भारत में बीफ-मांस उद्योग को बढ़ावा देने से किसानी किस तरह से और क्यों बर्बाद होती है?
भारत की अब तक की सभी सरकारों ने गौ-हत्या रोकने के लिए कोई कार्य नहीं किया. हाँ, इसे रोकने के क्षद्म वायदे करके जनता से वोट लेकर अपनी सरकार जरूर बनाते आये हैं.
लोकसभा-२०१४ चुनाव के पहले मोदी ने अपने भाषण में गोहत्या बंद करने की बात की लेकिन चुनाव जीत जाने के बाद गो-हत्या के लिए आयातित मशीनों पर सब्सिडी लगाई, एवं अन्य क़ानून लाये जिससे पहले की अपेक्षा गो-वध बीफ-वध जादाहो, त्वरित मात्र में बीफ-मांस निर्यात हो, साथ ही किसानी बर्बाद हो और नए नौकर बनाए जा सके.
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आपको बता दें कि पीएम मोदी ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 'पिंक रिवॉल्यूशन' को जोरों-शोरों से उठाया था और उन्होंने देश में मीट एक्सपोर्ट की भी कड़ी निंदा की थी.
चुनाव के समय नरेंद्र मोदी ने यूपीए सरकार पर ये कह कर हमला बोला था कि मनमोहन सरकार चोरी-छिपे मीट निर्यात को बढ़ावा दे रही है. पहली बार इसके लिए 'गुलाबी क्रांति' यानी 'पिंक रिवॉल्यूशन' शब्द का इस्तेमाल हुआ था. अब सवाल उठ रहा है कि मोदी ने जिसे 'पिंक रिवल्यूशन' कहा था क्या वह महज एक चुनावी मुद्दा था?
लिंक- http://awarepress.com/ modi-government-32-years-af ter-beef-fat-export-ban-re moved/
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क्या आप जानते हैं, इस बीफ-वध गो-वध बीफ-मांस निर्यात में वृद्धि का जो क़ानून है, उसका सम्बन्ध किस तरह से हमारे देश की खेती की व्यवस्था को बर्बाद कर देने वाला है, जिससे किसान रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर होकर दस साल के बाद उनकी जमीन बंजर हो.
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यहाँ पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार-प्रसार का सहारा लेकर लोग बीफ-खाने को लेकर आन्दोलन मचाये हुए हैं कि लोगों का अधिकार है, लेकिन क्या उन लोगों का ये अधिकार नहीं कि हमारे प्लेट में जो अन्य खाद्यान्न पहुँचता है, उसकी गुणवत्ता सुधारने को लेकर कोई ठोस क़ानून बने, लेकिन बीफ-खाने वालों को इस बात से तकलीफ है कि गुणवत्ता सुधारने के लिए उनके थाली की बीफ का गोबर चाहिए हमारे पेड़-पौधों को, जिससे अन्य खाद्यान्नों की क्वालिटी साथ ही खेतों की मिटटी की उर्वरता भी संरक्षित रहेगी.
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क्या आप जानते हैं की अच्छी फसल के लिए सबसे जरूरी हैं माइक्रो-ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) जो मिटटी से मिलने वाले पोषक तत्वों को पेड़-पौधों के भोजन में बदलते हैं. इन माइक्रो ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) का सबसे जादा नुक्सान ट्रेक्टर द्वारा खेती में होता है.
अगर आप इन ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) को बचाना चाहते हैं तो आपको इन माइक्रो ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) को बचाना होगा. इन माइक्रो ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) की सबसे अच्छी क्वालिटी देशी गायों के गोबर में ही होती है.
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कृषि कार्य से सम्बन्ध रखने वाले सभी जानकार मानते हैं की गायों का गोबर खेतों की उर्वरता बढाने का सबसे चमत्कारी खाद है.
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केवल देशी बीज का ही प्रयोग
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बाजार से कुछ भी नहीं खरीदना
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जल की मात्रा रासायनिक खेती की तुलना में केवल 10% ही पर्याप्त है।
भूमि की जुताई की आवश्यकता भी नहीं है।
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- इसमें एक साथ 3 से लेकर 5 या 7 फसलों की मिश्रित खेती और सभी फसलों का एक साथ भरपूर उत्पादन।
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कृषि वैज्ञानिक, सरकार और कंपनियां जो भी कहती हैं उन बातों को नहीं मानना और जो वे नहीं कहती हैं उसका भरपूर प्रयोग करना।
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एक ग्राम गोबर में ३०० से ५०० फायदा पहुंचाने वाले माइक्रो ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) होते हैं.
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देशी गायों के गोबर कीखाद, जर्सी या होल्स्टन गाय के गोबर के मुकाबले बेहतर होती है. हाँ, अगर किसी को गाय का गोबर नहीं मिलता है तो भैस या बैल के गोबर का इस्तेमाल करते हैं.
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काले रंग की गाय का गोबर और मूत्र से अधिक अच्छी क्वालिटी की खाद तैयार होती है.
'
हाँ, गाय का गोबर जितना तजा और मूत्र जितनी पुरानी हो, उतना अच्छा होता है.
एक एकड़ जमीन के लिए एक माह में दस किलो गोबर की आवश्यकता पड़ती है, जबकि एक गाय एक दिन में दस किलो गोबर देती है.
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एक गाय से मिले गोबर से तीस एकड़ जमीन कोउपजाऊ बनाया जा सकता है.
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लेकिन अक्सर गावों में कम दूध या दूध न देने वाली गायें लोगों की उपेक्षा का शिकार बनकर कसाई खाना पहुंचा दी जातीं हैं. जबकि यह सच्चाई है कि गायों का गोबर मिटटी को पुनर्जीवित करता है.
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लगभग 10 वर्ष बाद रासायनिक खाद और कीटनाशक बनाने के लिए आवश्यक कच्चा माल समाप्त हो जायेगा। तो केवल जीरो बजट नेचुरल फारमिंग (ZBNF) ही एक मात्र मार्ग होगा।
इसे अपना कर हमारे किसान कर्ज मुक्त हो जायेगें और उन्हें आत्महत्या करके अपना जीवन समाप्त नहीं करना पडेगा।
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अगर आप चाहते हैं कि हमारे देश में गो-वध रुके तो कृपया इस क़ानून को लागू करवाने के लिए आप अपने मात्र एक सन्देश द्वारा इसे जनांदोलन का रूप दे सकते हैं, जो हमारे प्रधामंत्री राष्ट्रपति को गो-वध रोकने के लिए जनांदोलन द्वारा दबाव बनाएगा.
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ये क़ानून का ड्राफ्ट- गोहत्या समाप्त करने के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/ pawan.jury/posts/ 822256167892621
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आप अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/sms / पोस्टकार्ड इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप एक आदेश भेजें, यह आदेश पूर्णतया सांवैधानिक है, क्योकि भारत एक संप्रभु व जनतंत्र देश है, कोई तानाशाही यहाँ नहीं है और न कभी होने देंगे.
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आप अपना आदेश इस प्रकार भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/ प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांवैधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको गो-हत्या समाप्त करने के क़ानून के ड्राफ्ट www.facebook.com/ pawan.jury/posts/ 822256167892621 को भारत में लाये जाने का आदेश देता /देती हूँ, अन्यथा हम आपको वोट नहीं देंगे.
वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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जय हिन्द.
लोकसभा-२०१४ चुनाव के पहले मोदी ने अपने भाषण में गोहत्या बंद करने की बात की लेकिन चुनाव जीत जाने के बाद गो-हत्या के लिए आयातित मशीनों पर सब्सिडी लगाई, एवं अन्य क़ानून लाये जिससे पहले की अपेक्षा गो-वध बीफ-वध जादाहो, त्वरित मात्र में बीफ-मांस निर्यात हो, साथ ही किसानी बर्बाद हो और नए नौकर बनाए जा सके.
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आपको बता दें कि पीएम मोदी ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 'पिंक रिवॉल्यूशन' को जोरों-शोरों से उठाया था और उन्होंने देश में मीट एक्सपोर्ट की भी कड़ी निंदा की थी.
चुनाव के समय नरेंद्र मोदी ने यूपीए सरकार पर ये कह कर हमला बोला था कि मनमोहन सरकार चोरी-छिपे मीट निर्यात को बढ़ावा दे रही है. पहली बार इसके लिए 'गुलाबी क्रांति' यानी 'पिंक रिवॉल्यूशन' शब्द का इस्तेमाल हुआ था. अब सवाल उठ रहा है कि मोदी ने जिसे 'पिंक रिवल्यूशन' कहा था क्या वह महज एक चुनावी मुद्दा था?
लिंक- http://awarepress.com/
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क्या आप जानते हैं, इस बीफ-वध गो-वध बीफ-मांस निर्यात में वृद्धि का जो क़ानून है, उसका सम्बन्ध किस तरह से हमारे देश की खेती की व्यवस्था को बर्बाद कर देने वाला है, जिससे किसान रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर होकर दस साल के बाद उनकी जमीन बंजर हो.
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यहाँ पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार-प्रसार का सहारा लेकर लोग बीफ-खाने को लेकर आन्दोलन मचाये हुए हैं कि लोगों का अधिकार है, लेकिन क्या उन लोगों का ये अधिकार नहीं कि हमारे प्लेट में जो अन्य खाद्यान्न पहुँचता है, उसकी गुणवत्ता सुधारने को लेकर कोई ठोस क़ानून बने, लेकिन बीफ-खाने वालों को इस बात से तकलीफ है कि गुणवत्ता सुधारने के लिए उनके थाली की बीफ का गोबर चाहिए हमारे पेड़-पौधों को, जिससे अन्य खाद्यान्नों की क्वालिटी साथ ही खेतों की मिटटी की उर्वरता भी संरक्षित रहेगी.
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क्या आप जानते हैं की अच्छी फसल के लिए सबसे जरूरी हैं माइक्रो-ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) जो मिटटी से मिलने वाले पोषक तत्वों को पेड़-पौधों के भोजन में बदलते हैं. इन माइक्रो ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) का सबसे जादा नुक्सान ट्रेक्टर द्वारा खेती में होता है.
अगर आप इन ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) को बचाना चाहते हैं तो आपको इन माइक्रो ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) को बचाना होगा. इन माइक्रो ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) की सबसे अच्छी क्वालिटी देशी गायों के गोबर में ही होती है.
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कृषि कार्य से सम्बन्ध रखने वाले सभी जानकार मानते हैं की गायों का गोबर खेतों की उर्वरता बढाने का सबसे चमत्कारी खाद है.
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केवल देशी बीज का ही प्रयोग
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बाजार से कुछ भी नहीं खरीदना
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जल की मात्रा रासायनिक खेती की तुलना में केवल 10% ही पर्याप्त है।
भूमि की जुताई की आवश्यकता भी नहीं है।
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- इसमें एक साथ 3 से लेकर 5 या 7 फसलों की मिश्रित खेती और सभी फसलों का एक साथ भरपूर उत्पादन।
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कृषि वैज्ञानिक, सरकार और कंपनियां जो भी कहती हैं उन बातों को नहीं मानना और जो वे नहीं कहती हैं उसका भरपूर प्रयोग करना।
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एक ग्राम गोबर में ३०० से ५०० फायदा पहुंचाने वाले माइक्रो ओर्गानिज्म्स (सूक्ष्म जीव) होते हैं.
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देशी गायों के गोबर कीखाद, जर्सी या होल्स्टन गाय के गोबर के मुकाबले बेहतर होती है. हाँ, अगर किसी को गाय का गोबर नहीं मिलता है तो भैस या बैल के गोबर का इस्तेमाल करते हैं.
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काले रंग की गाय का गोबर और मूत्र से अधिक अच्छी क्वालिटी की खाद तैयार होती है.
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हाँ, गाय का गोबर जितना तजा और मूत्र जितनी पुरानी हो, उतना अच्छा होता है.
एक एकड़ जमीन के लिए एक माह में दस किलो गोबर की आवश्यकता पड़ती है, जबकि एक गाय एक दिन में दस किलो गोबर देती है.
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एक गाय से मिले गोबर से तीस एकड़ जमीन कोउपजाऊ बनाया जा सकता है.
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लेकिन अक्सर गावों में कम दूध या दूध न देने वाली गायें लोगों की उपेक्षा का शिकार बनकर कसाई खाना पहुंचा दी जातीं हैं. जबकि यह सच्चाई है कि गायों का गोबर मिटटी को पुनर्जीवित करता है.
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लगभग 10 वर्ष बाद रासायनिक खाद और कीटनाशक बनाने के लिए आवश्यक कच्चा माल समाप्त हो जायेगा। तो केवल जीरो बजट नेचुरल फारमिंग (ZBNF) ही एक मात्र मार्ग होगा।
इसे अपना कर हमारे किसान कर्ज मुक्त हो जायेगें और उन्हें आत्महत्या करके अपना जीवन समाप्त नहीं करना पडेगा।
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अगर आप चाहते हैं कि हमारे देश में गो-वध रुके तो कृपया इस क़ानून को लागू करवाने के लिए आप अपने मात्र एक सन्देश द्वारा इसे जनांदोलन का रूप दे सकते हैं, जो हमारे प्रधामंत्री राष्ट्रपति को गो-वध रोकने के लिए जनांदोलन द्वारा दबाव बनाएगा.
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ये क़ानून का ड्राफ्ट- गोहत्या समाप्त करने के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/
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आप अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/sms / पोस्टकार्ड इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप एक आदेश भेजें, यह आदेश पूर्णतया सांवैधानिक है, क्योकि भारत एक संप्रभु व जनतंत्र देश है, कोई तानाशाही यहाँ नहीं है और न कभी होने देंगे.
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आप अपना आदेश इस प्रकार भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/
वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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जय हिन्द.
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.