मंदिर के ट्रस्टियों को ये अधिकार किसने दे दिया कि वे श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित सामग्री सरकार के हवाले करें?
तिरुपति बालाजी के ट्रस्टियों की संख्या 18 है। और ये 18 लोग यह तय कर सकते है कि लाखों हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान को सरकार के हवाले कर दिया जाना चाहिए या नहीं। वो भी दानदाताओं से बिना पूछे !! न तो करोडो हिन्दू हिन्दुओ ने इन्हें चुना है और न ही इन्हें निकाला जा सकता है। इस तरह से देखने से मालूम होता है कि मंदिर करोडो हिन्दुओ का है लेकिन इन करोडो नागरिकों द्वारा दान की गयी संपत्ति को खर्च करने का अधिकार ट्रस्टियों के पास है।
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◆भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है और सरकार भी वैधानिक रूप से धर्म निरपेक्ष तरीके से ही कार्य करती है। तब कोई सरकार किसी हिन्दू मंदिर के स्वर्ण भंडारों को अपने नियंत्रण में लेने का प्रयास क्यों कर रही है। क्या सरकार देश के 'विकास' के लिए चर्चो की संपत्ति भी अपने नियंत्रण में लेने का साहस दिखाएगी ? भूल जाइये। क्योंकि चर्च अपनई संपत्ति का संग्रहण नहीं करते। वे दान का उपयोग पिछड़े हुए इलाको में स्कूल और अस्पतालों के संचालन में करते है। और इसी कारण वे आसानी से धर्मांतरण कर पाते है। हिन्दू मंदिर खजाना इकट्ठा करते है और सरकार को सुपुर्द कर देते है।
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■हमारा प्रस्ताव है कि मंदिरों में जमा धनराशि का उपयोग सिर्फ हिन्दू धर्म के उत्थान और हिन्दू धर्मावलम्बियों से सम्बंधित परोपकारी कार्यों में ही किया जाना चाहिए। ऐसा करने के लिए मंदिरों के ट्रस्टियों पर हिन्दू श्रद्धालुओं का नियंत्रण आवश्यक है। यदि मंदिरों के ट्रस्टियों को चुनने और नौकरी से निकालने का अधिकार हिन्दू श्रद्धालुओं के पास होगा तो वे इस खजाने का इस्तेमाल हिन्दू धर्म के उत्थान में करेंगे। वरना जैसा कि हो रहा है ट्रस्टी प्रलोभन या दबाव में मंदिर के खजानों को सरकार के नियंत्रण में दे देंगे।
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■समाधान ?
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हमने इसके लिए 'राष्ट्रीय देवालय ट्रस्ट अधिनियम' के कानूनी ड्राफ्ट का प्रस्ताव किया है। इस क़ानून के गैजेट में प्रकाशित होने से हिन्दू नागरिकों को मंदिर प्रमुखों को चुनने और उन्हें नौकरी से निकालने का अधिकार मिल जाएगा। प्रस्तावित क़ानून का ड्राफ्ट निचे दिए गए लिंक पर पढ़ा जा सकता है। यदि आप इस कानों ड्राफ्ट का समर्थन करते है तो अपने सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे की इस क़ानून को गैजेट में प्रकाशित किया जाए।
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●राष्ट्रीय हिन्दू देवालय प्रबंधक ट्रस्ट के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/570764579768407
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#Righttorecall
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◆भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है और सरकार भी वैधानिक रूप से धर्म निरपेक्ष तरीके से ही कार्य करती है। तब कोई सरकार किसी हिन्दू मंदिर के स्वर्ण भंडारों को अपने नियंत्रण में लेने का प्रयास क्यों कर रही है। क्या सरकार देश के 'विकास' के लिए चर्चो की संपत्ति भी अपने नियंत्रण में लेने का साहस दिखाएगी ? भूल जाइये। क्योंकि चर्च अपनई संपत्ति का संग्रहण नहीं करते। वे दान का उपयोग पिछड़े हुए इलाको में स्कूल और अस्पतालों के संचालन में करते है। और इसी कारण वे आसानी से धर्मांतरण कर पाते है। हिन्दू मंदिर खजाना इकट्ठा करते है और सरकार को सुपुर्द कर देते है।
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■हमारा प्रस्ताव है कि मंदिरों में जमा धनराशि का उपयोग सिर्फ हिन्दू धर्म के उत्थान और हिन्दू धर्मावलम्बियों से सम्बंधित परोपकारी कार्यों में ही किया जाना चाहिए। ऐसा करने के लिए मंदिरों के ट्रस्टियों पर हिन्दू श्रद्धालुओं का नियंत्रण आवश्यक है। यदि मंदिरों के ट्रस्टियों को चुनने और नौकरी से निकालने का अधिकार हिन्दू श्रद्धालुओं के पास होगा तो वे इस खजाने का इस्तेमाल हिन्दू धर्म के उत्थान में करेंगे। वरना जैसा कि हो रहा है ट्रस्टी प्रलोभन या दबाव में मंदिर के खजानों को सरकार के नियंत्रण में दे देंगे।
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■समाधान ?
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हमने इसके लिए 'राष्ट्रीय देवालय ट्रस्ट अधिनियम' के कानूनी ड्राफ्ट का प्रस्ताव किया है। इस क़ानून के गैजेट में प्रकाशित होने से हिन्दू नागरिकों को मंदिर प्रमुखों को चुनने और उन्हें नौकरी से निकालने का अधिकार मिल जाएगा। प्रस्तावित क़ानून का ड्राफ्ट निचे दिए गए लिंक पर पढ़ा जा सकता है। यदि आप इस कानों ड्राफ्ट का समर्थन करते है तो अपने सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे की इस क़ानून को गैजेट में प्रकाशित किया जाए।
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●राष्ट्रीय हिन्दू देवालय प्रबंधक ट्रस्ट के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/570764579768407
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.