भारतीय मीडिया में देशप्रेम एवं राष्ट्रवाद को अलग तरीके से क्यूँ परिभाषित करते हैं ?
मीडिया में राष्ट्रवाद एवं देशप्रेम को भी आज कल एक नयी साम्प्रदायिकता की तरह ही दिखाया जा रहा है, हालाँकि राष्ट्रवाद को इस नयी तरह की साम्प्रदायिकता का जामा पहनाने का कार्य कांग्रेस के समय में ही तीन दशक पहले ही शुरू हुई थी. उम्मीद थी कि जब लोकसभा चुनाव २०१४ के बाद बीजेपी की पार्टी केन्द्रीय सत्ता में आएगी, तो राष्ट्रवाद के ऊपर से साम्प्रदायिकता नाम का कलंक धो दिया जाएगा, क्यूंकि तब हम राष्ट्रवादी लोग, बीजेपी को एक देशभक्त पार्टी समझते थे, जिसको अब सभी क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सौ प्रतिशत कर दिए जाने के बाद अब ये पार्टी कांग्रेस से भी कहीं ज्यादा ही राष्ट्रवाद का ढोंग करती नजर आती है. इसके नेता भी मीडिया में ऐसे बयान दे देते हैं, जैसे कि ये पार्टी देश नहीं बल्कि अपना फेसबुक अकाउंट चला रही हो, एवं इस पार्टी के नेता को कितने लोग किस तरह के कमेन्ट करते हैं. खैर...... . सांप्रदायिकता का नया नाम ही कुछ वर्षों से अब राष्ट्रवाद हो गया है !! . मीडिया के ज़रिये अब आपके साथ एक खेल खेला जा रहा है. . एक उदाहरण के तौर पर, कश्मीर में या अन्य जगहों पर आतंकी-मुठभेड़ में एक संदिग्ध या...