ऍफ़ डी आई का दुष्परिणाम

एफ़ डी आई से ईसाईयत फ़ैलती है ,स्थानीय धर्म नष्ट होते हैं और देश कमजोर होता है इस बात का जीता जागता प्रमाण साऊथ कोरिया के धर्माधारित जनगणना के आंकडे। ध्यातव्य है कि १९६० मे साऊथ कोरिया मे सेना ने तख्तापलट करके सत्ता पे कब्जा कर लिया था। और "पार्क चुंग ही" साऊथ कोरिया के सैनिक राष्ट्रपति बने थे। उस जमाने मे साऊथ कोरिया के राष्ट्रवादी "पार्क चुंग ही" के उतने ही बडे अंधभक्त थे जितने कि आज के हिंदुत्ववादी मोदी के।.
१९६० मे साऊथ कोरिया आर्थिक संकट से गुजर रहा था.। लोगों को लगा कि पार्क चुंग ही तो साक्षात कल्कि अवतार हैं अत: आर्थिक संकट के समाधान के लिये जो मार्ग निकालेंगे सही निकालेंगे। उन्हे नही पता था कि पार्क चुंग ही अमेरिका की मदद से सत्ता पर काबिज हुए हैं। और आते के साथ ही उन्होने अमेरिका के इशारे पर अपने देश में एफ़ डी आई लाने कि शुरुआत सन १९६२ में कर दी। और नतीजा जो निकला वो जनगणना के आंकडों से स्पष्ट है। साऊथ कोरिया ने बहुत पहले ही डीफ़ेंस में एफ़ डी आई इंट्रोड्यूस की थी मगर आज तक हथियार निर्माण के क्षेत्र मे किसी मकाम तक नहीं पहुच सका और १९६२ मे ईसाई जनसंख्या ५% थी. कोरियन बुद्धिस्म+अन्य स्थानीय धर्म ९५% थे। और २००५ मे ३०% हो गयी और कोरीयन बुद्धिस्म + अन्य स्थानीय धर्म सिर्फ़ ७०% रह गये। और २०१५ मे ईसाई जनसंख्या और अधिक हो गयी होगी. साऊथ कोरिया के १९६२,१९८५,१९९५ तथा २००५ के धर्माधारित जनगणना के आंकडे भी मैं टेबल बनाकर इस पोस्ट में फोटो के रूप में डाला हूं कृप्या देख लें।.
आज साऊथ कोरिया पूरी तरह एफ़ डी आई के दलदल मे डूब चुका है। जबकि उसके पडोस मे नौर्थ कोरिया मे बहुत कम एफ़ डी आई है और बाहरी दुनिया से लगभग कटा हुआ है मगर परमाणु बम बना चुका है।इसलिये कि वह विदेशी कम्पनियों के चंगुल मे उतना अधिक नहीं फ़सा हुआ है। और वहां पर ईसाईयत के विरुद्ध इतना सख्त कानून है कि आपके पास बायबील बरामद हो जाने पर आपको सार्वजनिक रूप से मौत की सजा दी जाती है।अभी कुछ दिनो पहले नौर्थ कोरिया के तानाशाह ने अपनी पूर्व गर्लफ़्रेंड को ही मौत की सजा दिलवा दी क्योंकि उसके पास बायबील बरामद हुई थी।
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अब सवाल ये उठता है कि साऊथ कोरिया क्यों हथियार बनाने मे तरक्की कर सका और क्यों नहीं अपने स्थानीय धर्मो को बचा सका।जबकि नार्थ कोरिया इन दोनो मे सक्षाम है। उत्तर है सिर्फ़ और सिर्फ़ एफ़ डी आई। क्योंकि एफ़ डी आई के द्वारा जो विदेशी कम्पनियां आती हैं वो सरकार , अफ़सरों इत्यादि को घूस देकर स्वदेशी कम्पनियों के विकास को रोकवा देते हैं। तथा ईसाई मिशनरियों को दवाईयां मुफ़्त मे देते है तथा स्कूल तथा हस्पताल चलवाने के लिये फ़ंड देते हैं जिससे ईसाईयत फ़ैले। और उस देश को हथिय़ार निर्माण के क्षेत्र मे भी आत्मनिर्भर नही होने देते क्योंकि विदेशी कम्पनियों को डर रहता है कि अगर उस देश की सेना मजबूत हुई तो बोरिया बिस्तर समेट कर अपने देश वापस जाने की नौबत आ सकती है। और इसीलिये विदेशी कम्पनियां घूस इत्यादि देकर देश को हथियार निर्माण मे सक्षम होने से रोके रखती हैं।
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भारत में भी आज वैसा ही कुछ हो रहा है जो साऊथ कोरिया मे हुआ। यहां भी विदेशी मीडीया द्वारा दी गयी पब्लिसिटी के फ़लस्वरूप जो सरकार केंद्र मे आई है वो भी साऊथ कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति पार्क चुंग ही के रास्ते पर चल कर एफ़ डी आई ला रही है जिससे ईसाईयत फ़ैले और हथियार निर्माण मे देश सक्षम न हो। ध्यान रखियेगा कि एफ़ डी आई इन डीफ़ेंस साऊथ कोरिया मे भी है मगर वह आज तक हथियार निर्माण मे आत्मनिर्भर
न हो सका।
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SOLUTION:-
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इन कानूनों के ड्राफ्ट को क़ानून का रूप देने को आप अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/sms / पोस्टकार्ड / ट्विटर इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप आदेश भेजें, यह आदेश पूर्णतया सांवैधानिक है क्योकि भारत एक संप्रभु व जनतंत्र देश है. दुनिया भर में जनतांत्रिक संसद या संसदीय लोकतंत्र के बारे में राय है की जबतक इस संसदीय जनतंत्र पर जनता का दबाव नहीं होगा तब तक यह जनतंत्र भेड़-तंत्र अर्थात जनता भेड़ बनी रहेगी और नेता भेड़िया बनकर जनता का खून पिएगा. खैर...
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आप अपना सांवैधानिक आदेश अपने नेताओं को इस तरह भेज सकते हैं- 
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186 क़ानून को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर भारत में लाये जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या-xyz"
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जय हिन्द.
NOTE :- The religion based Census Data has been taken from Wikipedia:-

Comments

  1. निधीजी आपकी पोस्टे पढी सुधार के दो रास्ते है चीन कि तरह शासन व दुसरा चुनाव प्रणाली मे 51प्रतिशत पर जीत व सनातक से कम पढे जनप्रतिनिधित्व पर प्रतिबंद

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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.

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