आंबेडकर ने ऐसा बोला था क्या? क्या ये सच है या कोई षड्यंत्र?

क्या संलग्न ट्वीट किसी षड्यंत्रकारी का प्रयास है? या धर्मान्तरण करने वालों का एक प्रयास है?
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आंबेडकर बौद्धही क्यों बना ईसाई क्यों नही ? उन्हेँ ऐसा धर्म चाहिए था जिसमेँ वो धार्मिक नेता बन सकेँ राजनेता के साथ साथ और ईसाई और सिक्ख धर्म मे पहले से ही धार्मिक नेता मौजूद थे तो वहाँ इनकी ना चलती जबकि बौध्द का कोई बड़ा धार्मिक नेता मौजूद नहिँ था भारत मेँ।
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अम्बेडकर जी ने स्वतन्त्रता संग्राम का बहिष्कार किया था और केवल जाति के लिए अन्य हिन्दुओं से लड़ें , जब साइमन कमीशन का विरोध पूरा देश कर रहा था तब वे साइमन कमीशन के लिए बॉम्बे-प्रेसीडेंसी-कमिटी में मनोनीत होकर कार्य कर रहे थे, ब्राह्मणों की पैरवी और धन से पढ़े-लिखे , किन्तु मनुस्मृति के पाश्चात्य गलत अनुवाद को प्रामाणिक मानकर हिन्दू धर्म और समाज का ही विरोध करने लगे,
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संस्कृत सीखने का प्रयास तक नहीं किया किन्तु वेदों और मनुस्मृति पर पाश्चात्यों के विचार पढ़कर अपने लेख लिखते थे, अंग्रेजों की चाल के अनुसार दलितों के लिए पृथक electorate की माँग की (उन संसदीय क्षेत्रों में केवल दलित ही वोट कर सकते थे, अतः शेष हिन्दुओं से उनका अलगाव और वैमनस्य हो जाता) जिसे गान्धी जी ने उससे भी दोगुनी आरक्षित सीटें घूस में देकर रुकवाया और जब जिन्ना ने पाकिस्तान के लिए कठोर रुख अपनाया तो अंग्रेजों के सिखाने पर अम्बेडकर जी ने दलितों के लिए पृथक माँग कर दी (यह बात अब कोई इतिहासकार नहीं लिखता), यद्यपि अधिकाँश दलित अम्बेडकर जी को जानते भी नहीं थे, किन्तु अंग्रेज अम्बेडकर जी की यह माँग झट मान लेते |
आजकल बहुत से अम्बेडकरवादी झूठ बोलते हैं कि अम्बेडकर जी ने 1947 की आज़ादी का विरोध नहीं किया था :-- 
अम्बेडकर ने स्वयं लिखा था -- " “It has been said that Indian swaraj will be the rule of the majority of the majority community, i.e. the Hindus...There could not be a greater mistake than that. If it were to be true, I for one would refuse to call it swaraj and would fight it with all the strength at my command, for to me Hind Swaraj is the rule of all the people, is the rule of justice" --
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जिसका अर्थ था कि लोकतान्त्रिक चुनाव द्वारा बहुमत के निर्णय को वे हिन्दुओं का राज मानते थे अतः बहुमत पर आधारित लोकतन्त्र के विरोधी थे, जिस कारण गान्धी-नेहरु ने उन्हें संविधान-निर्माण में प्रमुख भूमिका देकर मनाया, गान्धी और उसके चेलों ने देश को बचाने के लिए अम्बेडकर से समझौता करके उनको संविधान-सभा का अध्यक्ष बना दिया और क़ानून मन्त्री भी बनाया था; ओहदा मिलने पर भारत की आज़ादी के प्रति अम्बेडकर जी के रुख में भी नरमी आ गयी किन्तु हिन्दुत्व का विरोध करते रहे और अन्ततः बौद्ध बन गए और लाखों को बनाया भी.
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जो बौद्ध बन गए उन्हें हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ मनुस्मृति जलाने का अधिकार कैसे है ?-- अम्बेडकर जी के ही संविधान और क़ानून के अनुसार यह सम्प्रदायवाद और कानूनन अपराध है !!
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छूआछूत का वास्तविक इतिहास कुछ और है -- इस्लामी राज में जो जातियाँ बनीं उनका दोष हिन्दुओं पर थोपा गया. 
मनुस्मृति में "वर्ण" को "जाति" पढ़ा गया. अम्बेडकर जी ने गान्धी के प्रति घृणा और अपमान भरे शब्दों का प्रयोग किया, गाँधी को वे जातिवादी कहते थे ! 
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"दलित" शब्द अंग्रेजों की खोज थी - "डिप्रेस्ड" का अनुवाद. 
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जातिप्रथा हिन्दुत्व के पतन और गुलामी के काल की परिघटना है, किन्तु अंग्रेजों की चाल में फंसकर अम्बेडकर जी ने समूचे सनातन धर्म को ही नकार दिया, प्राचीन वैदिक दर्शन को समझने का प्रयास नहीं किया जिसमें कहीं भी जातिवाद नहीं था . 
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अम्बेडकर को मेधावी कहने वाले छुपाते हैं कि 1913 में PG करने गए तो 1917 में Ph.D. कर लेते, किन्तु 1927 में Ph.D. की डिग्री ले पाए -- तीसरी थीसिस पर !!
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अंग्रेजों का क़ानून भारत पर थोपा -- यही उनकी "मेधा" थी. 
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इसके अलावा उन्होंने एक अच्छी बात जो की है, वो ये की शिक्षा पाने के लिए, लिंग के आधार पर भेद करना अपराध है, स्त्री शिक्षा को पुरुषों की शिक्षा के बराबर वाला क़ानून भी हमारे संविधान में उन्ही की देंन है, जो एक अच्छी बात उन्होंने की है. 
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पाश्चात्य पद्धति की शिक्षा में तीव्रबुद्धि के थे, भले ही दो साल की थीसिस में एक युग लग जाए.
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मूर्खों को मिर्ची लगेगी तो लगे, सत्य तो सत्य ही रहेगा. 
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कई पीढ़ियों तक आरक्षण के बावजूद कभी भी आरक्षित सीटें भर नहीं पातीं -- क्या मेधा है !! 
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आरक्षित सीटें नहीं भर पातीं इसके लिए और कितने पुश्तों तक मनुवाद को गरियायेंगे ? 
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हाल की UPSC सिविल सर्विस परीक्षाओं में ब्राह्मणों को 4% सीटें ही मिलीं हैं जो आबादी में भी उनके हिस्से से कम है, 75% सीटें OBC दबा लिए (षड्यन्त्र ?), SC की सीटें इस बार भी नहीं भर पायीं. 
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जाहिर है कि कब्जा OBC का है जिसमें अधिकाँश बड़े पूँजीपति हैं, राज उनका है. किन्तु सारा दोष ब्राह्मणों और मनुस्मृति का है, जबकि मनु महाराज स्वयं ब्राह्मण नहीं थे !! वेदव्यास जी ने बहुत पहले लिख दिया था कि कलियुग में वेद और ब्राह्मण का अपमान होगा.|
इतना जातिवाद करके भी अम्बेडकर जी कभी लोक सभा का चुनाव जीत नहीं पाए ! 
ब्राह्मण (नेहरु) की कृपा से राज्यसभा में मनोनीत होकर क़ानून-मन्त्री बने. अम्बेडकर जी पाखन्डी इतने थे कि बात करते थे यूनिफार्म सिविल कोड की किन्तु लागू किये केवल हिन्दू कोड बिल !! (कोई षड्यंत्र ? )
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गरीबी से उठकर अम्बेडकर जी ने करोड़ों की जायदाद कैसे बनायी इसपर कहाँ कोई लिखता है ?
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संविधान में तो लम्बी बहस हुई जिसमें बहुतों का योगदान है, किन्तु एक अनुच्छेद-17 है जिसमें केवल अम्बेडकर जी का योगदान है -- 'हर किस्म का छूआछूत ("untouchability") वर्जित है' !! कैसा अद्भुत विचार है -- "हर किस्म" !! डॉक्टर यदि ऑपरेशन के दौरान सफाई के उद्देश्य से छूआछूत करे तो ? मैं सगे भाई को भी अपना चूल्हा नहीं छूने देता -- तो यह भी छूआछूत है ? अम्बेडकर के चेलों ने कई बार मेरे विरुद्ध हंगामा किया है -- मैं किसी भी जाति का छूआ पका अन्न नहीं खाता तो वे कहते हैं कि मैं अछूतों का छूआ क्यों नहीं खाता ? जब मैं ब्राह्मण हो या शूद्र, सबसे शारीरिक संपर्क और भोजन में मामले में दूरी रखता हूँ तो केवल अम्बेडकरवादियों को शिकायत क्यों है ? अरे भाई, मैं घटिया हूँ, मुझसे सबलोग दूर रहो | अब मेरा यह विचार भी अम्बेडकर जी के दर्शन में छेद कर रहा है क्या ? अम्बेडकर जी को लिखना नहीं आया, "हर किस्म" क्यों लिखा ? साफ़ लिखते कि "जातीय या नस्ली या किसी जन्मजात अथवा पेशागत या साम्प्रदायिक आधार पर छूआछूत वर्जित्त है". 
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जोश जोश में "हर किस्म" लिख दिया |
जो जीवन में कभी लोक सभा का चुनाव न जीत पाए उसे संविधान सभा का अध्यक्ष बनाएंगे तो यही सब न होगा ! 
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पुरानी कहावत है कि "भुसकौल विद्यार्थी का गत्ता मोट" (मूर्ख विद्यार्थी के किताब की जिल्द मोटी) -- अमरीका जैसी महाशक्ति का संविधान भी केवल 13 पृष्ठों का है, लेकिन हमारा संविधान इतना मोटा है और विभिन्न अनुच्छेद एक-दूसरे में इतने छेद करते हैं कि एक अदालत कुछ निर्णय देती है तो दूसरी अदालत कुछ और ही अर्थ लगाती है -- संविधान नहीं गोया भगवान हो गया, जो जैसा भक्त है उसे वैसा ही भगवान दिखता है ! दो गंभीर उदाहरण प्रस्तुत है :--
संविधान के अनुच्छेद-15 में "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की प्रगति के लिये विशेष प्रावधान" इस घुमावदार भाषा में है कि "वर्ग" के साथ साथ "सामाजिक पिछड़ेपन" का भी उल्लेख है जिसे "पिछड़ी जातियाँ" पढ़कर OBC के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया और वहाँ "वर्ग" का अर्थ "क्रीमी लेयर" न्यायालय ने लगाया | अम्बेडकर ने कौन सी भाषा सीखी थी कि उनके अर्थ को समझने में न्यायविदों के भी पसीने छूट जाएँ ? सीधी भाषा में लिखते "पिछड़ी जातियों में गरीब" , यदि यही उनका अभिप्राय था. 
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"सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग" कौन-कौन से हैं इसपर आजतक किसी सरकार ने आंकड़े इकट्ठे करने के प्रयास भी नहीं किये, क्योंकि बिना जातिगत जनगणना के यह सम्भव नहीं है. 
अम्बेडकर ने एक तरफ जातिगत जनगणना प्रतिबन्धित कर दिया, केवल SC की जनगणना जारी रखी क्योंकि SC से उनको सहानुभूति थी, और दूसरी तरफ "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग" के लियी "विशेष प्रावधान" कर दिए जिनकी पहचान बिना जनगणना के सम्भव नहीं थी !! अम्बेडकर के ये बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य कमाल के हैं न !! "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग" के लिए अम्बेडकर ने कभी कुछ किया भी नहीं, केवल संविधान में असपष्ट रूप से कुछ लिखकर छोड़ दिया ताकि झगडा फँसा रहे, हिन्दू समाज बँटा रहे, ताकि SC बौद्ध बनते रहें, ST ईसाई बनते रहें.
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भारतीय संविधान के APPENDIX-ii में उल्लेख है कि Preamble में लिखित "Socialist Secular" तथा "and integrity" जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होगा | अर्थात समाजवाद और सेक्युलरिज्म शेष भारत के लिए है, जम्मू-कश्मीर के लिए नहीं.
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इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है Preamble का यह वाक्य "assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation" को जम्मू-कश्मीर के लिए "and integrity" हटाकर इस तरह पढ़ा जाएगा :-- "assuring the dignity of the individual and the unity of the Nation".
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अर्थ बड़ा भयावह है -- जम्मू-कश्मीर के सन्दर्भ में भारत की अविभाज्यता की गारन्टी संविधान नहीं करता.| अर्थात जम्मू-कश्मीर भारत से पृथक हो सकता है !! किसी ने इसपर कभी गौर किया है ? जम्मू-कश्मीर सम्बन्धी यह बात अम्बेडकर के मरने के बहुत बाद जोड़ी गयीं, किन्तु कभी किसी ने इसमें संशोधन की माँग नहीं की. 
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जेटली जी बड़े कानूनची बनते है, संविधान ठीक से क्यों नहीं पढ़ना नहीं आता क्या ?
अम्बेडकर को भारत का संविधान ही लिखने का भार क्यों सौंपा गया ? उनको दलितों का भी कितना समर्थन प्राप्त था ? 
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ब्रिटिश काल में तो बहुत कम लोग उनको जानते थे, संविधान सभा का अध्यक्ष और क़ानून मन्त्री बनाए जाने के बाद पूरा देश उनको जान गया, किन्तु जब उन्होंने अपने सभी अनुयायियों सहित बौद्ध सम्प्रदाय अपनाया तो पाँच लाख भी नहीं जुटे, जबकि SC की संख्या उस समय पाँच करोड़ से भी अधिक थी. 
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दलितों में भी अम्बेडकर के समर्थक 1% से भी कम थे. 
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उनको व्यर्थ ही औकात से अधिक उछला गया, जिसके पीछे मिशनरी और विदेशी ताकतें थीं जिनसे नेहरु प्रभावित था.
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जय हिन्द.

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