सातवे वेतन आयोग द्वारा वेतन में वृद्धि को भक्त जनों के द्वारा दिए जाने वाले अजीबोगरीब तर्क
अजीब से तर्क होते हैं भक्तों के भी....
१. सरकारी कर्मियों के वेतन से निजी क्षेत्र के कर्मियों के वेतन की तुलना हास्यास्पद और अतार्किक है। दोनों के चयन की प्रक्रिया अलग है, सेवा शर्तें अलग हैं, निजी क्षेत्र का उद्देश्य वेलफेयर नहीं मुनाफा होता है ।
२. सरकारी कर्मियों का बढ़ेगा तभी तो प्राईवेट वाले मालिकों पर भी दबाव बनेगा न...कि देखो लाला हम भी उसी बाजार में खरीददार है, जिसमें सरकारी वाले, अतः हमारी तनख्वाह भी बढ़ाई जाय...!
३. एक सर्जरी की फीस जब डाक्टर पाँच लाख लेता है, एक बहस की फीस जब वकील पाँच लाख लेता है, तो किसी के पेट में मरोड़ उठती है..?
४. भ्रष्टाचारी सरकारी कर्मियों को न पकड़ पाना, उस पर लगाम न लगा पाना किसकी असफलता है, सरकारों की ही न..?
जब तक राजनीतिक नेतृत्त्व करोड़ों की डील करता रहेगा, सरकारी कर्मचारियों को अपने वसूली दलाल की तरह प्रयुक्त करता रहेगा, भ्रष्टाचार से नहीं लड़े सकेगा...! भ्रष्टाचार की गंगा शिखर नेतृत्त्व की गंगोत्री से ही निकलती है..!
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५. भक्तों को थोड़ा भी आर्थिक ज्ञान हो तो उन्हें "मंदी" का विज्ञान समझना चाहिए....!
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उपभोक्ता की क्रय क्षमता बढ़ाए बिना , बाजार में पैसा पम्प किये बिना इस तरह के संकट का कोई और समाधान है क्या ?
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२००८ की मंदी के असर से भारत के बच पाने के पीछे छठा वेतन आयोग, कृषि ऋण माफी और मनरेगा के माध्यम से उपभोक्ता वर्ग तक पहुँचा पैसा और उससे बढ़ी क्रय क्षमता की कितनी भूमिका है, यह कौन नहीं समझता है.....!
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हद है भक्ति की, भगवान का ****** भी भक्तों को परफ्यूम ही लग रहा है।
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जब तक राजनीतिक नेतृत्त्व करोड़ों की डील करता रहेगा, सरकारी कर्मचारियों को अपने वसूली दलाल की तरह प्रयुक्त करता रहेगा, भ्रष्टाचार से नहीं लड़े सकेगा...! भ्रष्टाचार की गंगा शिखर नेतृत्त्व की गंगोत्री से ही निकलती है..!
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५. भक्तों को थोड़ा भी आर्थिक ज्ञान हो तो उन्हें "मंदी" का विज्ञान समझना चाहिए....!
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उपभोक्ता की क्रय क्षमता बढ़ाए बिना , बाजार में पैसा पम्प किये बिना इस तरह के संकट का कोई और समाधान है क्या ?
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२००८ की मंदी के असर से भारत के बच पाने के पीछे छठा वेतन आयोग, कृषि ऋण माफी और मनरेगा के माध्यम से उपभोक्ता वर्ग तक पहुँचा पैसा और उससे बढ़ी क्रय क्षमता की कितनी भूमिका है, यह कौन नहीं समझता है.....!
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हद है भक्ति की, भगवान का ****** भी भक्तों को परफ्यूम ही लग रहा है।
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हमें राईट-टू-रिकॉल सांसद विधायक एवं अन्य पदों पर राईट-टू-रिकॉल का क़ानून को जनता के हाथ में दिया जाना चाहिए, जिससे वे भ्रष्ट मंत्रियों सांसदों विधायकों इत्यादि को उनके पद से निष्कासित कर उन्हें बदल सकें-.
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आपको अपना सांवैधानिक मांग ऐसे रखना चाहिए-
"माननीय सांसद/विधायक/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको राइट-टू-रिकॉल विधायक के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/813343768783861 ,
राईट टू रिकॉल सांसद के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/860633484054889 , क़ानून को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून बनाए जाने का आदेश देता /देती हूँ.
वोटर-संख्या- xyz१२३४५६७,
धन्यवाद "
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राईट-टू-रिकॉल समूह द्वारा प्रस्तावित सुधारात्मक कानूनों की जानकारी के लिए देखिये- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों पर जोक बनाना और व्यंग करना हमारा लोकतांत्रिक हक़ है , और मोदी जी पर व्यंग करना प्रधामंत्री की गरिमा के ख़िलाफ़ है , यहां तक कि देश के साथ गद्दारी भी है ।
जय हिन्द
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.