इतने सारे एन जी ओ भारत की स्थिति को सुधारने के लिए कार्य कर रहे थे, तो भी यहाँ की स्थिति में कुछ सुधार हुआ क्यूँ नहीं?
ये सर्ववीदित है कि हमारे देश भारत की बेहतरी के लिए यहाँ पे हजारों एन जी ओ कार्यरत हैं, और उनकी संख्या इतनी अधिक है की लगभग हर चार सौ व्यक्तियों पर एक एन जी ओ कार्यरत है. इस विषय पर अगर गूगल सर्च किया जाए तो आपको और भी अधिक जानकारी मिल जायेगी.
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लेकिन क्या आपमें से किसी ने कभी सोचा है कि अगर हमारे देश की बेहतरी (उदाहरण के लिए गरीब/दलित बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए, भोजन उपलब्ध करवाने के लिए, वस्त्र उपलब्ध करवाने के लिए, चाइल्ड-राइट्स के लिए, बच्चों के महिलाओं केे सही स्वास्थ्य की स्थिति के लिए, बूढ़े लोगों की सहायता के लिए, महिलाओं-बच्चियों की शिक्षा के लिए और अन्य सम्बंधित एवं ऐसे ही मुद्दे) वाले कार्यों के लिए अनगिनत एन जी ओ कार्यरत हैं, लेकिन फिर भी कुछ हो नहीं रहा, क्यों?
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उपरोक्त मुद्दों पर भारत की स्थिति कोई ख़ास सुधर तो नहीं रही, हाँ ये हो रहा है कि गरीब की परिभाषा में बदलाव हुआ था कांग्रेस के राज्य में, जिससे गरीबी उन्मूलन में क्षद्म सुधार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिखाया जा सके कि हाँ, हम बेहतर कार्य कर रहे हैं.
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लेकिन क्या आपमें से किसी ने कभी सोचा है कि अगर हमारे देश की बेहतरी (उदाहरण के लिए गरीब/दलित बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए, भोजन उपलब्ध करवाने के लिए, वस्त्र उपलब्ध करवाने के लिए, चाइल्ड-राइट्स के लिए, बच्चों के महिलाओं केे सही स्वास्थ्य की स्थिति के लिए, बूढ़े लोगों की सहायता के लिए, महिलाओं-बच्चियों की शिक्षा के लिए और अन्य सम्बंधित एवं ऐसे ही मुद्दे) वाले कार्यों के लिए अनगिनत एन जी ओ कार्यरत हैं, लेकिन फिर भी कुछ हो नहीं रहा, क्यों?
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उपरोक्त मुद्दों पर भारत की स्थिति कोई ख़ास सुधर तो नहीं रही, हाँ ये हो रहा है कि गरीब की परिभाषा में बदलाव हुआ था कांग्रेस के राज्य में, जिससे गरीबी उन्मूलन में क्षद्म सुधार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिखाया जा सके कि हाँ, हम बेहतर कार्य कर रहे हैं.
बात करते हैं, उन एनजीओ के बारे में जो भारत को बेहतर बनाने के लिए कार्य करते है लेकिन उनकी सूची में भारत को बचाने की कोई योजना नहीं है !!!
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मेरा ऐसे की एनजीओ से सामना हुआ है जो शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और दलितों, गरीबों, बच्चों आदि के लिए सेवा कार्य करते है। मैं उनके कार्यकर्ताओ का समर्थन करता हूँ पर उन कर मुक्त अनुदानों का विरोध करता हूँ जो वे सरकारों और संस्थाओं से प्राप्त करते है, और देखने में यह आया है कि इन्हे सरकारों द्वारा कर मुक्त अनुदान काफी प्रिय है और ये किसी भी कीमत पर इन अनुदानों को छोड़ना नहीं चाहते !!!
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खैर इसे जाने दीजिये। लेकिन मैं अक्सर उनसे दो प्रश्न पूछता हूँ --- (q1) ठीक है, आप भारत को बेहतर बनाने के लिए कार्य कर रहे है, लेकिन आप भारत को 'अमेरिका-ब्रिटेन' से बचाने के लिए क्या प्रयास कर रहे है ? (q2) भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बिच बिगड़ते शक्ति अनुपात को बेहतर बनाने के लिए उनके पास क्या योजना है ?
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क्योंकि मेरे विचार में यदि भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बीच शक्ति अनुपात इसी तरह से बिगड़ता रहा तो 1750 में हुए हादसे के फिर से दोहराव को रोका नहीं जा सकेगा।
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ये दो प्रश्न उन्हें चौंका सकते है।
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कई एनजीओ के कार्यकर्ताओ को लगता है कि भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बीच बिगड़ते शक्ति अनुपात के कोई मायने नहीं है !! उन्होंने अपने जीवन में इस बात पर कभी विचार नहीं किया कि अमेरिका-ब्रिटेन की ताकत लगातार बढ़ रही है। वे इस खुशफहमी में है कि अमेरिका-ब्रिटेन कभी भी भारत को टेक ओवर करने की कोशिश नहीं करेंगे चाहे भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बीच शक्ति अनुपात कितना ही क्यों न बिगड़ जाए। हद तो यह है कि उनका मानना है -- भारत पर्याप्त रूप से इतना सक्षम है कि यदि अमेरिका-ब्रिटेन भारत की दशा ईराक और लीबिया जैसी बनाने की कोशिश करता है तो भारत आसानी से निपट लगा !!!
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मेरा बिंदु यह है कि --- ऐसे सभी कार्यो की सूची जिसमे भारत को बेहतर बनाने के कार्यो को रखा गया है किन्तु भारत को अमेरिका-ब्रिटेन से 'बचाने' के कार्यो को सम्मिलित नहीं किया गया है, पूरी तरह से अनुपयोगी तो है ही, देश की उत्तरजीविता के लिए खतरनाक भी है। इसीलिए हमें उन कार्यों को भी तरजीह देनी पड़ेगी जिससे भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बीच बिगड़ते शक्ति अनुपात को गिरने से रोका जा सके।
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इस मामले में कम से कम संघ/बीजेपी के कार्यकर्ताओ मान्यता कुछ अलग सी है --- वे यह तो मानते है कि भारत अमेरिका-ब्रिटेन की सैन्य शक्ति के बढ़ते खतरे का सामना कर रहा है, लेकिन इसके निदान के लिए वे काफी रोचक तरीका सुझाते है। उनका कहना है कि --- मोदी साहेब और सिर्फ मोदी साहेब की पूजा भक्ति से ही इस समस्या से निपटा जा सकता है !! वे मोदी साहेब को सुपरमैन की तरह आंकते है, जो अमेरिका-ब्रिटेन की सेना को पलक झपकते ही निपटा देंगे !!! जब उन्हें कहा जाता है कि भय्या ऐसा नहीं होता, और हमें अपनी सेना को मजबूत बनाने के लिए अच्छे क़ानून ड्राफ्ट्स की आवश्यकता है तो वे प्रत्युत्तर में कहते है कि मोदी साहेब जल्दी ही अच्छे कानून लागू करेंगे। और वे अच्छे क़ानून ड्राफ्ट्स कौनसे है ? तो जवाब मिलता है कि -- खामोशी से देखते जाओ और मोदी साहेब की भक्ति करो !! इस तरह बीजेपी/संघ के कार्यकर्ता भी अल्टीमेटली कांग्रेस/आम पार्टी के कार्यकर्ताओ की लाइन ले लेते है !!! पर कुल मिलाकर इस विषय पर बीजेपी/संघ के कार्यकर्ता इस लिहाज से कांग्रेस/आम पार्टी से ज्यादा बेहतर स्थिति में है कि वे कम से कम भारत पर अमेरिका-ब्रिटेन बढ़ते खतरे को स्वीकार करते है।
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कुल मिलाकर ज्यादातर एनजीओ के एजेंडे में सिर्फ भारत को बेहतर बनाने की योजना है भारत को 'बचाने' की नही। और इन एनजीओ द्वारा प्रस्तावित उपाय इतने धीमे है कि इस दौरान अमेरिका-ब्रिटेन की ताकत लगातार बढ़ती जायेगी। इसीलिए हमारा आग्रह है कि कार्यकर्ताओ इन एनजीओ की गतिविधियों में अपना समय बर्बाद करने की जगह राईट टू रिकॉल पार्टी द्वारा प्रस्तावित राइट तू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टैक्स, एमआरसीएम आदि कानूनों ड्राफ्ट्स को गैजेट में प्रकाशित करवाने के लिए प्रयास करने चाहिए।
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हमारी समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए जो भी क़ानून वर्तमान तौर पर मौजूद हैं, उन सभी में ऐसे ऐसे लूप-होल्स हैं, जिनसे वास्तविक पीडीत को लाभ कम मामलों में ही मिल पाता है, सभी जरूरत-मंद लोगों की समस्याओं के स्थायी निराकरण के लिए सम्बद्न्हित क़ानून को बदल कर उनके बदले में सुधारात्मक क़ानून को लाये जाने की जरूरत है, जिसके लिए जनांदोलन चलाये जाने की जरूरत है.
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जनता को ऐसे लोगों को अपने वोटों से चुनकर कुर्सी पर बैठाने का ही अधिकार नहीं, बल्कि भ्रष्ट बयान देने वालों को उनके कुर्सी से निकालने का भी अधिकार होना चाहिए. हमे नेता द्वारा पास किये जा रहे कानूनों पर ध्यान देना चाहिए, यदि वो अच्छे क़ानून बनाता है तो समर्थन करे, और बुरे कानूनों की आलोचना करे । इससे नेता पर अच्छे कानूनों को पास करने का दबाव बना रहता है। मूल विषयों पर ध्यान बनाए रखे
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समस्या के निवारण के लिए यहाँ के नागरिकों को अपने नेताओं/मंत्रियों/संसदीय क्षेत्र के नेता लोगों और संसद में बैठे नेता लोगों को अपना आदेश इस तरह से भेजना चाहिए की
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मेरा ऐसे की एनजीओ से सामना हुआ है जो शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और दलितों, गरीबों, बच्चों आदि के लिए सेवा कार्य करते है। मैं उनके कार्यकर्ताओ का समर्थन करता हूँ पर उन कर मुक्त अनुदानों का विरोध करता हूँ जो वे सरकारों और संस्थाओं से प्राप्त करते है, और देखने में यह आया है कि इन्हे सरकारों द्वारा कर मुक्त अनुदान काफी प्रिय है और ये किसी भी कीमत पर इन अनुदानों को छोड़ना नहीं चाहते !!!
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खैर इसे जाने दीजिये। लेकिन मैं अक्सर उनसे दो प्रश्न पूछता हूँ --- (q1) ठीक है, आप भारत को बेहतर बनाने के लिए कार्य कर रहे है, लेकिन आप भारत को 'अमेरिका-ब्रिटेन' से बचाने के लिए क्या प्रयास कर रहे है ? (q2) भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बिच बिगड़ते शक्ति अनुपात को बेहतर बनाने के लिए उनके पास क्या योजना है ?
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क्योंकि मेरे विचार में यदि भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बीच शक्ति अनुपात इसी तरह से बिगड़ता रहा तो 1750 में हुए हादसे के फिर से दोहराव को रोका नहीं जा सकेगा।
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ये दो प्रश्न उन्हें चौंका सकते है।
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कई एनजीओ के कार्यकर्ताओ को लगता है कि भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बीच बिगड़ते शक्ति अनुपात के कोई मायने नहीं है !! उन्होंने अपने जीवन में इस बात पर कभी विचार नहीं किया कि अमेरिका-ब्रिटेन की ताकत लगातार बढ़ रही है। वे इस खुशफहमी में है कि अमेरिका-ब्रिटेन कभी भी भारत को टेक ओवर करने की कोशिश नहीं करेंगे चाहे भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बीच शक्ति अनुपात कितना ही क्यों न बिगड़ जाए। हद तो यह है कि उनका मानना है -- भारत पर्याप्त रूप से इतना सक्षम है कि यदि अमेरिका-ब्रिटेन भारत की दशा ईराक और लीबिया जैसी बनाने की कोशिश करता है तो भारत आसानी से निपट लगा !!!
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मेरा बिंदु यह है कि --- ऐसे सभी कार्यो की सूची जिसमे भारत को बेहतर बनाने के कार्यो को रखा गया है किन्तु भारत को अमेरिका-ब्रिटेन से 'बचाने' के कार्यो को सम्मिलित नहीं किया गया है, पूरी तरह से अनुपयोगी तो है ही, देश की उत्तरजीविता के लिए खतरनाक भी है। इसीलिए हमें उन कार्यों को भी तरजीह देनी पड़ेगी जिससे भारत और अमेरिका-ब्रिटेन के बीच बिगड़ते शक्ति अनुपात को गिरने से रोका जा सके।
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इस मामले में कम से कम संघ/बीजेपी के कार्यकर्ताओ मान्यता कुछ अलग सी है --- वे यह तो मानते है कि भारत अमेरिका-ब्रिटेन की सैन्य शक्ति के बढ़ते खतरे का सामना कर रहा है, लेकिन इसके निदान के लिए वे काफी रोचक तरीका सुझाते है। उनका कहना है कि --- मोदी साहेब और सिर्फ मोदी साहेब की पूजा भक्ति से ही इस समस्या से निपटा जा सकता है !! वे मोदी साहेब को सुपरमैन की तरह आंकते है, जो अमेरिका-ब्रिटेन की सेना को पलक झपकते ही निपटा देंगे !!! जब उन्हें कहा जाता है कि भय्या ऐसा नहीं होता, और हमें अपनी सेना को मजबूत बनाने के लिए अच्छे क़ानून ड्राफ्ट्स की आवश्यकता है तो वे प्रत्युत्तर में कहते है कि मोदी साहेब जल्दी ही अच्छे कानून लागू करेंगे। और वे अच्छे क़ानून ड्राफ्ट्स कौनसे है ? तो जवाब मिलता है कि -- खामोशी से देखते जाओ और मोदी साहेब की भक्ति करो !! इस तरह बीजेपी/संघ के कार्यकर्ता भी अल्टीमेटली कांग्रेस/आम पार्टी के कार्यकर्ताओ की लाइन ले लेते है !!! पर कुल मिलाकर इस विषय पर बीजेपी/संघ के कार्यकर्ता इस लिहाज से कांग्रेस/आम पार्टी से ज्यादा बेहतर स्थिति में है कि वे कम से कम भारत पर अमेरिका-ब्रिटेन बढ़ते खतरे को स्वीकार करते है।
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कुल मिलाकर ज्यादातर एनजीओ के एजेंडे में सिर्फ भारत को बेहतर बनाने की योजना है भारत को 'बचाने' की नही। और इन एनजीओ द्वारा प्रस्तावित उपाय इतने धीमे है कि इस दौरान अमेरिका-ब्रिटेन की ताकत लगातार बढ़ती जायेगी। इसीलिए हमारा आग्रह है कि कार्यकर्ताओ इन एनजीओ की गतिविधियों में अपना समय बर्बाद करने की जगह राईट टू रिकॉल पार्टी द्वारा प्रस्तावित राइट तू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टैक्स, एमआरसीएम आदि कानूनों ड्राफ्ट्स को गैजेट में प्रकाशित करवाने के लिए प्रयास करने चाहिए।
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हमारी समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए जो भी क़ानून वर्तमान तौर पर मौजूद हैं, उन सभी में ऐसे ऐसे लूप-होल्स हैं, जिनसे वास्तविक पीडीत को लाभ कम मामलों में ही मिल पाता है, सभी जरूरत-मंद लोगों की समस्याओं के स्थायी निराकरण के लिए सम्बद्न्हित क़ानून को बदल कर उनके बदले में सुधारात्मक क़ानून को लाये जाने की जरूरत है, जिसके लिए जनांदोलन चलाये जाने की जरूरत है.
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जनता को ऐसे लोगों को अपने वोटों से चुनकर कुर्सी पर बैठाने का ही अधिकार नहीं, बल्कि भ्रष्ट बयान देने वालों को उनके कुर्सी से निकालने का भी अधिकार होना चाहिए. हमे नेता द्वारा पास किये जा रहे कानूनों पर ध्यान देना चाहिए, यदि वो अच्छे क़ानून बनाता है तो समर्थन करे, और बुरे कानूनों की आलोचना करे । इससे नेता पर अच्छे कानूनों को पास करने का दबाव बना रहता है। मूल विषयों पर ध्यान बनाए रखे
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समस्या के निवारण के लिए यहाँ के नागरिकों को अपने नेताओं/मंत्रियों/संसदीय क्षेत्र के नेता लोगों और संसद में बैठे नेता लोगों को अपना आदेश इस तरह से भेजना चाहिए की
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको, ये आदेश देता/ती हूँ कि खनिज रॉयल्टी सीधे नागरिको के खाते में भेजे जाने के लिए प्रस्तावित कानून (DDMRCM) का ड्राफ्ट( यह क़ानून गरीब लोगों को कुछ राहत पहुंचा सकती है)
www.facebook.com/pawan.jury/posts/811075642344007 को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दें, अन्यथा मैं आपको वोट नहीं दूंगा/दूँगी. वोटर संख्या- xyz. "
"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको, ये आदेश देता/ती हूँ कि खनिज रॉयल्टी सीधे नागरिको के खाते में भेजे जाने के लिए प्रस्तावित कानून (DDMRCM) का ड्राफ्ट( यह क़ानून गरीब लोगों को कुछ राहत पहुंचा सकती है)
www.facebook.com/pawan.jury/posts/811075642344007 को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दें, अन्यथा मैं आपको वोट नहीं दूंगा/दूँगी. वोटर संख्या- xyz. "
अन्य आवश्यक सुधारात्मक ड्राफ्ट्स जिसको लाकर हमारे कोर्ट सिस्टम में न्याय मिलना त्वरित एवं अत्यंत कम खर्चे में हो सकता है, स्पेशल इकनोमिक जोन में मारीशस रूट एवं अन्य कंपनियों को जो फायदे मिल रहे हैं को कैसे समाप्त किया जासकता है, बलात्कार जैसी दुर्घटनाओं को कम कैसे किया जा सकता है, और न्याय कैसे आसान हो सकता है, के लिए हम भारतीय लोग कैसे सुधारात्मक क़ानून का दर्जा दिलवा सकते हैं, इसके लिए कृपया-
यह लिंक पढ़ें, और अगर आपको इन कानूनों को लाने में रूचि हो तो उस ड्राफ्ट के लिंक में दिए ड्राफ्ट को गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप देने की मांग अपने नेताओं से करें.
जय हिन्द.
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.