कारगिल युद्ध अमेरिका, भारत व पाकिस्तान में से वास्तव में किसने जीता था?

आज कारगिल दिवस है, सभी लोग को मालूम है कि ये लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान को हराया था, लेकिन क्या ये वाकई में सच है?
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कारगिल विजय दिवस नहीं, कारगिल कंलक दिवस कहें. 1500 से अधिक शहीद भारतीय सैनिको का गुनहगार अटल बिहारी वाजपेयी जी.
अगर वाजपेयी दूसरे देश के प्रधानमंत्री होते हैं तो उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटा कर जेलों में सड़ने के लिए डाल दिया जाता। मैंने कारगिल प्रकरण की पूरी कहानी और वाजपेयी के पाकिस्तान प्रेम की पूरी तह खोली है।
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कौन सा विजय दिवस, कैसा विजय दिवस? भारत के माथे पर कंलक है।
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कारगिल क्या कोई पाकिस्तान का हिस्सा था? विजय तो पाकिस्तान का था, जीत तो पाकिस्तान की थी। पाकिस्तान की विजय इसलिए थी क्यूंकि कारगिल के द्रास सेक्टर का एक जगह जिसका नाम है पॉइंट-५३५३ एवं टाइगर-हिल, जो पहले कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था, उसपे अभी भी पाकिस्तान का कब्ज़ा है. http://goo.gl/azD2qd
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तत्कालीन वाजपेयी सरकार की पराजय दिवस है पर भारतीय सैनिकों का पराक्रम दिवस है भारतीय सैनिकों की वीरता सर्वश्रेष्ठ थी।
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पाकिस्तान ने हमारे 500 से अधिक वीर सैनिकों को मौत का घाट उतार कारगिल घाटी खाली किया था।
स्वयं पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल खाली नहीं किये थे, बल्कि अमेरिका के आदेश पर भारत ने झुकते हुए पाकिस्तान सैनिको की वापसी के लिए सुरक्षित गलियारा दिया था।
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भारतीय सैनिकों के सीमा पार कर हमला करने पर छूट मिलती तो हमारे इतने सैनिक हताहत नहीं होते।
भारतीय वायुसेना पाकिस्तानी सीमा में घुसपैठ कर हमला करने के लिए तैयार थी पर आपके प्रेरणास्रोत और राष्ट्रवादियों के लिए महान व्यक्ति तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वायुसेना को रोका था, इसका खुलासा हाल ही में हुआ है।
कारगिल घुसपैठ की पूर्व सूचना इस्राइल और सीआईए ने भारत को दी थी, कारगिल घुसपैठ के छह महीना पहले तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीस ने लोकसभा में पांच पेज का लिखित भाषण प्रस्तुत किया था जिसमें कारगिल पर पाकिस्तान की कारस्तानी की पूरी कहानी कही गयी थी।
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सोनिया गांधी के आदमी ब्रजेश मिश्रा को वाजपेयी ने सुरक्षा सलाहकार बनाया था।
ब्रजेश मिश्रा की सलाह पर वाजपेयी के उपर पाकिस्तान प्रेम का भूत सवार था।
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कारगिल कब्जा की जानकारी होने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी ने समझौता बस लेकर नवाज शरीफ का चरण छूने लाहौर गये थे जहां पर सलामी न देकर परवेज मुशर्रफ ने वाजपेयी को सरेआम बइजती की थी।
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अटल बिहारी वाजपेयी कारगिल में शहीद होने वाले पांच सौ से अधिक भारतीय सैनिकों का गुनहगार है।
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अगर वाजपेयी दूसरे देश के प्रधानमंत्री होते हैं तो उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटा कर जेलों में सड़ने के लिए डाल दिया जाता। 
कैसे कारगिल युद्ध अमेरिका जीत गया और भारत और पाकिस्तान दोनों ही कारगिल की लड़ाई हार गए
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कुछ ऐसे बिंदु है जो पेड मीडियावाले (जो अमेरिका के प्रभाव में है क्योकि उन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनियों से बहुत ज्यादा विज्ञापन मिलता हैं) ने हमे कभी नही बताया लेकिन मुख्य घटनाओ पर एक सरसरी नजर डालने से ही यह पता चल जाता है की भारत और पाकिस्तान दोनों ही युद्ध हार गये और यह अमेरिका था जिसने यह युद्ध जीता
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निश्चित रूप से,अमेरिका ने यह निर्णय किया था की वह तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी को अमेरिका को चुनौती देते हुए परमाणु परीक्षण कर डालने ले लिये सबक सिखाएगा इसलिए अमेरिका ने कारगिल के पहाड़ पर पाकिस्तानी सेना की टुकड़ी रखवाने/भिजवाने में जनरल मुशर्रफ की सहायता की,जब युद्ध शुरू हुआ तो उस समय हम लोगो के पास लेजर गाइडेड/निर्देशित मिसाइल/प्रेक्षपास्त्र अथवा लेजर निर्देशित बम तक नही थे की जिससे उन घुसपैठियो को मार गिराये जो पहाड़ की चोटी पर थे, विमानों/जहाजो/हेलीकॉप्टरों/ को निशाने पर वार करने के लिये नीची उड़ान भरनी पड़ी थी और ऐसा करने से हमलोगो ने अपने जहाज़ों/विमानों और हेलीकॉप्टरों को खो दिया यानी वे मार गिराये गए,बोफोर्स तोप के गोले पहाड़ पर दुश्मनो/शत्रुओ को मार गिराने में उपयोगी तो थे लेकिन उनका उपयोग कम ही किया जा सका क्योकि उनका निशाना उतना अच्छा नही था और इसलिए अधिकांश गोले (लक्ष्य से) इतने दूर गिरते थे की उनसे ज्यादा नुकसान नही पहुचाया जा सकता था और इसलिए हमे अपने हज़ारो सैनिको को पहाड़ पर चढ़ने के लिये कहना पड़ा था, दुश्मन चोटी पर था और हमारे सैनिक ऊपर चढ़ रहे थे इसलिए इनमे से अनेको को अपने प्राण गवाने पड़े
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स्तिथि तब और ज्यादा ख़राब हो गयी जब हमे बोफोर्स तोप के गोले तक भी आयात करने पड़े क्योकि हमारे पास गोलों तक के निर्माण की क्षमता नही थी और हमे हमे जितनी मात्रा में इन गोलों का प्रयोग करने की जरूरत थी,उससे हमारे गोले महीनो में ही खत्म हो जाते और अमेरिका ने तानाशाही से अपनी शर्ते हमपर थोपी जिन्हें मानने पर ही हमे बोफोर्स तोप के गोले मिलने थे , इस दौरान घुसपैठियो को रसद वगैरह पहुचाने के लिये जिन हेलीकॉप्टरों आदि की जरूरत पाकिस्तान को थी उसके कल-पुर्जे यूरोपियन नाटो देशो के बने हुए थे जो फिर से अमेरिका के नियंत्रण में थी इसलिए जब अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन ने मुशर्रफ और नवाज शरीफ से युद्ध रोक देने के लिये कहा तो दोनों को ही अमेरिका की बात माननी ही पड़ी और जब अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन ने भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई से 25 जुलाई की सुबह 2 बजे (दुश्मन को) सुरक्षित रास्ता दे देने के लिये कहा तो अटल बिहारी बाजपेयी को बात माननी ही पड़ी थी और दो घंटे के भीतर ही भारत ने पाकिस्तान सैनिको को सुरक्षित रास्ता देने की घोषणा कर दी इसलिए कुल मिलाकर भारत युध्द हार गया
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इसमें उन पाकिस्तानी सैनिको तक को नही मारा जो भारत में घुस आये थे और जिन्होंने 800 भारतीय सैनिको को मार दिया था,पाकिस्तान भी युद्ध हार गया था क्योकि उन्हें अमेरिकी आदेश पर वापस जाना पड़ा और वे अपने मृत सैनिको के शव/मृत शरीर तक को वापस नही ले जा सके,यदि अटल बिहारी बाजपेयी ने क्लिंटन का आदेश किसी अच्छे आज्ञाकारी बालक की तरह नही माना होता तो अमेरिका बोफोर्स गोलों की आपूर्ति/सप्लाई रोक देता और सारी मदद पाकिस्तान को उपलब्ध कराता और तब उस परिस्तिथि में पाकिस्तान युद्ध जीत जाता, यही मुशर्रफ ने क्लिंटन की बात नही मानी होती तो क्लिंटन भारत को दी जाने वाली सहायता बढ़ा देता और पाकिस्तान को दी जाने वाली सारी सहायता बाधित करके रोक देते और तब उस परिस्तिथि में पाकिस्तान बुरी तरह हार जाता,यह अमेरिका ही था जिसने युध्द जीता
जब कारगिल युध्द प्रारम्भ हुआ तो हमने रूस,फ्रांस,अमेरिका और अन्य अनेको देशो से लेजर गाइडेड/निर्देशित मिसाइल/प्रेक्ष्यपास्त्र और लेजर निर्देशित बम हमे बेचने को कहा लेकिन किसी ने भी हमे अन्तिम क्षण तक कुछ नही बेचा, अंतिम क्षणों में हम केवल कुछ ही ऐसे लेजर गाइडेड बम खरीद सके जिससे पहाड़ की चोटी पर घुसपैठियो को मार सकते थे
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यहाँ मैं भारतीय नागरिको से एक बिंदु पर ध्यान देने का अनुरोध करता हु :- यदि हम लोग लेजर गाइडेड मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र और लेजर गाइडेड बम का निर्माण कर रहे होते तो (बना रहे होते) तो भारत का एक भी सैनिक का जीवन खतरे में डाले बिना हम लेजर गाइडेड मिसाइल/ प्रक्षेपास्त्र और लेज़र गाइडेड बम का प्रयोग करके सभी घुसपैठी पाकिस्तानी सैनिको को मार सकते थे , यही पर सेना सिविल/असैनिक विभागों पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है
प्रधानमंत्री/वित्तमंत्री आदि के भ्रष्टाचार के कारण हम इन हथियारों का विनिर्माण/निर्माण नही कर पाये, कुल मिलाकर भ्रष्ट्र राज्यव्यवस्था को देखते हुए
इंद्रा गांधी की मौत के बाद से हमारा हथियार निर्माण कार्यक्रम अस्त-व्यस्त ही था और हमे इसमे जल्दी से सुधार करना ही होगा
देश का भविष्य वहां की जनता होती है, अगर जनता ही अपने और देश के भविष्य को भगवान् पर छोड़ दे तो कोई प्रॉब्लम का समाधान कभी नहीं मिलने वाला.
अगर आपको इस देश का समस्या का समाधान में रूचि है, अगर आप करना चाहते हैं तो नेता व पार्टी-भक्ति को छोड़कर क़ानून-सुधार की भक्ति करनी चाहिए.
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हमे चाहिए व्यवस्था परिवर्तन, जिसको सरकार smstoneta.com जैसी वेबसाइट लाकर शुरू कर सकती है, जहाँ कोई नागरिक किसी अन्य नागरिक द्वारा समर्थित मुद्दे और उपाय देख सकते हैं. यह डिमांड सांविधानिक है, क्यूंकि भारत एक प्रजातंत्र है. इसमें सभी नागरिकों को अपने देश की भलाई के लिए क़ानून लाने के लिए प्रस्ताव देने और अपने नेताओं को आदेश देने का अधिकार स्वतः ही प्राप्त है.
आपने यह भी ध्यान दिया होगा की हमारे देश के पास अत्याधुनिक हथियारों की कमी है, जो भी टेस्ट्स होते हैं परिक्षण इत्यादि के,उनमे से पचास प्रतिशत से ज्यादा उपकरण व सॉफ्टवेर बाहर से आयातित होते हैं, वहां के ही अभियंता भारत आकर यहाँ के अभियंताओं को उन उपकरण चलाने की ट्रेनिंग दे देते हैं, और समाचार में आता है की हमारे देश ने अमुक अमुक टेक्नोलॉजी को स्वनिर्मित किया है, ये जो बात स्वनिर्मान की है, वो केवल २० - ३० प्रतिशत उपकरणों पर ही सही बैठती है, लेकिन जिस तरह से इन तरह के समाचारों को न्यूज़ में दिखाया जाता है, वैसा नहीं होता रियल में.
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हमारे देश में स्वनिर्मित हथियार बनाने में उतनी उच्च-गुणवत्ता हासिल नहीं होने का कारण हमें यह बताया जाता है, की हमारे देश के पास उतनी संपत्ति नहीं है, लेकिन अगर बात भ्रष्ट लोगों-अधिकारियों-मंत्रियों से गबन किये गए धन को वसूलने की बात आती है तो यहाँ का भ्रष्ट न्यायिक सिस्टम, इस बात को थोड़े ही दिनों में न्यूज़ चलाकर इन मामलों को ही बंद करवा देती है, रही बात न्याय की तो वो तो इस देश में मृत्यु-उपरान्त भी चलता है, इसमें क्या बड़ी बात है?
पर्याप्त धन दे दो और कोर्ट-कचहरी में मामले का डेट बढाते जाओ, तब तक बढ़ाओ जब तक की पीड़ित-पक्ष या अपराधी-पक्ष या दोनों की ही मृत्यु ना आ जाये.
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उसी तरह से आप परमाणु परिक्षण की क्षमता में भी भारत की तुलना अन्य देशों से कर सकते है, इसकी अध्ययन सामग्री आपको इन्टरनेट पर काफी मात्रा में मिल जायेगी. अगर आप उन अध्ययन संसाधनों को ध्यान से पढेंगे तो पायेंगे की भारत एवं पाकिस्तान की परमाणु क्षमता में कोई ख़ास अंतर नहीं है, कभी आपने यह ध्यान देने की कोशिश की कि द्वितीय परमाणु परिक्षण के बाद भारत पुनः और आगे की श्रृंखला का परमाणु-परिक्षण क्यों नहीं कर सका?
आपमें से कई लोग यह कहेंगे की भारत ने कभी दुसरे देशों पर आक्रमण नहीं किया , हम शान्ति-प्रिय देश हैं, हम पर भी कभी कोई आक्रमण नहीं करेगा, लेकिन शायद ऐसे लोगों को यह नहीं पता की भारत पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध को जीत न सका, वो हार गया था, अगर आप इस विषय पर अधिक जानना चाहते हैं तो कृपया यह लिंक सुनें:https://youtu.be/nb-xNwtrQjI
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समाधान
समाधान के मामले पर, राईट-टू-रिकॉल समूह ने कई सारे सुधारात्मक कानूनों का प्रस्ताव दिया है, जिसे अध्ययन करने के बाद इस देश में अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/SMS / पोस्टकार्ड इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप आदेश भेजें, यह आदेश पूर्णतया सांविधानिक है क्योकि भारत एक संप्रभु व जनतंत्र देश है.
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भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :-https://m.facebook.com/notes/834865426640797/
आप अपना आदेश इस प्रकार भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :- https://m.facebook.com/notes/834865426640797/ क़ानून को भारत में लाये जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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क्या आप जानते हैं कि भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह संविधानिक अधिकार तथा कर्तव्य है कि वह देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक आदेश अपने सांसद को भेजे। आप दिए गए ड्राफ्ट्स के लिंक में जाकर उनका अध्ययन करें, अगर सहमत हों तो अपने नेता/ मंत्री/ विधायक/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति को अपना सांविधानिक आदेश जरूर भेजें.
अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/ ट्विटर/आवास पता यहाँ लिंक में देखे:www.nocorruption.in
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इसे आप ऑडियो में भी सुन सकते है : https://archive.org/…/HowUSAHadWonTheKargilWarAndHowIndiaPa…
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जय हिन्द

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