भारतीय मीडिया में देशप्रेम एवं राष्ट्रवाद को अलग तरीके से क्यूँ परिभाषित करते हैं ?


मीडिया में राष्ट्रवाद एवं देशप्रेम को भी आज कल एक नयी साम्प्रदायिकता की तरह ही दिखाया जा रहा है, हालाँकि राष्ट्रवाद को इस नयी तरह की साम्प्रदायिकता का जामा पहनाने का कार्य कांग्रेस के समय में ही तीन दशक पहले ही शुरू हुई थी.
उम्मीद थी कि जब लोकसभा चुनाव २०१४ के बाद बीजेपी की पार्टी केन्द्रीय सत्ता में आएगी, तो राष्ट्रवाद के ऊपर से साम्प्रदायिकता नाम का कलंक धो दिया जाएगा, क्यूंकि तब हम राष्ट्रवादी लोग, बीजेपी को एक देशभक्त पार्टी समझते थे, जिसको अब सभी क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सौ प्रतिशत कर दिए जाने के बाद अब ये पार्टी कांग्रेस से भी कहीं ज्यादा ही राष्ट्रवाद का ढोंग करती नजर आती है.
इसके नेता भी मीडिया में ऐसे बयान दे देते हैं, जैसे कि ये पार्टी देश नहीं बल्कि अपना फेसबुक अकाउंट चला रही हो, एवं इस पार्टी के नेता को कितने लोग किस तरह के कमेन्ट करते हैं. खैर......
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सांप्रदायिकता का नया नाम ही कुछ वर्षों से अब राष्ट्रवाद हो गया है !!
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मीडिया के ज़रिये अब आपके साथ एक खेल खेला जा रहा है.
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एक उदाहरण के तौर पर, कश्मीर में या अन्य जगहों पर आतंकी-मुठभेड़ में एक संदिग्ध या आतंकवादी मरता है(हमले करने के लिए सेना-पुलिस के पास पूरी गाइड-लाइन होती है, वो यू ही किसी को भी संदिग्ध नहीं बना देते) तो पूरी मीडिया इस तरह से उस न्यूज़ को दिखाती है, एवं उसपर लिखती है, की जैसे कि कोई देश भक्त की मृत्यु हो गयी हो, और साथ में, उसका नाम पूरा देश जान जाता है. लेकिन कश्मीर में या कहीं भी आतंकवादियों की गोली के शिकार सैनिकों के बारे में मीडिया इस तरह से समाचार दिखलाती है, जैसे की कोई भेड़-बकरी को मजे लेने के लिए मारा-पीटा गया हो, एवं घायल तथा मृत्यु को प्राप्त सेना के जवानो को कोई मीडिया कभी नहीं दिखलाता, कोई उन सैनिकों के नाम हमें नहीं बतलाता.
आतंकवादियों की संतानों के बारे में हमें मीडिया बताती है, लेकिन उन सैनिकों के मरहूम संतानों की स्थिति के बारे में हमें कोई नहीं बताने आता, क्यूँ?
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क्या यहाँ की मीडिया एवं प्रशासनिक लोगों की सुरक्षा के लिए जवानो, सैनिकों ने अपनी एक एक सांस देश को न्योछावर नहीं की? जब ये लोग यहाँ की शान्ति एवं सुरक्षा के लिए सीमा पर एवं अन्य विकट स्थितियों में कार्य करते रहते हैं तो,उसी समय भारत के बिकाउ लोग देश को गिरवी रखने का सोदा कर रहे होते है. यह भेङ तंत्र जवानो की लाशो पर ही तो टिका हुआ है, ना कि किसी आतंवादी के दम पर. राज कर रहे है विदेशों के हाथों में बीके हुए लोग एवं संगठन. आज तक किसी नेता का बेटा, देश की रक्षा मे शहीद हुआ है क्या ? और इन नेताओं एवं संगठनों का काम है गरीब परिवार की रोटी छिनना.
क्या मीडिया कभी ये सब दिखायेगी? नहीं, ये तो अपने विदेशी मालिकों एवं महा-कारपोरेशन के लिए आतंकवादियों को एक वीर की तरह एवं जवानों को एक अपराधी की तरह दिखाती है, क्यूँ? अगर इस देश में आतंकवादी राज होता, तो क्या मीडिया चैनल्स में शांति-पूर्वक डिबेट कर सकते?
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इसका क्या मतलब हुआ? कि हमारे सैनिक अगर आतंकवादियों को अव्यवस्था फैलाने से रोकने के लिए कोई कदम उठाये तो वो कदम देशद्रोही घोषित कर दिया जाएगा, जिससे इस देश में अलगाववादियों को फायदा होगा. ये सब इस देश के टुकड़े करने के लिए उठाये जाने वाले चरणों में से एक चरण हैं, आपको समझ में नहीं आएगी.
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कुछ ख़ास व्यक्तियों की राजनैतिक महत्वकांक्षाओं के लिए बहुत सारे मीडियाकर्मी एवं अन्य संगठनो के लोग राष्ट्रवाद नामक इस नए साम्प्रदायिकता की गौ को काटने में लगा दिये गए हैं.
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आम आवाम(साधारण जनता) को यह बात देर से समझ आएगी लेकिन तब तक वह कूटनीतिक खेमों की बेड़ियों में इस कदर जकड़ दी जाएगी कि उस मकडजाल से निकलना मुश्किल हो जाएगा.
इन राजनैतिक शिकंजों के ज़ोर से उसके सर से पाँव लहूलुहान होंगे मगर वो आज़ाद नहीं हो पाएगा.
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इस दौर में एक नयी सांप्रदायिकता भी अलग अलग ब्रांड के रूपों में आ रही है.
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अब इसे बेचने के लिए उसे किराना स्टोर भी चाहिए और सुपर मॉल भी, जिसका नाम है मीडिया.
जब टूथपेस्ट के ब्रांड अलग अलग लाँच हो सकते हैं तो मीडिया के भी लाँच कर सकते है.
वहाँ भी सबसे ऊपर के मालिक/आका एक ही है मगर उनके चैनल कई हैं.
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अब हो यह रहा है कि माडिया की दुकान में सांप्रदायिकता बेचने के लिए राष्ट्रवाद का कवर चढ़ाया जा रहा है.
इतने सारे टूथपेस्ट हैं, कोई कौन सा वाला ख़रीदेगा,इसका भी इलाज है.
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एक ही बात कहने वाले भाँति भाँति के एंकर या भाँति भाँति के एंकरों को एक ही बात कहने का प्रशिक्षण !!
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जनता को कभी तो सोचना चाहिए कि मीडिया राष्ट्रवाद को लेकर इतना उग्र क्यों हो रहा है?
क्यों हर बार सेना और सीमा के नाम पर ये राष्ट्रवाद उभारा जाता है?
क्यों जब ये ठंडा पड़ता है तो गौ रक्षा का मुद्दा उठाया जाता है?
गौ रक्षा पिट जाता है तो राष्ट्रवाद आ जाता है?
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इसका अर्थ समझ में आया या नहीं आपको? मेरे विचार में इसका मतलब ये है, की राष्ट्रवाद एवं गो-रक्षा इन महा-कारपोरेशन के विरुद्ध सबसे घातक हथियारों में से एक है.
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एक उदाहरण के लिए, अगर भारत की सीमा के राज्यों की समस्या मसलन, आसाम के बाढ़ में हर साल वहां कई लोग मौत के गाल में समा जाते है, को मीडिया के लोग नहीं दिखाएँगे क्यूंकि उससे अलगाव-वादी संगठनो को फायदा होगा, और मुंबई की बारिश को दिखने से उनको फायदा मिल रहा है, क्यूंकि कुछ दिन के लिए ही, मीडिया के विदेशी बापों को हमारे देश के व्यापार के प्रभावित होने से लाभ हुआ, (चाहे वो कम ही क्यूँ ना हो), इसीलिए वो लोग अपने फायदे की न्यूज़ को दिखाने में प्रायोरिटी देते हैं.
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वैसे ही, जब कभी भी भारत विदेशो से उनके यहाँ के कुछ हथियार खरीदता है, तो मीडिया में इस तरह से बताया जाता है, जैसे की इन हथियारों की खरीद से ही भारत विश्व का सबसे अधिक एडवांस तकनीकी देश बन गया, लेकिन ये मीडिया वाले आपको कभी ये नहीं बताएँगे कि अगर आज इन धनाढ्य विदेशों के हथियार इतने एडवांस हो सकते हैं, तो निकट भविष्य में इन देशो की तकनीकी और भी न जाने कितना प्रगति कर चुकी होगी, और मीडिया कभी भी ये भी आपको नहीं बताएगी कि ये जिन देशो से अपने हथियार खरीदता है, वो कोई अपने देश की आधुनिकतम तकनीकी भारत को दे नहीं रहे, बल्कि जो तकनीक हमें मिल रही है, वो उन देशो में आधी सदी पहले से ही पुरानी पड़ चुकी होती है.
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हमारे देश में, सन 1857 की क्रान्ति के बाद अंग्रेजो ने भारतीयों से कहा कि हथियार रखना अच्छी बात नहीं है, अत: क़ानून बनाकर हथियार जब्त कर लिया जाए. इन धनाढ्य महा कारपोरेशन के हिसाब से अंग्रेजो ने ठीक ही किया था. लेकिन अंग्रेजो ने ब्रिटिश नागरिको एवं अपने मित्र देशों को को हथियारों से कभी वंचित नहीं किया.
ढेर सारे परमाणु बम बनाकर अमेरिका ने तीसरी दुनिया के देशों से कहा कि परमाणु बम बनाना, परिक्षण करना आदि अच्छी बात नहीं है अत: चलो, सीटीबीटी पर साइन कर के निशस्त्रीकरण को बढ़ावा दो.
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2008 में भारत ने १२३-एग्रीमेंट पर साइन करके उनकी बात मान भी ली. महा कारपोरेशन वालो के हिसाब से मनमोहन सिंह ने भी ठीक ही किया था. अब अमेरिका कह रहा है कि परमाणु बम तो छोड़ ही दो, भारत में अन्य हथियारों का भी उत्पादन, अमेरिकी कम्पनियो को ही करने दो, वरना भारी गड़बड़ हो जायेगी.
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मोदी साहेब ने उनकी भी बात मान ली है और भारत का हथियार उद्योग भी महा कारपोरेशन की कम्पनियो को ठेके में दे दिया है.
भक्तों के हिसाब से मोदी ने भी ठीक ही किया है.
उन महाकारपोरेशन के हिसाब से न तो नागरिको के पास शस्त्र होने चाहिए, न ही तीसरी दुनिया के एक भी देश को खुद हथियारों का उत्पादन करना चाहिए.
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अतः यही कारण है कि जब भी भारत, किसी अभी देश से निर्मित हथियार खरीदता है, तो मीडिया उसे एक तरह से सरकार की किसी जीत की तरह दिखाते हैं.
इसका मतलब ये हुआ कि हमारे देश में हथियार निर्माण में स्वयं स्वायत्तता एवं आत्मनिर्भरता होना, उन महा-कारपोरेशन एवं धनाढ्य देशो के विरुद्ध सबसे घातक हथियारों में से एक है, जिससे वे देश एवं कारपोरेशन, भारत-सरकार द्वारा अपनी सभी मांगें, नहीं मनवा सकेंगे, क्यूंकि इस दुनिया में जितने भी अंतर्राष्ट्रीय सौदे किये जाते हैं, जितने भी अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ होती हैं एवं बात-चीत चलती है न, उन सभी में निर्णय, तकनीकी रूप से सबसे विकसित एवं सबसे विकसित हथियार वाले देशों के पक्ष में होते हैं.
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जैसे कि ग्लोबल नियम है, वे केवल महा-कारपोरेशन एवं धनाढ्य मित्र-देशो के पक्ष में है, वे कभी नहीं बदलेंगे, वे देश एवं कंपनिया कभी अपने नियम-क़ानून नहीं बदलेंगे, चाहे आपके देश को अपने संविधान ही क्यूँ ना बदलना पड़े.
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इसके समाधान के लिए सभी नागरिकों को भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :- https://m.facebook.com/notes/834865426640797/ को राष्ट्रीय गजेट नोटिफिकेशन (भारत का राजपत्र या सरकारी अधिसूचना (Gazette Notification) में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का मांग करके सांसदों/विधायकों/ पी एम् के ऊपर नैतिक दबाव बनाया जाए.
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आप अपना सांवैधानिक आदेश अपने नेताओं / मंत्रियों/विधायकों/ सासदों/प्रधानमत्री/ राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/SMS / पोस्टकार्ड इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा भेजें, यह आदेश पूर्णतया सांविधानिक है क्योकि भारत एक संप्रभु व जनतंत्र देश है.
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भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :-https://m.facebook.com/notes/834865426640797/
आप अपना आदेश इस प्रकार भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :- https://m.facebook.com/notes/834865426640797/ क़ानून को राष्ट्रीय गजेट नोटिफिकेशन (भारत का राजपत्र या सरकारी अधिसूचना (Gazette Notification) में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से भारत में इस क़ानून को लाये जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे:www.nocorruption.in
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इस लड़ाई को आप सब, भले ही मात्र चंद एंकरों के बीच का मामला समझें लेकिन ऐसा है नहीं. कोई है जो यह खेल खेल रहा है. कोई है जिसकी राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिए यह खेल खेला जा रहा है, उसका चेहरा आप कभी नहीं देख पाएँगे क्योंकि महाकारपोरेशन किसके इशारे पर चलता है, उसका चेहरा कोई नहीं देख पाता है.
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सिर्फ लोग गिने जाते हैं और लाशें दफ़नाई जाती हैं. पूरी दुनिया में ऐसा ही चलन है.
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राष्ट्रवाद जिनमें भरपूर है यानी जिनके टूथ पेस्ट के ट्यूब में पेस्ट भरा है उन्होंने क्या कर लिया? इसका एक सबसे बड़ा अभियान लाँच हुआ था जो आज भी लाँच अवस्था में ही है.
स्वच्छ भारत अभियान. दो साल पूर्व बहुत से नेता,कार्यकर्ता, अभिनेता झाड़ू लेकर खूब ट्वीट करते थे.
ट्वीटर पर नौ रत्न नियुक्त करते थे कि ये भी सफाई करेंगे तभी देश साफ होगा.
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तब कहा गया था कि अकेले सरकार से कुछ नहीं होगा. सबको आगे आना होगा. आज वो लोग कहाँ है? ट्वीटर के नौ रत्न कहाँ हैं? स्वच्छता अभियान कहाँ है? वो राष्ट्रवादी भावना कहाँ है जिसे लेकर ये लोग चरणामृत छिड़क रहे थे कि अब हम साफ सुथरा होने वाले हैं.
जो लोग आए थे, उनका राष्ट्रवाद क्यों ठंडा पड़ गया? दो साल में तो वो अपनी पूरी कालोनी साफ कर देते? क्या उन्होंने उन एंकरों को देखना छोड़ दिया जिन्हें राष्ट्रवाद का टोल टैक्स वसूलने का काम दिया गया है?.
स्वच्छ भारत अभियान के तहत नई दिल्ली के बाल्मीकि मंदिर के पास अनोखा शौचालय बना. क्या दिल्ली में वैसा शौचालय और भी कहीं रखा गया? ऐसा है तो दो साल में दिल्ली में कम से कम सौ पचास ऐसे शौचालय तो रखे ही गए होंगे? क्या आपको दिखते हैं? क्या आपको दिल्ली के मोहल्लों में या अपने किसी शहर में ऐसे शोचालय, कूड़ेदान दिखते हैं जो इस अभियान के तहत रखे गए हों? उनकी साफ सफाई होती है? एक या दो कूड़ेदान रख खानापूर्ति की बात नहीं कर रहा। अगर कहीं ये सफल भी होगा तो इन्हीं सब व्यवस्थाओं के दुरुस्त होने की वजह से न कि ट्वीटर पर छाये गाली गुंडों के राष्ट्रवाद से.
इस कहानी का मतलब यह हुआ कि आपकी समस्या की वजह राष्ट्रवाद में कमी नहीं है.
स्वच्छता अभियान इसलिए फ़ेल हुआ क्योंकि दिल्ली को साफ करने के लिए कई हजार सफाई कर्मचारी की ज़रूरत थी. क्या भर्ती हुई? जो मौजूदा कर्मचारी हैं उन्हीं का वेतन न मिलने की ख़बरें आती रहती हैं. उन्होंने अपनी सैलरी के लिए दिल्ली की सड़कों पर कचरा तक फेंक दिया. अब आप इस तरह के सवाल न पूछ बैठें इसलिए आपका इंतज़ाम किया गया है. लगातार ऐसे मुद्दे पेश किये जा रहे हैं जिनका संबंध कभी सीधे सांप्रदायिकता से हो या राष्ट्रवाद से.
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ये इसलिए हो रहा है कि आप सब हमेशा एक काल्पनिक दुनिया में रहने लगे, वैसे रहते भी हैं अधिकतर लोग. कोई है जो आपको ख़ूब समझ रहा है.
यही कि आप सर नीचा किये स्मार्ट फोन पर बिजी हैं.
इन्हीं स्मार्ट फोन पर एक गेम आ गया है. पोकेमौन. खेलते खेलते इसी बहाने अपने मोहल्ले में स्वच्छता खोज आइयेगा.
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इन सबका एक उपाय होना चाहिए कि सभी सांसदों, विधयाकों, पी एम्, पुलिस तंत्र, जज-तंत्र, डिस्ट्रिक्ट पब्लिक प्रासीक्यूटर इत्यादियों पर राईट-तू-रिकाल, ज्यूरी सिस्टम, पब्लिक में अभियुक्तों-गवाहों का नार्को टेस्ट, जी एस टी के स्थान पर वेल्थ-टैक्स का नियम होना चाहिए, स्वच्छता अभियान के लिए शौचालय बनवाने के साथ साथ उसके साथ साथपानी की भी व्यवस्था हो, लोगों में साक्षरता बढाने के लिए सात्य सिस्टम जैसा क़ानून लागू हो, नदियों की सफाई के साथ साथ इसके साथ रिवर-फ्रंट बनवाने के अलावा, उद्योगों एवं शहरों द्वारा गिराए जाने वाले कचड़े में रसायनों की मात्रा, वातावरण में स्वास्थ्य की तय सीमा के अंतर्गत राखी जाए, अन्यथा सम्बंधित सरकारी अधिकारियों को राईट-टू-रिकॉल क़ानून के अंतर्गत अपने पद से जान धोनी पड़े.
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इन कानूनों को तत्काल प्रभाव से लागू करने के लिए सरकारों को मात्र इनके ड्राफ्ट्स को गजेट में प्रकाशित करना होताहै, जिसके बाद कोई भी क़ानून का ड्राफ्ट क़ानून तत्काल प्रभाव से लागू हो जाता है, जिसके बाद इस देश में बदलाव आने में मात्र चाँद महीने ही लगेंगे.
लेकिन कोई भी सरकार ऐसा नहीं करेंगी, जब तक जनता, उनपर अपना सांवैधानिक एवं नैतिक दबाव नहीं बनाएगी.
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अब बुद्धिमान लोग सवाल उठाएंगे किराईट-टू-रिकॉल के क़ानून के आने से हमारा प्रशासनिक तंत्र अस्थिर हो जाएगा, ऐसा सवाल केवल वही करते हैं, जिनको यहाँ व्याप्त भ्रष्टाचार से किसी प्रकार का फायदा हुआ हो, ये लोग आपको कभी यह नहीं बताएँगे कि राईट-टू-रिकॉल के क़ानून के आने से भ्रष्टाचारी को उनके पद से निष्कासित करने का अधिकार जनता के हाथ में होगा, जिससे भ्रष्ट मानसिकता वाले सांसदों/विधायकों/मंत्रियों/अधिकारियों/जजों/दी पी पी/पुलिस एवं अन्य महकमे लगाम में रहेंगे, जिससे उन्हें डर हो जायेग कि अगर उनके कार्य से जनता को कष्ट हुआ तो उन्हें अपने पदों को छोड़ना पड़ेगा
अतः इस क़ानून के आने से लोग इमानदारी पूर्वक प्रशासनिक व्यवस्था एवं अपने कार्यालयों में ऑफिसियल कार्यभार का सम्पादन करेंगे.
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लेकिन, दरअसल, आप लोगों की ट्रेनिंग पहले से ही प्रशासनिक एवं महा-कारपोरेशन द्वारा ऐसी कर दी गई है कि आप लोगों को ही कोसें, लेकिन सरकार को कभी भी नहीं.
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ये सब हुआ ही इसलिए है कि कोई आपको अलग-अलग नामी -बेनामी संस्थाओं की मदद से राष्ट्रवाद के ट्रेड मिल पर दौड़ाए रखे हुए है.
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क्या आप बता सकते हैं कि हमारे देश में सैनिक क्यों अठारह हज़ार मासिक पाता है? क्या सांसद विधायक का वेतन एक सैनिक से ज़्यादा होना चाहिए? सैनिकों पर तो कम से कम सीमा पर खड़े खड़े देश लूटने का इल्ज़ाम नहीं है. वे तो जान दे देते हैं. विधायकों सांसदों में से कितने जेल गए और कितने और जा सकते हैं मगर इनसे सरकारें बनतीं हैं और चलती हैं.
इनके अपार फंड की गंगोत्री किधर है? राष्ट्रवाद की चिन्ता करनी है तो यह बोलो कि सीमा से छुट्टी पर लौटने वाला जवान जनरल बोगी या सेकेंड क्लास में लदा कर क्यों जाता है? उसके लिए एसी ट्रेन क्यों नहीं बुक होती? उसका बच्चा ऐसे स्कूल में क्यों पढ़ता जिसका मास्टर जनगणना करने गया है। उसकी सैलरी पचास हज़ार क्यों नहीं है?
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दरअसल, इस देश मे व्यवस्था परिवर्तन के लिए भी कार्य करना चाहिए, जिसे भारत सरकारwww.smstoneta.com जैसी वेबसाइट लाकर शुरू कर सकती है. जहाँ कोई भी भारतीय नागरिक किसी अन्य भारतीय नागरिक द्वारा मांगे हुए उपायों को, समर्थित मुद्दे, नागरिकों द्वारा दिखाए हुए सबूतों और समस्याओं को बिना लॉग इन के देख सकते हैं. जिससे वास्तविक अपराधी को सजा मिलने का निर्णय त्वरित हो और निर्दोषों को उनकी जिंदगी जीने का पूरा पूरा अधिकार मिले.
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इस जैसी वेबसाइट बनाने के लिए जो ड्राफ्ट है, उसे पारदर्शी शिकायत प्रणाली बोलते हैं, इस व्यवस्था में आप अपनी समस्याएं जो किसी भी संगठन से या किसी ताकतवर केद्वारा या किसी अन्य तरीके से आपके विरुद्ध खडी की जा रही है, उसको आप अपने सर्कार के वेबसाइट पर वैधानिक तरीके से पारदर्शी तरीके से रख सकें, जिसके ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186
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एवं इसे राजपत्र में प्रकाशित करने के लिए आप ऊपर बताये जा चुके तरीकों से अपना मात्र एक आदेश भेजें.
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अन्य क़ानून के ड्राफ्ट्स के लिए देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0 एवं अपने नेताओं को ऊपर बताये तरीके से अपना एक आदेश भेजें.
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आप जो टीवी पर एंकरों के मार्फ़त उस अज्ञात व्यक्ति की महत्वकांक्षा के लिए रचे जा रहे तमाशे को पत्रकारिता समझ रहे हैं वो दरअसल कुछ और हैं. आपको रोज़ खींच खींच कर राष्ट्रवाद के नाम पर अपने पाले में रखा जा रहा है ताकि आप इसके नाम पर सवाल ही न करें.
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दाल की कीमत पर बात न करें या महँगी फीस की चर्चा न करें. इसीलिए मीडिया में राष्ट्रवाद के खेमे बनाए जा रहे हैं.
एंकर सरकार से कह रहा है कि वो पत्रकारों पर देशद्रोह का मुक़दमा चलाये.
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जिस दिन पत्रकार सरकार की तरफ हो गया, समझ लीजियेगा वो सरकार जनता के ख़िलाफ़ हो गई है.
पत्रकार जब पत्रकारों पर निशाना साधने लगे तो वो किसी भी सरकार के लिए स्वर्णिम पल होता है.
बुनियादी सवाल उठने बंद हो जाते हैं. जब भविष्य निधि फंड के मामले में चैनलों ने ग़रीब महिला मज़दूरों का साथ नहीं दिया तो वो बंगलुरू की सड़कों पर हज़ारों की संख्या में निकल आईं. कपड़ा मज़दूरों ने सरकार को दुरुस्त कर दिया. इसलिए लोग देख समझ रहे हैं. जे एन यू के मामले में यही लोग राष्ट्रवाद की आड़ लेकर लोगों का ध्यान भटका रहे थे. बेचारे फ़ेल हो गए. अब कश्मीर एवं पैलेट गन के नाम के बहाने से इसे फिर से लांच किया गया है !
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मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने कहा है कि बुरहान वनी को छोड़ दिया जाता अगर सेना को पता होता कि वह बुरहान है !
बीजेपी की सहयोगी महबूबा ने बुरहान को आतंकवादी भी नहीं कहा और अगर वो है तो उसके देखते ही मार देने की बात क्यों नहीं करती हैं जैसे वास्तविक राष्ट्रवादी करते हैं?
महबूबा मुफ्ती ने तो सेना से उसकी एक बड़ी कामयाबी का श्रेय भी छीन लिया कि उसने अनजाने में मार दिया.
क्या महबूबा मुफ्ती को गिरफ़्तार कर देशद्रोह का मुक़दमा नहीं चलाया जाना चाहिए ?
क्या एंकर लोग कभी ये मांग करेंगे ?
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जिस सरकार के दम पर वो कूद रहे हैं, क्या वो सरकार ऐसा करेगी कि महबूबा को बर्खास्त कर दे? क्या उस सरकार का कोई बड़ा नेता, महबूबा से यह बयान वापस करवायेगा?
इसलिए राजनीति को राजनीति की तरह ही देखिये.
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इसमें अगर राष्ट्रवाद का इस्तमाल होगा तो एक दिन राष्ट्रवाद की हालत भी ये नेता देश सेवा जैसी ही बना देंगे. जब भी वे घृणित लोग, देश सेवा का नाम ज़ुबान पर लाते हैं, तो लगता है कि सफ़ेद झूठ के सिवाय कुछ नहीं बोल रहे हैं.
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बल्कि उनके मुँह से राष्ट्रवाद खोखला ही लगता है. लगभग तमाम भारतीय जनता राष्ट्रवादी हैं.
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लेकिन, इस बात का पता करने के लिए रोज़ रात को नौ बजे टीवी देखने की नौबत आ जाए तो आपको राष्ट्रवाद नहीं कोई दाद खाज खुजली है. केवल समाचार देखने वाले ही राष्ट्रवादी हों, जरूरी नहीं, जो समस्या के समाधान के लिए ड्राफ्ट्स बनाये एवं उन ड्राफ्ट्स को भारतीय-राजपत्र या गजेट-नोटिफिकेशन में प्रकाशित करवाने के लिए कार्य करे(जरूरी नहीं की, ऐसे लोग रेगुलर टीवी पे समाचार देखने वाले हों), वो वास्तविक राष्ट्रवादी हैं.
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अगर आप अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रदर्शन के लिए रोज टीवी पे समाचार देखते हों तो इस दाद की कोई दवा नहीं है.
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आपको मुफ़्त में एक सलाह है, चैनलों को देखने के लिए केबल पर हर महीने तीन से पाँच सौ रुपया खर्च हो ही जाता होगा, जब पाँच सौ रुपया देकर राष्ट्रवाद की आड़ में हिन्दू- मुस्लिम के बीच नफ़रत की गोली ही लेनी है तो आप केबल कनेक्शन हटवा ही दीजिये, जब आपने नफरत की ठान ही ली है तो कीजिये नफ़रत, लेकिन इस देश की प्रशासनिक व्यवस्था को सडांध में तब्दील करने वालों से, अपने देश में रहने वालों से नहीं, अपने देश के अन्य राज्यों के नागरिकों से नहीं, क्षेत्रीयता से नहीं, दुसरे राज्य की बोली बोलने वालों से नहीं.
कोई भो दो व्यक्ति इस संसार में कभी एक जैसा नहीं हो सकता, लेकिन इसका ये मतलब नहीं, कि अलग अलग लोगों को आपस में लड़ के मर-मार दें एक दुसरे को.
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राजनीति और राष्ट्रवाद में फर्क करना आपको आना चाहिए. यह वो राष्ट्रवाद नहीं है जो आप समझ रहे हैं. यह राष्ट्रवाद के नाम पर सांप्रदायिकता है जो आप देखना ही नहीं चाहते. करीब पांच दस वर्षों से सांप्रदायिकता का नया नाम है राष्ट्रवाद.
ज़रूरत है राष्ट्रवाद को सांप्रदायिकता से बचाने की और टीवी कम देखने की.
इसके स्थान पर, आपको अपने देश की समस्याओं के समाधान के लिए ड्राफ्ट की सांवैधानिक मांग अपने नेताओं से करके उनपर नैतिक प्रेशर बनाने की जरूरत है.
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जय हिन्द.

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