ लोगों को समझ में नहीं आता की मीडिया के लोग वही दिखाते हैं जो इनको धन देते हैं?
.
अगर विदेशी धरती पे जन्मने वाले काल्पनिक एवं मीडिया की सहायता से बने संतों जो यहाँ गरीबों-लाचारों की मजबूरियों का फायदा उठाकर कट्टर इसाई बनाते हैं, उन्हें जीसस के करीब जाने के नाम पर मरने को छोड़ देते हैं, अगर ऐसे लोग सच्चे संत कहे जाते हैं,
तो हमारे संत महाराज लोग जो यहाँ के लोगों का चारित्रिक उत्थान करते हैं, धर्मान्तरण से यहाँ के पीड़ित एवं लाचार लोगों को रोकते हैं, उन क्षेत्रों में जाकर उनके कार्यकर्ता लाचारों के लिए भोजन-दवाइयों की व्यवस्था वगैरह करते हैं तो वे भारतीय संत एवं इनके समुदाय यहाँ के भाड़े के लोगों नेताओं राजनीतिज्ञों को चुभते हैं.
ये भाड़े के लोग नहीं चाहते कि आपका चारित्रिक नैतिक उत्थान हो, सामाजिक उत्थान हो, इसीलिए ये आपके संतों को बिना सबूतों के सिद्ध हुए, केवल भाड़े की मीडिया द्वारा दिखाए गए सबूतों के आधार पर यहाँ की सरकार निर्णय लेती है.
.
अगर सबूत इकट्ठे करने एवं उन्हें सही साबित करने का काम मीडिया करती है, एवं इसकी बात को मान लिया जाए तो कोर्ट सिस्टम, न्याय सिस्टम, वकील एवं देश की अन्य बड़ी बड़ी जांच एजेंसी क्या किसी काम की नहीं, जो मीडिया द्वारा दिखलाये जाने वाले सबूतों की सत्यता की परख कर सके?
.
भारत के बनावटी महान नेता से युक्त भारतीय राजनीति, स्वघोषित मीडिया द्वारा दिखाए गए सबूतों एवं नपुंसक न्याय-व्यवस्था के इस देश में, जो वास्तविक संत हैं, उन लोगों को सबूतों की जांच पड़ताल किये बिना, उन सबूतों के सही साबित हुए बिना ही, यहाँ जीवन भर जेल में सडा दिया जाता है, लेकिन विदेशी धरती पे जन्मने वाले बनावटी संतों को कोई उपाधि देने के लिए ये सब भाड़े के हिन्दुस्तानी नेता, मीडिया, एवं महान न्याय-प्रणाली के लोग विदेश-यात्रा किया करते हैं.
.
क्या कोई बता सकता है, की भारत के केन्द्रीय सत्ता के राजनीतिग्य इतने लाचार क्यों हैं, जो इन्हें विदेशी सत्ता एवं धार्मिक संगठनो की बात माननी पड़ती है?
.
अगर भारतीय संतों के जीवन से जुड़े सबूत इकट्ठे करने एवं उन्हें सही साबित करने का काम मीडिया करती है, एवं इनकी बात को मान लिया जाए तो कोर्ट सिस्टम, न्याय सिस्टम, वकील एवं देश की अन्य बड़ी बड़ी जांच एजेंसी क्या किसी काम की नहीं, जो मीडिया द्वारा दिखलाये जाने वाले सबूतों की सत्यता की परख कर सके?
क्या मीडिया के भाड़े के लोग, इन जांच एजेंसीज से भी बड़ी काबिलियत रखते हैं?
.
क्यूँ लोगों को समझ में नहीं आता की मीडिया के लोग वही दिखाते हैं जो इनको धन देते हैं?
.
अगर विदेशी धरती पे जन्मने वाले काल्पनिक एवं मीडिया की सहायता से बने संतों जो यहाँ गरीबों-लाचारों की मजबूरियों का फायदा उठाकर कट्टर इसाई बनाते हैं, उन्हें जीसस के करीब जाने के नाम पर मरने को छोड़ देते हैं, अगर ऐसे लोग सच्चे संत कहे जाते हैं,
तो हमारे संत महाराज लोग जो यहाँ के लोगों का चारित्रिक उत्थान करते हैं, धर्मान्तरण से यहाँ के पीड़ित एवं लाचार लोगों को रोकते हैं, उन क्षेत्रों में जाकर उनके कार्यकर्ता लाचारों के लिए भोजन-दवाइयों की व्यवस्था वगैरह करते हैं तो वे भारतीय संत एवं इनके समुदाय यहाँ के भाड़े के लोगों नेताओं राजनीतिज्ञों को चुभते हैं.
ये भाड़े के लोग नहीं चाहते कि आपका चारित्रिक नैतिक उत्थान हो, सामाजिक उत्थान हो, इसीलिए ये आपके संतों को बिना सबूतों के सिद्ध हुए, केवल भाड़े की मीडिया द्वारा दिखाए गए सबूतों के आधार पर यहाँ की सरकार निर्णय लेती है.
.
अगर सबूत इकट्ठे करने एवं उन्हें सही साबित करने का काम मीडिया करती है, एवं इसकी बात को मान लिया जाए तो कोर्ट सिस्टम, न्याय सिस्टम, वकील एवं देश की अन्य बड़ी बड़ी जांच एजेंसी क्या किसी काम की नहीं, जो मीडिया द्वारा दिखलाये जाने वाले सबूतों की सत्यता की परख कर सके?
Comments
Post a Comment
कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.